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गुजरात चुनावी नतीजे : मोदी और बीजेपी जीते मगर मुश्किल से

नतीजों ने ये साफ़ किया है कि जनता का बीजेपी से मोहभंग तो हो रहा है पर वो कांग्रेस को विकल्प की तरह भी नहीं देख रही
gujrat elections

सत्ताधारी पार्टी बीजेपी बहुत मुश्किल से गुजरात विधानसभा में बहुमत हासिल करते हुए 182 में से 99 सेटों पर जीत गयी है . कांग्रेस और उसके सहयोगी दल 80 सीटों पर जीते और बाकी 3 सीटों पर दुसरे उम्मीदवारों को जीत मिली है.

Gujarat: Seats Trends

 

Total seats 68

 

2007

2012

2017*

 

 

 

 

BJP

117

115

99

Congress+

59

61

80

Others

6

3

3

* At 3 pm

 

 प्रधानमंत्री के बहुत ज्यादा प्रचार,20000 करोड़ के कार्यक्रमों  और स्कीमों की घोषणा , सांप्रदायिकता की तरफ फिरसे झुकाव और नकली राष्ट्रवाद की राजनीति के बावजूद बीजेपी की सीटें काफी घटी हैं . 2012 में उन्होंने 115  सीटें पर जीत हासिल की थी और बाई इलेक्शन में 6 और सीटों पर वो जीते थे . इसका मतलब ये 122 से 101 पर आगये हैं , जो कि 21 सीटों का नुकसान हैं . दूसरी तरफ कांग्रेस  2012 में जीती 61 सीटों से इस बार 79 सीटों पर आ गयी है . इसमें भारतीय ट्राइबल पार्टी की 2 सीटो के साथ एक निर्दलीय जिग्नेश मेवानी की एक सीट भी शामिल है जो कांग्रेस के समर्थन से लडे थे .

अंतिम नतीजों के अनुसार बीजेपी 49 % वोट हासिल कर चुकी है जो कि 2012 के उनके वोट शेयर से कुछ ज्यादा है ,पर अगर उनसके बाद हुए बाई इलेक्शन की जीत को भी जोड़ा जाए तो उनका वोट शेयर नहीं बढ़ा है . दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट शेयर पिछली बार 39 % से बढ़कर इस बार 43 % हो गया है . वहीँ दो महारथियों के द्वन्द में निर्दालीय उम्मीदवारों का वोट प्रतिशत 13 % से 8 % हो गया है .

Gujarat Assembly: Vote Shares (%)

 

2007

2012

2017*

 

 

 

 

BJP

49

48

49

Congress

40

39

43

Others

11

13

8

* At 3 pm

 

 

ये देखते हुए कि ये चुनाव मोदी और बीजेपी अध्यश अमित शाह के नाम पर लड़ा गया था , बीजेपी की ये ‘जीत’ प्रधान मंत्री मोदी और मोदी मॉडल के लिए देश और राज्य दोनों में एक बड़ा झटका है .

तथाकथित गुजरात मॉडल – तेज़ बढ़त , बढ़ते कॉपोरेट मुनाफे, मजदूरों और किसानों की अनदेखी , स्वस्थ्य सेवाओं , शिक्षा और सामाजिक सुविधाओं की ख़राब स्थिती , की वजह से गुजरात की जनता काफी बुरी स्थिती में खड़ा कर दिया था . गुजरात हिन्दुत्व मॉडल की प्रयोगशाला भी रहा है जहाँ बहु संख्यक हिन्दुओं को लगातार अल्प्संक्यकों , दलितों और आदिवासियों को खड़ा करके बीजेपी सम्रथन जुटाया करती थी . इन चुनावों में इस मॉडल में भी सेंध लगी है .

बीजेपी द्वारा अपनाई जा रही आर्थिक नीतियां और हिंदुत्व की राजनीति को इन चुनावों में लोगों के गुस्से द्वारा चुनौती दी गयी है . कर्जों में दबे किसानों की घटती आय , ज़मीनों का आवंटन और जनता की अनदेखी की वजह फूटे गुस्से ने पाटीदार आन्दोलन का रूप लिया जा अपने लिए नौकरियों में आरक्षण माँग रहे थे और उनके इस गुस्से के साथ जुड़कर बाकी जातियों ने भी अपनी आवाज़ बुलंद करी . दलित जातियां भी अपनी आर्थिक बेहाली और लगातार हो रहे शोषण पर सरकार की चुप्पी  की वजह से बीजेपी के खिलाफ खड़ी होती दिखीं . वहीँ आदिवासी बेरोज़गारी और उनके प्रति सरकार  की अनदेखी की वजह से नाराज़ थे . इस सबने बहुसंख्यक ‘एकता’ को तोड़ा , जो कि बीजेपी को जिता रही थी .

इस कम होते वोट बैंक का फायदा कांग्रेस ने उठाया जो कि राज्य में मुख्य विपक्षी दल है . राहुल गाँधी के नेतृत्व में , कांग्रेस ने काफी भारी प्रचार किया , जातिगत गठबंधन बनाये , और सभी वर्गों को आकर्षक वादे किये , इसी वजह से ये चुनावी लड़ाई रोचक हो गयी .

पर इस लड़ाई ने देश की राजनीति की एक मुख्य समस्या को भी रेखांकित किया है . क्या कांग्रेस के पास वो संगठन, विचारधारा और विश्वसनीयता है जो बीजेपी को हरा सके ? गुजरात के नतीजे बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस की भी हार को दर्शाते हैं . बीजेपी की कॉर्पोरेटप्रिय नीतियों की वजह से बढ़ रहे गुस्से को को कांग्रेस एक हथियार बनाकर नहीं प्रदर्शित कर सकी . ज़मीनी स्तर पर लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा तो था पर उन्हें ये विश्वास नहीं था कि कांग्रेस भी उनकी नैया पार लगा सकती है . इसका मुख्य कारण ये है कि कांग्रेस भी बीजेपी की तरह ही उसी आर्थिक नीतियों को अपनाये हुए है जिसने लोगों की ये दुर्दशा की है .

इससे काफी विपरीत परिणाम सामने आये हैं . वोट प्रतिशत में पिछले चुनाव के मुकाबले 4 % की गिरावट आयी है , इसका मतलब ये है कि लोगों का दोनों ही पार्टियों से मोह भंग होने लगा है . इसके साथ ही इसी वजह से बीजेपी करीबी मुकाबले में जीतने में कामयाब रही है . जातिगत राजनीति की अपनी कमियां होती है , इसी वजह से बाकि जातियां बीजेपी के साथ आगई थी . ये नहीं होता अगर किसान आन्दोलन के के सभी किसान जति के हिसाब से नहीं बल्कि इकट्ठा वोट करते .

गुजरात चुनाव ख़तम हो गए , पर इसकी वजह से देश को एक बहुत ज़रूरी सीख मिली है . बीजेपी गांवों में अपनी चमक खो रही है . इसका असर बाकी राज्यों में और भी ज्यादा होगा जहाँ गाँवों की आबादी ज्यादा है . बाकी तबके जैसे औद्योगिक मज़दूर, अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूर और खेत मज़दूर भी शामिल घटती मज़दूरी और बढ़ते दामों की वजह से लगातार पिस रहे हैं . बेरोज़गारी एक  बीमारी की तरह सामने आयी है जिसका इलाज मोदी सरकार के पास नहीं नज़र आ रहा .इस परिस्थिति में एक इसे विपक्ष की ज़रुरत है जो वैकल्पिक आर्थिक नीतियों पर आधारित हो और जो सही मायनों में धर्मनिरपेक्षता को एक मूल्य माने और जो जीतने की भी काबिलियत रखे . 

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