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ए दिल है मुश्किल, जीना यहाँ , जरा बचके जरा हटके ये है बॉम्बे मेरी जां

ए दिल है मुश्किल, जीना यहाँ, जरा बचके जरा हटके ये है बॉम्बे मेरी जां. यह गाना सी.आई.डी. फिल्म का है. यह उस वक्त की फिल्म है जब स्वेत श्याम फिल्मों का दौर था. यह गाना अपने जमाने के सबसे प्रसिद्द गानों में से एक है. आजकल भी अक्सर यह गाना रेडियों पर सुनने को मिलता है और जो भी इसे सुनता है वह इस गाने को गुन-गुनाने लगता है. उस ज़माने में यह गाना बॉम्बे में आम आदमी के जीवन की कठिनायों और शहर के हालात का बखूबी ब्यान करता  है. लेकिन इसी गाने के मुखड़े पर आधारित शीर्षक से बनी करण जोहर की फिल्म “ए दिल है मुश्किल” बड़े विवाद का मुद्दा बन गयी है. विवाद इस बात को लेकर है कि फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान ने काम किया है.

यह बवाल इस लिए है क्योंकि सीमा पर तनाव है और भारतीय सेना के जवानों को पाकिस्तान की सीमा से आये आतंकवादियों ने हमारी ही सीमा के भीतर मार गिराया. कश्मीर के उड़ी में घटी इस घटना से पूरे देश में एक गुस्से की लहर है. आम जनता के इस गुस्से को फिल्मों की और मोड़ने की कोशिश की जा रही है. इस अभियान में अन्य कट्टरपंथी हिन्दू संगठन के अलावा राज ठाकरे की मुंबई में माफिया को नियंतरण करने वाली पार्टी एम्.एन.एस. सबसे आगे है. वह सीधे धमकी दे रही है कि अगर फिल्म को सिनेमा पर रिलीज़ किया गया तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता माफिया लोगों के न्रेतत्व में सिनेमा हॉल में तोड़ फोड़ कर देंगे. देश के बाज़ारों में बिक रहे चीनी आयतित माल के बहिष्कार का भी अभियान इन्ही संगठनों ने छेड़ा हुआ है. जबकि चीन का यह माल भारतीय बाजारों में तीन महीने पहले ही आ चूका है. इस बहिष्कार से चीन का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा हाँ भारतीय व्यापारियों एवं छोटे दुकानदारों को इसका अच्छा खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.

आज़ादी के बाद से लेकर आज तक, जबसे हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जुदा हुए हैं पकिस्तान हिन्दू कट्टरपंथी ताकतों के लिए अपनी राजनीती को चलाने और उसके इर्द-गिर्द अपना वोट बैंक बनाने का सहारा बन गया है. अगर आज भारत-पकिस्तान के रिश्ते सुधर जाएँ तो इन संगठनों की आधी से ज्यादा राजनीती ख़त्म हो जायेगी. मंदिर-मस्जिद के विवाद से लेकर, लव जिहाद, बीफ राजनीती, पाकिस्तान के हमलों का गुस्सा देश के अल्पसंख्यकों पर उतारना, उनकी देश भक्ति पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगाना आदि ऐसे उदहारण हैं जो संघ, शिव सेना और भाजपा के अल्पसंख्यक विरोधी चरित्र को उजागर करते हैं. चुनावों का समर उत्तर परदेश में शुरू हो रहा है और भाजपा यहाँ किसी भी कीमत पर सत्ता पर काबिज़ होना चाहती है. मतदाताओं को धार्मिक आधार पर बांटने के लिए भाजपा ने पूरे देश में या तो खुद अल्पसंख्यकों के विरुद्ध मुहीम चलाई हुयी है या फिर उसने अपने सभी साहयक संगठनों को देश के सामजिक एवं धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने में ज़हर घोलने की छूट दी हुयी है. मकसद साफ़ कि उत्तर प्रदेश धर्म के आधार पर 2014 के लोकसभा चुनावों की तरह वह हिन्दू और मुस्लिम मतदाता के बीच ध्रुवीकरण चाहती है ताकि वह हिन्दुओं के मतों पानी और खीच सके. भाजपा/संघ और उनके समर्थक संगठन, नेता या अभिनेता सभी इस मुहीम का व्यवस्थित हिस्सा है. इसलिए हर वो मुद्दा जो धार्मिक आधार पर देश का विभाजन कर्ता हो या फिर अंध राष्ट्रवादी जूनून का मसला हो, भाजपा के नेता और उनके सहायक संगठन पूरी तरह से माहौल में ज़हर घोलने का काम कर रहे हैं.

अभी हॉल ही में हिंदुस्तान टाइम्स में उत्तर प्रदेश में साम्रदायिकता की घटी घटनाओं पर विस्तृत रपट छपी है. इसमें अप्पू सुरेश लिखते हैं कि पिछले 2 वर्षों में साम्रदायिक तनाव और हिंसा की घटना में बेइंतिहा इजाफा हुआ है. सन 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए बड़े दंगे में उत्तर प्रदेश में 60 लोग मारे गए. फिर 2014 में पड़ोस के जिले सहारणपुर में ज़मीन से जुड़े विवाद को लेकर दंगे हुए. अगस्त महीने में लव जिहाद के सवाल पर हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों ने साम्प्रदायिक शान्ति भंग करने की कोशिश की गयी. बाद में वह शिकायत भी झूठी पायी गयी. यही नहीं गौ-रक्षा के नाम पर प्रदेश के हर जिले में संघ सम्बंधित संगठन सक्रिय हैं और अक्सर बीफ पाए जाने के नाम पर स्थानीय मीट व्यापारियों या फिर पशु व्यापारियों को इन संगठनों के हमलों का मुकाबला करना पड़ता है. विभिन्न मीडिया रपट में यह पाया गया है कि उत्तर प्रदेश जिले जो हरियाणा की सीमा से सटे हैं वे अक्सर इन व्यापारियों से गैर-कानूनी ढंग से पैसा ऐंठते हैं. उत्तर प्रदेश ही बल्कि हिंदी पट्टी में ये ‘गौ रक्षक’ दल गैर-कानूनी ढंग से काम कर रहे हैं. सरकारे इनकी कारगुजारियों पर आँखे मुंड कर बैठी है. इन हमलों में खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बानाया गया. लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता यह मार हिन्दू कहलाई जाने वाली हिन्दू जातियों (दलित तबका) पर भी पड़ने लगी. यूँ तो पूरे देश में दलितों पर गौ-रक्षा के नाम पर हमले बढ़ रहे थे लेकिन गुजरात के उना की घटना ने सबको को हिला कर रख दिया. दलितों के खिलाफ दरिंदगी का नंगा नाच और उस पर उसके विडियो को सोशल मीडिया पर डाला जाना सीधा और साफ़ संकेत था कि गौ-रक्षा के नाम पर वे किसी भी समुदाय के व्यक्ति पर हमला कर सकते हैं और माहौल को दूषित कर सकते हैं. देश के दलित समुदाय काफी हद तक संगठित तरीके से इन घटनाओं का पुरजोर विरोध किया. चूँकि मनुस्मृति के आधार पर दलितों को हिन्दू जातीय व्यवस्था का हिस्सा माना जाता है इसलिए इस विरोध का असर पूरे देश में देखने को मिला. इन घटनाओं ने दलित राजनीती और आन्दोलन को एक नया आयाम देने के लिए मजबूर किया. इसके परिणाम स्वरुप गुजरात में जिग्नेश मेवानी और एनी लोगो के न्रेतत्व में भूमि आन्दोलन चल रहा है. वाल्मीकि समुदाय के लोग जो सफाई के महकमे से जुड़े हैं वे भी स्थायी रोज़गार और सम्बंधित सुवुधाओं की मांग को लेकर गुजरात की सड़कों पर उतर आये हैं.

सन 2014 से इन घटनाओं में वृद्धि का सीधा कारण है केंद्र में संघ समर्थित भाजपा की सरकार जो  देश में अंध राष्ट्रभक्ति के नाम पर किसी को भी देशद्रोही करार दे देते हैं और पूरा देश, टी.वी. चेनल, अखबार उन्ही ख़बरों पर अपना पूरा समय लगा देते हैं. आम आदमी भूल जाता है कि देश में बेरोज़गारी बेइंतिहा बढ़ रही है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में सुबोध वर्मा की रपट के  मुताबिक़ देश में 68 प्रतिशत परिवारों की आय 10,000 रूपए से भी कम है. क्या कभी सोचा है जिस परिवार की आय इतनी कम है उस परिवार के लोग/बच्चे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, पोषित आहार की सुविधाएं कैसे ग्रहण करेगा? किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं है. औधोग्यिक उत्पादन कम हो रहा है और सेवा क्षेत्र में रोज़गार बढ़ नहीं रहे हैं. सवाल यह उठता है कि इस आर्थिक स्थिति के साथ कहां जाएगा इंडिया?

अब भाजपा या उनके सरदार मोदी साहब ने जो वायदे किये थे वे उन्हें पूरा तो नहीं कर सकते इसलिए संघ अपने एजेंडे के जरिए भारतीय राजनीती में स्थायी कब्ज़ा करने के लिए साम्रदायिक उन्माद और फूट डालो राजनीती को बढ़ावा दे रही है. वे स्पष्ट कह रहे हैं कि यह देश हिन्दू बहुल वाला देश है और सबको इस देश में हिन्दू मान्यताओं जोकि मनुस्मृति और वर्णाश्रम पर आधारित, के निर्देश में चलना होगा. ताकि देश को व हिन्दू समाज को ब्राहमणवाद के शिकंजे में कसा जा सके.

अगर आप देशभक्त हैं तो आपको संघ द्वारा तय किये गए पैमाने की हिसाब से यह साबित करना होगा. करण जोहर ने “ए दिल है मुश्किल” को रिलीज़ करवाने के लिए एक विडियो के जरिए अपनी देशभक्त होने का प्रमाण दे दिया है ताकि उनकी फिल्म समय पर रिलीज़ हो सके. अगर आप ऐसा कुछ भी करेंगे तो आपको देशभक्त होने प्रमाण देना होगा वर्ना संघ वाले और सेना वाले आपको सीधा अपनी पसंदीदा जगह पाकिस्तान डिपोर्ट कर देंगे. करण जोहर भूल गए कि ‘ए दिल है मुश्किल’ का मतलब अब बदल कर “ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ, ज़रा बच के ज़रा हट के, संघी है यहाँ.

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