Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

गंभीर किस्म की समस्याओं से भरी है यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना

आय समर्थन कार्यक्रम के जरिये राज्य को गरीबों से पिंड छुड़ाने जैसी हरकत नहीं करनी चाहिए, क्योंकि एक निश्चित धनराशि सौंपने के बाद वक्त के साथ इसका वास्तविक मूल्य भी घट जाएगा।
सांकेतिक तस्वीर
Image Coutesy: Wikimedia Commons

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा हाल ही में रायपुर में की गई घोषणा जिसके अनुसार उनकी पार्टी ने गरीबों के लिए एक सुनिश्चित आय गारंटी योजना शुरू करने के लिए एक "ऐतिहासिक निर्णय" लिया है, और नरेंद्र मोदी सरकार ने भी अपने आखिरी बजट में कुछ ऐसी ही आय सहायता योजना की घोषणा कम से कम, "किसानों" के लिए की है। भारत की विशाल आबादी के सामने एक बार फिर "सार्वभौमिक बुनियादी आय" (यूनिवर्सल बेसिक इनकम ) का विचार एक बार फिर हवा में झूम रहा है। यह विचार दो साल पहले भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में आया था, हालांकि यह केवल चर्चा के लिए था, न कि वह सरकार के विचारों का प्रतिनिधित्व करता था, बल्कि यह उस समय के मुख्य आर्थिक सलाहकार के विचार थे, जो विश्व बैंक द्वारा सुझायी गयी पुरानी दवा को ही पेश कर रहे थे।

हालांकि यह पहली नजर में एक स्वागतयोग्य कदम भी हो सकता है, लेकिन इससे इंकार नही किया जा सकता कि यह गंभीर समस्याओं से भरा हुआ है। सबसे पहले यह पूछने वाला सवाल है कि क्या यह आय योजना, सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के अलावा दी जाएगी और क्या इसे मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं पर किए जा रहे व्यय की जगह दिया जाएगा।

फिर, इस संबंध में आए अधिकांश सुझाव मौजूदा योजनाओं की जगह आय योजना को लाने की कल्पना करते हैं, यदि मौजूदा योजनाओं जो कि स्पष्ट रूप से, पहली नजर में आय गारंटी के रूप में प्रकट होती हैं, तो वास्तविकता में वह पर्याप्त नहीं होगा। तब भी जब इसकी गणना न केवल मौजूदा कीमतों और सब्सिडी मूल्य के आधार पर की जाएगी बल्कि एक आय समर्थन के रूप में वह अपर्याप्त तब भी होगी जब ऐसी सब्सिडी को वापस ले लिया जाएगा, फिर भले ही यह गणना सब्सिडी के मूल्य की वापसी के प्रभाव को शामिल करती हो, लेकिन माल और सेवाओं की गारंटीयुक्त वितरण की अनुपस्थिति में फिर भी वह अपर्याप्त होगी।

उदाहरण के लिए, आय सहायता की राशि की गणना इस धारणा पर की जा सकती है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को वापस ले लिया जाएगा, और सभी खाद्यान्न खुले बाजार के मूल्य पर खरीदना होगा; लेकिन इस आधार पर की गई गणना भी आय समर्थन योजना द्वारा दी गई राशि पर्याप्त नहीं होगी यदि खाद्यान्न को वास्तव में लोगों तक नहीं पहुंचाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, पीडीएस के जरिये कुछ को सब्सिडी वाला खाद्यान्न नहीं मिलता है; लेकिन इसके जरिये यह भी सुनिश्चित होता है कि वास्तव में खाद्यान्न काफी सारे लोगों तक पहुंचाया जाता है। पीडीएस योजना को वापस लेने से लोगों को तय खाद्य सामग्री भी नहीं मिल पाएगी, और प्रति आय नकद सहायता उन्हें पर्याप्त खाद्यान्न उप्लब्ध नहीं करवा पाएगी।

आम तौर पर भी, यह प्रस्ताव कि नकद समर्थन योजना प्रावधान में वस्तु वितरण की जगह ले सकता है, उदाहरण के लिए, माता-पिता द्वारा बच्चे के मिड-डे मील के खर्च को वहन करने के लिए भुगतान, पर्याप्त रूप से मिड-डे मील योजना की जगह ले सकता है,जो कि गलत है। मध्याह्न भोजन योजना कई उद्देश्यों को पूरा करती है, न केवल भूख को संतुष्ट करती है बल्कि उचित पोषण भी सुनिश्चित करती है, और बच्चों के बीच सामाजिक विभाजन पर काबू पाने का भी एक माध्यम बनती है। यदि माता-पिता को अपने बच्चों के भोजन का खर्च उठाने के लिए नकद राशि दी जाती है, तो इससे कई उद्देश्य पूरे नहीं हो सकते हैं। इसलिए, यदि नकद आय सहायता योजना मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं के बदले में है, और वित्तीय कारणों से ऐसा होने का एक बड़ा खतरा मौजूद है, तो यह पूरी तरह से अवांछनीय होगा। नकद आय समर्थन, कार्यक्रम को अगर सार्थक बनाना है, तो इसे मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं के अतिरिक्त होना होगा; और इन योजनाओं को भी ऐसे समर्थन के साथ बढ़ते रहना होगा।

इसी तरह, "किसानों" के लिए आय समर्थन अक्सर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रावधान के विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है। यह वास्तव में "किसानों" के समर्थन की पेशकश के लिए नहीं है, बल्कि समर्थन को समेटने वाला तरीका है: इसका मतलब है कि सरकार केवल "किसानों" को एक निश्चित धनराशि देकर अपने हाथ झाड़ लेती है और उन्हें बाजार के मूल्य में उतार-चढ़ाव की दया पर छोड़ देती है।

अक्सर "योग्यता" और "गैर-योग्यता" वाली सब्सिडी के बीच अंतर किया जाता है, और यह सुझाव दिया जाता है कि "गैर-योग्यता" सब्सिडी में कटौती करके आय सहायता योजना को वित्तपोषित किया जाना चाहिए। लेकिन कई लोगों ने अनुमान लगाया है कि तथाकथित "गैर-मेरिट सब्सिडी" पहले से ही इतनी कम कर दी गई है कि उनमें किसी भी तरह की कटौती से शायद ही कोई फंड पैदा होगा, जो कि निश्चित रूप से एक आय सहायता योजना के लिए पर्याप्त नहीं होगा। अधिक महत्वपूर्ण बात, हालांकि यह है कि योग्यता और गैर-योग्यता सब्सिडी के बीच भी यह अंतर अपने आप में समस्याग्रस्त है।

आइए उदाहरण के लिए, एक बार उल्लेखित गैर-योग्यता सब्सिडी, अर्थात् उर्वरक सब्सिडी पर नज़र डालें। यदि उर्वरक सब्सिडी के घटने से किसान की उत्पादन लागत में वृद्धि होती है और इसलिए यदि खरीद मूल्य में वृद्धि की आवश्यकता होती है, और यदि यह पीडीएस के मूल्य से जुड़ा है, तो यह कटौती, हालांकि केवल गैर-योग्यता वाली सब्सिडी को प्रभावित करने वाली मानी जाती है, लेकिन असल मैं यह गरीबों को चोट पहुँचाएगी। दूसरी तरफ, यदि निर्गम मूल्य को नहीं बढ़ाया जाता है और इसके बजाय खाद्य सब्सिडी बढ़ाई जाती है, तो एक सब्सिडी में कटौती से दूसरे में वृद्धि होगी। इसलिए, योग्यता और गैर-योग्यता सब्सिडी के बीच अंतर करना और यह मानना कि गैर-योग्यता सब्सिडी को रोका जा सकता है, यह पहली ही नजर में उतना ही मान्य नहीं है।

यदि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं और गरीबों को लाभ पहुंचाने वाली सब्सिडी में कटौती किए बिना यह  आय समर्थन दिया जाना है, तो अतिरिक्त करों को बढ़ाना होगा (जब तक कि सरकार अपने कुछ गैर-कल्याणकारी व्यय में कटौती को लागू करने के लिए तैयार नहीं होती है, जैसे कि रक्षा क्षेत्र)। और अगर इन करों का इस्तेमाल केवल गरीबों से वह सब छीनना नहीं है जो उन्हें आय समर्थन के रूप में दिया जाता है, तो उन्हें अप्रत्यक्ष करों जो आम तौर पर गरीबों पर मार मारते हैं के बजाय प्रत्यक्ष करों (जैसे आय, पूंजीगत लाभ और धन करों) पर ज़ोर देना होगा। इन प्रत्यक्ष करों में किसी भी तरह की वृद्धि के बारे में हालांकि, बड़े पूंजीपतियों द्वारा और वैश्विक वित्त पूंजी द्वारा विरोध किया जाएगा। इसलिए, कोई भी सरकार जो इन शक्तिशाली संस्थाओं को धता बताने की इच्छा नहीं रखती है,वह गरीबों को वास्तविक आय सहायता प्रदान नही कर सकती है।

इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि "बेसिक इनकम योजना" के कुछ अति उत्साही समर्थक वित्तीय प्रेस के नव-उदारवादी समर्थकों के बीच पाए जाते हैं, जो बड़े पूंजीपतियों के हितों को अपने दिलों में रखते हैं, और जो वर्तमान में और पूर्व में विश्व बैंक के अधिकारी रहे हैं। इससे पता चलता है कि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं के अलावा नहीं बल्कि ऐसी योजनाओं के प्रतिस्थापन के माध्यम से आय समर्थन प्रदान किए जाने की उम्मीद है। इस तरह के प्रतिस्थापन से न केवल गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य पीछे छूट जाएगा, बल्कि आबादी को आवश्यक सामान और सेवाएं प्रदान करने के कार्य से भी राज्य अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में पीछे हो जाएगा। (सबसे ज्यादा इसका मतलब होगा गरीबों की मदद अमीरों की कीमत पर नहीं, बल्कि थोड़े कम गरीबों की कीमत पर)।

इसलिए आय समर्थन, जैसी दिखाई देती है वह वास्तव में उसके विपरीत नव-उदारवाद की दिशा में जाने वाली योजना है, जिसके तहत राज्य गरीबों को एक निश्चित धनराशि सौंप कर अपने हाथ धो लेगा और बाद में उन्हें बाज़ार के हवाले कर दिया जाएगा,और फिर वक़्त के साथ जिसका वास्तविक मूल्य भी घट जाएगा।

आय समर्थन के लिए सैद्धांतिक तर्क आमतौर पर इस बात की तस्दीक़ करता है कि सभी के लिए रोजगार का प्रावधान वर्तमान परिदृश्य में संभव नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है, यह एक नव-उदारवादी पूंजीवाद का सच है, हालांकि इसे उत्पादन की पद्धति के बावजूद सार्वभौमिक वैधता के रुप में माना जाता है। लेकिन आइए फिलहाल हम इस प्रस्ताव को सच मानें। ऐसे मामले में, राज्य को मज़दूरी से आय के एवज में श्रमिकों को एक उस समान आय का भुगतान करना चाहिए जिसे वे रोजगार में रहते हुए कमा सकते थे; इसके अलावा, हालांकि, चूंकि रोजगार का अधिकार केवल आर्थिक अधिकार नहीं है, इसलिए अन्य आर्थिक अधिकारों के साथ-साथ यह इसका पूरक होना चाहिए, और राज्य को उन अन्य अधिकारों को भी प्रदान करना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहे तो आय समर्थन, मुफ्त, गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक सार्वजनिक शिक्षा; राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से मुफ्त, गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा; एक सार्वभौमिक पीडीएस के माध्यम से सब्सिडी वाला भोजन; पर्याप्त वृद्धावस्था पेंशन और विकलांगता लाभ; और इसी तरह के प्रावधान के साथ मिलकर चलनी चाहिए।

इसे अलग तरीके से रखना होगा, अगर नागरिकों को सार्वभौमिक आर्थिक अधिकारों के समूह में शामिल करना है तो, और यदि गरीबी उन्मूलन को राज्य द्वारा दानशीलता के सांचे में नही रखना है, तो आय समर्थन केवल रोजगार के अधिकार को साकार करने का एक साधन हो सकता है, जो अन्यथा माना जाता है जिसे हासिल करना असंभव है। लेकिन यह अन्य अधिकारों की गारंटी देने की आवश्यकता को नकारता नहीं है, जैसे कि मुफ्त शिक्षा का अधिकार और मुफ्त स्वास्थ्य सेवा आदि का अधिकार। आय समर्थन इन अन्य अधिकारों का विकल्प नहीं हो सकता है। इसे इन अन्य अधिकारों के साथ जोड़ना होगा।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest