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हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी...

हर त्योहार पर नज़ीर अकबराबादी याद आ ही जाते हैं वो चाहे ईद हो या होली। और आज के वक़्त में तो फ़ैज़ की दुआ भी ख़ूब याद आती है। आइए पढ़ते हैं दो ख़ास नज़्म।
ईद मुबारक
फोटो : साभार

मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी ने होली-दीवाली से लेकर ईद तक हर मौके की नज़्म लिखी हैं। ईद उल फ़ितर पर मुबारक के साथ उनकी ये शानदार नज़्म आपके लिए

ईद उल फ़ितर

है आबिदों[1] को त‘अत-ओ-तजरीद[2] की ख़ुशी
और ज़ाहिदों[3] को जुहाद[4] की तमहीद[5] की ख़ुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है
शीर-ओ-शकर सिवईयाँ पकाने की धूम है
पीर[6]-ओ-जवान को नेम‘तें[7] खाने की धूम है
लड़कों को ईद-गाह के जाने की धूम है
 
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

कोई तो मस्त फिरता है जाम-ए-शराब से
कोई पुकारता है कि छूटे अज़ाब[8] से
कल्ला[9] किसी का फूला है लड्डू की चाब से
चटकारें जी में भरते हैं नान-ओ-कबाब से

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

क्या है मुआन्क़े[10] की मची है उलट पलट
मिलते हैं दौड़ दौड़ के बाहम झपट झपट
फिरते हैं दिल-बरों के भी गलियों में गट के गट[11]
आशिक मज़े उड़ाते हैं हर दम लिपट लिपट

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

काजल हिना ग़ज़ब मसी-ओ-पान की धड़ी
पिशवाज़ें[12] सुर्ख़ सौसनी लाही की फुलझड़ी
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी
कह “ईद ईद” लूटें हैं दिल को घड़ी घड़ी

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

रोज़े की ख़ुश्कियों से जो हैं ज़र्द ज़र्द गाल
ख़ुश हो गये वो देखते ही ईद का हिलाल[13]
पोशाकें तन में ज़र्द, सुनहरी सफेद लाल
दिल क्या कि हँस रहा है पड़ा तन का बाल बाल

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जो जो कि उन के हुस्न की रखते हैं दिल से चाह
जाते हैं उन के साथ ता बा-ईद-गाह
तोपों के शोर और दोगानों की रस्म-ओ-राह
मयाने, खिलौने, सैर, मज़े, ऐश, वाह-वाह

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

रोज़ों की सख़्तियों में न होते अगर अमीर
तो ऐसी ईद की न ख़ुशी होती दिल-पज़ीर
सब शाद हैं गदा से लगा शाह ता वज़ीर
देखा जो हम ने ख़ूब तो सच है मियां ‘नज़ीर‘

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

(कविता कोश से साभार)

ख़ास शब्दों के अर्थ
1.     श्रद्धालु, 2. श्रद्धा, 3. पूजा करने वाला, 4. धर्म की बात, 5. शुरुआत, 6. पुराना, 7. इनाम/दया, 8. यातना, 9. गाल, 10. आलिंगन, 11. भीड़, 12. कुरती, 13. ईद का चांद

और अंत में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के हवाले से

दुआ

आईए हाथ उठायें हम भी
हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं
हम जिन्हें सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा
कोई बुत, कोई ख़ुदा याद नहीं

आईए अर्ज़ गुज़रें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दां भर दे
वो जिन्हें तबे गरांबारी-ए-अय्याम नहीं
उनकी पलकों पे शब-ओ-रोज़ को हल्का कर दे

जिनकी आंखों को रुख-ए-सुबह का यारा भी नहीं
उनकी रातों में कोई शमा मुनव्वर कर दे
जिनके कदमों को किसी राह का सहारा भी नहीं
उनकी नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे

जिनका दीन पैरवे-ए-कज़्बो-रिया है उनको
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले, जुर्रत-ए-तहकीक मिले
जिनके सर मुन्ताज़िर-ए-तेग-ए-जफ़ा हैं उनको
दस्त-ए-कातिल को झटक देने की तौफ़ीक मिले

इश्क का सर्र-ए-निहां जान-तपां है जिस से
आज इकरार करें और तपिश मिट जाये
हर्फ़-ए-हक दिल में खटकता है जो कांटे की तरह
आज इज़हार करें ओर खलिश मिट जाये
 

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