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अध्ययन बताता है कि मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस रोगियों की पहचान और इलाज का सफ़र लंबा और महंगा है

इस रिपोर्ट में ज़िक़्र किया गया है कि कैसे एमडीआर-टीबी के 128 (49%) रोगियों में से 62 रोगियों के होने वाले ख़र्च के आकलन से पता चला कि औसत ख़र्च 10,000 रुपये था, और 14 (23%) रोगियों ने बताया कि यह परेशान कर देने वाला ख़र्च उनके घरेलू वार्षिक आय के 20% से ज़्यादा या उसके बराबर है।
Diagnosis and Recovery Long
फ़ोटो: साभार: आईस्टॉक

27 अक्टूबर, 2021 को प्रकाशित एक हालिया पेपर के मुताबिक़, मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) से पीड़ित रोगियों के इलाज तक पहुंच में इसलिए काफ़ी देरी होती है, क्योंकि मरीज़ आख़िरकार असरदार इलाज को लेकर दाखिल होने से पहले इलाज मुहैया कराये जाने वाले और स्वास्थ्य क्षेत्रों (निजी और सार्वजनिक दोनों) के बीच झूलते रहते हैं।

अमेरिकन जर्नल ऑफ़ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित "ट्यूबरकुलोसिस पाथवेज़ टू केयर एंड ट्रांसमिशन ऑफ़ मल्टीड्रग-रेसिस्टेंस इन इंडिया" शीर्षक नामक इस पेपर में पुणे स्थित डॉ. डी वाई पाटिल मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएसए के जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल सहित कई संस्थाओं के लेखक शामिल थे।

इन लेखकों का कहना था, "भारत में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) के मामलों में क्षेत्रीय स्तर पर बढ़ोत्तरी को महसूस किया जाता रहा है। एमडीआर-टीबी की पुष्टि और इलाज की जटिलता को देखते हुए हमने रोग नियंत्रण में मदद करने की ख़ातिर एमडीआर जोखिम कारकों, इलाज में देरी और इस देरी के कारणों के बीच अहम जानकारियों की खाइयों का पता लगाने की कोशिश की।”

शोधकर्ताओं ने एमडीआर (128 रोगियों) और ग़ैर-एमडीआर-टीबी (269 रोगियों) के इलाज के सिलसिले में राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) में पंजीकृत वयस्कों से इसलिए बातचीत की, ताकि मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से इलाज के तौर-तरीक़ों का अध्ययन किया जा सके। 2018-19 में किये गये इस अध्ययन का ख़र्च हार्वर्ड-दुबई सेंटर फ़ॉर ग्लोबल हेल्थ डिलीवरी ने उठाया था और अध्ययन उन रोगियों के बीच किया गया था, जो महाराष्ट्र के राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीईपी) में पंजीकृत हैं।

इस अध्ययन में भाग लेने वालों ने एक  सीमित बातचीत के बाद ज़्यादातर रोगियों के साथ एक गहन बातचीत भी की। उस सीमित बातचीत में शोधकर्ताओं ने रोज़गार, वैवाहिक स्थिति, परिवार के प्रकार, शिक्षा, निवास के प्रकार और इलाक़े (भीड़-भाड़ वाली जगह: अगर झुग्गियों या झोपड़ियों में रहते हैं और बिना भीड़ वाली जगह-: अगर एक कॉलोनी / परिसर,अपार्टमेंट,या किसी बंगला में रहते हैं) सहित प्रति दिन भीड़-भाड़ वाले इलाक़े में बिताया गया औसत समय (24 घंटे या 24 घंटे से कम समय), टीबी का इतिहास, स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने वालों के पास जाने, मोजूदा प्रकरण के लिए टीबी की पुष्टि, मादक द्रव्यों के सेवन और सहवर्ती रोग से सम्बन्धित सामाजिक-जनसांख्यिकीय डेटा एकत्र किये। इस अतिरिक्त डेटा संग्रह में एनटीईपी उपचार कार्ड से भी डेटा लिये गये,जिसमें इलाज के प्रकार, थूक के मेडिकल परीक्षण की स्थिति, मादक पदार्थों का सेवन आदि शामिल था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लक्षण शुरू होने और स्वास्थ्य केन्द्र में जाने के बीच की औसत अवधि एमडीआर-टीबी समूह मामले में 15 दिन और गैर-एमडीआर समूह के मामले में 10 दिन थी। ग़ैर-एमडीआर मामले में पहली बार स्वास्थ्य केन्द्र जाने और रोग की पुष्टि होने के बीच व्यवस्थागत देरी औसतन 48 दिनों की थी,जबकि इसके मुक़ाबले एमडीआर रोगियों में हुई यह देरी कहीं ज़्यादा लम्बी,यानी औसतन 80 दिन की थी। लक्षणों की शुरुआत और रोग की पुष्टि के बीच की  देरी एमडीआर के सिलसिले में लंबी थी, जहां ग़ैर-एमडीआर-टीबी के लिए इसका औसत 60 दिन था,वहीं एमडीआर-टीबी के लिए यह औसत 90 दिन का था। 29% एमडीआर रोगियों के लिए तो लक्षण शुरू होने से लेकर रोग की पुष्टि होने तक की कुल अवधि 6 महीने से ज़्यादा की थी। ग़ैर-एमडीआर रोगियों  की रोग की पुष्टि होने के बाद इलाज  तुरंत शुरू कर दिया गया  (औसत देरी-1 दिन), जबकि एमडीआर रोगियों के लिए इलाज में होने वाली यह देरी(औसत देरी - 8 दिन) कहीं ज़्यादा थी।

इस शोध के मुताबिक़, 68% मामलों में एमडीआर-टीबी के रोगियों ने सबसे पहले निजी क्षेत्र का रुख़ किया, इसके बाद 26% मामलों में रोगी एनटीईपी गये, और 6% मामलों में किसी फार्मेसी/केमिस्ट के पास गये। अध्ययन में कहा गया है, "मरीज़ों ने बताया कि निजी क्षेत्र का रुख़ करने के पीछे के कारणों में किसी पारिवारिक चिकित्सक के साथ उनका घनिष्ठ रिश्ते का होना, गोपनीयता का बने रहना, आसानी सुलभ होना या पहले के अनुभव का अच्छा होना शामिल है।"

एमडीआर के ज़्यादतर रोगियों (75%) ने बताया कि उन्हें अपने इलाज के लिए इधर-उधर से भी ख़रीदारी करनी पड़ी। निजी क्षेत्र से एनटीईपी आने वाले 57 रोगियों में से 44 (77%) ने बताया कि इसके पीछे की वजह लक्षणों में राहत का नहीं मिलना था, और 12 (21%) ने बताया कि निजी क्षेत्र में इलाज सस्ता नहीं था। 128 में से 12 रोगियों (9%) ने बताया कि उन्हें निजी क्षेत्र में 'सलाइन थेरेपी' के लिए भर्ती कराया गया था।

एनटीईपी में एक या उससे ज़्यादा बार जाने के बाद निजी क्षेत्र का रुख़ करने वाले 24 (19%) रोगियों में से 18 (75%) ने बताया कि लक्षण के लिहाज़ से उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही थी और ऐसे में जाने-पहचाने निजी स्वास्थ्य सेवा संस्थाओं से फिर से राय-मशविरे की ज़रूरत थी; चार रोगियों (17%) ने बताया कि एनटीईपी कर्मचारियोंकी ओर से मांगे गये पहले के रिकॉर्ड देने में वे असमर्थ थे और इससे उनके इलाज की शुरुआत में देरी (दो हफ़्ते या उससे ज़्यादा) हुई, और इस देरी के चलते वे निजी क्षेत्र में वापस लौट गये; दो रोगियों (8%) को तो उस दवा संवेदनशीलता परीक्षण (DST) के लिए निजी क्षेत्र की दरकार पड़ी थी, जो कि उस समय सरकारी सुविधा केंद्र में उपलब्ध नहीं था।

एमडीआर-टीबी रोगियों ने जितने स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के दौरे किये गये,उनकी औसत संख्या 4 थी। 128 में से महज़ नौ रोगियों (7%) ने ही अपने एमडीआर-टीबी का इलाज वहां करवाया,जहां वह पहली बार इलाज के लिए गये थे; इन सभी रोगियों ने सबसे पहले एनटीईपी का रुख़ किया था। निजी क्षेत्र में इलाज करा रहे मरीज़ों, यानी जिन्हें दूसरी बार एनटीईपी में नहीं भेजा गया था, वे इलाज पाने से पहले औसत तौर पर दो संस्थाओं के अतिरिक्त दौरे किये थे। यह संख्या रेफ़र किये गये /इलाज करा रहे दूसरी बार एनटीईपी में जाने वाले रोगियों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा थी। महज़ 11 (9%) रोगियों ने निजी क्षेत्र में अपने एमडीआर का इलाज कराया, जबकि बाक़ी का इलाज एनटीईपी में हुआ।

एमडीआर रोगियों की तरह ही ग़ैर-एमडीआर टीबी रोगियों में से ज़्यादातर, यानी 72% ने पहली बार निजी क्षेत्र का रुख़ किया था और इसके पीछे के कारण भी वही थे। चौदह रोगी (10%) सबसे पहले किसी केमिस्ट से  संपर्क किया था और बाक़ी एनटीईपी गये थे। इस अध्ययन में कहा गया है, "इलाज करवाने के तरीक़े भी जटिल थे, हालांकि ये एमडीआर रोगियों के मुक़ाबले कम जटिल थे।"

जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर ग़ैर-एमडीआर टीबी रोगियों गये थे,उनकी औसत संख्या 3 थी और पहली बार में 139 टीबी रोगियों में से किसी में भी इस रोग का पता नहीं चल पाया था। रोग के लक्षणों में राहत की कमी के चलते एक या ज़्यादा एनटीईपी में रुख़ करने के बाद अठारह रोगियों (13%) ने एनटीईपी को छोड़कर निजी क्षेत्र का रुख़ कर लिया था। निजी क्षेत्र में छत्तीस (36%) रोगियों की पुष्टि की गयी।

शोधकर्ताओं का मूल्यांकन था कि स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता या घनिष्ठ परिचय में विश्वास के चलते पूर्व टीबी ग्रस्त रोगियों में अपने इलाज के सिलसिले में एनटीईपी का रुख़ करने की ज़्यादा संभावना थी। हालांकि, पहली बार एनटीईपी में जाने वाले एमडीआर रोगियों में से ज़्यादातर रोगियों में टीबी का इतिहास था, लेकिन इसका उल्टा सच नहीं था, क्योंकि टीबी के इतिहास वाले एमडीआर के आधे से भी कम रोगियों ने शुरू में एनटीईपी का रुख किया था। टीबी के पूर्व इतिहास वाले एमडीआर रोगियों को निजी क्षेत्र के मुक़ाबले एनटीईपी में इलाज की ज़्यादा संभावना थी। ग़ैर-एमडीआर टीबी रोगियों में भी इसी तरह की स्थिति देखी गयी।

शोधकर्ताओं ने मरीज़ों से एनटीईपी (एनटीईपी में टीबी देखभाल मुफ़्त है) में जाने से पहले निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यय का अनुमान लगाने के लिए कहा। एमडीआर-टीबी के 128 (49%) रोगियों में से बासठ रोगियों का इस ख़र्च को लेकर अनुमान यही था कि औसत ख़र्च 10,000 रुपये था, और 14 (23%) ने अपने घरेलू वार्षिक आय के 20% से ज़्यादा या उसके बराबर के भयावह ख़र्च के बारे में बताया। ग़ैर-एमडीआर-टीबी रोगियों के लिए निजी क्षेत्र का औसत ख़र्च काफ़ी कम,यानी 2,050 रुपये था और 8% रोगियों ने बताया कि यह ख़र्च ज़बरदस्त था।

भीड़-भाड़ वाले इलाक़े में लगातार रहने और एमडीआर-टीबी के बीच एक मज़बूत सम्बन्ध देखा गया, जो कि इन इलाक़ों में एमडीआर के फैलेने का एक नतीजा है। यह भी देखा गया कि कम उम्र के मरीज़ों में एमडीआर-टीबी होने की संभावना ज़्यादा होती है।

इस अध्ययन में कहा गया है, "अन्य उच्च प्रसार वाले हालात में कम उम्र के मरीज़ों और एमडीआर के बीच के रिश्ते को एमडीआर सामुदायिक संचरण के अनुरूप माना गया है, क्योंकि पुराने रोगियों में टीबी के फिर से सक्रिय होने की स्थिति ज़्यादा आम है।"

शोधकर्ताओं के मुताबिक़, रोग की पुष्टि में होने वाली देरी और बाद में प्रभावी चिकित्सा की शुरुआत एमडीआर-टीबी संचरण के अहम वाहक हो सकते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में नशीली दवाओं के प्रति संवेदनशील टीबी रोगियों पर हुए एक हालिया अध्ययन में देखा गया है कि इलाज में होने वाली देरी से हर बीतते दिन के साथ घर के सदस्यों में टीबी संक्रमण का जोखिम 5% ज़्यादा होता जाता है। इसी अध्ययन में यह भी दिखाया गया है कि इलाज में होने वाली लंबे समय तक की देरी से टीबी से पैदा होने वाली हेमोप्टाइसिस, एस्परगिलोसिस, ब्रोन्किइक्टेसिस और न्यूमोथोरैक्स जैसी जटिलताओं की दर भी उच्च हो जाती है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि टीबी और एमडीआर-टीबी-दोनों ही रोग से ग्रस्त मरीज़ों का पहली बार स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में जाने और रोग की पुष्टि होने के बीच काफ़ी समय लगता है। अध्ययन में कहा गया है, "देखभाल के चरण के इस हिस्से में होने वाली लंबी देरी से समग्र रूप से होने वाली देरी पर एक बड़ा असर पड़ने की संभावना होती है। अगर इसे और स्पष्ट तरीक़े से कहा जाये,तो स्वास्थ्य सेवा के विश्लेषण के तौर-तरीक़ों से पता चला कि ज़्यादातर रोगी निजी क्षेत्र के सम्पर्क में ही सबसे पहले आये, ऐसा तब भी रहा, जब उन्हें पहले ही टीबी हो चुकी थी।"

यह  स्थिति तब है,जबकि एनटीईपी टीबी और एमडीआर-टीबी देखभाल के राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्राप्त सेवा मुहैया कराने वाला संस्थान है। शोधकर्ताओं ने बताया, "तरज़ीह देने के अंतर्निहित कारणों में सबसे ख़ास कारण तो यह है कि एक निजी पेशेवर के साथ एक विश्वास या स्थापित सम्बन्ध का मामला होता है, जिसके नतीजे के तौर पर 13-19% रोगियों के एनटीईपी के लिए रेफर किये जाने के बाद भी वे निजी क्षेत्र में 'फिर से वापस' आ सकते हैं।"

तौर-तरीक़ों के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि एमडीआर-टीबी रोगियों में से 23% का एनटीईपी तक पहुंचने से पहले और निजी क्षेत्र में सैलाइन जैसे संदिग्ध उपचारों के प्रावधान से पहले भयावह ख़र्च था। यह महाराष्ट्र में किये गये पूर्व के अध्ययनों के उन निष्कर्षों के अनुरूप ही है, जिसमें एमडीआर-टीबी और इसके इलाज को लेकर निजी चिकित्सकों के बीच कम जानकारी को चिह्नित किया गया था। इस अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया, "कुल मिलाकर, एमडीआर के इन मरीज़ों की रिपोर्ट से पता चलता है कि रोग की पुष्टि के रास्ते न सिर्फ़ लंबे हैं, बल्कि निजी और सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों में रोगियों को जटिल समस्याओं का सामना भी करना होता है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Diagnosis and Recovery Long, Expensive for Multidrug-Resistant TB Patients, Reveals Study

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