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भारत
राजनीति
देवचा पचामी कोयला परियोजना: "मुआवज़ा और पुनर्वास" ममता के लिए बड़ी चुनौती
उपलब्ध जानकारी के अनुसार परियोजना का कमांड क्षेत्र सुरक्षा बफ़र क्षेत्र है जिसमें 19,000 से अधिक की आबादी वाले क़रीब 42-45 गांव शामिल होंगे। इन लोगों में लगभग 7,000 आदिवासी हैं।
रवीन्द्र नाथ सिन्हा
17 Oct 2019
coal project

काफ़ी दुविधा और देरी के बाद 16 सितंबर को पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले की देवचा पचामी कोयला परियोजना को नया पट्टा देने के लिए एक सफल क़दम उठाया गया। इस बार केवल पश्चिम बंगाल सरकार के स्वामित्व के अधीन इस परियोजना का संचालन होगा। सरकार की तरफ़ से पश्चिम बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) इस परियोजना का प्रमोटर होगा। 16 सितंबर को केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने डब्ल्यूबीपीडीसीएल के साथ आवंटन समझौते पर हस्ताक्षर किए।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य के लिए देवचा पचामी कोयला ब्लॉक के आवंटन को लेकर ख़ुश थीं। 18 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ विशेष बैठक में उन्होंने पूजा के कुछ समय बाद प्रारंभिक कार्य शुरू करने के लिए हरी झंडी दिखाने को लेकर मोदी को आमंत्रित किया। हालांकि इसके ठीक 10 दिन बाद ममता द्वारा प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी।

पहली प्रतिक्रिया बीजेपी के राज्यसभा सदस्य और जाने-माने पत्रकार स्वपन दासगुप्ता की थी जिन्होंने 19 सितंबर को मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें उनसे आग्रह किया गया था कि "वे इस स्थल का दौरा न करें क्योंकि पीएम की मौजूदगी से पर्यावरण सहित सभी मंज़ूरियों का पता चलता है। साथ ही भविष्य में भूमि खोने वालों के पुनर्वास की व्यवस्था करने का भी पता चलता है। निस्संदेह भूमि खोने वालों में बड़ी संख्या में आदिवासी ही होंगे।”

दूसरी प्रतिक्रिया सीपीआईएम के पोलिट ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम द्वारा की गई थी जिन्होंने 25 सितंबर को सूरी के बीरभूम ज़िला मुख्यालय में एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर "तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी आदिवासियों को हटाकर और पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाकर इसे लागू करने की कोशिश करती है तो उनकी पार्टी इस परियोजना का विरोध करेगी।”

विपक्ष को रैली के लिए जगह देने में देवचा पचामी के इसके नए 'अवतार' में सभी चीज़ें मौजूद हैं और यह ममता बनर्जी के राजनीतिक प्रबंधन कौशल का परीक्षण होगा। औद्योगीकरण के संबंध में उन्हें मंत्रालय द्वारा दिए गए ख़राब ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए वे देवचा पचामी को कार्यान्वित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगी। उनके मज़बूत कारण इस तथ्य से भी जुड़े हैं कि देवचा पचामी भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक है और इसके कार्यान्वयन से उन्हें लगभग एक लाख लोगों के लिए रोज़गार पैदा करने में मदद मिलेगी। और निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल के थर्मल पावर सेक्टर को आने वाले वर्षों के लिए कोयला आपूर्ति का आश्वासन दिया जाएगा।

लेकिन, लगभग एक दशक के लंबे समय में देवचा पचामी के पिछले रिकॉर्ड से पता चलता है कि लगातार ब्लॉक के लिए रुकावट का सामना करना पड़ा और क़ीमती समय बर्बाद हो गया। रिपोर्टों से पता चलता है कि लगभग एक दशक पहले कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) को ये ब्लॉक आवंटित किया गया था। यह आवंटन काग़ज़ पर ही रहा और ईसीएल की वित्तीय स्थिति ने इसे आगे काम करने की अनुमति नहीं दी।

2013 की दूसरी छमाही में कुछ प्रगति हुई थी। ब्लॉक के विशाल आकार और विशाल भंडार को देखते हुए पश्चिम बंगाल के नेतृत्व में राज्यों का एक संघ बना। अन्य राज्य कर्नाटक, बिहार, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश थे। इसके अलावा इसमें केंद्र सरकार का सार्वजनिक उपक्रम सतलज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएन) था जिसे बिहार सरकार की ओर से बिहार के बक्सर में एक परियोजना शुरू करनी थी। बंगाल बीरभूम कोलफील्ड्स लिमिटेड के नाम और शैली में एक स्पेशल पर्पज़ व्हिकल (एसपीवी) बना और 2014 के दौरान इस एसपीवी को ब्लॉक फिर से आवंटित किया गया।

2,102 मिलियन टन (एमटी के भंडार का अनुमान संघ के भागीदारों के बीच आवंटन का आधार बना। इनमें पश्चिम बंगाल 584 मिलियन टन, कर्णाटक 382 मिलियन टन, बिहार 486 मिलियन टन, पंजाब 229 मिलियन टन, तमिलनाडु 171 मिलियन टन और यूपी 250 एमटी शेयर मिले थे।

देवचा पचामी से जुड़ी बिजली परियोजनाओं को कोयला मंत्रालय की स्टैंडिंग लिंकेज कमेटी द्वारा 29 अगस्त 2013 को हुई बैठक में हरी झंडी दी गई। इन परियोजनाओं में पश्चिम बंगाल की सागरदीघी चरण II (1,000 मेगावाट) और सागरदीघी चरण III (500 मेगावाट), संतालडीह (500 मेगावाट) और बकरेश्वर (600 मेगावाट) शामिल थी। कर्नाटक में येरमुरस (1,600 मेगावाट), बेल्लारी यूनिट III (700 मेगावाट) और एडलापुर (800 मेगावाट)। बिहार में बक्सर (1,320 मेगावाट - एसजेवीएन द्वारा), पीरपैंती (1,320 मेगावाट), लखीसराय (1,320 मेगावाट) और नबीनगर चरणII (1,320 मेगावाट)। पंजाब में मुकेरियन के पास हाजीपुर (1,320 मेगावाट) और रूपनगर (4,800 मेगावाट)। तमिलनाडु में एन्नोर रिप्लेस्मेंट (660 मेगावाट)। यूपी में हरदुआगंज एक्सटेंशन (660 मेगावाट), पनकी एक्सटेंशन (660 मेगावाट) और मेजा एक्सटेंशन (1,320 मेगावाट)। मेजा यूनिट को मेजा ऊर्जा निगम लिमिटेड द्वारा लागू किया जाना था, जो कि यूपी सरकार के उपक्रम और नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) लिमिटेड का 50:50 प्रतिशत का संयुक्त उपक्रम है।

बंगाल बीरभूम कोलफील्ड्स की पहली बोर्ड बैठक 28 अक्टूबर 2015 को की गई थी। लेकिन इसके बाद इस छह-राज्य के संयुक्त उद्यम की उम्मीद डगमगानी शुरू हो गई। भागीदारों के बीच समन्वय मुश्किल साबित हो रहा था और कम से कम छह साल जारी रहने के बाद इसका अंत हो गया। इन राज्यों की रुचि ख़त्म हो गई और एक-एक करके वापस हाथ खींचने लगे। स्थानीय कारकों के चलते पश्चिम बंगाल की दिलचस्पी क़ायम रही।

व्यवहार्य विकल्प की तलाश जारी रही और पश्चिम बंगाल के हित को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने पश्चिम बंगाल को ये ब्लॉक को फिर से आवंटित करने का फ़ैसला किया। यह आवंटन समझौता 16 सितंबर 2019 को पूरा हुआ।

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई) के अनुसार इस ब्लॉक की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं: यह पूर्ण ब्लॉक का हिस्सा है जिसे देवचा पचामी दीवानगंज हरिसिंघा कहा जाता है। देवचा पचामी का क्षेत्रफल 9.7 वर्ग किमी है। दीवानगंज हरिसिंघा का क्षेत्रफल 2.6 वर्ग किमी है। बीरभूम ज़िले के मोहम्मद बाज़ार ब्लॉक में स्थित देवचा पचामी के लिए सबसे नज़दीकी सड़क, पनागढ़-मौरिग्राम रोड है और सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन पूर्व रेलवे के बर्धमान-किउल लूप पर स्थित मल्लारपुर स्टेशन है। जीएसआई के अनुसार परतें कई खंडों में होती हैं और ये "जाल, लेटराइट और दुबराजपुर संयोजन" के मोटे आवरण से ढका होता है।

काम को मामूली पैमाने पर शुरू करने से पहले कई ढीले छोरों को बांधा जाना चाहिए। इस परियोजना में पश्चिम बंगाल पावर डिपार्टमेंट के पूर्व मंत्रियों और अधिकारियों का मानना है कि इन कठोर चट्टानों के नीचे छिपे बड़ी मात्रा में रिज़र्व के खनन के लिए विदेशों के विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। राज्य के ऊर्जा मंत्री सोभांदेब चट्टोपाध्याय ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि उन्होंने उपलब्ध तकनीकों का जायज़ा लेने के लिए पोलैंड का दौरा किया है और उनका ख़ुद का आंकलन है कि ओपनकास्ट खनन मुश्किल होगा। इसलिए, राज्य को भूमिगत खनन का विकल्प चुनना होगा।

इसके अलावा आवश्यक निवेश की मात्रा का कोई ठोस अनुमान अभी तक उपलब्ध नहीं है। केंद्र ने हाल ही में कोयला खनन में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) की अनुमति दी है। इसलिए ये राज्य देवचा पचामी के लिए 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तलाश कर सकता है। बेशक, राजनीतिक निहितार्थ को सावधानी से देखना होगा। लेकिन कोयला उद्योग के सूत्रों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये रुकावट नहीं हैं जिसको राज्य सामना करेगा। पर्यावरण मंज़ूरी एक बड़ी बाधा है और यहां तक कि इसे वैज्ञानिक रूप से तैयार पर्यावरण संरक्षण योजना के साथ दूर किया जा सकता है।

पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में वास्तव में संवेदनशील मुद्दे भूमि अधिग्रहण, मुआवज़ा और भूमि गंवाए हुए लोगों का पुनर्वास हैं। भूमि खोए हुए लोगों में बड़ी संख्या में आदिवासी हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस परियोजना का नियंत्रण क्षेत्र सुरक्षा बफ़र क्षेत्र है जिसमें 19,000 से अधिक की आबादी वाले क़रीब 42-45 गांव शामिल होंगे। इन लोगों में लगभग 7,000 आदिवासी हैं।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इन चुनौतियों से अवगत हैं और यह सुनिश्चित करेंगी कि मुआवज़ा और पुनर्वास के मुद्दों को हल करने के बाद ही काम शुरू हो। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता के लिए यह कहना ठीक है जो भी कुछ उन्होंने कहा है। बीजेपी के दासगुप्ता और माकपा के सलीम द्वारा उठाए गए सवालों से संकेत मिलता है कि पश्चिम बंगाल में विपक्ष देवचा पचामी को मुद्दा बनाएगा।

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