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छोटे-छोटे भूकंप एनसीआर और हिमालय के लिए अच्छे हैं!

भूकंप वैज्ञानिकों के अनुसार, लगातार आ रहे छोटे भूकंप के कारण भूकंपीय ऊर्जा जमीन के नीचे निकलती रहेगी। अगर ये छोटे छोटे भूकंप न आये तो भूकंपीय ऊर्जा जमीन के नीचे ही जमा होती रहेगी।
छोटे-छोटे भूकंप एनसीआर और हिमालय के लिए अच्छे हैं!

देहरादून। एनसीआर में लगातार आ रहे भूकंप का कारण हिमालय बेसिन के नीचे मौजूद यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेटस का इंडियन प्लेट से टकराना है। इस टकराहट से हिमालय पर्वत श्रंखलाओं से दो सौ किमी दूर एनसीआर में ट्रांसफर फॉल्ट विकसित होने लगे है। जिसके कारण एनसीआर और उसके आसपास के इलाकों में पिछले कुछ सालों से तीन से चार रिक्टर के छोटे भूकंप लगातार महसूस किए जा रहे हैं। भूकंप वैज्ञानिकों के अनुसारलगातार आ रहे छोटे भूकंप के कारण भूकंपीय ऊर्जा जमीन के नीचे निकलती रहेगी। अगर ये छोटे छोटे भूकंप न आये तो भूकंपीय ऊर्जा जमीन के नीचे ही जमा होती रहेगी। जिसके चलते भविष्य में हिमालय समेत एनसीआर में बड़ा भूकंप आने की संभावना बन सकती है।

 वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक और भू-भौतिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ सुशील कुमार ने एनसीआर में आ रहे छोटे भूकंप पर शोध किया है। उन्होंने बताया किहिमालयी श्रृंखलाओं के सैकड़ों किलोमीटर नीचे आने वाले हल्के भूकंप भविष्य के बड़े भूकंप का पूर्वानुमान दे सकते हैं। लेकिन ऐसे छोटे भूकंपों को मॉनिटर कर उन पर शोध करना अभी तक असंभव था। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्था ने उत्तराखंड और हिमाचल में इन छोटे झटकों को पकड़ने वाले उपकरण सिस्मोग्राफ और एक्सलरोग्राफ लगाये है। इन उपकरणों से रीडिंग मिलने लगी है। जिसके बाद हिमालय क्षेत्र के लाखों लोगों को बचाने के लिए गहन शोध भी शुरू हो गया है।

 हिमालय में लगातार आ रहे भूकंप पर हो रहे शोध में ये भी सामने आया कि प्लेटस के आपस में टकराने से जो घर्षण हो रहा हैउसका असर एनसीआर में भी हो रहा है। वैज्ञानिक भाषा में उसे हिमालय के नीचे उत्पन्न हुये मैन बाउंड्री थ्रस्ट के कारण 200 किमी दूर तक ट्रांसफर फॉल्ट विकसित हो रहा है। इस टकराहट से जहां हिमालय की ऊंचाई हर साल 20 से 30 एमएम तक बढ़ती हैवहीं लगातार भूकंप भी आता है।

 वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक डॉ. सुशील बताते हैं कि पूरी दुनिया में हिमालयन रेंज से लगते देश भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। क्योंकि इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट दोनों एक दूसरे से नीचे खिसक रही है। लिहाजाहर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते हैं। लेकिन जब इन दोनों प्लेटों को टकराने के लिए ज्यादा गेप मिल जाता है तो टकराहट जोरदार होती है जो बेहद तेज कंपन (उदाहरण नेपाल भूकंप) पैदा करती है। लेकिन इन बड़े भूकंप से पहले छोटी टकराहट होती है। जो रिक्टर एक से तीन तक के भूकंप लाते है। अगर ये छोटे छोटे भूकंप लगातार आते रहे तो बड़े भूकंप की आशंका कम हो जाती है। 

 ऊंचा ही नहींदक्षिण की तरफ भी खिसक रहा है हिमालय

 वाडिया संस्थान ने इस शोध के लिये कुमाऊं- गढ़वाल और नेपाल हिमालय (तिब्बत से

उत्तराखंड वाला भूभाग) में नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआइ) समेत अन्य संस्थानों ने जीपीएस स्टेशन स्थापित किए हैं। अध्ययन से पता चला कि यहां का हिमालयी भूभाग प्रतिवर्ष 18 मिलीमीटर की दर से दक्षिण की तरफ खिसक रहा हैजबकि शेष हिमालयी क्षेत्र में यह दर 12 से 16 मिलीमीटर के बीच है। अधिक सक्रियता के चलते निरंतर भूकंपीय ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। 

 रिक्टर आठ का भूकंप आया तो आयेगी सुनामी

 सन् 1503 के बाद से उत्तराखंड में आठ रिक्टर का भूकंप नहीं आया है। इसी तरह 1803 और 1905 में भी बड़े भूकंप आ चुके हैं। नब्बे के दशक में उत्तरकाशी और चमोली में भूकंप आये थेलेकिन वो बड़े भूकंप नहीं थे। हालांकि जनसंख्या घनत्व ज्यादा होने के कारण जानमाल का नुकसान ज्यादा हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसारहिमालय में भविष्य में अगर कोई बड़ा भूकंप आया तो बड़ी सुनामी आ सकती है।

 डॉ. सुशील कुमार बताते हैं कि हिमालय में इस समय लगभग दस हजार ग्लेशियर से बनी झीले हैं। अगर रिक्टर आठ का भूकंप आता है तो इन झीलों में पानी पचास मीटर तक ऊपर उठ सकता है। ये सभी झीले सिस्मिक जॉन पर है। यानी ये झीले सबसे ज्यादा भूकंप आने वाली भूगर्भीय क्षेत्रों में मौजूद है। उन्होंने बताया 1934 में ऐसा हो चुका है।

 

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