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गरीबों ने लड़ाई लड़ी, सरकार पीछे हटी

“लम्बे समय के बाद लोगों की आवाज़ सुनी गयीI इस निराशाजनक माहौल में जनता के लोकतंत्र के लिए यह छोटी ही सही, मगर जीत हैI पता नहीं क्यों यह निर्णय लेने में चार माह लग गएI हमारा अनुरोध है कि सरकार फिर कोई नया प्रयोग करने की बजाय सिस्टम को मजबूत करे...”
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“लम्बे समय के बाद लोगों की आवाज़ सुनी गयीI इस निराशाजनक माहौल में जनता के लोकतंत्र के लिए यह छोटी ही सही, मगर जीत हैI पता नहीं क्यों यह निर्णय लेने में चार माह लग गएI हमारा अनुरोध है कि सरकार फिर कोई नया प्रयोग करने की बजाय सिस्टम को मजबूत करे...” जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने इसी 8 अगस्त को ये बातें उस समय कहीं, जब राजधानी राँची से सटे नगड़ी प्रखंड के गरीब-गुरबों द्वारा राशन के अधिकार के लिए किये गये विरोध आन्दोलन के सामने झुकते हुए सरकार को अपना फैसला वापस लेने की घोषणा करनी पड़ीI मामला था केंद्र सरकार द्वारा जबरन डिजिटल इंडिया बनाने के लिए ग्रामीण गरीबों को सीधे बैंक–खातों से ऑनलाईन डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) प्रणाली द्वारा राशन–सब्सिडी देने काI जिसकी प्रयोगशाला झारखण्ड प्रदेश के नगड़ी प्रखंड को बनाया गया थाI भूख, तंगहाली और बेकारी से जूझते गाँव के गरीबों के लिए यह योजना ऐसा सरदर्द बनी कि सारे गरीब सड़क पर खड़े हो गएI वर्ष 2017 के अक्टूबर महीने से, योजना के लागू होने की घोषणा की गयी थी, इसका विरोध शुरू हो गयाI जिसे राज्य के सभी विपक्षी तथा वाम दलों के साथ-साथ एआईपीएफ़ व अन्य कई जन संगठनों ने पुरज़ोर समर्थन देकर एक बड़ा जन मुद्दा बना दिया थाI

सन 2017 के अक्टूबर माह से भारत सरकार ने जब देश के गाँव को जबरन डिजिटल इंडिया बनाने के लिए एकतरफा फैसला लिया कि अब से गाँव के गरीबों को हर महीने दी जानेवाली राशन सब्सिडी डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) व्यवस्था के तहत बैंक खातों के ज़रिये दी जायेगीI तो झारखण्ड के मुखिया जी ने बिना आगे–पीछे विचार किये, आननफानन इसे लागू करने के लिए उतर पड़ेI 4 अक्तूबर को स्वयं नगड़ी पहुँच कर इस पायलट योजना का उद्घाटन कर डालाI ठीक वैसे ही, जैसे नोटबंदी के समय प्रधानमन्त्री द्वारा ‘कैशलेस इंडिया’ स्कीम को लागू करने के लिए इसी प्रखंड को ‘कैशलेस प्रखंड’ बनाने की कवायद की थीI परिणामस्वरुप जिन्हें दो जून का खाना जुटाना मुश्किल हो रहा हो, गाँव के वैसे सभी गरीबों पर मानो संकटों का पहाड़-सा टूट पड़ाI सबसे बड़ा संकट हुआ बैंक में खाता खुलवाने और पैसा निकलवाने का और बैंकों–प्रज्ञा केन्द्रों के आगे सुबह से वैसी ही भीड़ जमा होने लगी जैसी नोटबंदी के समय हुई थीI जिनका किसी तरह खाता खुल भी गया, उन्हें केवल ये जानने में कई दिन लग गए कि खाता में कितना पैसा कब पहुँचा या नहीं उस पर से कई बार बैंक का लिंक ही फेल मिलाI सबसे अधिक दुर्दशा हुई उन बुजुर्ग–विधवा और विकलांगों की हुई जिनके घरों में उनके अलावे कोई और सक्षम सदस्य नहीं थाI फलतः भूख से छुटकारा दिलानेवाली सरकार की ‘डीबीटी योजना’ उन्हें भूखों मारने लगी और वे चाहकर भी हर महीने मिलने वाले सरकारी राशन से वंचित होने लगेI इन परीस्थितियों ने राशन की कालाबाज़ारी–बिचौलियों के संगठित मनमाने दामों पर राशन बेचने को और अधिक बढ़ा दियाI कई बार तो लोगों को उन्हें मुफ्त मिलनेवाले सरकारी राशन भी क़र्ज़ लेकर खरीदने पड़ रहे थेI

ग्रामीण गरीबों की इस दुर्दशा को देखकर राज्य में भोजन के अधिकार व अन्य ग्रामीण सवालों पर काम कर रहे सामाजिक संगठनों व जन संगठनों ने इस मुद्दे को उठाना शुरू कियाI फिर तो ‘डीबीटी हटाओ, राशन बचाओ’ अभियान के तहत गाँव–गाँव में बैठकों का सिलसिला शुरू हो गयाI मनरेगा व अन्य ग्रामीण सवालों पर सक्रिय रहनेवाले जाने-माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्त्ता ज्यां द्रेज़ की सक्रिय पहल व अपील पर राज्य के सभी विपक्षी व वाम दलों ने भी मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सरकार पर डीबीटी व्यवस्था हटाने का दबाव देना शुरू कियाI गौरतलब है कि उसी दौरान राज्य में सरकारी राशन देने कि प्रक्रिया में सरकार द्वारा आये-दिन किये जा रहे अजीबो-गरीब प्रयोगों ने आधा दर्जन गरीबों की जान ले लीI हालांकि, मेडिकल रिपोर्ट में इनकी मौत की वजह बीमारी बतायी गयीI इस मुद्दे पर भी सरकार बचती हुई नज़र आईI हालाँकि इस बीच डीबीटी व्यवस्था लागू करने के कुछेक बिन्दुओं पर विभागीय मंत्री सरयू राय भी सरकार के फैसले से असहमत नज़र आये और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपना बयान भी दे डालाI क्योंकि डीबीटी-व्यवस्था से हो रही ग्रामीण गरीबों की दुर्दशा किसी से भी छुपी हुई नहीं रह गयी थीI

खुद सरकार के सोशल ऑडिट रिपोर्ट में भी इसकी व्यावहारिकता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए थेI ‘डीबीटी हटाओ, राशन बचाओ’ अभियान नगड़ी व आसपास के इलाके के सभी ग्रामीण गरीबों के एक बड़े जन आन्दोलन की शक्ल ले चुका थाI जिसकी परिणति हुई 26 फ़रवरी 2018 को “मुख्यमंत्री के आवास तक सामूहिक पदयात्रा” के आह्वान केकिया गयाI जिसमें नगड़ी समेत कई इलाकों के ग्रामीण गरीबों के साथ कई सामाजिक जनसंगठनों के लोग और राज्य के सभी विपक्षी व वाम दल भी सक्रिय तौर पर शामिल हुएI भारी पुलिस व्यवस्था को धता बताते हुए नगड़ी से सैकड़ों की संख्या से शुरू हुई ‘पदयात्रा’ में राजधानी पहुँचते–पहुँचते हज़ारों लोग शामिल हो गयेI पुलिस ने जब इसे मुख्यमंत्री आवास तक नहीं जाने दिया तो सभी राजभवन के समक्ष विरोध कार्यक्रम में बैठ गए I ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वेश-भूषा और पारम्परिक तीर-धनुष के साथ वहाँ आये गाँव के गरीबों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार जल्द से जल्द डीबीटी-व्यवस्था वापस नहीं लेती है तो मजबूरन वे आन्दोलन को और बड़ा करने के लिए विवश हो जायेंगे और इसकी सारी ज़िम्मेदारी सरकार की होगीI

आखिरकार राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार को यह लिखना पड़ा कि डीबीटी-व्यवस्था लागू करने में कठिनाई और इससे लोगों को भी परेशानी हो रही है, इसलिए योजना को वापस ले लेना चाहिएI 9 अगस्त 18 को खबर छपी कि केंद्र ने नगड़ी से योजना वापस ले ली हैI

गाँव के गरीबों की इस जीत से तिलमिलाए राज्य सरकार मंत्री अपनी राजनीति करने से बाज़ नहीं आये और कह डाला कि – “डीबीटी स्कीम फेल नहीं हुआ, सिर्फ नगड़ी से वापस हुआ है, विरोधी भ्रामक प्रचार कर रहें हैंI ये वही लोग हैं जो– सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों में बायोमैट्रिक सिस्टम से अनाज देने और आधार लिंक करने का विरोध कर राष्ट्र के विकास में बाधा डाल रहें हैंI”

नगड़ी–प्रकरण स्पष्ट दिखता है कि विकास के नाम पर वर्तमान केंद्र की सरकार, जो गाँव और गरीबों को महज “प्रयोग का जंतु” मान रही है, व्यापक लोग इससे सहमत नहीं हैं और ‘अच्छे दिन’ का ज़मीनी स्वरुप कहीं नहीं दिख रहाI  

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