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...घोषणा हुई आज से सबकी एक ही भाषा होगी

प्रतिरोध की कविता : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के हिंदी दिवस के मौके पर देश में एक भाषा की वकालत किए जाने के विरोध में मलयालम कवि रहीम पोन्नाड ने "भाषा निरोधनम" नाम से यह कविता लिखी है। इसका हिंदी अनुवाद ए आर सिन्धू और डॉ. वीणा गुप्ता ने मिलकर किया है।
raheem ponnad
रहीम पोन्नाड, असिस्टेंट प्रोफेसर, गवर्मेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, तवानुर, मल्लापुरम, केरल। फोटो : फेसबुक से साभार

भाषा पर पाबंदी
 

 

एक दिन आधी रात को उन्होंने भाषा पर पाबंदी लगा दी

घोषणा हुई आज से सबकी एक ही भाषा होगी

पुरानी भाषा को डाकघर से बदल कर ले जा सकते हैं

 

नींद से उठ कर लोग इधर-उधर भागने लगे

हर जगह चुप्पी थी

मांओं ने बच्चों के मुंह को हाथ से दबाकर बंद किया

बुज़ुर्गों के मुंह में कपड़ा ठूंसा गया

मंदिर का गाना रुक गया

और मस्जिद से अज़ान भी

रेडियो पर सिर्फ़ वीणा वादन हो रहा था

टीवी पर इशारों की भाषा में ख़बर चली

अख़बार के नाम पर आठ पन्नों का कोरा काग़ज़ मिला

हर एक कीबोर्ड ख़ामोश हो गया, मोबाइल स्क्रीन पर सिर्फ़ चिह्न दिखे

 

डाकघर की लाइन में सब ख़ामोश खड़े थे

एक दिन में एक व्यक्ति सिर्फ़ दो ही शब्द बदल सकता था

कोई कोई तो बोरियां भरकर शब्द लाए थे

शब्दों से भरा 'टिफ़िन बॉक्स' और 'स्कूल बैग' लेकर आए बच्चे भी खड़े थे लाइन में

जिसने 'अम्मा' दिया उसको 'मां' मिला

जिसने 'अब्बा' दिया उसको 'बाप'

'चॉकलेट' और 'गेम' बदलने के लिए आए बच्चों को काउंटर से ही वापस भेजा गया कि

सिर्फ़ भाषा ही बदल सकते हैं।

 

बदले में शब्द न होने के कारण

'बेज़ार' और 'कफ़न’- को लौटाया गया

 

छुरी बदलने आए लोगों को भगा दिया गया

अफ़ीम बदलने जो आए उनको पुलिस ने पकड़ लिया

लाइन में थके हुए बूढ़े ने 'पानी' मांगा तो

गोली से उसका मुंह बंद कर दिया गया

 

ये सब देखकर घर पहुंचा तो आंगन में शब्दों का ढेर लगा था

बदल कर लाने के लिए घरवालों ने इकट्ठा किए थे शब्द

नए, पुराने, बिना लिपि के

 

तकिये से पापा ने जो शब्द निकाला

मेरी ही समझ में नहीं आया

मां के पल्लू में भरे शब्दों को

अभी तक सुना ही नहीं था

बीवी ने रसोई में खींच लिया

तभी पता चला कि वह अब तक

इतने ही शब्दों के बीच पक रही थी

बेटी की बगिया में 'होमवर्क' का शब्द

बेटे के बक्से में अपनी जगह से हटे मज़ाक़िया शब्द

कैसे बताऊं इनको कि दो ही शब्द मिलेंगे इनको बदले में

 

शब्दों के ढेर में मैंने काफ़ी खोजा

काफ़ी मशक़्क़त के बाद आख़िर में

एक-एक भारी भरकम शब्द दोनों हाथ लगा

सारी ताक़त लगाकर मैंने शब्दों को बाहर निकाला

'जनवाद' और 'विविधता'

 

भागते हुए डाकखाने पहुंचा तो अंधेरा घिरने लगा था

मेरे हाथों में शब्दों को देखकर काउंटर पर बैठे लोग चौंक कर खड़े हो गए

मेरे हाथ से शब्द फिसलकर गिरे

कई लोगों के भागते हुए इकट्ठा होने और

बूटों की आवाज़ सुनाई दे रही थी

बेहोश होते होते बदले में मिले दो शब्द, मैंने सुना

'मार डालो' 'देशद्रोही'!

कवि-  रहीम पोन्नाड (केरल)
मूल मलयालम कविता-  भाषा निरोधनम
हिंदी अनुवाद- ए आर सिन्धू, डॉ. वीणा गुप्ता

अनुवादक की ओर से

मेरी मातृभाषा मलयालम है।
बचपन से हिंदी हमेशा मेरी दिल के करीब थी।
(पूरा समझ में नहीं आने से भी उर्दू भी मेरे लिए एक सपना है)

दिल्ली में हिंदी मेरी अपनी भाषा बन गयी।
(बेशक में बहुत उल्टा पुल्टा बोलती हूँ, लेकिन हिंदी क्षेत्र के लोग बर्दाश्त कर लेते हैं।)

मैं अपनी फेसबुक में मलयालम में बहुत कम लिखी है। जब, एक भाषा को जनता के ऊपर थोपने के बात चले, मैं ने सोचा की शायद मुझे अभी मलयालम में लिखनी पड़ेगी।

लेकिन मलयालम कवी श्री रहीम पोन्नाड़ की लिखी हुई "भाषा निरोधनम " कविता जब पढ़े, (जो मलयालम में वायरल हो गया है ) मुझसे रहा नहीं गया। मैंने सोचा की ज़रूर इसको हिंदी करके डाले, मलयालम में लिखने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी।
वीणादी (डॉ. वीणा गुप्ता) हिंदी और उर्दू दोनों में गहरी ज्ञान रखती है। जब मैं ने इस कविता के बारे में बताई तो वह भी बहुत उत्साहित हो गयी। उनसे प्रेरणा लेकर, कल (22 सितम्बर 2019 ) पंजाब आंगनवाड़ी यूनियन के सम्मलेन के बीच में मैं ने अपनी पहली हिंदी अनुवाद किया। वीणादि ने इसकी व्याकरण और भाषा ठीक किया और रेलवे स्टेशन में बैठे इसको अपनी मोबाईल में टाइप कर ली। आज ही मुझे कवी का फ़ोन नंबर मिला और उनसे इजाज़त मांगी, और उन्होंने ख़ुशी से दे दिया। उनको धन्यवाद,कविता के लिए और अनुमति के लिए।

ए आर सिन्धू

(ए आर सिन्धू मज़दूर संगठन सीटू (CITU) की सचिव हैं। उनकी बात को हमने बिना संपादित किए ज्यों का त्यों प्रकाशित किया है। क्योंकि वे हिंदीभाषी न होने के बाद भी इतनी अच्छी हिंदी और इतनी अच्छी बात लिख रही हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
इतनी अच्छी और ज़रूरी कविता लिखने के लिए कवि रहीम पोन्नाड का और इसे हिंदीभाषी लोगों तक पहुंचाने के लिए सिंधू और डॉ. वीणा गुप्ता सभी का बहुत आभार- संपादक)

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