'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं...
विशेष काव्यांजलि-भावांजलि
“एक दिन ऐसे जाऊंगा कि कोई मुझे देख नहीं पाएगा
और बिना पुकारे पता नहीं कहाँ से
वह झपटता हुआ तीर की तरह आएगा
पहचानता हुआ मुझे अपने साथ ले जाने के लिए” - विष्णु खरे
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