NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
“छुट्टियो न रहे एतवार, लोगवा देखs तनी कइसन हsई सरकार...”
बिहार में आशा कार्यकर्ता पिछले एक दिसंबर से अपनी 15 सूत्री मांगों के लिए अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर हैं, लेकिन राज्य की ‘सुशासनी’ सरकार उनकी कोई सुनवाई नहीं कर रही।
अनिल अंशुमन
10 Dec 2018
asha workers

“...छुट्टियो न रहे एतवार (रविवार) लोगवा देखs तनी, कइसन हsई सरकार लोगवा देखs तनी....” ये लोकगीत इन दिनों बिहार में आंदोलनकारी आशाकर्मी कार्यकर्ताओं का नारा बन गया है जो पिछले 1 दिसंबर से “आशा संयुक्त संघर्ष समिति” के बैनर तले अपनी 15 सूत्री मांगों के लिए अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर हैं। केंद्र सरकार से निर्धारित प्रोत्साहन राशि प्रदेश की सरकार द्वारा अविलंब दिये जाने व उसका नियमित भुगतान करने तथा नौकरी के स्थायीकरण समेत अपने सम्मानजनक भरण पोषण की मांगों को वे सरकार के सामने लगातार उठातीं रहीं हैं। 
गत 11 सितंबर’18 को प्रधानमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग से देश भर की आशा कार्यकर्ताओं से बात की और उनकी महती भूमिका की सराहना करते हुए केंद्र से दिये जानेवाली 3000 रुपये की प्रोत्साहन राशि को दुगुनी करने की घोषणा की थी। साथ ही केंद्र सरकार की ओर से मुफ्त बीमा सुविधा देने की भी बात कही जबकि केरल, तेलंगाना व कुछ अन्य राज्यों मेँ पहले से ही केंद्र की देय राशि के अलावा राज्य सरकार की ओर से भी प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। लेकिन बिहार एनडीए सरकार के ‘सुशासनी’ रवैये को देखकर यही कहा जा सकता है कि उनके लिए प्रधानमंत्री की घोषणा का कोई महत्व नहीं है। राज्य सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन राशि देना तो दूर सन् 2011 में केंद्र से दी जानेवाली 3000 रुपये की ही राशि देने पर अड़ी हुई है।जबकि यह राशि भी केंद्र सरकार ने दुगुनी कर दी है। हद तो ये है कि यह राशि भी नियमित रूप से नहीं देकर बिहार की सरकार सभी आशा कार्यकर्ताओं से बंधुआ मजदूर की तरह काम करा रही है। राज्य के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री जो हर मौकों पर स्त्री सशक्तिकरण के लिए अपनी सरकार के अव्वल काम करने का ढिंढोरा तो खूब पीटते हैं, लेकिन गाँव की गरीब महिलाओं की स्वास्थ्य के लिए पूरी निष्ठा से काम कर रहीं हज़ारों हज़ार आशाकर्मी महिलाओं के सवालों से उन्हें कोई मतलब नहीं है। 

यह भी पढ़ें : वाम दल हड़ताली आशा कार्यकर्ताओं के साथ आए, नीतीश से हस्तेक्षप की मांग

ashakarmi 3.jpg

2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के तहत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए भारत में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गयी थी। जिसके तहत देश के प्राय: सभी राज्यों में 8.70 आशा कार्यकर्ताओं (एक्रिडाइटेल सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट–मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) का चयन व प्रशिक्षित कर महिलाओं का नियोजन किया गया। उसी का परिणाम है कि आज अगर देश के ग्रामीण इलाकों के आमलोगों को जो थोड़ी बहुत सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ मिल पा रहीं हैं, जो गाँव-गाँव जाकर दिन हो या रात हो, गर्भवती महिलाओं व शिशुओं की आवश्यक स्वास्थ्य सहायता करने से लेकर सरकार द्वारा चलायी जा रहे सभी जन योजनाओं का प्रचार प्रसार कर जागरूक बना रहीं हैं वह यही आशा कार्यकर्ता हैं। इसीलिए आज इन्हें देश में चलाये जा रहे स्वास्थ्य के सबसे बड़े फ्लैगशिप प्रोग्राम की रीढ़ माना जा रहा है। सरकार की रिपोर्ट ही बताती है कि आज गांवों में इन आशा कार्यकर्ताओं के कारण ही संस्थागत प्रसव कार्य सर्व सुलभ हो सका है जिससे मातृ–शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आई है।
आशा कार्यकर्ता का आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में से ही चयन किया जाता है। इसके बाद सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन्हें प्रशिक्षित कर विभाग द्वारा निर्धारित कार्यक्षेत्रों में लगाया जाता है। जहां उन्हें गाँव के लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा लेने व उन्हें स्वास्थ्य केंद्र पाहुंचाने तथा स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने जैसे 8 प्रकार के निर्दिष्ट कार्य करने होते हैं। इसके अलावा बाल विवाह, घरेलू हिंसा व दहेज जैसी कुरीतियों के खिलाफ तथा शराबबंदी के लिए सरकार द्वारा संचालित अन्य कई योजनाओं के प्रचार–प्रसार के काम भी करने होते हैं। शुरूआत में इन आशाकर्मियों के लिए कोई निश्चित मानदेय नहीं तय था लेकिन 2011 में देश के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा 3000 रुपये प्रतिमाह प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा के पश्चात मानदेय निर्धारित हुआ। इसके नियमित भुगतान लेने के लिए भी आज बिहार की महिला आशा वर्करों को आंदोलन करना पड़ रहा है। आज अशाकर्मियों की हड़ताल के कारण राज्य के सभी स्वास्थ्य केन्द्र लगभग ठप्प हो गए हैं और पूरी ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा सी गयी है। 
हड़ताली आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि हमें पता है कि हमारी हड़ताल से गाँव की गरीब महिलाओं को काफी परेशानी हो रही है लेकिन हम भी मजबूर कर दिये गए हैं। राज्य सरकार बिना वेतन दिये बंधुआ मजदूर की तरह सिर्फ हमसे काम करा रही है और सरकारी सेवक का दर्जा भी नहीं दे रही है। राज्य में स्वास्थ्य सेवा सुदृढ़ करने के नाम पर हमारा नियोजन कर मुख्यमंत्री ने सिर्फ ठगने का काम किया है, जबकि हम आशाकर्मियों की दिन-रात की सक्रियता से  ही आज पूरे ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे तैसे चल पा रही है। ऐसे में राज्य की सरकार तथा स्वास्थ्य विभाग द्वारा आशा वर्करों की ज़रूरी मांगों पर कोई संज्ञान नहीं लिया जाना, दर्शाता है कि उन्हें न तो हड़ताली अशाकर्मियों से कोई मतलब है और न ही लोगों को हो रही परेशानियों की परवाह है। लेकिन यह भी सनद रखने की ज़रूरत है कि वर्तमान मुख्यमंत्री जी व उनकी पार्टी को पिछले चुनाव में विजयी बनाने में जिन ग्रामीण महिला मतदाताओं का भारी योगदान रहा है, इस बार वह कहीं पलट न जाये। 

Asha Workers Strike
Nitish Kumar
asha workers
Bihar
bjp-jdu
workers protest

Trending

कोरोना का नया ख़तरा: शहरों से कस्बों-गांवों की तरफ़ भी!
कूड़े का ढेर, सफ़ाई कर्मचारी और विकास का ढोल
हर मौसम व हर हालात में जारी रहेगा आंदोलन : किसान संगठन
कोविड-19: सरकारें छुपा रही हैं कोरोना संक्रमण और मौतों के सही आंकड़े!
बंगाल में रैली, मगर महाराष्ट्र के सीएम से बात नहीं ?
लालू प्रसाद को ज़मानत मिली, जेल से बाहर आने का रास्ता साफ़

Related Stories

ऐतिहासिक ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी को तोड़ने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ बढ़ता विरोध!
अनिल अंशुमन
ऐतिहासिक ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी को तोड़ने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ बढ़ता विरोध!
11 April 2021
“वर्षों पूर्व अपने समय के चर्चित अध्ययन व ज्ञान–संस्कृति के केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय में रखी ऐतिहासिक धरोहर पुस्तकों–पांडुलिपियों को सत्ता स
कूच बिहार में सीआईएसएफ के दस्ते पर कथित हमले और बच्चे के चोटिल होने से शुरू हुई हिंसाः सूत्र
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
कूच बिहार में सीआईएसएफ के दस्ते पर कथित हमले और बच्चे के चोटिल होने से शुरू हुई हिंसाः सूत्र
10 April 2021
नयी दिल्ली: सुरक्षा गश्त के दौरान सीआईएसएफ के दस्ते पर कथित हमला और उस दौरान एक बच्चे का घायल होना पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले
“इलेक्शन होगा, तो पढ़ाई भी होगा” सासाराम में भड़के छात्रों का नारा
पुष्यमित्र
“इलेक्शन होगा, तो पढ़ाई भी होगा” सासाराम में भड़के छात्रों का नारा
06 April 2021
इस सोमवार 5 अप्रैल, 2021 को बिहार का सासाराम शहर अचानक भड़क उठा। शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे बच्चे उस वक्त अचानक उग्र हो गये जब पुलिस उनके

Pagination

  • Previous page ‹‹
  • Next page ››

बाकी खबरें

  • दीप सिद्धू
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    लाल किला हिंसा: ज़मानत मिलने के बाद दीप सिद्धू को दोबारा किया गया गिरफ़्तार
    17 Apr 2021
    अदालत ने गणतंत्र दिवस पर लाल किला परिसर में हुई हिंसा के मामले में गिरफ्तार अभिनेता-कार्यकर्ता दीप सिद्धू की जमानत मंजूर कर ली थी। लेकिन उसके कुछ घंटे बाद ही क्राइम ब्रांच ने उन्हें दोबारा गिरफ़्तार…
  • कोरोना टीकाकरण उत्सव के बीच कई राज्यों में टीके की कमी, आंध्र सरकार ने भी टीके की कमी का मुद्दा उठाया!
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    कोरोना टीकाकरण उत्सव के बीच कई राज्यों में टीके की कमी, आंध्र सरकार ने भी टीके की कमी का मुद्दा उठाया!
    17 Apr 2021
    देश के कई राज्य सरकारें वैक्सीन के आपूर्ति की कमी का आरोप लगा रही हैं। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा सरकारें पहले ही वैक्सीन की कमी का मुद्दा उठा चुके हैं। अब आंध्र प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की…
  • नौकरी देने से पहले योग्यता से ज़्यादा जेंडर देखना संविधान के ख़िलाफ़ है
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    नौकरी देने से पहले योग्यता से ज़्यादा जेंडर देखना संविधान के ख़िलाफ़ है
    17 Apr 2021
    केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में भारतीय संविधान के कई प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें कार्यस्थल को बेहतर और समानता वाला बनाना है न कि परिस्थितियों का हवाला देकर महिलाओं को रोजगार के…
  • सीडब्ल्यूसी ने कोरोना से निपटने को लेकर सरकार पर भारी कुप्रबंधन और अक्षमता का आरोप लगाया
    भाषा
    सीडब्ल्यूसी ने कोरोना से निपटने को लेकर सरकार पर भारी कुप्रबंधन और अक्षमता का आरोप लगाया
    17 Apr 2021
     ‘‘भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी, 2020 को सामने आया था। भारत में कोविड का पहला टीका 16 जनवरी, 2021 को लगाया गया था। इन दो तारीखों के बीच और उसके पश्चात, त्रासदी, अक्षमता और भारी कुप्रबंधन…
  • निरर्थक अफ़ग़ान युद्ध का इतिहास 
    एम. के. भद्रकुमार
    निरर्थक अफ़ग़ान युद्ध का इतिहास 
    17 Apr 2021
    इस युद्ध की खास बात यह है कि इसे विफल होना था। क्योंकि अफगानिस्तान से तालिबान को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से लड़ा गया यह युद्ध अमेरिकी आक्रमण के लिए पूरी तरह से गैर-जरूरी था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें