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कश्मीर : ‘मनमानी नज़रबंदी’ से सहमे बच्चे

सूत्रों के मुताबिक़, पिछले तीन महीनों में पुलिस ने 500 से अधिक बच्चों को उठाया है और इनमें से ज़्यादातर श्रीनगर के पड़ोसी इलाक़ों से हैं।
कश्मीर : ‘मनमानी नज़रबंदी’ से सहमे बच्चे
सांकेतिक तस्वीर सौजन्य: Scroll.in

जुनैद को घर वापस लौटे एक सप्ताह बीत चुका है, लेकिन वह अभी भी घबराया हुआ है। वह तभी से घर से बाहर जाने या अपने परिवार की आँखों से ओझल होने से परहेज़ करता है। उसके परिवार के अनुसार 14 वर्षीय बच्चे को रिहाई से पहले  नज़रबंदी में छह दिन गुज़ारने पड़े वह भी थाने के "डार्क सेल" के भीतर।

जुनैद कहता है, "जब वे मुझे पकड़ कर ले गए, उस वक़्त मैं अपनी साइकिल चला रहा था।"

सिविल ड्रेस में आए चार पुलिस वालों ने जुनैद को से उठाया था, जो उसके अनुसार, एक निजी वाहन में आए थे। बाद में उन्होंने उसे एक पुलिस वैन में स्थानांतरित किया और एक स्थानीय पुलिस स्टेशन में ले गए जहां उसे कथित तौर पर लगातार छह दिनों तक रखा गया।

इस घटना के बाद घर में जुनैद के पिता को कोई ही ख़बर नहीं थी कि आख़िर हुआ क्या। जिस मोहल्ले में जुनैद का परिवार रहता है वह श्रीनगर का बाहरी इलाक़ा है, और अन्य पड़ोसी इलाक़ों की तुलना में बहुत अधिक शांत रहता है। पिछले तीन महीनों में हुए बंद और बाद में धारा 370 के उन्मूलन के बाद नागरिकों की नज़रबंदी और जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में हुए विभाजन के मद्देनज़र भी इस क्षेत्र से कोई बड़ी हिंसा या विरोध की सूचना नहीं मिली है।

कुछ समय बाद, जुनैद का पड़ोसी उसके पिता के पास दौड़ते हुए आया और बताया कि उनके बेटे को पुलिस ने उठा लिया है।

पड़ोसी का चचेरा भाई भी लगभग जुनैद की ही उम्र का है। उसके अनुसार, सिविल ड्रेस में आई में पुलिस ने उसे भी लगभग उसी समय के आसपास उठाया था। पड़ोसी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमने उसे रात के खाने के लिए गोष्त ख़रीदने के लिए भेजा था।"

जुनैद सहित, तीन अन्य बच्चों को भी पुलिस ने इसी इलाक़े से उठाया था, ये सभी बच्चे अपनी शुरुआती किशोरावस्था में हैं, और आठवीं तथा नौवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।

जुनैद के पिता ने उसकी साईकल को सड़क पर पड़ा पाया। अचानक घटी इस घटना ने पूरे इलाक़े को हिला कर रख दिया और हिरासत में लिए गए बच्चों के परिवार वाले और कई लोग पुलिस स्टेशन गए। आम लोगों की गुज़ारिश पर भी पुलिस ने उन्हें रिहा नहीं किया। बल्कि पुलिस ने आरोप लगाया कि "वे पथराव कर रहे थे।"

हिरासत में लिए गए बच्चों के लिए, विशेष रूप से जुनैद के लिए, पहली रात सबसे मुश्किल थी जब पुलिस ने उससे पूछताछ की थी।

जुनैद ने याद करते हुए बताया कि उन्होंने ज़्यादातर उसकी पीठ पर वार किया। उन्होंने कहा, “वे हमें नाम देने के लिए कह रहे थे, मेरे पास देने के लिए कोई नाम नहीं था; इसलिए, उन्होंने मुझे केबलों (तारों) से पीटा।"

पड़ोस के ही एक अन्य किशोर को हिरासत में लिए जाने पर उनके रिश्तेदार काफ़ी ग़ुस्से में थे। वे अपने बच्चे को घाटी के बाहर भेजने की योजना बना रहे हैं। न तो कोई उनके बचाव में आया और न ही कोई इसकी परवाह करता है। पुलिस फिर आएगी और वैसा ही करेगी, क्योंकि उनकी कोई जवाबदेही नहीं है।

हालांकि, क्षेत्र के दस नुमाइंदों को किशोरों की तरफ़ से और क्षेत्र के निवासियों की ओर से एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने थे जिसमें कि इलाक़े में सरकार के ख़िलाफ़ विरोध ना करने का वचन देना था।

उन्होंने बताया, "पुलिस ने उनके पहचान पत्रों की प्रतियां और संपर्क नंबर ले लिए हैं। पुलिस ने चेताया कि अगर कोई भी विरोध होता है तो वे हमें सबसे पहले गिरफ़्तार करेंगे।"

5 अगस्त के बाद से कश्मीर में सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें राजनेता, वकील, व्यापारी, कार्यकर्ता शामिल हैं, जिनमें से कई लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत नज़रबंद किया गया है और जम्मू-कश्मीर के बाहर की जेलों में स्थानांतरित किया गया है। गिरफ़्तार किए गए लोगों में नौ साल के बच्चे भी हैं, जिन्हें कथित तौर पर पुलिस थानों के भीतर हिरासत में रखा गया है।

अपनी नवीनतम रिपोर्ट में, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने इन प्रतिबंधों को मनमाना क़रार दिया है, जिन्हें किसी भी हालत में लागू नहीं किया जाना चाहिए। संस्था ने पाया कि कश्मीर में लोगों को औपचारिक रूप से हिरासत में नहीं लिया गया है। उन्होंने बताया कि विभिन्न गांवों के युवाओं को "पुलिस और सेना ने उठाया और औपचारिक आरोपों के बिना चार से आठ दिनों तक हिरासत में रखा।"

अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था के एक आधिकारिक प्रवक्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमने प्रशासन में एक पैटर्न को नोट किया है जिसके तहत वे महिलाओं और बच्चों सहित राजनेताओं, कार्यकर्ताओं को 5 अगस्त के बाद से कोई भी विरोध की आवाज़ सुनने पर प्रशासनिक हिरासत में ले लेते हैं और इसके बारे में हम एक मज़बूत दस्तावेज़ीकरण कर चुके हैं।" 

हालांकि, श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) डॉ हसीब मुग़ल कहते हैं कि जिन्हें भी पुलिस ने उठाया है उनके ख़िलाफ़ पुलिस के पास "सबूत" हैं।

एसएसपी मुग़ल ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमने केवल अपराधियों और पुराने पत्थरबाज़ी करने वाले किशोरों को बच्चा सुधार घर में भेजा है और ज़्यादातर मामलों में तो हमने युवाओं को परामर्श देकर और उनके परिवार और समुदाय के प्रतिनिधियों से बात करने के बाद रिहा कर दिया है।"

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर, जुवेनाईल जस्टिस समिति ने 5 अगस्त के बाद से कश्मीर में बच्चों की कथित हिरासत के मुद्दे पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

52 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों ने 144 नाबालिगों को गिरफ़्तार किया है। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश बच्चों को बटामालू, सौरा, राजबाग, सद्दर, परिमपोरा, बडगाम और पुलवामा जैसे क्षेत्रों से गिरफ़्तार किया गया था।

हालांकि, पुलिस के सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पिछले तीन महीनों में 500 से अधिक बच्चों को पुलिस ने उठाया है, जो ज़्यादातर श्रीनगर के पड़ोसी इलाक़ों से हैं। जिनमें से अधिकांश को हिरासत में रखने के बाद, उनके परिवारों या समुदाय के प्रतिनिधियों से एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर लेने के बाद रिहा कर दिया गया।

हालांकि न्यायमूर्ति एनवी रामना की अध्यक्षता में शीर्ष अदालत की पीठ के सामने जब यह मामला आया तो इसे चुनौती दी गई। समिति को एक नई रिपोर्ट दाख़िल करने के लिए कहा गया है और अब इस मसले पर सुनवाई तीन दिसंबर को होगी।

नोट : बच्चों के नाम उनकी पहचान छुपाने के लिए बदल दिए गए हैं।

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