टीबी से लड़ने के लिए कैसे विकसित हुआ हमारा इम्यून सिस्टम?

महामारियाँ हमेशा से मानव समाज को तबाह करती रही हैं, चाहे वो ब्लैक डेथ हो, स्पेनिश फ़्लू हो या फिर मौजूद कोविड-19। सामाजिक और आर्थिक नुक़सान के साथ-साथ लाखों लोगों की महामारी से जानें जाती रही हैं। हालांकि, एक बीमारी जो अभी भी मौजूद है और भारत के साथ कई देशों में स्थानिक है, वह है ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी, इस बीमारी से मरने वालों की संख्या किसी भी महामारी से ज़्यादा है। टीबी ने 2 सदियों में करोड़ों लोगों की जान ली हैऔर आज भी एक साल में क़रीब 15 लाख लोग टीबी का शिकार होकर जान गंवा देते हैं।
भारत में टीबी स्थानिक है, यानी यह आज भी देश भर में व्यापक रूप से फैली है। हालांकि टीबी आज तक इतनी जानलेवा कैसे है, यह एक रहस्य बना हुआ था। हालांकि, जेनेटिक हिस्ट्री पर हुए एक नए अध्ययन ने इस पहलू पर प्रकाश डाला है। 4 मार्च को जर्नल सेल में प्रकाशित हुए अध्ययन में यह भी बताया गया है कि टीबी से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम कैसे विकसित हुआ है।
इस अध्ययन में एक जीन संस्करण के 10,000 वर्षों के विकास के इतिहास का पता लगाया गया है, जो लोगों को एक गंभीर टीबी के हमले के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
मिडिल ईस्ट के स्केलेटन में मिले शुरूआती सबूतों से पता चलता है कि टीबी 9000 साल पुरानी है, जिस दौर में मानव जाति ने खेती की शुरूआत की थी। हालांकि टीबी का जो संस्करण आज मौजूद है- माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस वह 2000 साल पुराना ही है। यह वह दौर था जब मनुष्य ने घरेलू जानवरों के साथ घनी आबादी वाले इलाक़ों में रहना शुरू किया था। इसी को टीबी का भंडार भी माना जाता है।
दो साल पहले के एक अध्ययन में पता चला था कि एक इम्यून जीन(TKY2) के एक संस्करण से लोगों को गंभीर बीमारी का ज़्यादा ख़तरा रहता है। इस संस्करण को P1104A के नाम से जाना जाता है। इस अध्ययन ने 10,000 वर्षों में 1013 यूरोपीय जीनोम में P1104A संस्करण के पैदा होने की आवृत्ति का विश्लेषण किया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि P1104A पुराना म्युटेशन था जो क़रीब 30,000 साल पहले पैदा हुआ था।
यह म्युटेशन 8,500 साल पहले आज के तुर्की में रहने वाले एक प्राचीन किसान के डीएनए में पाया गया था। इम्यून जीन का यह संस्करण इस इलाक़े से मध्य यूरोप में पलायन करने वाले लोगों द्वारा फैला था।शोधकर्ताओं ने इस संस्करण की आवृत्ति में बदलाव का भी अध्ययन किया और अनुमान लगाया कि आबादी के 3 प्रतिशत हिस्से में यह संस्करण 5,000 साल पहले तक भी मौजूद था। हालांकि, 3,000 साल पहले तक यूरोप की 10 प्रतिशत आबादी में इम्यून जीन संस्करण मौजूद था। बाद में, जीन संस्करण की आवृत्ति दर 3 प्रतिशत तक गिर गई, जो आज की यूरोपीय जनता में भी मौजूद है।
दिलचस्प बात यह है कि यह आधुनिक गिरावट टीबी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की आधुनिक वैरायटी की बढ़त के साथ मेल खाती है।
सेल स्टडी के लेखक, स्पैनिश जीवविज्ञानी लुलिस क्विंटाना मुर्सी ने यह समझने की कोशिश की कि प्रवास से प्रभावित जनसंख्या की गतिशीलता जीन संस्करण के पैदा होने की आवृत्ति को कैसे प्रभावित करती है।
शोध टीम ने बताया कि जिनके पास P1104A संस्करण की दो कॉपी मौजूद हैं, उनके एक पांचवें हिस्से पर टीबी का जानलेवा असर हो सकता है। हालांकि, इस जीन संस्करण के ज़्यादातर वाहकों की मौत हो गई थी, मगर कुछ बच गए थे और 2000 साल पहले तक उनकी अगली पीढ़ी में यह संस्करण मौजूद थे। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि विकासवादी दबाव ने इस घातक जीन संस्करण को बहुत कम संख्या तक सीमित कर दिया है।
मुरसी ने एक रिपोर्ट के अनुसार कहा, "संक्रामक बीमारी सबसे बड़ा विकासवादी दबाव हैं जिसका सामना मनुष्य को करना पड़ता है। हम उन लोगों के वंशज हैं जिन्होंने इतिहास में महामारियों से जंग लड़ी है। इस अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किन पैथोजन ने हमार डीएनए को बदला है और हमें ज़्यादा सहनशील बनाया है।"
यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि जानलेवा पैथोजन और मनुष्य इम्यून सिस्टम कैसे एक साथ विकसित हुए। यह निगरानी के नज़रिये से भी ज़रूरी है। यूके डाटाबैंक जैसे नए डाटाबेस, जहाँ देश के लोगों के आनुवंशिक विवरण मौजूद हैं, उनमें जीन संस्करण के प्रसार को खोजा जा सकता है।
अध्ययन के मुख्य लेखक गैस्पार्ड केर्नर ने समझाया, "आज यह तुरंत जानने की ज़रूरत है कि P1104A संस्करण किस स्तर तक फैला हुआ है। भारत, इंडोनेशिया, चीन और अफ़्रीका के कुछ हिस्सों की आबादी में इसका मिलना मुश्किल है, इन जगहों पर टीबी स्थानिक है। मगर यूके डाटाबैंक में हर 600 ब्रिटिश लोगों में से एक इंसान के पास इस संस्करण की दो कॉपी मौजूद हैं। अगर उन्हें टीबी हो जाता है, तो उन्हें गंभीर बीमारी या मौत का ख़तरा रहता है।"
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
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