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उत्तर प्रदेश: बुद्धिजीवियों का आरोप राज्य में धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का फ़ैसला मुसलमानों पर हमला है

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों द्वारा धार्मिक उत्सवों का राजनीतिकरण देश के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा।
Mosque Loudspeaker
गोरखपुर, 27 अप्रैल (आईएएनएस )। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बुधवार को धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकरों को उतारा जा रहा है।

लखनऊ: योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश के बाद, बुधवार शाम तक धार्मिक स्थानों से लगभग 11,000 लाउडस्पीकर हटा दिए गए थे।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सभी धार्मिक स्थलों पर की गई कार्रवाई पर उन लोगों ने सवाल उठाया है, जो रमजान के पवित्र महीने में इस कदम को मुख्य रूप से मस्जिदों पर निशाना साधना मानते हैं।

सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य के विभिन्न धार्मिक स्थलों से कुल 10,923 लाउडस्पीकरों को हटा दिया गया था और 35,221 लाउडस्पीकरों की आवाज बुधवार की शाम 4.00 बजे तक उसके मानदंडों के मुताबिक कम कर दी गई थी।

राज्य के गृह विभाग ने बताया कि आगरा, मेरठ, बरेली, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, गोरखपुर और वाराणसी सहित राज्य के आठ जोनों एवं चार कमीशनरी-लखनऊ, कानपुर एवं गौतमबुद्ध नगर से लाउडस्पीकर हटा दिए गए हैं।

गृह विभाग ने कुल 2,395 लाउडस्पीकरों को हटाया है और लखनऊ जोन में धार्मिक स्थानों से 7,397 लाउडस्पीकरों की आवाज की मात्रा कम कर दी गई है। इसके बाद गोरखपुर और वाराणसी क्षेत्र का नंबर आता है।

बुधवार को, गृह विभाग ने पुलिस से लाउडस्पीकर को हटाने का निर्देश दिया और कहा कि राज्य भर में जिन धार्मिक स्थानों पर शोर सीमा मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं, वहां से लाउडस्पीकर हटा दिए जाएं।

राज्य में धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का आदेश 24 अप्रैल 2022 को जारी किया गया था। इस संबंध में जिलों से 30 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट तलब की गई है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 21 अप्रैल 2022 को निर्देश दिया था कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर जोर से नहीं बजने चाहिए और उसकी आवाज सिर्फ उस परिसर तक ही सीमित रहनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि माइक्रोफोन नहीं लगाए जाने चाहिए और धार्मिक स्थानों पर नए लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने संवाददाताओं से कहा, "धार्मिक स्थलों से अनधिकृत लाउडस्पीकरों को हटाने और दूसरे, उसकी ध्वनि की अनुमेय सीमा के भीतर निर्धारित करने के लिए एक राज्यव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।" उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर बिना किसी भेदभाव के हटाए जा रहे हैं।

यह मुद्दा महाराष्ट्र में भी जोर पकड़ रहा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने 3 मई 2022 तक सूबे की मस्जिदों में लाउडस्पीकर हटाने का अल्टीमेटम दिया हुआ है। एक वरिष्ठ पत्रकार, और एक किताब बाइज्जत बरी के लेखक अलीमुल्लाह खान ने न्यूजक्लिक से बातचीत में कहा: “यह व्यापक रूप से खुला मामला है कि एक समुदाय हमेशा भाजपा सरकार के निशाने पर होता है, चाहे वह मसला हलाल मांस का हो, पोशाक की पसंदगी या नापसंदगी की बात हो, या अब मस्जिद में लाउडस्पीकर का मुद्दा। इससे पहले, यह बात बहुत अधिक मालूमात नहीं थी, पर अब तो यह खुलकर सामने आ गयी है।”

खान ने सवाल किया, “अजान, जिसमें मुश्किल से दो मिनट लगते हैं, वह भला इलाकाई अमन और सद्भाव को कैसे बाधित कर सकता है? यह कदम पूरी तरह से सियासी है और इस्लामोफोबिया से जकड़ा है, जो महज बहुसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए उठाया गया है। यह संविधान में दिए गए प्रावधानों को कुचलने और मौजूदा हूकूमत की सियासी नाकामयाबी पर पर्दादारी की कोशिश है।"

खान की बातों से वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान भी इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है, “भाजपा सरकार ने मुसलमानों को निशाना बनाने के अपने मकसद को पूरा करने का एक सूक्ष्म तरीका खोज लिया है। मस्जिदों में लाउडस्पीकर कोई आज से नहीं लगे हैं, बल्कि यह व्यवस्था तो सदियों से चली आ रही है, जबकि मंदिरों में लाउडस्पीकर का चलन नहीं हैं। ऐसा करके, वे अपने मूल मतदाताओं को एक संदेश भेजेंगे कि उन्होंने अपने मतदाताओं को मजबूत करने के लिए मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा दिए हैं।”

इस मसले पर न्यूजक्लिक ने ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य कई मजहब के लोगों से भी बात की, जिनमें से कुछ ने कहा कि जब से भाजपा उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई है, तब से इस तरह के विवाद एक नियमित मामला बन गए हैं। उनमें से कई ने हाल के धार्मिक जुलूसों के दौरान हो रही सांप्रदायिक हिंसा को याद किया। उनका कहना था कि साल 2014 के पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, यहां तक कि क्षुद्र मुद्दों को भी एक हिंदू-मुस्लिम कोण या सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

प्रयागराज (जिसे हाल तक इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था) में रहने वाले लेखक और कवि यश मालवीय ने न्यूजक्लिक को बताया: “अगर यह फैसला बहुत पहले नेक इरादों के साथ लिया गया होता, तो सभी धर्मों को मानने वाले लोग इसका स्वागत करते। लेकिन रमजान के महीने में यह निर्णय लेने से यह संकेत मिलता है कि सरकार के इस कदम के पीछे उसके कुछ गलत इरादे हैं और वह नफरत फैलाने के काम में सफल हो रही है।”

बढ़ते सांप्रदायिक वैमनस्य पर चिंता व्यक्त करते हुए मालवीय ने कहा, “इस महत्त्वपूर्ण समय में, जब धर्म मानव मस्तिष्क पर हावी हो रहा है, इस तरह के निर्णय से गंगा-जमुनी तहजीब के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, उन्होंने कहा कि, "भारत त्योहारों की भूमि थी और “हर समुदाय पिछले कई दशकों से एक साथ त्योहार मनाता आ रहा है, लेकिन इस सरकार ने इसे राजनीति में बदल दिया है।”

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

UP: Decision to Remove Loudspeakers From Religious Places Aimed at Muslims, Allege Intellectuals

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