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चीन ने अमेरिका से ही सीखा अमेरिकी पूंजीवाद को मात देना

चीन में औसत वास्तविक मजदूरी भी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है, जो देश की अपनी आर्थिक प्रणाली की एक और सफलता का संकेतक है। इसके विपरीत, अमेरिकी वास्तविक मजदूरी हाल ही में स्थिर हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में हाल का चीनी रिकॉर्ड की श्रेष्ठता चीन के लिए अपनी नीति जारी रखने के लिए प्रेरक प्रमाण है। चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका से ही सीखा कि अमेरिकी पूंजीवाद को कैसे मात देना है। 
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छवि सौजन्य: फ़्लिकर

अमेरिकी पूंजीवाद को हाल तक कुछ मायनों में दुनिया का सबसे सफल पूंजीवाद था। उसके पूंजीवाद को ब्रिटेन, जर्मनी और जापान की पूंजीवादी व्यवस्थाओं से बेहतर माना जाता था। इसके लिए अमेरिकी पूंजीवाद ने दो प्रमुख फरेब में पड़ने से परहेज किया। सबसे पहले, इसने पूंजीपति-मजदूर वर्ग संघर्ष। इससे पहले कि वह उस क्षमता को खो दे, लंबे समय तक मैनेज करने का एक उल्लेखनीय तरीका खोज निकाला। संयुक्त राज्य अमेरिका ने उपनिवेशवाद को खोले बिना ही अपने साम्राज्यवादी शासन को व्यवस्थित करने का एक तरीका भी खोजा, जिसने प्रतिरोध को तेज करने के लिए उकसाया, जो अंततः ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और अन्य औपनिवेशिक शक्तियों के लिए बहुत महंगा और असहनीय हो गया। लेकिन हाल के दशकों में, अमेरिकी पूंजीवाद अपने वर्ग-संघर्षों को प्रबंधित करने या अपने अनौपचारिक साम्राज्यवाद में गिरावट को थामने में विफल हो गया। 

चीनी नेताओं ने अप्रत्यक्ष रूप से या स्पष्ट रूप से यह सबक सीखा है कि अमेरिकी पूंजीवाद ने कैसे उन क्षमताओं को खो दिया। इस प्रकार, चीन ने अपने नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों और अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों दोनों को अलग-अलग तरह से व्यवस्थित किया। ऐसा करते हुए चीन की अर्थव्यवस्था ऊपर की तरफ जा रही है, जबकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज हो रही है। बेशक, दोनों की यह प्रक्रिया असमान है; पर अमेरिका और चीन के बीच अंतर और उसके स्तर अलग-अलग हैं। लेकिन सामान्य तरीका और उसकी दिशा एक समान है: चीन ऊपर जा रहा है और अमेरिका नीचे खिसक रहा है। 

1820 से 1970 के दशक तक, अमेरिकी पूंजीवाद ने श्रमिकों की तेजी से बढ़ती संख्या को रोजगार में खपा दिया और उन्हें उनके श्रम की एवज में वास्तविक मजदूरी का भुगतान किया, जिसकी दर 1970 के दशक तक हर दशक में बढ़ती चली गयी है। उसके इस उल्लेखनीय प्रदर्शन ने एक सक्षम, मान्य और संस्कृति के साथ अपने को संलग्न किया, जिसने श्रम के मुआवजे (नकारात्मक) के रूप में खपत (सकारात्मक) पर जोर दिया। 

इस संयोजन ने 1930 के दशक तक असंतुष्टों, कट्टरपंथियों, समाजवादियों और पूंजीवाद के अन्य आलोचकों की अपील को कुंद कर दिया। 150 वर्षों में उत्पादकता वास्तविक मजदूरी से भी तेजी से बढ़ी और पूंजीपतियों के मुनाफे में तेजी से वृद्धि हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका ने नियोक्ता वर्ग को होने या मिलने वाले लाभों और कर्मचारी वर्ग को मिलने वाली वास्तविक मजदूरी दोनों में अन्य पूंजीवादों से बेहतर प्रदर्शन किया। 

1929 के शेयर बाजार में गिरावट और 1930 के दशक की महामंदी को इसका अपवाद कहा जा सकता है, लेकिन बाकी चलनों ने इस नियम को सही साबित किया था। अमेरिकी पूंजीवाद फिर टूट गया जबकि इसने समृद्धि और विकास के अपने वादे को पूरा किया था। इसके पतन के डर से, अमेरिकी नियोक्ता वर्ग ने-पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट की डेमोक्रेटिक पार्टी के माध्यम से-एक समझौते की पेशकश की, जो कर्मचारी वर्ग का एक तरह का गठबंधन था। 

उस समय पूंजीवाद के प्रमुख आलोचकों ने इस सौदे की पैरोकारी की थी : इनमें औद्योगिक संगठनों की कांग्रेस (सीआइओ) समेत दो समाजवादी और एक कम्युनिस्ट पार्टी शामिल थीं। इसके साथ ही, नियोक्ताओं और कर्मचारियों ने एक नई डील पेश की और 1929 से पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्मित आर्थिक असमानताओं के एक अच्छे हिस्से ने वामपंथियों के के लिए एक राजनीतिक आधार बनाने का काम किया। यह एक "ग्रेट रीसेट" था, जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ, अमेरिकी पूंजीवाद में फिर से उठान को शुरू किया। इसके अलावा, उस आर्क ने एक अतिरिक्त शाही आयाम ग्रहण कर लिया, जब द्वितीय विश्वयुद्ध ने पुराने औपचारिक औपनिवेशिक साम्राज्यों को कमजोर कर दिया, तो इस स्थिति ने अमेरिकी राज्य को अनौपचारिक रूप से उन्हें बेदखल करते हुए तीव्र गति से आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। 

लेकिन रूजवेल्ट युग की समाप्ति और द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद अमेरिकी नियोक्ता वर्ग ने एक बड़ी रणनीतिक भूल कर दी। वह यह पहचानने में विफल रहा कि कैसे 1930 के दशक में वामपंथी ताकत ने अनजाने में "ग्रेट रीसेट" के माध्यम से अमेरिकी पूंजीवाद को बचाया था। नई डील, अतीत और वर्तमान में  अमेरिकी सरकारों की पारंपरिक "ट्रिकल-डाउन" आर्थिक नीतियों के विपरीत, बड़े हिस्से में "ट्रिकल-अप" कीनेसियन प्रोत्साहन थी। 

इसने पहले और बाद के दशकों के विपरीत, इसने अमेरिका में आय और धन की असमानता को कम करते हुए उसको महामंदी से बाहर निकाला। लेकिन, न्यू डील और इसी तरह के अन्य सुधारों को धन देने के लिए करों का भुगतान करने के डर और इससे उत्पन्न अंसतोष के वशीभूत हो कर, एक मजबूत अमेरिकी वामपंथ का उदय, और यूएसएसआर के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के अमेरिकी गठबंधन, नियोक्ता वर्ग ने 1945 के बाद सब को वापस लेना तय किया। 

मुख्य रूप से अपने रिपब्लिकन पार्टी की शाखा के माध्यम से, नियोक्ता वर्ग ने इसे बनाने वाले गठबंधन (सीआइओ प्लस सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट) को नष्ट करके एक नई डील को पहले की तरह प्रशस्त करने का काम किया। नियोक्ता वर्ग ने उस गठबंधन और उसके प्रत्येक घटक को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। हालाँकि, उस मलबे ने अमेरिकी पूंजीवाद को एक ऐसे प्रक्षेप परिपथ पर फिर से आगे बढ़ाया,जिसने उसके 150 वर्षों के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया। 

1970 के दशक तक, रीसेट रुक गया। अमेरिकी नियोक्ताओं ने मजदूरों और वामपंथियों को इस कदर परास्त कर दिया था कि उन्होंने कर्मचारियों की प्रतिक्रियाओं को जाने बिना किसी डर या चिंता के मुनाफा बढ़ाने के अवसरों का इस्तेमाल किया। कई अमेरिकी नियोक्ताओं ने अपने उत्पादन को विदेशों में स्थानांतरित कर दिया, जहां मजदूरी अपेक्षाकृत बहुत कम थी, जिससे अमेरिकी कंपनियों को अकूत मुनाफा हुआ। अमेरिका में कई और नियोक्ताओं ने तेजी से स्वचालन किया। नई आव्रजन नीतियां शुरू की गईं। अच्छी सर्वहारा नौकरियों ने उस अनिश्चितता को जन्म दिया, जिसे आज की युवा पीढ़ी गंभीरता से लेती है। 1820 से 1970 तक हर दशक में वास्तविक मजदूरी लाभ के बजाय, पिछले 50 वर्षों में घरेलू कर्ज गहराने के साथ-साथ वास्तविक मजदूरी में ठहराव रहा। 

इस प्रकार, 21वीं सदी का चक्र उत्तरोत्तर बड़ा और अधिक कठोर होता गया है, जो 1930 के दशक की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक है। फिर भी, राजनीतिक वाम में कोई तुलनात्मक बदलाव नहीं हुआ है, न्यू डील गठबंधन की तर्ज पर अभी तक एक आंदोलन का पुनरुद्धार भी नहीं हुआ है। इस बार, इस गहरे संकट ने कोई बड़ी "ट्रिकल-अप" नीति के किसी कारक को पैदा नहीं किया है। आय और धन की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। अमेरिकी पूंजीवाद को गहरे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्षों में डूबने से बचाने के लिए कोई वामपंथी-लाल नेतृत्व वाली कवायद नहीं हो रही है। 

इस बीच, चीन में कई नीति-निर्माताओं ने अमेरिकी अनुभव से सबक लिया है: किन नीतियों को दोहराना है और किन नीतियों को त्यागना है। चीन ने देखा कि अमेरिकी पूंजीपतियों ने अक्सर अमेरिकी राज्य के साथ मिलकर सार्वजनिक और निजी संसाधनों के समन्वय और लामबंदी के जरिए प्रमुख परियोजनाओं को सफलतापूर्वक शुरू करने का काम किया था। इनमें स्वदेशी आबादी को अधीनस्थ करने, उसे बेदखल करने या नष्ट करने के लिए एक सदी तक युद्ध लड़ना, 1776 और 1812 में ब्रिटेन से आजादी पाने के लिए युद्ध छेड़ना, गृह युद्ध के माध्यम से अमेरिका के दक्षिण में एक प्रतिस्पर्धी दास अर्थव्यवस्था को समाप्त करना, पूंजीपतियों को बुनियादी ढांचे (जैसे नहरों और रेलमार्गों के रूप में) को विकसित करने की आवश्यकता, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों में अमेरिकी पूंजीपतियों के हितों और उसके बाद की प्राप्ति को आगे बढ़ाना, और 1945 के बाद पुरानी उपनिवेशवाद प्रणालियों को बदलना और अमेरिकी वैश्विक सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व को प्रतिस्थापित करना आदि शामिल हैं।

चीन में, आर्थिक नीति-निर्माताओं ने भी इस बात पर ध्यान दिया है कि अमेरिकी पूंजीवाद को कमजोरियों और उलटफेरों की स्थितियों ने कब-कब उसे परेशान किया था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अपेक्षाकृत अनियमित पूंजीवाद ने 1929  में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसी तरह, 1970 के दशक के बाद विनियंत्रित ("नवउदारवादी" या "वैश्वीकृत") पूंजीवाद 2008 में तबाह हो गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा से इनकार ने एक निजी चिकित्सा-औद्योगिक परिसर को अति वसूली करने और अमेरिकी पूंजीवाद को इस अकूत मुनाफे से लाभ उठाने की गति को धीमा कर दिया। इसने विनाशकारी परिणामों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका को कोविड-19 महामारी से निबटने के लिए भी आधा-अधूरा ही तैयार किया। 

इन सबका चीन ने सामान्य तौर यह निष्कर्ष निकाला कि अमेरिका में, प्राथमिकता वाले सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करना तब अधिक आसान हुआ, जब सार्वजनिक और निजी संसाधनों को परस्पर समन्वित किया गया और ऐसा करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया गया। चीन ने यह भी देखा कि युद्ध और आर्थिक संकट अक्सर अमेरिका में इस समन्वय और ध्यान को बढ़ा देते हैं। चीन में आर्थिक पर्यवेक्षकों का तार्किक निष्कर्ष इस बात को संज्ञान में लेना था कि समन्वय और फोकस का एक सतत कार्यक्रम आम तौर पर अमेरिका ने अपने कभी-कभी कार्यक्रम के साथ जो हासिल किया था, उससे वह केवल अवसरानुकूल कार्यक्रम के जरिए हासिल किया था। 

यह निष्कर्ष चीन की चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद की अवधारणा में भी फिट बैठता है। उस अवधारणा में, एक मजबूत कम्युनिस्ट पार्टी और राज्य जो इसे नियंत्रित करता है, एक प्रणाली के समन्वय और फोकस के निरंतर कार्यक्रम को सुनिश्चित करता है, जो निजी और सार्वजनिक उद्यमों को मिलाता है। चीन के आर्थिक नेता उस निरंतर चलने वाले कार्यक्रम के लिए एक प्रभावशाली वार्षिक जीडीपी विकास दर रिकॉर्ड का श्रेय देते हैं। 1977 से 2020 तक, चीन की औसत वार्षिक जीडीपी विकास दर (9.2) अमेरिकी रिकॉर्ड (2.6) से तीन गुनी अधिक थी। 

चीन में औसत वास्तविक मजदूरी भी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है, जो देश की अपनी आर्थिक प्रणाली की एक और सफलता का संकेतक है। इसके विपरीत, अमेरिकी वास्तविक मजदूरी हाल ही में स्थिर हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में हाल का चीनी रिकॉर्ड की श्रेष्ठता चीन के लिए अपनी नीति जारी रखने के लिए प्रेरक प्रमाण है। चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका से ही सीखा कि अमेरिकी पूंजीवाद को कैसे मात देना है। 

कार्ल मार्क्स ने एक बार लिखा था कि कोई भी आर्थिक प्रणाली तब तक गायब नहीं होती जब तक कि वह अपने सभी संभावित रूपों को समाप्त नहीं कर लेती। यदि कोई मार्क्स के साथ उत्पादन के मानवीय संबंधों को व्यवस्थित करने के विशेष तरीकों के रूप में आर्थिक व्यवस्था को समझता है, तो पूंजीवाद वह तरीका है, जो नियोक्ताओं बनाम कर्मचारियों को जोड़ता है। ब्रिटेन ने, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने निजी उद्यम रूपों पर जोर देने के साथ उस आर्थिक प्रणाली को विकसित किया था। 

यूएसएसआर ने उस प्रणाली को अपने सार्वजनिक उद्यम रूपों पर जोर देने के साथ विकसित किया। इस बीच, चीन ने निजी और सार्वजनिक उद्यम रूपों (जैसे स्कैंडिनेविया और पश्चिमी यूरोप ने भी किया) को मिलाकर उस आर्थिक प्रणाली को विकसित किया, लेकिन प्राथमिकता वाले सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निजी और सार्वजनिक उद्यमों दोनों को समन्वित करने और संगठित करने के मकसद से एक मजबूत केंद्रीय नियंत्रण पर जोर दिया। 

पेइचिंग वह हो सकता है, जहां पूंजीवादी व्यवस्था अपने विभिन्न रूपों की पूरी क्षमता तक पहुंचती है-उन्हें इस अर्थ में अपने को विलीन कर देती है-और इस तरह पूंजीवाद से परे परिवर्तन के लिए एक राह बनाती है। 

रिचर्ड डी.वोल्फ मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में अर्थशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर हैं, और न्यूयॉर्क में न्यू स्कूल विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्नातक कार्यक्रम में एक विजिटिंग प्रोफेसर हैं। 

स्रोत: स्वतंत्र मीडिया संस्थान

क्रेडिट लाइन: यह लेख इकोनॉमिक फॉर ऑल के लिए लिखा गया था, जो अर्थव्यवस्था, स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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