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यूपी का रणः सत्ता के संघर्ष में किधर जाएंगे बनारस के मुसलमान?

बनारस के मुस्लिम वोटरों के मन की थाह न सपाई-कांग्रेसी लगा पा रहे हैं और न ही सत्ता के अलंबरदार भाजपा नेता। ध्रुवीकरण की राजनीति में मुसलमान किसे वोट देंगे, अभी कह पाना आसान नहीं है। इतना तय है कि मुस्लिम इस बार भाजपा के विरोध में खड़े हैं, लेकिन वो सपा के साथ जाएंगे, या फिर कांग्रेस का समर्थन करेंगे अथवा इनके वोट बंटेंगे इस पर फिलहाल अटकलबाजियों का दौर चल रहा है।
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बनारस के मुसलमानों को अपने भविष्य की चिंता है

वाराणसी की सबसे पुरानी गल्ला मंडी विश्वेश्वरगंज से करीब एक किलोमीटर दूर एक मोहल्ला है जिसका नाम है अमिया मंडी। लेकिन यहां मुसलमान बहुतायत में हैं और ज़्यादातर लोग बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। इन्हीं में एक हैं अब्दुल हफीज। इनके हाथों में बनारसी साड़ियां बुनने का गजब का हुनर है, अफसोस यह है कि अब इनके पास काम नहीं है। कोरोना काल में पेट भरना दूभर हो गया तो उधार लेकर गली के एक कोने में किराने की दुकान सजा ली। बस किसी तरह चल रही है जिंदगी। इनकी बातों में न सियासत का पुट होता है, न ही कोई अक्लमंदी।

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भाजपा सरकार ने नही दिया संबल तो गली में सजा ली परचून की दुकान

मुसलमानों के वोट किधर जाएंगे? इस सवाल पर वह कहते हैं, "योगी राज में हमारी जुबान पर ताले लगे थे। बोलने की हिम्मत नहीं थी। चुनाव है तो जुबान खुल रही है। सच कहूं तो बनारस का मुसलमान सिर्फ अखिलेश की ओर देख रहा है। वैसे भी भाजपा को हमारे वोटों की दरकार नहीं है। फिर हम उसे वोट क्यों देंगे? भला कौन मानेगा कि हम भाजपा समर्थक हैं। भाजपा तो जब भी दिखेगी, हिन्दुओं के पाले में खड़ी मिलेगी।"

अब्दुल हफीज को लगता है कि तीस-पैंतीस फीसदी हिन्दू भाई मोदी को वोट देंगे, लेकिन मुसलमानों का थोक वोट सपा प्रत्याशी के पक्ष में जाएगा। बनारस के पिंडरा और कैंट में हाथ के पंजे पर बटन दब सकती है। वह कहते हैं, "भाजपा सत्ता में आएगी तो बनारसी साड़ी का कारोबार मुसलमानों के हाथ से चला जाएगा। मीटर के बिल से लूम चल नहीं पाएगा। अखिलेश से उम्मीद जरूर है। वो हमें फ्लैट रेट पर बिजली दे सकते हैं। दूसरी बात, सपा की सरकार बनेगी तो अखिलेश धर्म और जाति का खेल नहीं खेलेंगे। वह सिर्फ विकास की बात करेंगे।"

अस्सी घाट से करीब डेढ़ किलोमीटर के फासले पर एक मोहल्ला है शिवाला। यहां हिन्दुओं की बड़ी आबादी है तो मुसलमान भी बहुतायत हैं। ज़रदोज़ी के सामान की एक दुकान पर बैठे मो. एहसान कहते हैं, "भाजपा ने बनारस में सांप्रदायिकता का जहर घोल दिया है। इस पार्टी ने हमें अपना कभी माना ही नहीं, फिर उसे वोट क्यों देंयह नजरिया सिर्फ हमारा नहीं, समूचे बनारस के मुसलमानों का है। मुसलमान अपना वोट सपा को देंगे या फिर विपक्ष के किसी मज़बूत प्रत्याशी को। अखिलेश सत्ता में आएंगे तो वो बहुसंख्यकवाद की राजनीति तो नहीं करेंगे। पिछली बार मोदी के आभामंडल से प्रभावित होकर हमने भी उन पर भरोसा किया था। हमारी मति मारी गई थी जो भाजपा को वोट दे दिया था।" 

"महामारी के समय बहुत झेला है। सारी बातें अब तक याद हैं। अब तो टीवी चैनलों पर भाजपा के नेताओं की दबंगई रोज सुनने को मिल रही है। कोई गर्मी निकलने की बात कह रहा है, तो कोई बुल्डोजर चलाने की। बड़ा सवाल यह है कि गर्मी किसकी निकाली जाएगी और बुल्डोजर किस पर चलेगा? हमें लगता है कि बनारस में चार-पांच हजार शिया भाई भी अबकी भाजपा के खिलाफ खड़े हैं। पहले की तरह इनका वोट भाजपा के खाते में नहीं जाएगा। जो भाजपा को हराने के लायक़ दिखेगा, बनारस के मुसलमान उसे ही वोट देंगे।"

सत्ता का सबसे बड़ा संघर्ष 

यूपी विधानसभा चुनाव के आखिर दौर में इस बार सत्ता का सबसे बड़ा संघर्ष बनारस में होने जा रहा है। तीन से पांच मार्च के बीच यहां भाजपा और विपक्ष के बीच महामुकाबला होगा। इस घमासान में एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी होंगे तो दूसरी ओर सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव। पक्ष और विपक्ष के तमाम दिग्गज काशी में जुटेंगे और लगातार तीन दिनों तक चलेगा शह-मात का खेल। इस खेल के असली किरदार बनेंगे बनारस के करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम वोटर। ये वो वोटर हैं जो फिलहाल खामोशी की चादर ओढ़कर बैठे हुए हैं। 

बनारस के मुस्लिम वोटरों के मन की थाह न सपाई-कांग्रेसी लगा पा रहे हैं और न ही सत्ता के अलंबरदार भाजपा नेता। ध्रुवीकरण की राजनीति में मुसलमान किसे वोट देंगे, अभी कह पाना आसान नहीं है। इतना तय है कि मुस्लिम इस बार भाजपा के विरोध में खड़े हैं, लेकिन वो सपा के साथ जाएंगे, या फिर कांग्रेस का समर्थन करेंगे अथवा इनके वोट बंटेंगे इस पर फिलहाल अटकलबाजियों का दौर चल रहा है। जाहिर है कि बनारस में मुसलमानों के वोट बंटेगा है तो उसका सीधा लाभ भाजपा को भी मिलेगा।

भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठन आरएसएस के नेता इस जुगत में लगे हैं कि मुसलमानों का थोक वोट सपा अथवा कांग्रेस प्रत्याशियों के पाले में न जाए। इसके लिए मुस्लिम नेताओं पर डोरे डाले जा रहे हैं। बनारस के मुस्लिम बाहुल्य पीलीकोठी में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि टिकट पाने में नाकाम रहने वाले मुस्लिम समुदाय के एक कद्दावर नेता ने अंदर ही अंदर भाजपा से हाथ मिला लिया है। भाजपा की कोशिश है कि शहर दक्षिणी और कैंट सीट पर मुस्लिमों के वोट किसी भी हाल में सपा-कांग्रेस में बंट जाए। इन्हें पता है कि अगर वो ऐसा कराने में कामयाब हो गए तो पीएम मोदी की नाक की सवाल बनी दोनों सीटें भाजपा आसानी से जीत जाएगी। हालांकि मुस्लिमों की एकता को देखकर यह नहीं लग रहा है कि उनके वोट बंटेंगे। इनके वोटों का फैसला तो छह मार्च की रात में होगा, जिसे आम बनारसी बोलचाल की भाषा में कत्ल की रात कहते हैं। 

आदमपुर थाने के पास बलुआबीर वार्ड के एक बुनकर कहते हैं, "भाजपा लाख कोशिश कर ले, मुसलमानों के वोट तो सपा के पक्ष में ही जाएँगे, क्योंकि इस बार कांग्रेस की प्रत्याशी नमिता कपूर काफ़ी कमज़ोर हैं। बनारस की सभी सीटों पर अगर भाजपा फिर चुनाव जीतती है तो यह हमारा दुर्भाग्य होगा।" वे कहते हैं कि उनका नाम न लिखा जाए, क्योंकि आने वाले समय में उसका असर उनके बुनकरी के कारोबार पर पड़ सकता है। 

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बुनकरी छोड़ बेच रहे समोसे

इसी वार्ड के शमीम अहमद की ख़ास मंशा यह है कि चुनाव चाहे जो जीते-हारे, पर वह शांति से निपट जाए। वह कहते हैं, "बनारस के हर आदमी का बस यही सपना है कि शहर का विकास हो और नौजवानों को रोज़गार मिले।" शमीम के अनुसार कमलापति त्रिपाठी के बाद किसी ने भी बनारस के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। भाजपा सरकार ने तो टैक्टपेयर का पैसा ऊल-जुलूल के कामों में पानी की तरह बहाया है। सत्ता नहीं बदलेगी तो यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।

पीएम के प्रभुत्व का इम्तिहान 

वाराणसी के अंजुमन इंतेज़ामिआ मस्जिद के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन कहते हैं, "बनारस में प्रत्याशी नहीं, मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। यहां भाजपा के उम्मीदवारों की नहीं, पीएम के प्रभुत्व का इम्तिहान होगा। बनारस में कितना विकास हुआ है, वह हमें नहीं मालूम, लेकिन यह जरूर पता है कि अगर भाजपा विधायक जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे होते तो मोदी को बनारस आने की जरूरत नहीं पड़ती। मोदी को हम तभी से जानते हैं जब उनके रिजीम में गुजरात में दंगा हुआ थाबनारस अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिया जाना जाता है। हो सकता है कुछ लोग भाजपा को वोट दें, लेकिन काशी की आम जनता सेक्युलर है और अमन पसंद है। ऐसे लोग उनका साथ नहीं देंगे। नंगा सच यह है कि बनारस के मुसलमानों में एनआरसी और सीएए को लेकर बहुत ज्यादा गुस्सा है।"

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अंजुमन इंतेज़ामिआ मस्जिद के संयुक्त सचिव मोहम्मद यासीन

मोहम्मद यासीन यह भी कहते हैं, "बनारस के मुसलमान मुकम्मल तौर पर सत्ता का बदलाव चाहते हैं, क्योंकि पिछले पांच साल में सबने बहुत सी चीजें देखी हैं। मॉब लिंचिंग देखा है तो स्लाटर हाउसों की तालाबंदी भी। खाने-पीने पर प्रतिबंधबुनकरों पर बिजली का भारी-भरकम बोझ, मुफ्त में मिलने वाले राशन में भेदभावजीएसटी की मार समेत कई वजहें हैं जिसके चलते बनारस के मुसलमान डबल इंजन की सरकार से नाराज हैं और उन्हें हर हाल में यूपी की सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं। पश्चिम से जो अंडर करेंट चला है उसमें एनआरसी और सीएए का बहुत बड़ा असर है। इतना तय है कि जो ट्रेंड पश्चिम से चला हैवही बनारस में रहेगा। कोई कह नहीं रहा है, लेकिन सभी मुसलमानों को सीएए और एनआरसी के बारे में पता है। "  

बनारस के सरैया इलाके में बुनकरों की एक बस्ती है इब्राहिमपुरा। बेहद संकरी गलियां और खुली नालियां ही इस बस्ती का पता बताती हैं। यहां भीषण गंदगी और सड़ांध के बीच रहते हैं हजारों बुनकर परिवार। इन्हीं में एक हैं मोहम्मद सलीमजो हैंडलूम पर बनारस को पहचान दिलाने वाली मशहूर बनारसी साड़ियां बुनते थे। महंगी बिजली और आसमान छू रही महंगाई ने इन्हें कटोरा थमा दिया है। सलीम और इनका समूचा परिवार अब पकौड़े तल रहा है और समोसा बेच रहा है। इनकी दुकान पर हमें बैठे मिले दिनेश विश्वकर्मा। इसी इलाके में इनकी मेडिकल शॉप है। वह कहते हैं, "भाजपा के इशारे पर उसके अनुषांगिक संगठन बजरंग दल के नुमाइंदों ने चुनाव से पहले घाटों पर आपत्तिजनक पोस्टर चस्पा किए थे। अल्टीमेटम दिया गया था कि मुसलमान गंगा घाटों की तरफ न जाएं। मुस्लिम समुदाय को धमकाने वाले पोस्टर लगाने वाले पकड़े भी गए, लेकिन हुआ क्याथाने से ही छोड़ दिया गया। अगर मुसलमान लड़कों ने ऐसा कुछ किया होता तो देशद्रोह के आरोप में जेल में सड़ रहे होते।"

दिनेश यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ की पार्टी हिन्दू युवा वाहिनी को कार्यकर्ताओं ने लल्लापुरा इलाके में खुलेआम नंगी तलवारें लहराई। पुलिस के सामने नंगा नाच किया, लेकिन एक्शन क्या हुआनतीजा वही निकला-ढाक के तीन पात। ऐसे में मुसलमान कैसे यकीन कर लें कि भाजपा की अगली सरकार आएगी तो वो उन्हें चैन से जीने देगी।"  

सरैया के हाजी कटरा में बदरुद्दीन कुछ साल पहले तक रेशमी ताने-बाने पर सोने-चांदी की साड़ियां बुना करते थे। इनके पास 20 पावरलूम और इतने ही हथकरघे थे, पर लॉकडाउन में सब बिक गए। बदरुद्दीन अब टॉफी-बिस्कुट बेचकर आजीविका चला रहे हैं। वह कहते हैं, "मोदी सरकार की दोषपूर्ण नीतियों से धंधा सिसकने लगा है। कोरोना संकट के बीच बिजली बिलों की मार ने कराहते बनारसी साड़ी उद्योग बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। नतीजा अब किसी के हाथ में रिक्शा हैफावड़ा है या फिर भीख का कटोरा। हम कैसे यकीन कर लें कि भाजपा हमें सुशासन देगीऐसे में हम उसे वोट क्यों दें" 

वोटों की गुणा-गणित 

विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के मद्देनजर सभी सियासी दल जातिगत और सांप्रदायिक आधार पर वोटों की गुणा-गणित में जुट गए हैं। पिछले चुनाव का आंकड़ा और आखिरी चरण के रुझान पर गौर करें तो यह अवधारणा टूटती नजर आती है कि बनारस के मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते हैं। पिछले कई चुनावों में बनारस के पांच से आठ फीसदी मुस्लिम वोट भाजपा को मिला करते थे। हालांकि इस बार यह आंकड़ा एक-दो फीसदी से ज्यादा नहीं होगा। 

बनारस के ज्यादातर वोटर और उनके परिवारीजन बनारसी साड़ियों से धंधे से जुड़े हैं। भाजपा शासन में बनारसी साड़ी को कोई बड़ा बाजार भले ही नहीं मिल पाया, लेकिन तीन तलाक का मसला और गरीबों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा के लिए आयुष्मान योजना के अलावा मुफ्त के राशन मिलने से मोदी के खिलाफ मुसलमानों का नजरिया ज्यादा आक्रामक नहीं है। 

पीलीकोठी के अनवारुल हक कहते हैं, "बनारस अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। हो सकता है कुछ लोग भाजपा को वोट देंलेकिन आम जनता सेक्युलर और अमन पसंद है। ऐसे लोग उनका साथ नहीं देंगे। कमलगढ़हाछित्तनपुराजमालुद्दीनपुररसूलपुराकच्चीबाग व कमालपुरा जैसे मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में भाजपा को गिने-चुने वोट ही मिल पाएंगे। इसकी वड़ी वजह यह है कि शहर के मुस्लिम इलाकों में आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने, बाजार की उपलब्धता और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के एवज में भाजपा की मकबूलियत घटी है। रुझान के मुताबिक शहर दक्षिणी और उत्तरी में मुसलमानों के वोट सपा की झोली में जाएंगे। यह भी संभव है कि कैंट के अल्पसंख्यक कांग्रेस की तरफ चल जाएं।"

समाजवादी नेता अतहर जमाल लारी कहते हैं, "मुसलमानों में इस बात का खौफ ज्यादा कि अगर यूपी में भाजपा दोबारा सत्ता में आ गई तो शरीयत पर हस्तक्षेप कर सकती है और लोकतंत्र व संविधान नहीं बचेगा। योगी सरकार ने अब बुनकर कार्ड बनाना बंद कर दिया है। साथ ही बिजली का बिल भी बढ़ा दिया है। बुनकरों का अनुदान खत्म होने वाला है। डर है कि इलेक्शन बाद बुनकरों की बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी भाजपा सरकार पूरी तरह खत्म कर देगी। मीटर के आधार पर बिल देना होगा। ऐसे में बनारस का साड़ी उद्योग धराशायी हो जाएगा और बुनकर रोजी-रोटी के लिए मोहजात हो जाएंगे। बनारस में बुनकरों की अधिसंख्य आबादी मुसलमानों की है।"

लारी की मानें तो बनारस के मुसलमानों का वोट ओबैसी की पार्टी को नहीं जा रहा है। इन्हें पता चल गया है कि वो भाजपा के हर्रउल दस्ते के मेंबर हैं। वह कहते हैं,  "आजम के एक मामलू बयान पर उनके ऊपर दर्जनों फर्जी मुकदमें लाद दिए गए और और ओवैसी हर रोज पीएम को गाली दे रहें, अंडबंड बोल रहे हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अनपढ़ मुसलमानों को समझ में आ गया है कि यह भाजपा की बी टीम है। इस पार्टी का हश्र भी पश्चिम बंगाल की तरह ही होगा।"

ओवैसी भाजपा की बी टीम

चुनाव विश्लेषक प्रदीप कुमार कहते हैं, "पूरे प्रदेश में यादव और मुस्लिम वोटर एकतरफा सपा के साथ हैं। दोनों समुदाय सिर्फ अखिलेश को देख रहे हैं। लगातार जो रिपोर्ट आ रही है उसमें वोटिंग विहेबियर यही दिखा है। इस बार मुसलमान हल्ला नहीं कर रहा है। वह चुप है और वोल नहीं रहा है। पहले की तरह मुस्लिम जुनून और पागलपन भी नहीं दिखा रहा है। कुछ रोज पहले बनारस के शहर दक्षिणी सीट के सपा उम्मीदवार वोट मांगने पीलीकोठी आदि मुस्लिम बहुल इलाकों में गए तो मुसलमानों ने कह दिया कि आप यहां मत आइए। आप अपने वोट देखिए। किशन के साथ मुसलमान घूम नहीं रहे हैं, लेकिन उनके साथ तनकर खड़े हैं। बनारस में ओवैसी और उनकी पार्टी यहां हवा हो गई है। मुसलमानों का चंक वोट उनके साथ नहीं है। अलबत्ता मुस्लिम समुदाय के लोग यह सवाल जरूर उठा रहे हैं कि मामूली टिप्पणी करने पर आजम खां जेल जा सकते हैं और पानी पी-पीकर गालियां देने वाले ओवैसी खुलेआम कैसे घूम रहे हैं। इनके सिर पर भाजपा का हाथ नहीं है तो फिर क्या हैअगर मुस्लिम समुदाय के लोग इनकी पार्टी को भाजपा की बी टीम मानते हैं तो गलत क्या है?  यह पहला चुनाव है जब मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मायावती और उनकी पार्टी बसपा के प्रत्याशियों को भी बड़ी खामोशी से नकार दिया है।"

प्रदीप के मुताबिक, "मुस्लिम समुदाय में किसान आंदोलन की तरह एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल) और सीएए भी असर है। अगर किसानों के मन में कृषि कानून को लेकर नाराजगी है तो मुसलमानों के मन में एनआरसी और सीएए को लेकर। पिछले पांच सालों में योगी सरकार ने अपने फैसलेघोषणाओँ और भाषणों में हमेशा यह एहसास कराने की कोशिश करते रहे कि यह सरकार बहुसंख्यकों की है। हाल के चुनावी भाषण में इसी चीज को कुरेदकर उन्होंने खड़ा भी किया। यह अलग बात है कि चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं बनालेकिन अल्पसंख्यों के मन में इस सरकार को लेकर यह धारणा रही कि यह सरकार हमारे हितों के विपरीत काम करती है। ऐसी स्थिति में यह कल्पना करना व्यर्थ है कि योगी सरकार को मजबूत टक्कर दे रहे अखिलेश से अलग हटकर अल्पसंख्यक कोई फैसला ले सके।" 

भाजपा के खिलाफ ट्रिपल एंटी इनकंबेंसी 

पत्रकार पवन मौर्य कहते हैं, "मोदी के तिलिस्म टूटने से प्रत्याशियों के चेहरों पर शिकन उभरती जा रही है। सपा ने कैंट सीट पर कांग्रेस के लिए मुकाबला आसान किया है तो कांग्रेस ने शहर दक्षिणी सीट पर कमजोर प्रत्याशी उतारकर सपा का एहसान चुका दिया है। माइनारटी और यादवों का चंक वोट और अन्य पिछड़ी जातियों का हिस्सा जुड़ रहा है तो सपा ताकतवर बनकर खड़ी हो जा रही है। और जगहों पर भले ही डबल एंटी इनकंबेंसी होलेकिन पूर्वांचल में यह ट्रिपल एंटी इनकंबेसी में तब्दील हो गई है। इसकी वजह है स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके विधायकों का भाजपा को अलविदा कहना व सपा में शामिल होना। इससे भाजपा नेतृत्व दबाव में आ गया और उसने पूर्वांचल में ज्यादातर अपने प्रत्याशी नहीं बदले। प्रत्याशियों के कामकाज को को लेकर जो असंतोष है वह बरकरार है और भाजपा के खिलाफ यही ट्रिपल एंटी इनकंबेंसी है।"

लब्बोलुआब यह है कि बनारस की दक्षिणी सीट पर मुसलमानों का थोक वोट सपा के साथ जा रहा है। कैंट और उत्तरी में कुछ वोट बंट सकता है। सेवापुरी, शिवपुर, रोहनिया, अजगरा में मुसलमान सपा अथवा उसके गठबंधन के साथ जाएगा। पिंडरा इलाके के मुसलमान खुलेआम कांग्रेस के अजय राय के साथ हैं। उत्तरी में थोड़ा मुसलमान बंट सकता है, क्योंकि यहां सपा कंडीडेट जमीनी कार्यकर्ता नहीं है। यहां कुछ मुसलमान ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी हरीश मिश्र (बनारस वाले मिश्रा जी) के साथ जा सकते हैं। हालांकि कैंट के मुसलमानों ने अभी निर्णय नहीं लिया है। कांग्रेस प्रत्याशी राजेश मिश्र पहले से ही मुसलमानों के हितैषी की भूमिका निभाते रहे हैं। अगर सपा की पूजा यादव जीतने की स्थिति में नहीं होंगी तो मुसलमानों का थोक वोट राजेश मिश्रा के साथ चला जाएगा। ओवरआल, बनारस के मुस्लिम वोटरों का रुझान सपा की ओर है। उसे लग रहा है कि सरकार सपा की आ रही है।

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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