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केंद्र सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में टीके का उत्पादन फौरन बढ़ाए: अखिल भारतीय पीपल्स साइंस नेटवर्क

एआइपीएसएन ने अपने बयान में सरकार से पूछा है कि कोविड-19 के टीके बनाने के लिए वह दो निजी घरेलू उत्पादकों, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई ) और भारत बायोटेक के ही आसरे क्यों बैठी है।
Vaccine

देश के करीब 215 वैज्ञानिकों, अकादमिकों तथा डॉक्टरों ने अखिल भारतीय पीपल्स साइंस नेटवर्क (एआइपीएसएन) द्वारा 31 मई को जारी एक वक्तव्य का अनुमोदन किया है और केंद्र सरकार से टीकों के उत्पादन को फौरन बढ़ाने का आग्रह किया है। वक्तव्य में शोध तथा विकास (आर एंड डी) का विस्तार करने की मांग की गयी थी ताकि भारत की टीके की जरूरतों को पूरा किया जा सके। 

एआइपीएसएन  का कहना है कि 130  करोड़ से ज्यादा की भारत की मौजूदा आबादी के साथ, पूरी आबादी को रोग-प्रतिरोधी बनाने के लिए टीके की करीब 310 करोड़ या 3.2 अरब खुराकों या 18 वर्ष से ऊपर की वयस्क आबादी को टीका लगाने के लिए करीब 15 फीसद नुकसान को जोड़कर,  218.5 करोड़ खुराकों की जरूरत होगी।

एआइपीएसएन ने अपने बयान में  सरकार से पूछा था कि कोविड-19 के टीके बनाने के लिए वह, दो निजी घरेलू उत्पादकों, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई ) और भारत बायोटेक के ही आसरे क्यों बैठी है। इस नीति के कारण हमारे सामने जो समस्याएं उत्पन्न हुईं, वे आज पीड़ादायक तरीके से स्वत:स्पष्ट हो चुकी हैं। भारत में आज अनेक सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की इकाइयां हैं, जो टीकों के स्थानीय उत्पादन का विस्तार करने में योगदान दे सकती हैं। इस समय दो टीके भारत में आपूर्ति किए जाने के लिए उपलब्ध हैं। सीरम इंस्टीट्यूट (एसआईआई ) पूणे का कोवीशील्ड और भारत बायोटैक (बीबी) हैदराबाद का, कोवैक्सीन।

इस वक्तव्य के जरिए वैज्ञानिकों ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वे सहायक सरकारी कंपनियों को उपलब्ध मार्च-इन अधिकारों का उपयोग करे, इन अधिकारों को भारत बायोटेक ने सार्वजनिक क्षेत्र की तीन टीका उत्पादन इकाइयों के लिए तकनीक का हस्तांतरण करने की स्वीकृति भी दी थी। सन 2000 तक, सार्वभौम इम्यूनाइजेशन कार्यक्रम के लिए भारत की टीकों की जरूरत का 80 फीसद, सार्वजनिक क्षेत्र से ही आता था। आज इसका 10 फीसद हिस्सा निजी क्षेत्र से आ रहा है और जाहिर है कि बढ़े हुए दाम पर आ रहा है। 

वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्राजील, क्यूबा और चीन, एकीकृत शोध व विकास तथा उत्पादन के कामों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों तथा संस्थाओं का उपयोग कर रहे हैं ताकि अपनी आबादियों का टीकाकरण भी कर सकें और विकासशील देशों की जरूरतें पूरी करने के लिए टीके का निर्यात भी कर सकें। इसके विपरीत, भारत ने अपनी सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को अनदेखा किया है। वक्तव्य में ध्यान दिलाया गया है कि भारत में बड़ी संख्या में कुछ दशक पुरानी सुविधाएं तथा नयी टीका सुविधाएं भी हैं, जो समुचित आधुनिक बुनियादी सुविधाओं से लैस हैं। कोविड टीकों के स्थानीय उत्पादन का विस्तार करने के लिए, केंद्र व राज्य सरकारों को, इन सुविधाओं का पूरा उपयोग करना चाहिए।

एआइपीएसएन के वक्तव्य में यह भी ध्यान दिलाया गया है कि इस समय भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की 11 टीका उत्पादन इकाइयां हैं। इनमें से कुछ तो उत्पादन शुरू करने के लिए करीब-करीब तैयार ही हैं। चेंगलपट्टु वैक्सीन कॉम्प्लेक्स, जिसका निर्माण सन 2016 में पूरा हुआ था, उसे सिर्फ 100 करोड़ की लागत के साथ यदि अन्य प्रकार की मदद मुहैया कराई जाती है, तो वहां कोविड टीकों का घरेलू उत्पादन शुरू हो सकता है।

इसी प्रकार, हैदराबाद की बायोलॉजिकल ई तथा सोलन स्थित पनेशिया बायोटेक जैसी कई निजी क्षेत्र इकाइयां भी हैं, जो कोविड के टीकों के घरेलू उत्पादन में मदद कर सकती हैं। इन टीका उत्पादन कंपनियों के अलावा बायोलॉजिक्स बनाने वाली दूसरी कंपनियां भी मौजूद हैं, जिनके पास उत्पादक क्षमताएं, ज़रूरत सिर्फ उनका लक्ष्य बदलकर उन्हें टीके के उत्पादन में ढाले जानी की है।

वक्तव्य में रेखांकित किया गया है कि डा रेड्डीज़ लैब तथा कम से कम पांच बायोलॉजिक्स कंपनियां, रूस के साथ जुडक़र भारत में, स्पूतनिक-वी टीका तैयार कर रही हैं। कुल मिलाकर, करीब 30 इकाइयां हैं जिन्हें कोविड के टीकों के उत्पादन के काम के साथ जोड़ा जा सकता है। भारत में कोविड के टीकों का इस तरह का विस्तारित उत्पादन, घरेलू जरूरतें भी पूरी करने में मदद करेगा और उन अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में भी समर्थ बनाएगा, जिसके लिए भारत प्रतिबद्ध है, खासतौर पर एसआईआई , जिसके लिए उसने अग्रिम भुगतान भी ले रखा है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि निजी क्षेत्र की इकाइयों द्वारा बाहर से पहले ही मंजूरीशुदा टीकों की खरीद भी एक विकल्प है।

वक्तव्य में ध्यान दिलाया गया है कि जहां निजी क्षेत्र को, काफी देर से ही सही, फिर भी पर्याप्त फंडिंग उपलब्ध हो रही है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र को आवश्यक मदद नहीं दी जा रही है। बहुत हाल ही में अपेक्षाकृत छोटे सरकारी अनुदान, लाइसेंस के अंतर्गत कोवैक्सीन बनाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दिए गए हैं। ये कंपनियां हैं– हैदराबाद स्थित इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड, बुलंदशहर स्थित भारत इम्यूनोलॉजिकल्स एंड बायोलॉजिकल्स कार्पोरेशन लिमिटेड और महाराष्ट्र की राज्य सार्वजनिक क्षेत्र कंपनी हाफकिन इंस्टीट्यूट, जिसके उपयोग की मांग राज्य के मुख्यमंत्री ने की थी। 

वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों ने ध्यान दिलाया है कि एसआईआई  स्वयं तकनीक का हस्तांतरण नहीं कर सकता है क्योंकि वह तो खुद ही एस्ट्राजेनेका से लाइसेंस के अंतर्गत कोवीशील्ड का उत्पादन कर रहा है। फिर भी उसे अन्य इकाइयों को अपने काम का सब-कांट्रैक्ट देने के लिए तो निश्चय ही तैयार किया जा सकता है।

एसआईआई और भारत बायोटेक, दोनों को ही उपयुक्त रूप से इसके लिए तैयार किया जा सकता है कि इन अन्य इकाइयों की इस काम में मदद करें, जिसके जरिए वे एक तरह से सार्वजनिक क्षेत्र तथा भारतीय राज्य का जो उन पर पुराना ऋण है, उसको कुछ हद तक उतार सकें।

वक्तव्य कहता है कि जीनोम की  निगरानी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की जानी चाहिए और इसे वायरस की प्रभाविकता तथा महामारीशास्त्रीय अध्ययनों के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि चिंताजनक माने जाने वाले वेरिएंटों के संदर्भ में टीके के प्रभावीपन की लगातार जांच होती रहे और आवश्यकता के अनुसार, टीका विनिर्माताओं द्वारा परस्पर सहयोगपूर्ण तरीके से टीकों में सुधार किए जा सकें और खासतौर पर उभरने वाले नये वेरिएंटों तथा बच्चों जैसे नये आबादी समूहों के हिसाब से बदलाव किए जा सकें।

इस वक्तव्य का अनुमोदन करने वाले 215 वैज्ञानिकों, अकादमिकों तथा डाक्टरों में प्रोफेसर गगनदीप कांग; शाहिद ज़मील, निदेशक त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज, अशोका यूनिवर्सिटी; टी सुंदररमण, ग्लोबल कोऑर्डिनेटर, पीपुल्स हैल्थ मूवमेंट; सत्यजीत रथ, विजिटिंग फैकल्टी, आईआईएसईआर, पुणे; विनीता बाल, वैज्ञानिक (सेवानिवृत्त) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, नई-दिल्ली;  प्रोफेसर टी आर गोविंदराजन (सेवानिवृत्त) आइएमएससी; प्रोफेसर तेजिंदर पाल सिंह, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च; जॉन कुरियन, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी; आर रामानुजन, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, चेन्नै; राम रामास्वामी, विजिटिंग प्रोफेसर, आईआईटी, दिल्ली; और डी रघुनंदन, दिल्ली साइंस फोरम; जाने माने वैज्ञानिक गौहर रज़ा और अन्य शामिल हैं।

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