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यूक्रेन में आख़िरी पड़ाव के खेल की झलकियाँ

आज इस बात का एहसास हो रहा है कि युद्ध वास्तव में रूस और नाटो के बीच है न कि यूक्रेन और रूस के बीच, क्योंकि यूक्रेन 2014 के बाद से कोई संप्रभु देश नहीं है तब से जब से पश्चिमी एजेंसियों ने कीव में कठपुतली शासन स्थापित किया है।
PUtin
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (दाएं) ने 23 जुलाई, 2023 को सेंट पीटर्सबर्ग में बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको से मुलाकात की।

यूक्रेन में युद्ध के साथ समस्या यह है कि यह अब एक धोखा सा लगने लगा है। यूक्रेन के "विसैन्यीकरण" और "डी-नाज़ीफिकेशन" के रूसी उद्देश्यों ने एक अवास्तविक रूप सा धारण कर लिया है। पश्चिमी नेरेटिव कि युद्ध रूस और यूक्रेन के बीच है, जहां केंद्रीय मुद्दा राष्ट्रीय संप्रभुता का वेस्टफेलियन सिद्धांत है, धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है और एक शून्य बन कर रह गया है।

आज यह एहसास हो रहा है कि युद्ध वास्तव में रूस और नाटो के बीच है क्योंकि यूक्रेन 2014 ने बाद से अपनी संप्रभुता खो दी है, तब जब सीआईए और सहयोगी पश्चिमी एजेंसियों - जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, स्वीडन, आदि - ने कीव में अपना कठपुतली शासन स्थापित किया था।

युद्ध का कोहरा अब छँट रहा है और युद्ध की रेखाएँ स्पष्ट दिखने लगी हैं। आधिकारिक स्तर पर, अंतिम गेम के संबंध में एक स्पष्ट चर्चा शुरू हो रही है।

निश्चित रूप से, पिछले शुक्रवार को मास्को में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की वीडियो कॉन्फ्रेंस और रविवार को सेंट पीटर्सबर्ग में बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ उनकी बैठक निर्णायक पल बन गई है। दोनों घटनाएं एक दूसरे के आगे पीछे की हैं और उन्हें एक साथ पढ़ने की आवश्यकता है। (यहाँ और यहाँ पढे)

इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोनों घटनाओं को क्रेमलिन अधिकारियों ने बड़े सावधानीपूर्वक कोरियोग्राफ किया था और उनका उद्देश्य कई संदेश देना था। रूस विश्वास जता रहा है कि उसने युद्ध के मोर्चे पर प्रभुत्व हासिल कर लिया है - यूक्रेनी सेना को परास्त कर दिया है और कीव के "जवाबी हमले" को रियर व्यू मिरर में देखा जा सकता है। लेकिन मॉस्को का अनुमान यह भी है कि बाइडेन प्रशासन के मन में इससे भी बड़ी युद्ध योजना हो सकती है।

सुरक्षा परिषद की बैठक में, पुतिन ने विभिन्न स्रोतों से मास्को तक पहुंचने वाली खुफिया जानकारियों को "अवर्गीकृत" किया है, जो रिपोर्टें इशारा कर रही हैं कि पश्चिमी यूक्रेन में पोलिश सैनिक दल को शामिल किया जा सकता है। पुतिन ने, पोलिश सैनिक दल को पश्चिमी यूक्रेन में "बाद में कब्जे के लिए" ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली एक सुव्यवस्थित, सुसज्जित नियमित सैन्य इकाई कहा है।

दरअसल, पोलिश विद्रोह का एक लंबा इतिहास रहा है। पुतिन, जो खुद इतिहास के उत्सुक छात्र हैं, ने इस बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने कठोर स्वर में कहा कि यदि कीव के अधिकारियों पोलिश-अमेरिकी योजना स्वीकार है, "जैसा कि गद्दार आमतौर पर करते हैं, यह उनका काम है।" हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे।”

पुतिन ने कहा कि लेकिन, “बेलारूस यूनियन स्टेट का हिस्सा है, और बेलारूस के खिलाफ आक्रामकता का मतलब रूसी संघ के खिलाफ आक्रामकता होगी। हम उपलब्ध सभी संसाधनों से इसका जवाब देंगे।” पुतिन ने चेतावनी दी है कि जो चल रहा है वह "एक बेहद खतरनाक खेल है, और ऐसी योजनाओं के परिणामों के बारे में उनको सोचना चाहिए जो इसे आगे बढ़ा रहे हैं।"

रविवार को सेंट पीटर्सबर्ग में पुतिन के साथ बैठक में लुकाशेंको ने चर्चा के दौरान पुतिन को बेलारूस सीमा के करीब नई पोलिश तैनाती - ब्रेस्ट से सिर्फ 40 किमी दूर - और चल रही अन्य तैयारियों के बारे में जानकारी दी – जिसमें पोलैंड में लेओपार्ड टैंकों की मरम्मत की वर्कशॉप का उद्घाटन करना, हथियारों, भाड़े के सैनिकों आदि को स्थानांतरित करने वाले अमेरिकियों के इस्तेमाल के लिए यूक्रेनी सीमा (ल्वोव से लगभग 100 किमी दूर) पर रेज़ज़ो में एक हवाई क्षेत्र को सक्रिय बनाना शामिल है।

लुकाशेंको ने कहा कि: “हमें यह मंजूर नहीं है। पश्चिमी यूक्रेन का अलगाव, यूक्रेन का विघटन और उसकी भूमि का पोलैंड को हस्तांतरण कतई स्वीकार नहीं है। यदि पश्चिमी यूक्रेन के लोग चाहेंगे तो हम उन्हें सहायता करेंगे। मैं आपसे [पुतिन] इस मुद्दे पर चर्चा करने और सोच-विचार करने का आग्रह करता हूं। स्वाभाविक रूप से, मैं चाहूंगा कि आप इस संबंध में हमारा समर्थन करें। यदि ऐसी सहायता की जरूरत होती है, यदि पश्चिमी यूक्रेन हमसे सहायता मांगता है, तो हम पश्चिमी यूक्रेन में लोगों को सहायता और मदद देंगे। अगर ऐसा होता है तो हम हर संभव तरीके से उनका समर्थन करेंगे।”

लुकाशेंको ने आगे कहा कि, “मैं आपसे इस मुद्दे पर चर्चा करने और इस पर विचार करने के लिए कह रहा हूं। जाहिर है, मैं चाहूंगा कि आप इस संबंध में हमारा समर्थन करेंगे। इस समर्थन के साथ, और यदि पश्चिमी यूक्रेन यह मदद मांगता है, तो हम निश्चित रूप से यूक्रेन की पश्चिमी आबादी को सहायता और समर्थन करेंगे।

जैसी कि उम्मीद की जा सकती थी, पुतिन ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है - कम से कम, सार्वजनिक रूप से तो नहीं दी है। लुकाशेंको ने पोलिश हस्तक्षेप को यूक्रेन के विखंडन और नाटो में उसके "टुकड़े-टुकड़े" के समान बताया। लुकाशेंको ने स्पष्ट कहा: "इसे अमेरिकियों का समर्थन हासिल है।" दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने बेलारूस के खिलाफ़ उभरे खतरे का मुकाबला करने के लिए वैगनर सेनानियों की तैनाती की भी मांग की है।

लब्बोलुआब यह है कि पुतिन और लुकाशेंको ने इस तरह की चर्चा सार्वजनिक रूप से की थी। साफ है कि दोनों ने खुफिया इनपुट के आधार पर बात की थी। वे आगे इसमें एक मोड आने की आशा जाता रहे हैं।

यह जुदा बात है कि रूसी लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका देश वास्तव में यूक्रेन की धरती पर नाटो से लड़ रहा है। लेकिन यह बिल्कुल अलग बात है कि यह युद्ध नाटकीय रूप से पोलैंड के साथ हो जाए, जो नाटो सेना का हिस्सा है जिसे अमेरिका महाद्वीपीय यूरोप में अपना सबसे महत्वपूर्ण भागीदार मानता है।

पोलिश विद्रोहवाद, जिसका आधुनिक यूरोपीय इतिहास में एक विवादास्पद रिकॉर्ड रहा है, पर कुछ विस्तार से ध्यान देकर, पुतिन ने संभवतः अंदाज़ा लगया होगा कि पोलैंड सहित यूरोप में, उन साजिशों का प्रतिरोध किया जा सकता है जो नाटो को रूस के साथ एक महाद्वीपीय युद्ध में खींच सकती हैं।

समान रूप से, पोलैंड भी डगमगा रहा होगा। पोलिटिको के अनुसार, पोलैंड की सेना की ताक़त लगभग 150,000 मजबूत सैनिकों की है, जिसमें से 30,000 नए क्षेत्रीय रक्षा बल के हैं, जो "सप्ताहांत सैनिक हैं जो 16 दिनों के प्रशिक्षण से गुजरे हैं और उसके बाद पुन प्रशिक्षण लेते हैं।"

फिर, पोलैंड की सेना यूरोप में राजनीतिक प्रभाव नहीं डाल सकती है क्योंकि यूरोपीयन यूनियन  की मजबूत मध्यमार्गी निज़ामों को वारसॉ पर विश्वास नहीं है, जिसे राष्ट्रवादी कानून और न्याय पार्टी द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो लोकतांत्रिक मानदंडों और कानून के शासन की उपेक्षा करता है और इसने पोलैंड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।

सबसे बढ़कर, पोलैंड के पास वाशिंगटन की विश्वसनीयता को लेकर चिंतित होने का कारण है। आगे बढ़ते हुए, पोलिश नेतृत्व की चिंता, विरोधाभासी रूप से, यह होगी कि डोनाल्ड ट्रम्प 2024 में राष्ट्रपति के रूप में वापस नहीं आ सकते हैं। यूक्रेन युद्ध पर पेंटागन के साथ सहयोग के बावजूद, पोलैंड का वर्तमान नेतृत्व हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन की तरह राष्ट्रपति जोए बाइडेन के प्रति अविश्वास रखता है।

इसलिए, संतुलन को देखते हुए, यह उचित है कि लुकाशेंको द्वारा की गई तलवारबाजी और यूरोपीय इतिहास पर पुतिन के कदम को यूक्रेन में एक अंतिम खेल को संशोधित करने की दृष्टि से पश्चिम के लिए एक चेतावनी के रूप में लिया जा सकता है, जो रूसी हितों के लिए इष्टतम है। यूक्रेन का विखंडन या उसकी सीमाओं से परे युद्ध का अनियंत्रित विस्तार रूसी हित में नहीं होगा।

लेकिन क्रेमलिन नेतृत्व इस आकस्मिकता को ध्यान में रखेगा कि छद्म युद्ध में अपमानजनक हार से बचने की सख्त जरूरत से उपजी वाशिंगटन की मूर्खताएं, रूसी सेनाओं के लिए नीपर को पार करने और तथाकथित ल्यूबेल्स्की ट्रायंगल द्वारा पश्चिमी यूक्रेन पर कब्जे को रोकने के लिए पोलैंड की सीमा तक आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ सकती हैं, जो जुलाई 2020 में गठित और वाशिंगटन द्वारा प्रचारित पोलैंड, लिथुआनिया और यूक्रेन को शामिल करने वाला एक उग्र रूसी-विरोधी क्षेत्रीय गठबंधन है।

मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में पुतिन की बैक-टू-बैक बैठकें यूक्रेन में एंडगेम के तीन प्रमुख तत्वों के रूप में रूसी सोच को दर्शाती है। पहला, रूस का पश्चिमी यूक्रेन पर क्षेत्रीय कब्ज़ा करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन वह इस बात पर ज़ोर देगा कि देश की नई सीमाएँ और भविष्य का शासन कैसा दिखेगा और कैसे कार्य करेगा, जिसका अर्थ है कि वहाँ किसी भी रूस-विरोधी हुकूमत की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दूसरा, युद्ध में हार के जबड़े से जीत छीनने की बाइडेन प्रशासन की योजना एक गैर-स्टार्टर रही है, क्योंकि रूस नए सिरे से छद्म युद्ध छेड़ने के लिए यूक्रेनी क्षेत्र को स्प्रिंगबोर्ड के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका और नाटो के किसी भी निरंतर प्रयास का मुकाबला करने में संकोच नहीं करेगा, जिसका अर्थ है कि नाटो में यूक्रेन एक "टुकड़ा" बनकर अवशोषण की एक कल्पना बनकर रह जाएगा।

तीसरा, जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, वह यह कि रूस जो कि शक्तिशाली रक्षा उद्योग और एक मजबूत अर्थव्यवस्था द्वारा समर्थित है, वही रूसी सेना यूक्रेन की सीमा से लगे नाटो सदस्य देशों का सामना करने में संकोच नहीं करेगी यदि वे रूस के मूल हितों पर अतिक्रमण करते हैं, जिसका अर्थ है कि रूस के मूल हितों को नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 का बंधक नहीं बनाया जा सकेगा। 

एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

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