मौसम परिवर्तन: वैश्विक कार्बन उत्सर्जन पूर्व महामारी स्तर पर पहुंचने के करीब

COP26 के रूप में बेहद अहम पर्यावरण सम्मेलन जारी है और दुनिया भी वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के लिए चिंतित है। हाल में आई एक रिपोर्ट बताती है कि महामारी के दौरान कम हुआ उत्सर्जन जल्द ही अपने पुराने स्तर पर वापस पहुंच जाएगा।
2020 में पृथ्वी को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन में 5.4 फ़ीसदी की कमी आई थी। बता दें इस दौरान दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में कोरोना के चलते लॉकडाउन लगाए गए थे और आवाजाही को प्रतिबंधित किया गया था।
लेकिन ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (जीसीपी) द्वारा प्रकाशित हालिया रिपोर्ट कुछ अच्छे संकेत नहीं दिखाती। रिपोर्ट कहती है कि इस साल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 4.9 फ़ीसदी और बढ़ेगा। मतलब महामारी के चरम पर उत्सर्जन में जितनी कमी आई थी, वह अब पट जाएगी।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर में पर्यावरण शोधार्थी पिएरे फ्रीडलिंग्सटीन ने रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा, "हमें कुछ हद तक उत्सर्जन बढ़ने का अंदाजा था। लेकिन उत्सर्जन के वापस इतनी तेजी से बढ़ने से हम भी हैरान रह गए।"
2020 में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में रिकॉर्ड 1.9 अरब टन की गिरावट आई थी, जो कुल उत्सर्जन का 5.4 फ़ीसदी था। रिपोर्ट कहती है कि चीन और भारत 2019 की तुलना में 2021 में ज्यादा उत्सर्जन करेंगे। जबकि यूरोप और अमेरिका में थोड़ा सा कम उत्सर्जन होगा।
रिपोर्टों के मुताबिक़ चीन ने अपना कोयला उपयोग बढ़ा लिया है, कोयला वैश्विक ताप में सबसे खतरनाक कारक है, जबकि कुछ दूसरे देशों में उत्सर्जन में कमी आई है।
जीसीपी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस साल वैश्विक उत्सर्जन 36.4 अरब टन का आंकड़ा पार कर जाएगा। महामारी के बाद जितनी तेजी से उत्सर्जन वापस बढ़ा है, उससे कई वैज्ञानिक हैरत में हैं। सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट रिसर्च (सिसरो), नॉर्वे के डॉ ग्लेन पीटर्स कहते हैं, "2020 में हममें से कई सोच रहे थे कि उत्सर्जन का यह स्तर वापस आने में कुछ साल तो लगेंगे ही। यहीं हम लोगों के लिए आश्चर्य हुआ, जब 2021 में इतनी तेजी से उत्सर्जन वापस पुराने स्तर तक आ गया। अब चिंता इस बात की भी है कि इस उत्सर्जन का कुछ हिस्सा अब भी बचा हुआ है।"
जीसीपी रिपोर्ट कार्बन बजट की अहमियत बताती है, इसे आर्थिक आंकड़ों और अलग-अलग स्त्रोतों से उत्सर्जन की जानकारी इकट्ठा करने में जुटे 94 लेखकों ने लिखा है। कई विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रिपोर्ट उत्सर्जन और मौसम परिवर्तन के खिलाफ़ जारी लड़ाई को मिथ्या दिखा सकती है।
यह डर है कि अगर दुनिया मौजूदा तरीके से ही आगे बढ़ती रही, तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की ताप सीमा सिर्फ़ 11 साल में ही हासिल हो जाएगी। यह रिपोर्ट, IPCC की हालिया रिपोर्ट से मेल खाती है, जो बताती है कि मौजूदा दर पर 2030 तक ही 1.5 डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ चुका होगा।
बदलाव को सीमित करने और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोत्तरी का इज़ाफ़ा रोकने के लिए 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को "नेट जीरो" करना जरूरी है। जिसका मतलब हुआ कि हर साल 1.4 अरब टन वैश्विक उत्सर्जन में कमी लानी होगी।
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2019 की तुलना में, चीन 2021 में अपने उत्सर्जन में 5.5 फ़ीसदी का इज़ाफा लाएगा और भारत में इस दौर में 4.4 फ़ीसदी उत्सर्जन बढ़ेगा।
इसके बारे में टिप्पणी करते हुए डॉ पीटर्स कहते हैं, "टिप्पणीकारों को याद रखना चाहिए कि जहां चीन करीब़ दुनिया के 30 फ़ीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, वहीं बाकी के 70 फ़ीसदी से शेष दुनिया को निपटना है।"
डॉ पीटर्स कहते हैं, "चीन कई आयामों में काफी अच्छा काम कर रहा है। चीन पवन ऊर्जा का उपयोग कर रहा है, इलेक्ट्रिक बसें, इलेक्ट्रिक वाहन औऱ ऐसे ही सकारात्कम कदम उठा रहा है।"
वे आगे कहते हैं, "लेकिन दुर्भाग्य से प्रोत्साहन पैकेज अक्सर औद्योगिक क्षेत्रों- निर्माण, स्टील, सीमेंट पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। यहां कोयले पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर चीन इसमें बदलाव लाने में कामयाब रहा, तो उसके पास उत्सर्जन कम करने की बहुत संभवना है, क्योंकि उसके बड़े स्तर पर सौर और पवन ऊर्जा की तैनाती की क्षमताएं हैं। जबकि दूसरे देशों के साथ ऐसा नहीं है।"
इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
Climate Change: Global Carbon Emissions Going to Rebound to Pre-Pandemic level
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