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5 उत्तर भारतीय राज्यों में मिलाकर एक दिन में आएंगे कोरोना वायरस के 4 से 5 लाख नए मामले : गिरिधर आर बाबू

महामारी विशेषज्ञ गिरिधर आर बाबू के मुताबिक़, इस वायरस और इसके उत्परिवर्तित प्रकारों (म्यूटेंट) को रोकने का एकमात्र तरीक़ा आक्रामकता के साथ रोकथाम है।
5 उत्तर भारतीय राज्यों में मिलाकर एक दिन में आएंगे कोरोना वायरस के 4 से 5 लाख नए मामले : गिरिधर आर बाबू

भारत में कोरोना वायरस पर ठीक से लगाम नहीं लगाई गई और इसे फैलने दिया गया, अब यह वायरस उत्परिवर्तित होकर हो रहा है और देश के लाखों लोगों को संक्रमित कर रहा है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन में महामारीविज्ञान के प्रमुख गिरिधर आर बाबू ने न्यूज़क्लिक को दिए इंटरव्यू में चेतावनी दी कि कोरोना वायरस आने वाले वक़्त में 6 से 8 लाख लोगों को हर दिन संक्रमित करेगा। आक्रामक रोकथाम को अपनाकर ही इस वायरस को रोका जा सकता है। यहां इस इंटरव्यू के संपादित अंश मौजूद हैं:

रश्मि सहगल (आरएस): भारत में कोरोना वायरस के एक दिन में आने वाले मामलों की संख्या साढ़े तीन लाख पार हो चुकी है। 12 राज्यों के आपके महामारी अध्ययन में आपने 5 राज्यों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया है, जिनमें उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। आपका गणित कहता है कि इन राज्यों में आज से दो हफ़्ते बाद हर दिन एक लाख से ज़्यादा मामले सामने आएंगे। यह आंकड़े क्या दर्शाते हैं।

गिरिधर बाबू (जीबी): हमारे यहां कोरोना के नए मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अगले दो हफ़्तों में मेरा विश्वास है कि इन पांच राज्यों में 4 से 5 लाख मामले एक दिन में आएंगे।

इन आंकड़ों को देखते हुए मुझे चिंता होती है कि आने वाले वाले दिनों में इन संक्रमित लोगों में से एक बड़े हिस्से पर गंभीर असर पड़ेगा और उसे ऑक्सीजन की जरूरत होगी। अगर हम मान लें कि इनमें से सिर्फ पांच फ़ीसदी को ही ऑक्सीजन की जरूरत पड़ गई, तो नतीज़तन हमारी क्षमता, यहां तक कि मेट्रो शहरों की क्षमता से भी बहुत ज़्यादा हॉस्पिटल बेड और ऑक्सीजन की जरूरत होगी। स्थिति तब और भी खराब हो जाएगी, जब यह वायरस ग्रामीण इलाकों में पहुंच जाएगा, जहां स्वास्थ्य ढांचा और भी ज़्यादा कमजोर है।

अगर वायरस ग्रामीण इलाकों में पहुंच गया, तो क्या होगा?

ग्रामीण इलाकों में घनी आबादी वाले इलाकों में समस्या ज़्यादा गंभीर होगी, क्योंकि वहां ज़्यादा संख्या में लोगों में संक्रमण फैलेगा। अगर आबादी का घनत्व कम है, तो कुल मामलों की संख्या कम होगी और संक्रमण फैलने में ज़्यादा वक़्त लगेगा।

बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में जहां, सहायक स्वास्थ्य ढांचा बहुत बड़ी समस्या है, वहां यह बड़ी चुनौती साबित होगा। इन राज्यों में आंकड़ा तंत्र भी बहुत मजबूत नहीं है, ऐसे में वहां होने वाली मौतों की सही संख्या का पता नहीं चल पाएगा।

ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और भी ज़्यादा बदतर हो जाएगी, जिसके चलते असमता और भी ज़्यादा बढ़ जाएगी। वंचित तबकों और निचले सामाजिक-आर्थिक वर्ग से आने वाले लोगों के लिए स्थिति और भी ज़्यादा खराब हो जाएगी। इन लोगों पर सबसे बुरी मार पड़ेगी। 

असमता पहले ही बदतर हो रही है। आपने बताया कि आपका अध्ययन 12 राज्यों में फैला हुआ था, लेकिन इसमें से पांच उत्तरभारतीय राज्यों में सबसे बुरे हालात होंगे...

उत्तरप्रदेश में अगर ठीक ढंग से कोरोना जांच हो रही होती, तो वहां और भी ज़्यादा मामले आते। लेकिन वहां अब भी 28,000 केस हर दिन आ रहे हैं। बिहार के साथ भी यही चीज है, जहां हर दिन सिर्फ 7,487 मामले आए हैं। कम जांच एक बड़ा मुद्दा है। आप इस तथ्य की व्याख्या नहीं कर सकते कि क्यों महाराष्ट्र में हर दिन 58000, दिल्ली में 23000 से ज़्यादा मामले आ रहे हैं, लेकिन पूरे उत्तरप्रदेश में सिर्फ़ 28000 मामले सामने आ रहे हैं।

अगर आप 'इफेक्टिव रिप्रोडक्टिव नंबर (एक संक्रमित व्यक्ति द्वारा संक्रमित किए जा सकने वाले लोगों की संख्या)' को देखें, तो महाराष्ट्र में यह 1.13 है, जबकि उत्तरप्रदेश में 2.27 और बिहार में 2.49 है। कायदे से बिहार में संक्रमण की दर ज़्यादा होनी चाहिए थी। इन राज्यों में कोरोना जांच में कुछ समस्या है। 

हाल में द इकनॉमिक टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें बताया गया कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने उत्तरप्रदेश या कम से कम लखनऊ में सभी निजी लैब में कोरोना जांच पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहां रह रहे लोगों से भी मुझे यही जानकारी मिली है?

वहां निश्चित जांच की दिक्कत है। मैं इस बारे में पुख़्ता नहीं हूं कि सरकार ने क्या आदेश दिए हैं, लेकिन वहां कोरोना जांच में दिक्कत है और रोजाना आने वाले आंकड़ों से भी यह स्पष्ट है। अगर हम मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल की पूरी बेल्ट पर नज़र डालें, तो पाएंगे कि इन सभी राज्यों को अपनी जांच सुविधाओं में सुधार करने की जरूरत है।

इसमें कितना वक़्त लगेगा?

लोगों द्वारा जांच ना कराने की मंशा से भी इस पर प्रभाव पड़ता है। लोगों में अपनी बीमारी को बताने के प्रति डर है। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में बता दिया तो यह बात स्वास्थ्य तंत्र के पास पहुंच जाएगी और सरकार के साथ उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन आंकड़ों में पारदर्शिता लाने के लिए यहां बदलाव लाना होगा। यह चीज इन राज्यों में बड़ा मुद्दा है।

लेकिन राज्य सरकार भी तो आंकड़ों में पारदर्शिता नहीं चाहती है?

हमें इन राज्य सरकारों से ज़्यादा गहराई से सवाल पूछने की जरूरत है। अगर इन सभी राज्यों में महामारी तेजी से फैल रही है और सही आंकड़ा सामने नहीं आ रहा है, तो इन राज्यों से पूछा जाना चाहिए कि वहां पर्याप्त मात्रा में जांच क्यों नहीं की जा रही है?

यहां ध्यान उन राज्यों पर ज़्यादा होगा, जहां ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इन राज्यों को देश से ज़्यादा संसाधन दिए जाएंगे, ताकि ज़्यादा लोगों की जान बचाई जा सके। अगर राज्य सही आंकड़े नहीं बताएंगे, तो यह उस राज्य के गरीब़ लोगों के खिलाफ़ जाएगा।

फिलहाल यही तो हो रहा है। कर्नाटक और तमिलनाडु में क्या स्थिति है?

अगर हम तमिलनाडु की बात करें, तो वहां हर दिन 10 हजार केस आ रहे हैं। उनका रिप्रोडक्टिव नंबर 1.64 है।

कोरोना के मामलों में जो बढ़ोत्तरी आ रही है, वह वायरस में आने वाले उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की वजह से है?

ज़्यादा हद तक हां। इस बात की बहुत संभावना है कि वायरस के कुछ भारतीय म्यूटेंट मौजूद हों। हमें आंकड़ों पर गौर से निगाह डालनी होगी। महाराष्ट्र में एक दोहरा म्यूटेंट कोरोना वायरस सामने आया था। वहीं पश्चिम बंगाल में एक तिहरा म्यूटेंट कोरोना वायरस सामने आया है।

एक तिहरा उत्परिवर्तित (ट्रिपल म्यूटेंट) वायरस?

हां, एक तिहरा उत्परिवर्तित (म्यूटेंट) वायरस वह होता है, जिसमें तीन बार उत्परिवर्तन हो चुका है, इसके चलते यह ज़्यादा संक्रमण शक्ति रखता है। बंगलुरू में नेशनल इंस्टीट्टूय ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस द्वारा एक म्यूटेंट की पहचान की गई थी। हालांकि अब तक इसे वायरस का चिंताजनक प्रकार नहीं माना गया है।

तिहरे ढंग से उत्परिवर्तित वायरस से तो स्थिति और भी ज़्यादा बदतर होगी। ख़ासकर आम आदमी के लिए बहुत चिंताजनक है?

यह नया उत्परिवर्तित प्रकार चिंताजनक हैं। अगर हम संक्रमित लोगों के और भी ज़्यादा नमूनों की सामूहिक जांच करें, तो हमें कई दूसरे प्रकार भी मिल सकते हैं।

इन सामूहिक जांच को कौन कर रहा है?

इस संबंध में IDSC के साथ 'नेशनल कंसोर्टिअम फॉर जेनोमिक सीक्वेंसिग' काम कर रहा है।

लेकिन यह जीनोम अनुक्रमण (सीक्वेंसिंग) हाल में शुरू किया गया है। क्या इसे पहले शुरू नहीं किया जाना था?

उन लोगों ने पहले जीनोम अनुक्रमण शुरू किया था, लेकिन वह बहुत बड़े स्तर पर नहीं था। अब इसे बढ़ाया गया है।

क्या आपको लगता है कि हमने पिछले साल वायरस पर जो नियंत्रण हासिल किया था, उसे खो दिया है? हम दुनिया में पहले पायदान पर हैं।

दुनियाभर में दूसरी लहर ज़्यादा तेजी से फैलने के लिए जानी जाती है। इसमें संक्रमण का उच्चतम बिंदु पहले की तुलना में ज़्यादा ऊंचा होता है। हमारी आबादी को देखते हुए, संख्या के हिसाब से यह ज़्यादा ऊंचा होगा।

अगर अतीत में देखें, तो हमें अपने स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत कर लेना था। लेकिन दुनिया का कोई भी स्वास्थ्य ढांचा इतने ज़्यादा मामलों को नहीं संभाल पाता। कर्नाटक और तमिलनाडु में पहली लहर के बाद ऑक्सीजन वाले बिस्तरों की संख्या तीन गुनी कर दी गई थी, लेकिन इस बार कोरोना के दस गुना ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं। दस गुना बढ़ोत्तरी के लिए दुनिया का कोई भी तंत्र कैसे तैयार हो सकता है।

दूसरे देश भी कोरोना की इन अलग-अलग लहरों से होकर गुजरे हैं। इटली में लॉम्बॉर्डी और दुनिया के दूसरे शहरों को देखिए। हम भी उसी अनुभव से गुजर रहे हैं। 

लेकिन पहली लहर ने बुजुर्गों को ज़्यादा प्रभावित किया था, लेकिन भारत में सभी उम्र के लोग प्रभावित हो रहे हैं?

22 अप्रैल, 2021 तक स्वास्थ्यमंत्रालय ने जो आंकड़ा साझा किया था, अगर उसके हिसाब से देखें, तो अब भी 70 से ज़्यादा उम्र वाले लोगों में मृत्युदर अधिक है।

इस बार कोरोना की लहर बच्चों और 40 से ज़्यादा उम्र वाले लोगों को भी प्रभावित कर रही है?

यह सभी समूह के लोगों को प्रभावित कर रही है। अगर हम उम्र समूहों के अनुपात की बात करें, तो वह पहले जैसा ही है। सिर्फ़ 0 से 10 साल तक का उम्र समूह अपवाद है।

एक डॉक्टर के तौर पर मौजूदा स्थितियों में आपका क्या कहना है?

हमारे स्वास्थ्य ढांचे में कुछ अंतर्निहित दिक्कतें हैं। लेकिन इतने कम वक़्त में किसी भी स्वास्थ्य ढांचे को दोबारा खड़ा नहीं किया जा सकता था। यहां तक कि जिन जगहों पर भी इस तंत्र को दोबारा बनाया गया, वहां भी इतनी बढ़ोत्तरी को नहीं संभाला जा सकता था। 

क्या आप मानते हैं कि पहली लहर के बाद सरकार ढीली नहीं पड़ी थी?

कोई भी इससे इंकार नहीं कर सकता। लेकिन यह वक़्त इस चीज में जाने का नहीं है। कुछ महीने पहले तक डॉक्टर भी दूसरी लहर से इंकार नहीं कर रहे थे। जश्न मनाए जा रहे थे क्योंकि हम कोरोना वायरस को पीछे छोड़ चुके थे। 

कोरोना वायरस के नए मामलों में जो इज़ाफा हो रहा है, उसे देखते हुए हमारी मृत्यु दर कितनी हो सकती है?

मृत्यु दर में बहुत बदलाव नहीं हुआ है। यह अब भी एक फ़ीसदी के आसपास है। अगर एक लाख मामले आएंगे, तो 1000 मौतें होंगी। पांच लाख मामले आएंगे, तो उसका मतलब 5000 मौतें होंगी। लेकिन इन मौतों का पता उसी दिन नहीं लगेगा। यह दो हफ्ते बाद पता चलेंगी। क्योंकि अगर 5 लाख मामले सामने आएंगे, तो उस वक़्त इनमें से बहुत सारे लोग ICU में भर्ती होंगे। मतलब मौतों की संख्या बाद में सामने आएगी।  

शमशान घाटों में जगह कम पड़ जाएगी...

हम जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, हमारे सामने उतनी ही ज़्यादा समस्याएं आएंगी। यह बहुत दुख देने वाली तस्वीर है।

सरकार और जनता के द्वारा वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए कौन से कदम तुरंत उठाए जा सकते हैं?

जहां भी ज़्यादा संक्रमण फैल रहा हो, हमें वहां कोरोना के मामलों को कम करना होगा। सड़कों पर लॉकडाउन, शहर में लॉकडाउन समेत और भी दूसरे तरीकों से हमें आक्रामक रोकथाम की रणनीति अपनानी होगी। वायरस के नए प्रकार उन जगहों से निकल रहे हैं, जहां ज़्यादा मात्रा में संक्रमण फैला है। मतलब ज़्यादा लोगों में अगर संक्रमण होगा, तो वायरस के नए प्रकार ज़्यादा सामने आएंगे। हमें इन मामलों की शुरुआत में ही पहचान करनी होगी और इससे संक्रमित लोगों को एकांत में रखना होगा। यही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।

रश्मि सहगल स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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