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क्या कुछ कोविड-19 टीकों में एचआईवी संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशीलता है?    

वैज्ञानिकों की ओर से जारी एक पत्र में इस तथ्य के प्रति चेताया गया है कि कुछ टीकों में एडेनोवायरस वेक्टर्स का इस्तेमाल करने के कारण उन लोगों में एचआईवी संक्रमण के जोखिम में उछाल देखने को मिल सकता है जिन स्थानों पर पहले से ही एचआईवी की घटनाएं उच्च मात्रा में मौजूद हैं।
 
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कुछ दिन पहले लैंसेट पत्रिका में कुछ वैज्ञानिकों की ओर से लिखा गया एक चेतावनी भरा पत्र प्रकाशित किया गया था। इसमें वैज्ञानिकों ने कहा था कि कतिपय कोविड-19 वैक्सीन यदि सार्वजिनक जगत में इस्तेमाल में लाये जाते हैं तो इससे चीजें ठीक होने के बजाय जटिल हो सकती हैं। खास बात यह है कि इन वैक्सीन के इस्तेमाल से कुछ लोगों में एचआईवी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है, जोकि उन स्थानों पर निवास करते हैं जहाँ पर एड्स पैदा करने वाले वायरस के संक्रमण की गुंजाइश पहले से ही अच्छी खासी बनी हुई है। 

देखने में आया है कि कतिपय कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण में एडेनोवायरस की किस्म को जोकि एक आम वायरस है जिससे सर्दी-जुकाम हो सकता है के जरिये सार्स-सीओवी-2 वायरस की अनुवांशिक सामग्री पहुँचाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। इन टीकों में मौजूद एडेनोवायरस किस्म को ad5 नाम से जाना जाता है। इस ad5 वेक्टर के चलते एचआईवी का खतरा उत्पन्न हो सकता है, जैसाकि इस चेतावनी भरे पत्र के लेखकों ने इसके बारे में दावा किया है।

पत्र में ad5 को एचआईवी वैक्सीन के रोगाणुवाहक (वेक्टर) के तौर पर दिए जाने के पूर्व अनुभवों का हवाला दिया गया है। एसटीईपी एवं फाम्बिली नाम से दो वैक्सीन कार्यक्रमों में ad5 वेक्टर को इस्तेमाल में लाया गया था और जल्द ही वैज्ञानिकों ने इस बात को महसूस किया कि यदि इस वेक्टर को इस्तेमाल में लाते हैं तो लोगों में एड्स वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। एसटीईपी ट्रायल को लेकर की गई एक अंतरिम अध्ययन में पाया गया है कि खतरनाकरहित पुरुषों में जो एचआईवी वैक्सीन पाने से पहले ही स्वाभाविक तौर पर ad5 से संक्रमित थे, ऐसे लोग विशेषतौर पर एचआईवी वायरस के संक्रमण के प्रति संवेदनशील पाए गए।

इसे समझने के लिए कि कोविड-19 वैक्सीन में ad5 वेक्टर के इस्तेमाल करने के क्या निहितार्थ हो सकते हैं, और एचआईवी वैक्सीन के अनुभव के पीछे क्या विज्ञान काम कर रहा है, न्यूज़क्लिक टीम ने आईआईएसईआर पुणे के सुप्रसिद्ध प्रतिरक्षाविज्ञानी सत्यजीत रथ से संपर्क साधा। इस साक्षात्कार का सार-संक्षेप यहाँ प्रस्तुत है:

एनसी: क्या ad5 रोगाणुवाहक कोविड वायरस को उपयोग में लाते समय एहतियात बरतने की जरूरत है, जैसा कि वैज्ञानिक चेता रहे हैं? क्या वाकई में यह चिंता वाली बात है?

एसआर: जी, निश्चित तौर पर यह चिंता का विषय है। हालाँकि इस सन्दर्भ में कुछ बातें महत्वपूर्ण हो सकती हैं। पहली बात तो यह कि ad5 सहित अन्य मानवीय एडेनोवायरस के तौर पर वैक्सीन वेक्टर का इस्तेमाल हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है। इसकी सुस्पष्ट वजह यह है कि कई लोगों में पहले से ही इसके प्रति एंटी-बॉडीज विकसित हो चुकी है। ये ‘एंटी-वेक्टर’ एंटीबाडीज प्रतिरोधक क्षमता को वेक्टर के लक्षित निशाने तक पहुँचने से पहले ही जटिल बना सकते हैं (यही वजह है कि ‘ऑक्सफ़ोर्ड’ कोविड-19 वैक्सीन उम्मीदवार एक चिंपांज़ी का एडेनोवायरस का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि इस तरह की भविष्य में आने वाली दिक्कतों से पहले से ही बचा जा सके)। दूसरी वजह, जहाँ तक एचआईवी/एसआईवी संबंधित आंकड़ों का संबंध है, जिसपर यह लैंसर पत्र आधारित है तो कह सकते हैं कि यह बेहद मॉडेस्ट होने के साथ-साथ असंगतियों को लिए हुए है। और तीसरा, यह कि न तो “खाली’ एडेनोवायरल वेक्टर से और न ही वास्तविक एडेनोवायरस टीकाकरण से एसआईवी या एचआईवी (इत्यादि) के उभरने का खतरा बढ़ता जान पड़ता है। हाँ कुछ चिंता की बात अवश्य है, लेकिन अभी भी कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है। मैं समझता हूँ कि एचआईवी की स्थिति की जाँचपड़ताल का काम एडेनोवायरल वेक्टर पर आधारित भारी-पैमाने पर कोविड-19 वैक्सीन के परीक्षणों के जरिये करना शायद उचित हो सकता है।

एनसी: एसटीईपी और फाम्बिली परीक्षणों में तो वैक्सीन में ही एचआईवी और ad5 वेक्टर खुद एचआईवी वायरस के आनुवांशिक तत्व मौजूद थे। जबकि कोविड वैक्सीन वाले मामले में ad5 वेक्टर में सार्स-सीओवी-2 के आनुवांशिक तत्व हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे ad5 किसी अन्य वायरस के तत्वों को अपने में समाहित कर सकता है जोकि एचआईवी संक्रमण के खतरों को बढ़ाने वाले साबित हो सकते हैं, जैसाकि वैज्ञानिक तर्क पेश कर रहे हैं? 

एसआर: मैं नहीं समझता कि वे किसी खास पद्धति को लेकर कोई तर्क पेश कर रहे हैं। मुझे लगता है कि वे मात्र ‘पूरी तरह से चौकन्ना’ बने रहने को लेकर आग्रही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि बहस इस बात को लेकर है कि: एडेनोवायरस संक्रमण बेहद आम है और ‘श्लेष्मिक’ हैं, अर्थात वे आंत, श्वसन वायुमार्ग, पेशाब एवं जननांगों मार्गों जैसे ऊतकों में मौजूद रहते हैं। इसलिए अनेकों लोगों में इन ऊतकों में एडेनोवायरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रतिक्रिया की मौजूदगी हर समय बनी रहती है। जब कभी एडेनोवायरस-आधारित वैक्सीन दिया जाता है (भले ही वह अपने साथ कुछ भी लिए हो), इस बात की संभावना रहती है कि यह इन प्रतिरोधक कोशिकाओं को (इनमें से ज्यादातर टी सेल) श्लेष्मिक कोशिकाओं के तौर पर उत्तेजित करे। अब एचआईवी भी ऐसे ही श्लेष्मिक लाइनिंग के जरिये प्रवेश करता है और सक्रिय होने पर ऐसी कोशिकाओं को संक्रमित करता है। इसी वजह से यह तर्क दिया जा रहा है कि एडेनोवायरल टीकाकरण के चलते श्लेष्मिक परत में एचआईवी-संक्रामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं की उपलब्धता बढ़ सकती है। लेकिन यह स्पष्ट है कि यह तथ्य अभी मजबूत सबूतों से समर्थित नहीं है। 

एनसी: क्या इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ad5 अपनेआप में यह क्षमता रखते हैं कि वे एचआईवी संक्रमण को प्रेरित कर सकें, या कम से कम उसका खतरे को बढाने में मदद कर सकें?

एसआर: इसे पिछले प्रश्न में ही समझाया जा चुका है। संक्षेप में कहें तो एडेनोवायरल टीकाकरण के कारण श्लेष्मिक परत में एचआईवी-संक्रमण योग्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं की उपलब्धता बढ़ सकती है। इसलिये, हाँ कोविड-19 के खिलाफ ad5 वेक्टर वैक्सीन का इस्तेमाल एक चिंता का विषय बना हुआ है, लेकिन फिलहाल इस बारे में पक्के तौर पर कुछ भी तय कर पाना मुश्किल है। इसलिए बेहतर होगा कि लैंसेट में प्रकाशित पत्र में जैसाकि वैज्ञानिकों ने तर्क पेश किया है के हिसाब से ऐसे टीकों के परीक्षण के दौरान उन जगहों पर रह रहे लोगों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता है जहाँ पर एचआईवी संक्रमण की घटनाएं उच्च दर पर देखने को मिलती हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Can Certain COVID-19 Vaccines Increase Susceptibility to HIV Infection?

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