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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव: इस बार क्या?

इस बार का डूसू चुनाव कई मायनों में पिछले चुनावो से अलग है लेकिन धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन पिछले वर्षों की तरह इस बार भी जारी रहा।
DUSU 2018

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के चुनाव के लिए बुधवार, 12 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। इस बार का डूसू चुनाव कई मायनों में पिछले चुनावो से अलग है लेकिन धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन पिछले वर्षों की तरह इस बार भी जारी रहा।

इसबार चुनाव की शुरुआत वामपंथी छात्र संगठन एसएफआई के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर नामांकन करने के दौरान हमले के साथ हुई और सोमवार को प्रचार के  अंतिम दिन, शाम को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार शक्ति सिंह और उनके समर्थकों के द्वारा विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज (संध्या ) में तांडव के साथ ही चुनाव प्रचार का अंत हुआ।

सोमवार को देर शाम ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में ABVP  के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार शक्ति सिंह अपने सैकड़ों समर्थको के साथ चुनाव प्रचार के लिए पहुँचे थे। जबकि विश्वविद्यालय चुनाव नियमों के मुताबिक उम्मीदवार के साथ चार ही प्रामाणिक छात्र जा सकते हैं। इसी कारण उन्हें कॉलेज गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने रोका और उन्हें केवल चार छात्रों के साथ जाने को कहा, परन्तु वो तो कुछ और ही ठान के आए  थे। बताया जाता है कि वे अपने समर्थको के साथ लाठी डंडे लेकर  कॉलेज का गेट तोड़ते हुए अंदर घुस गए।

कॉलेज के छात्रों के मुताबिक “शक्ति सिंह के गुंडों ने कॉलेज के आम छात्रों के साथ भी बदसलूकी की और उनके साथ मारपीट भी की। उन्होंने एक छात्र पर ब्लेड से हमला भी किया।” शक्ति और उनके समर्थक जब ये सब कर रहे थे तब वो भूल गए की उनकी ये सब करतूत वहाँ लगे कैमरे में कैद हो रही थी। इसके बाद कॉलेज प्रशासन ने शक्ति सिंह और उनके समर्थको के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है।  

 

एसएफआई ने इस पूरी घटना की  निंदा की है और कॉलेज संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, हिंसा और बर्बरता में शामिल अपराधियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है। एसएफआई ने इसी के साथ विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग कि वो एबीवीपी के उपाध्यक्ष उम्मीदवार शक्ति सिंह की उम्मीदवारी तुरंत रद्द करे।

ये कोई ऐसी पहली घटना नही है पिछले वर्षों में देखा गया है कि डीयू में किस प्रकार से छात्र संघ चुनावों में हिंसा होती है। पिछले वर्ष भी एबीवीपी पर आरोप लगा था की उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार राजा चौधरी का अपहरण किया था और उससे बीते वर्ष भी PGDAV कॉलेज में प्रचार के दौरान NSUI के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर CYSS और  ABVP पर जानलेवा हमला करने का आरोप लगा था।   

इस बार तकरीबन एक लाख तीस हज़ार छात्र डूसू चुनाव में भाग लेंगे और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक नए छात्रसंघ का चुनाव करेंगे। पिछले वर्ष चुनाव में लगभग 43% वोटिंग हुई थी परन्तु इसमें एक बड़ा हिस्सा नोटा को मिला था।

इस बार चुनाव के मुख्य पैनल

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से अध्यक्ष पद के लिए अंकित बसोया,  उपाध्यक्ष पद के लिए शक्ति सिंह,सचिव पद के लिए सुधीर डेढा, और सह-सचिव के लिए  ज्योति चौधरी चुनाव मैदान में हैं।

NSUI की तरफ से अध्यक्ष पद के लिए सन्नी छिल्लर, उपाध्यक्ष पद के लिए लीना, सचिव पद के लिए आकाश चौधरी और सह-सचिव के लिए सौरभ यादव उम्मीदवार होंगे। 

वहीं इस बार एक नया गठबंधन आया है, आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई CYSS और वामपंथी संगठन AISA का गठबंधन।  इस गठबंधन में अध्यक्ष पद के लिए AISA के अभिज्ञान और उपाध्यक्ष पद के लिए अंशिका और सचिव पद के लिए CYSS के चन्द्रमणि देव और सह-सचिव पद के लिए सन्नी तंवर चुनाव मैदान में हैं। 

लेफ्ट यूनिटी के तहत एक पैनल है जिसमे एसएफआई और एआईएसएफ  चुनाव लड़ रहे है और इन्हें AIDSO ने भी अपना समर्थन दिया है। इनकी ओर से अध्यक्ष पद के लिए एसएफआई के आकशदीप त्रिपाठी, उपाध्यक्ष पद के लिए निलंजिता विश्वास, सचिव पद के लिए एआईएसएफ  के सुभाष भट्ट और सह-सचिव पद के लिए एसएफआई के श्रीजीत मैदान में हैं |

दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों के कुछ महत्वपूर्ण पहलू :-

उम्मीदवार के नाम मामूली गलती करना 

जब विश्वविद्यालय चुनाव के लिए तैयार होता है, तो पूरा परिसर उम्मीदवारों के नाम से पाट दिया जाता है - सीधे वोट मांग नहीं सकते हैं , इसलिए  ‘मे आई हेल्प यू', 'वेलकम फ्रेशर्स' के साथ-साथ उनके नाम और विभिन्न राजनतिक संगठनों के साथ उनकी उपस्थिति दर्ज कराई जाती है। परन्तु  मज़ेदार बात यह है कि, इन पोस्टर में लिंगदोह कमेटी दिशा-निर्देशों से बचने के लिए उम्मीदवारों के नाम में मामूली गलती की जाती है। लिंगदोह समिति के दिशा-निर्देश के मुताबिक विश्वविद्यालय चुनावों में प्रिंटेड प्रचार सामग्री का उपयोग प्रतिबंधित है।

छात्रों को खुलकर रिश्वत दी जाती है 

दिल्ली विश्विद्यालय के आसपास निजी पीजी और हॉस्टल रात में राजनीति का अड्डे बनते हैं। वहाँ छात्रों को शराब , चॉकलेट, मूवी टिकट दिए जाते हैं इस वादे के साथ की वो उस उम्मीदवार के पक्ष में वोट करें।

पिछले वर्ष एनजीटी ने हस्तक्षेप करते हुए बड़े-बड़े बैनर और होर्डिंग के साथ ही पर्चे की जो बाढ़ डूसू चुनावों में आती है उसपर कड़ी करवाई के आदेश दिये थे परन्तु इसका कोई भी असर इसबार नहीं दिखा। चुनाव से पूर्व ही CYSS और ABVP पर NGT दिशा-निर्देश तोड़ने पर मामला दर्ज हुआ था फिर भी इस चुनावों वो सब देखने को मिला जो वर्षो से होता आया है।

‘Chaudhary-Choudhary’ की राजनीति :- जाट उम्मीदवार ‘AU’ का उपयोग करेगा जबकि एक गुर्जर अपने चौधरी उपनामों में 'OU' लिखते हैं। हालांकि जाति या क्षेत्र के आधार पर वोट मांगना लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों व दिशा-निर्देशों के खिलाफ है, लेकिन डीयू में गुर्जर-जाट राजनीति डूसू में अबतक होती रही है। पिछले कुछ वर्षों में एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार गुर्जर रहे हैं, जबकि कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई ने जाट उम्मीदवार उतारे हैं। हर साल की तरह, इस साल भी, परिसर में ABVP और NSUI के अधिकांश नाम इन दो समुदायों से ही हैं।

दिल्ली ज़्यादातर जाट और गुर्जर समुदाय के गांवों से घिरा हुआ है। इसलिए, उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। बाहरी लोग कॉलेज की अधिकांश राजनीति को नियंत्रित करते हैं और भीड़ के लिए लोग हरियाणा और राजधानी के ग्रामीण बेल्ट से बुलाए जाते हैं।

NOTA की भूमिका 

विशेष रूप से 2017 में नोटा का मतदान प्रतिशत कुछ ऐसा था जिसने सभी को चौंका दिया था।NOTA को अध्यक्ष पद पर 5162 वोट मिले, उपाध्यक्ष पद के लिए 7689, सचिव के लिए 7897 और सह सचिव के लिए 9 हज़ार से अधिक वोट मिले  (सह सचिव पद पर यह आंकड़ा उस चुनाव में ABVP और NSUI के बाद सर्वाधिक था।) 

सभी संगठन इन वोटों को टारगेट कर रहे हैं क्योंकि ये संख्या काफी है और ये चुनाव परिणाम में एक बड़ा अंतर डाल सकते हैं।

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