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भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामलों पर देश के शीर्ष इम्यूनोलॉजिस्ट का क्या कहना है?

रिपोर्टों के मुताबिक एक दिन में 7,000 से अधिक नए मामलों के आने से लोगों में चिंता बढ़ गई है।
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दिल्ली: भारत में कोविड-19 के मामलों में उछाल देखा जा रहा है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो नवीनतम डेटा प्रकाशित किया है (12 अप्रैल, सुबह 8 बजे तक), उसके मुताबिक पिछले 24 घंटों में 7,830 नए मामले आए हैं और कुल सक्रिय मामले बढ़कर अब 40,215 हो गए हैं।

रिपोर्ट कहती है कि एक दिन में 5,000 से अधिक नए मामले आए हैं। संख्या में वृद्धि होने के कारण, केंद्र सरकार ने अस्पतालों में राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल किया है।

इस दौरान आम जनता में कोविड के बढ़ते मामलों ने, 2021 में डेल्टा वेरिएंट में बड़े पैमाने पर आए उछाल के दौरान हुई भयानक त्रासदी की यादों को ताज़ा कर दिया है और जनता में चिंता बढ़ गई है। 2021 के वसंत में देश भर में बड़ी संख्या में मौतें हुई थी और अस्पताल सुविधाओं में भारी कमी का अनुभव किया गया था। बढ़ती संख्याएँ दिखाने वाली रिपोर्ट आसानी से अनावश्यक दहशत फैला सकती हैं। लेकिन सवाल यह है कि डेटा देश में कोविड-19 की स्थिति के बारे में उचित निष्कर्ष निकालने में कहां तक मदद करता है। कुछ सार्थक निष्कर्ष निकालने के लिए कई पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए, जैसे जांच, वेरिएंट की निगरानी यह समझने के लिए कि कौन सा हावी है आदि।

न्यूज़क्लिक ने स्थिति को समझने के लिए प्रसिद्ध इम्यूनोलॉजिस्ट प्रोफेसर सत्यजीत रथ से बात की। यह पूछे जाने पर कि वे इस स्थिति को कैसे देखते हैं और क्या उन्हें लगता है कि  संकट दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, तो प्रोफेसर रथ ने कहा, “चूंकि कितनी जाँचे की जा रही हैं,  किन श्रेणियों की जांच की जा रही है, कौन से जांच रिपोर्ट किए जा रहे हैं और कौनसे नहीं,  अब इस मामले में डेटा संग्रह तेजी से अव्यवस्थित हो गया है, मुझे यकीन नहीं है कि इन स्पष्ट संख्याओं से कुछ विश्वसनीय रूप से अनुमान लगाया जा सकता है या नहीं।

उनके मुताबिक, हालांकि, इस बात की काफी संभावना है कि कोविड-19 संक्रमण भारत सहित हर जगह के समुदायों में बढ़ और घट रहा है। यह संभवतः वायरल वेरिएंट के उद्भव, समुदायों में वैक्सीन/संक्रमण-जनित प्रतिरक्षा की स्थिति और अन्य पर्यावरणीय कारकों जैसे मौसम आदि का परिणाम हो सकता है।

रथ ने संकेत दिया कि जिस फैशन में कोविड-19 परीक्षण किए जाते हैं, वे बहुत अधिक अपडेटेड आंकड़ों की संभावना को नहीं दर्शाते है - एक ऐसा मुद्दा जो कई अन्य विशेषज्ञों ने महामारी के शुरुआती दौर में उठाया था। जाने-माने माइक्रोबायोलॉजिस्ट गगनदीप कांग ने पहले भी कहा था कि, भारत में सामुदायिक प्रसारण की जांच करने का कोई निशान तक नहीं है और इसलिए जांच डेटाबेस को के 'ब्लैक होल' बताया था। रथ की टिप्पणी संकेत देती है कि डेटा में अभी भी सुधार की जरूरत है, कम से कम कुछ सार्थक निष्कर्ष निकालने के लिए ऐसा करना जरूरी है।

हालांकि, किसी भी समय एहतियात हमेशा एक बेहतर विकल्प होता है। रथ के पास एहतियाती उपायों पर भी कुछ बिंदु हैं। उन्होंने कहा, "मुझे निश्चित रूप से लगता है कि बुजुर्ग, सह-रुग्ण और अन्य प्रतिरक्षात्मक श्रेणी के लोगों को वैक्सीन की बूस्टर खुराक लेनी चाहिए और मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। इसी तरह, मुझे लगता है कि श्वसन संबंधी या सांस संबंधी बीमारियों/लक्षणों वाले किसी भी व्यक्ति के लिए कुशल मास्क का इस्तेमाल करना उचित है, भले ही उनकी कोविड जांच की गई हो या नहीं।

रथ के पास सरकार के लिए भी एक संदेश है। उन्होंने कहा, “हालांकि, मुझे यह भी लगता है कि सभी स्तरों पर सरकारों को दो वास्तविकताओं के प्रति जागरुक होने की जरूरत है; एक यह कि आने वाले लंबे समय तक, नए रूपों और लंबे कोविड परिणामों के संदर्भ में, कोविड से निपटना होगा। दूसरा मुद्दा वह सबक है जो हमें महामारी से सीखना चाहिए था, अर्थात्, हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियाँ विभिन्न तरीकों से अपर्याप्त हैं और हुकूमत से कहीं अधिक प्रतिबद्धताओं की जरूरत है।

भारत में बढ़ते 'वैरिएंट डब्लूएचओ की मॉनिटरिंग' के तहत हैं

स्थिति के उचित मूल्यांकन के साथ-साथ फेल रहे वेरिएंट का भी उचित मूल्यांकन भी शामिल है। वेरिएंट की निगरानी अब कोविड-19 प्रबंधन रणनीति का हिस्सा बन गई है।

INSACOG (भारतीय SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम), 27 मार्च को प्रकाशित अपने नवीनतम बुलेटिन में देश में वायरल वेरिएंट की निगरानी रखने वाली प्रयोगशालाओं के अखिल भारतीय नेटवर्क ने कहा कि XBB.1.16 नाम का नया वेरिएंट बढ़ रहा है और भारत में इसके 38.2 प्रतिशत मामले हैं। बुलेटिन में यह भी कहा गया है कि ओमिक्रॉन और इसके उप-वंश भारत में प्रमुख वेरिएंट के रूप में काम कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी XBB.1.16 को निगरानी वाला वेरिएंट करार दिया है।

इस वेरिएंट पर एक अध्ययन, जिसे भारतीय मीडिया में व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया है, वह यह सुझाव देता है कि इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा देने की क्षमता के कारण यह  मानव आबादी में अधिक तेजी से फेल सकता है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि वेरिएंट XBB.1.16 की रिप्रोडक्टिव संख्या 1.27 से 1.17 गुना अधिक है, जो इसके मूल वेरिएंट, अर्थात् XBB.1 और XBB.1.5 की तुलना में अधिक है। प्रजनन संख्या एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में वायरस के फैलने की क्षमता का सुझाव देती है। रिप्रोडक्टिव नंबर 3 का मतलब है कि वायरस एक संक्रमित व्यक्ति से तीन अन्य लोगों में फैल सकता है।

यह वैरिएंट दुनिया भर के कई अन्य देशों में पाया गया है। भारत में XBB.1.16 के बढ़ते चलन पर, रथ ने कहा, “हालांकि यह काफी हद तक सही है कि इनमें से कुछ नए SARS-CoV-2 वैरिएंट फैलने और वैक्सीन जनित एंटीबॉडी को धोखा देने में कुछ अधिक कुशल हैं, मुझे बहुत संदेह है कि क्या इसका परिणाम बड़े पैमाने पर मामलों का बोझ में होगा, विशेष रूप से गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए, जैसा कि हमने कुछ साल पहले देखा था।

रथ ने कहा और इस बात का समर्थन किया कि, "इन नए वेरिएंट के साथ गंभीर बीमारी के मामले भी बढ़ते नज़र नहीं आ रहे हैं।"

हालाँकि, यह काफी हद तक स्पष्ट नहीं है कि क्या भारतीय आबादी के बीच लगाए गए टीके प्रतिरक्षा विकसित करने की ऐसी क्षमता रखते हैं कि वे नए वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी होंगे, जैसा कि अध्ययन ने सुझाव दिया है कि इस वेरिएंट में टीके-जनित प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा देने की क्षमता अधिक है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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