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कोविड के इलाज़ के लिए विकेंद्रीकृत व्यवस्था बेहतर - डॉ॰ के॰ श्रीनाथ रेड्डी

पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष बता रहे हैं कि भारत को क्यों वायरस के प्रसार को तेज़ी से रोकने की जरूरत है।
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पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो॰ के॰ श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि भारत ने तब लंबे समय का देशव्यापी लॉकडाउन लगाया था जब कोविड-19 के मामले काफी कम थे। फिर देश को कई चरणों में खोला गया। जब तक दूसरी लहर आई, भारतीय समाज कुछ प्रतिबंधों के साथ पूरी तरह से खुला हुआ था। इसके अलावा, वायरस ने अपना रूप बादल लिया था यानि म्यूटेट हो चुका था, और कुछ म्यूटेशन घातक हो सकते हैं। ये सब कारक हमें बताते हैं कि दूसरी लहर से महामारी का बोझ इतना अधिक क्यों बढ़ गया है। रश्मि सहगल द्वारा डॉ॰ रेड्डी से लिए साक्षात्कार के कुछ अंश यहां पेश किए जा रहे हैं।

दूसरी लहर सुनामी के अनुपात जैसी लगती है। इस पर किए जा रहे अध्ययन की मॉडलिंग के हिसाब से विशेषज्ञयों का दावा कि मई के पहले सप्ताह में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में कोविड-19 के मामले एक लाख से अधिक होने की संभावना है। महाराष्ट्र और दिल्ली पहले से ही इस लहर की चपेट में हैं। सावाल उठता है कि क्या हमारी चिकित्सा सुविधाएं इससे निपट सकती हैं?

कोविड संक्रमण के अध्ययन की मॉडलिंग अधिकतर या मुख्य रूप से वर्तमान शहरी दरों के आधार पर की जाती हैं और कम दर वाले ग्रामीण प्रसार की दरों को इसमें समायोजित नहीं लिया जाता हैं। इसके अलावा, वे ट्रांसमिशन की रोकथाम के उपायों के संभावित प्रभावों को ध्यान में नहीं रखते हैं जिन्हे कि अब स्थापित किए जाने की संभावना है। हालांकि, तेजी से बढ़ती दरों का खतरा वास्तविक और चिंताजनक है। हमारी चिकित्सा सुविधाएं गंभीर रूप से दबाव में हैं और कई स्थानों पर इनके चरमरा जाने का खतरा बढ़ गया है। हमें तेजी से बढ़ते संक्रमण की दर की जांच बड़ी तेजी करने की जरूरत है। हमें जरूरत इस बात की भी है कि हम कैसे घर पर कोविड मामलों का प्रबंधन कर सकते हैं ताकि गंभीर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने को  प्राथमिकता मिल सके।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़े एक प्रमुख महामारी विज्ञानी ने कहा है कि इन राज्यों में प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति तीन अन्य को बीमारी दे सकता है। इसलिए, दूसरी लहर को पहले से भी अलग तरीके से संभालने की जरूरत है। क्या यह सही है, और यदि हां, तो कैसे?

जब पहली लहर आई थी तो हमने एक लंबा राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया था, जबकि केस की संख्या कम थी। फिर हमने कई महीनों तक कई रोकथाम के उपायों को लागू करते हुए कई चरणों में देश को खोला। हमने पूरी तरह से खुले समाज के भीतर दूसरी लहर का सामना किया जब लोग बड़ी तेजी से आपस में घुल-मिल रहे थे या अपने छूटे कामों को पूरा कर रहे थे। इसने वायरस को फैलने का बड़ा अवसर प्रदान किया होगा, लेकिन अब हमारे सामने वायरस के ऐसे संस्करण भी हैं जो और भी अधिक संक्रामक हैं। इसलिए, ताजा लहर में संक्रमण की दर और प्रसार अधिक है।

इन आंकड़ों से निपटने के लिए, हमें अपने अस्पतालों में हर दिन 1,000 बेड जोड़ने होंगे। सवाल ये उठता है कि क्या हमारा मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इतने बेड उपलब्ध करा पाएगा?

हमारे अस्पताल के संसाधन न केवल बेड बल्कि डॉक्टरों और नर्सों के संदर्भ में भी देखा जाए तो वे पहले से गंभीर रूप से तनाव में हैं, जो मानव-धीरज और थकावट की सीमाओं से परे काम कर रहे हैं। हम बेड क्षमता को बढ़ाने के लिए मेकशिफ्ट अस्पताल का निर्माण कर सकते हैं लेकिन उन अस्पतालों में कर्मचारी-स्टाफ कहां से आएंगे? इसलिए हमें कम गंभीर मरीजों का इलाज़ घर पर करना होगा ताकि गंभीर रोगियों को अस्पतालों में भर्ती कराया जा सके।

प्रत्येक राज्य को वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अलग ढंग से काम करना होगा। क्या ऐसी स्थिति में यह संभव है? क्योंकि सरकार की निर्णय लेने की प्रवृत्ति काफी केंद्रीकृत है। 

यहां तक कि जिला स्तर तक, इलाज़ के लिए विकेंद्रीकृत व्यवस्था के अलावा कोई विकल्प नहीं है। केंद्र सरकार राज्यों के बीच समन्वय बना सकती है और उन्हे समर्थन देने का काम कर सकती है, योजना और संसाधनों के आवंटन का काम राज्य की राजधानियों के स्तर पर किया जाना चाहिए। लेकिन डेटा-संचालन में विकेंद्रीकृत निर्णय लेने का काम जिला स्तर पर किया जाना चाहिए। जमीनी हकीकत और उभरती हुई स्थिति का आकलन जिला प्रशासन सबसे बेहतर ढंग से कर सकता है और ज़िला प्रशासन ही स्थानीय भागीदारी के माध्यम से ठोस कार्रवाई कर सकता है।

वैज्ञानिक कह रहे हैं कि भारत में दूसरी लहर दुनिया में सबसे अधिक घातक और अधिक चिंताजनक है; नॉवेल कोरोनावायरस के अब 5,000 रूप/संस्करण हैं, और इसी तरह और भी हो सकते हैं। क्या आपको लगता है कि यह सही है?

यह कहना मुश्किल है कि दूसरी लहर अधिक घातक है क्योंकि मृत्यु दर कई कारकों से प्रभावित होती है जो पहली और दूसरी लहरों के बीच भिन्न होती है। यहां तक कि अगर मृत्यु दर के मामले में वायरस वेरिएंट अधिक घातक नहीं है, तो दैनिक मामलों की संख्या बढ़ने से मौतों की संख्या भी बढ़ जाएगी। हमें नुकसान को सीमित या कम करने के लिए जितनी जल्दी हो सके ट्रांसमिशन को रोकना होगा।

उदाहरण के लिए, दिल्ली में 13 प्रतिशत सकारात्मक मामलों की दर है। क्या इसका मतलब यह है कि किसी भी समय, 15 से 20 लाख लोग वायरस से संक्रमित हैं?

सकारात्मकता दर उन लोगों में से ली जाती है जिनकी वायरस की जांच होती है। उनकी जांच  या तो इसलिए की जाती है क्योंकि वे रोगसूचक होते हैं या किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आते हैं जिसे रोग के लक्षण हैं। अन्य हालात में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की भी जांच की जाती है। ये समूह पूरी आबादी के प्रतिनिधि नहीं होते हैं। दिल्ली की पूरी आबादी में संक्रमित संख्या का अनुमान लगाने के लिए इस तरह के चुनिंदा समूह की जांच से मिली सकारात्मक दर से मिलान नहीं किया जा सकता है।

मामलों के मुक़ाबले मृत्यु दर भी बढ़ गई है। पहले यह 1.1 प्रतिशत थी और अब 1.5 प्रतिशत हो गई है। लोगों को चेतावनी दी जा रही है कि यह दर मई की शुरुआत में बढ़ जाएगी। क्या चेतावनी सही है?

मामले की मृत्यु दर (सीएफआर) यानि मृत्यु का अंश और सकारात्मक जांच वाले मामले हैं। आमतौर पर जांच निदान और मृत्यु के बीच 14-20 दिन का अंतराल होता है। हालांकि, जब आप कई जांच करते हैं, तो आप हल्के लक्षण या बिना लक्षण वाले व्यक्तियों का पता लगा सकते हैं, जबकि प्रतिबंधित जांच आमतौर पर अधिक बीमार रोगियों तक ही सीमित रहती है। मृत्यु बिना लक्षण वाले और हल्के लक्षण वाले रोगियों में नहीं होती है। इसलिए, बड़े पैमाने पर जांच  सीएफआर के अनुमान को कम करती है जो मृत्यु से बहुत अधिक होती है। जब हम सीएफआर का आकलन करते हैं, तो हमें इन विविधताओं को समायोजित करने की जरूरत होती है। हमें निदान और मृत्यु के बीच के समय को ध्यान में रखते हुए सीएफआर को ट्रैक करने की जरूरत है।

सरकार हमें क्यों कोविड की उचित रोकथाम की व्यवस्था प्रदान करने में विफल रही है? महामारी विज्ञानियों का कहना है कि मामलों में वृद्धि बड़ी भीड़ से जुड़ी हुई हैं, चाहे वह राज्य  या पंचायत चुनाव हो, या फिर कुंभ मेले जैसे आयोजन रहे हों।

यह एक ऐसा सवाल है, जिस पर देश भर की सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। शायद, इस तरह की आयोजनों की योजना गलत आधार पर बनाई गई थी कि महामारी भारत में समाप्त हो गई है और अब वापस नहीं आएगी। हर्ड इम्यूनिटी (झुंड उन्मुक्ति) की पुष्टि करने वाले आत्मविश्वास की घोषणाओं से मदद नहीं मिल पाई है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के पास जनवरी और मार्च के बीच काफी अवसर थे जहां वह सभी आयु समूहों के टीकाकरण को बढ़ा सकती थी। क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं?

टीके अक्सर गंभीर बीमारी को रोकते हैं। लेकिन वे तुरंत संक्रमण को नहीं रोकते हैं। भविष्य में, म्यूकोसल टीके ऐसा कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान में उपलब्ध प्रणालीगत टीके संक्रमण को रोकने में नाकाम हैं। इसलिए, उपलब्ध टीके के जरूरी टीकाकरण को संक्रमित होने वाले या  गंभीर बीमारी की चपेट में आने वाले व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बाद की श्रेणी में वे व्यक्ति शामिल हो सकते हैं जो उम्र में बड़े हैं या संबंधित स्वास्थ्य स्थितियाँ उन्हें बड़े जोखिम में डालती हैं।

 सामान्य तौर पर देखा जाए तो युवा व्यक्ति संक्रमित होने पर बहुत बीमार नहीं पड़ते हैं। जब वैक्सीन की आपूर्ति प्रतिबंधित है, तो काम की अनिवार्यता और गंभीर बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों का टिकाकरण अधिकांश देशों में लागू होने वाला मापदंड हैं। यदि हमारे पास टीकों की प्रचुरता और टीकाकरण करने वाली बहुत सी टीमें तत्काल उपलब्ध हैं, तो हम सभी आयु समूहों को सीधे टीके लगा सकते हैं। यह स्थिति केवल कुछ मुट्ठी भर देशों में मौजूद है।

 
यूरोपीयन यूनियन और चिकित्सा समूहों ने आरोप लगाए हैं कि कोविशील्ड से रक्त-थक्के बन रहे है, जिससे इसकी प्रभावकारिता पर सवाल उठता है, इस पर आपकी क्या प्रतिकृया है?

यूके और यूरोपीयन यूनियन के नियामकों ने डेटा की समीक्षा की है और निष्कर्ष निकाला है कि रक्त का थक्का जमना एक बहुत ही दुर्लभ प्रतिकूल घटना होती है, क्योंकि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से एक स्वप्रतिरक्षी घटना जुड़ी है। कोविशिल्ड के साथ भारत में अभी तक इस तरह की प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्ट नहीं आई है। यह एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की सुरक्षा का मसला है जिसे इन  चिंताओं में व्यक्त किया गया है, न कि इसकी प्रभावकारिता को कोई चुनौती दी गई है।

जबकि टीके की प्रभावकारिता वायरस-प्रेरित गंभीर बीमारी और मृत्यु से बचाने की क्षमता होती है, सुरक्षा टीका के कारण होने वाली गंभीर प्रतिकूल घटनाओं की अनुपस्थिति है। प्रभावकारिता वायरस के खिलाफ सुरक्षा को मापती है। सुरक्षा उपाय वैक्सीन के खतरनाक प्रभावों से खुद को बचाते हैं।

 वर्तमान परिस्थितियों में, सरकार को पूरी आबादी का टीकाकरण करने में कितना समय लगेगा?

हालात विकसित हो रहे हैं। रूसी टीका (स्पुतनिक-वी) को भारत में आयात और बड़े पैमाने पर निर्माण करने के लिए विनियामक का अनुमोदन मिल गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य अनुमोदित टीकों के भारत में इस्तेमाल के लिए रास्ते साफ किए जा रहे हैं। भारत में नए टीकों का भी परीक्षण चल रहा है। कोवाक्सिन और कोविशिल्ड-निर्माताओं दोनों ने घोषणा की है कि वे उत्पादन क्षमता को बढ़ाएँगे। यह केवल जुलाई 2021 तक संभव होगा कि हमारे पास अपनी विकसित आपूर्ति-श्रृंखला की बेहतर समझ होगी, ताकि टीके के कवरेज की प्रत्याशित समयसीमा के बारे में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके।

(रश्मि सहगल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

यह लेख मूलतः अंग्रेजी में है। जिसे आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।  

https://www.newsclick.in/There-is-No-Alternative-Decentralised-Covid-Re…

 

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