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ग्राउंड रिपोर्टः पूर्वांचल में सूखे की मार...किसानों में हाहाकार

वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया, देवरिया से लगायत गोरखपुर और बस्ती तक अकाल की काली छाया किसानों को रुला रही है। इस इलाके में 24 से 40 फीसदी से कम बारिश आंकी गई है।
Purvanchal
नौगढ़ का केल्हड़िया गांव। पूर्वांचल के हर गांव की लगभग ऐसी ही तस्वीर है। 

उत्तर प्रदेश में बादलों ने धरती के साथ जो बेरुखी बरती है उसकी छाया सूखे और अकाल की शक्ल में उभरी है। नतीजासूखे से सूबे के तीस जिलों में दरकी हुई धरती और झुलसे हुए सपनों ने सालों से खेती कर रहे किसानों को उजाड़ सा दिया है। खेती से जीवनयापन करने वाली औरतें पानी और घर चलाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं तो उनके पति काम की तलाश में शहरों में खो गए हैं। सन्नाटे में डूबे उनके पुश्तैनी मकान और भूख से बेहाल उनके मवेशी सवालिया निशान बनते जा रहे हैं। मानसून की बेरुखी से किसानों के हालात बेहद नाजुक हैं, फिर भी योगी सरकार सूखे की स्थिति को नकारती जा रही है। अन्नदाता की हालत ऐसी है कि वो सर्वघाती सूखे को अपनी नियति मानकर चुप बैठे हैं।

पूर्वांचल में सूखे की चिंता अधिक गहरी उभरी है। 21वीं सदी का यह सबसे भयंकर सूखा माना जा रहा है वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया, देवरिया से लगायत गोरखपुर और बस्ती तक अकाल की काली छाया किसानों को रुला रही है। इस इलाके में 24 से 40 फीसदी से कम बारिश आंकी गई है। आसमान में काले गहरे बादल उमड़-घुमड़कर आ तो रहे हैं, किसानों को दगा देकर लापता हो जा रहे हैं। बादलों की लुकाछिपी के खेल को न मौसम विज्ञानी समझ पा रहे हैं और न ही भाजपा सरकार। आधुनिक मशीनों पर काम करने वाले विशेषज्ञों के पास मौसम की इस धोखाधड़ी का कोई जवाब नहीं है। शायद उन्होंने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी इस बार का मौसम इतनी रुखाई और अराजकता दिखाएगा। हरियाली से खिल उठने वाली पूर्वांचल की धरती को इस मौसम का ऐसा अभिशाप लगा कि इंतजार के बाद भी उसमें कोई अंकुर नहीं फूटा।

पूर्वांचल के खेतों में उड़ने लगी है धूल।

मौसम के रूखे रवैये को देखते हुए इस बात का अंदेशा निश्चित होता जा रहा है कि सूखे के कारण धान, मकई, बाजरा, ज्वार आदि खरीफ की जो फसल मारी गई है उसे खड़े होने के अब कोई आसार नहीं। कृषि विज्ञानी भी अब परामर्श दे रहे हैं कि कहीं पानी बरसता है तो कम से कम वे पशुओं के लिए चारा जरूर उगा लें। इस प्रयास से उनके भूखे बिलबिलाते पशु तो बच जाएंगे..!

पानी की कमी से फसलों में ग्रोथ नहीं है।

किसानों के मन में अनगिन घाव

पूर्वांचल में धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली जिले में सूखे के चलते किसानों की जिंदगी पहाड़ सरीखी हो गई है। खासतौर पर उन किसानों की जो कई पीढ़ियों से नौगढ़ के दुर्गम पहाड़ी इलाके में रहते हैं। इन किसानों के बीच काम करने वाली एक्टिविस्ट बिंदू सिंह, सुरेंद्र, नीतू, राम बिलास, त्रिभुवन और कल्याण कहते हैं''समूचा पहाड़ी इलाका सूखे की जबर्दस्त मार झेल रहा है। नौगढ़ के सुदूरवर्ती केल्हरियां नौगढ़ का आखिरी गांव हैं, जो बिहार सीमा से सटा है। यहां कोई हैंडपंप नहीं है। पहाड़ के दर्रे से ही आदिवासियों की प्यास बुझ पा रही है।

सूखे के चलते पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करते नौगढ़ के लोग।

85 वर्षीय घुरहू कोल कहते हैं''सूखे के चलते यहां के लोगों को इन दिनों पशुओं के पेशाब और गोबर से सने पानी को छानकर पीना पड़ रहा है। बारिश के दिनों में चुआड़ (पहाड़ के दर्रे) से पानी लाते हैं। केल्हड़िया में कभी-कभी भैसड़ा बांध का पानी टैंकर से पहुंचता है। पेयजल के इस्तेमाल के लिए सरकार की ओर से भेजे जाने वाले पानी में अक्सर छोटी-छोटी मछलियां भी चली आती हैं तो मेढक भी। पीने में मन गिनगिनाता है, लेकिन सूखे की स्थिति में प्यास बुझाने का कोई दूसरा उपाय है ही नहीं। पशुओं को पानी पिलाने के लिए हमें दो कोस का सफर तय करना पड़ता है।''

चंदौली के केल्हड़िया गांव का आदिवासी किसान घुरहू कोल।

घुरहू बताते हैं, ''केल्हड़िया गांव में हमारी सात पीढ़ियां खप गईं। हमने कई सूखे देखे हैं, लेकिन पानी का इतना जबर्दस्त संकट पहले नहीं था। पहाड़ी झरनों से हमें पीने का साफ पानी मिल जाया करता था। अबकी बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई नहीं हो पाई। सूखे की मार से हम कैसे उबर पाएंगे, यह सोचकर रातों की नींद गायब है।'' केल्हड़िया नौगढ़ का वह दुर्गम इलाका है जो कभी दुर्दांत डाकू मोहन बिंद और घमड़ी खरवार की शरणस्थली हुआ करती था। बाद में नक्सलियों की आम-दरफ्त बढ़ी तो पुलिस ने नक्सलियों के नाम पर आम आदिवासियों को सताना शुरू कर दिया। नक्सल समस्या दूर हुई तो समूचा इलाके सूखे की चपेट में आ गया।

नौगढ़ का दुर्गम केल्हड़िया गांव ही नहीं, समूचे पूर्वांचल में सूखे के चलते हाहाकार मचा हुआ है। खेतों में रोपी गईं धान की फसलें सूखने की कगार पर हैं। अन्नदाताओं के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं। आधा अगस्त बीत गया और किसान सिर्फ आसमान निहार रहे हैं। सिर्फ चंदौली ही नहीं, बनारस, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, आजमगढ़, गोरखपुर, देवरिया, बलिया से लेकर रायबरेली और सुल्तानपुर में बहुत कम बारिश हुई है। जिन किसानों ने धान की फसल रोप दी है, वे उसे बचा पाने की स्थिति में नहीं हैं। किसानों का दर्द यह है कि खेती का सही आंकलन करने में योगी सरकार फेल है।

चंदौली को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए गुहार लगाते किसान 

हर किसान के माथे पर सूखे का दर्द

यूपी में करीब 3.8 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। अगस्त तक राज्य में आधे से भी कम रकबे में बुआई हो पाई है। 16 अगस्त तक 45 फीसदी धान रोपा जा सका है। बारिश नहीं होने से खरीफ की चौपट होती फसल का दर्द हर किसान के माथे पर है। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 18 अगस्‍त तक 45 से कम बारिश रिकार्ड की गई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में 20 से 35 फीसदी बारिश हो सकी है। हालांकि कृषि महकमा दावा कर रहा है कि खरीफ की फसलों का आच्छादन पूरा हो गया तो सूखा कैसे मान लिया जाए 

बनारस काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में कृषि विज्ञान संस्थान के चावल अनुसंधान (मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग इन राइस) के प्रभारी प्रो. पीके सिंह इस बात को तस्दीक करते हैं कि बारिश के आंकड़े डराने वाले हैं। वह कहते हैं'' मानसून की बेरुखी के चलते अबकी धान के उत्पादन में 40 से 50 फीसदी की कमी आएगी, क्योंकि रोपाई का रकबा आधा रह गया है। किसान महंगा डीजल खरीद कर फसलों की सिंचाई कर रहे हैं। धान की खेती में डीजल का अतिरिक्त पैसा लग रहा है। इसका मतलब यह है कि धान के दाम में बढ़ोतरी तय है। पूर्वांचल में नहरें कम हैं और जो हैं भी वो सूखी पड़ी हैं। बनारस में शारदा सहायक नहरें भी टेल तक पानी नहीं पहुंचा पा रही हैं। जिन किसानों ने धान की रोपाई कर ली है उनकी फसलें पानी के अभाव में सूख रही है। यह स्थिति समूचे पूर्वांचल की है।''

निर्यातक खेती-बाड़ी मैग्जीन के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं''प्राकृतिक बारिश में खरीफ की फसलों का ग्रोथ अच्छा होता है। पूर्वांचल में 60 से 70 फीसदी खरीफ की फसल नष्ट हो चुकी है। बारिश न होने से पेयजल का संकट भी भयंकर है। सूखाग्रस्त इलाकों में पानी दिन-ब-दिन नीचे खिसकता जा रहा है। आगे के दिनों में अगर इसकी भरपाई नहीं हुई तो धरती के कई जलस्रोत-नहरें और नलकूप सूख जाएंगे। सूखे के चलते असर विद्युत उत्पादन घट रहा है और खेती की लागत बढ़ रही है। निकट भविष्य में स्थिति सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। पूर्वांचल के खेतों में दीमक हर समय पलते रहते हैं। जमीन सूखते ही वो फसलों पर हमला बोल देते हैं।''

कुशवाहा कहते हैं''देश में जब-जब सूखा पड़ा है उससे जुड़े कई नतीजे जल्द ही प्रकट हुए हैं। मौजूदा सूखे के नजीजे भी सामने आने वाले हैं। कई चीजों के दाम 15 फीसदी तक बढ़ सकते हैं। बेरोजगारी की समस्या भी खड़ी होने का अंदेशा है। योगी सरकार इसलिए पूर्वांचल को सूखाग्रस्त घोषित नहीं कर रही है, क्योंकि सरकारी नुमाइंदों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। जमीनी हकीकत की पड़ताल कराने के लिए न योगी सरकार तैयार है, न ही नौकरशाही। पूर्वांचल के सभी जिलों में एक साथ हरा चारा, पानी, बिजली और बेरोजगारी की समस्या तेजी से उभरने लगी है, जिसका मुकाबला सिर्फ राहत कार्यों अथवा मुफ्त के राशन से कतई नहीं किया जा सकता है। बारिश न होने की स्थिति में सूख रही फसलों को बचाने और सूखे से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है।''

धान के कटोरे में परती पड़े खेत।

सर्वघाती संकट से अन्नदाता चिंतित

पूर्वांचल में धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली जिले में 21वीं सदी का सबसे सर्वघाती संकट पैदा हुआ है। इस जिले के किसान इसलिए चिंतित हैं क्योंकि धान की खेती तेजी से सूख रही है। चंदौली में ब्लैक राइस की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान रतन सिंह कहते हैं''अपने जीवन में हमने पहली बार इतनी कम बारिश देखी है। जून, जुलाई और आधा अगस्त बीत गया, पर धान की खेतों में पानी नहीं है। अगर एक हफ्ते के भीतर अच्छी बारिश नहीं हुई तो चंदौली के ज्यादातर किसानों के खेतों में खड़ी धान की फसलें सूख जाएंगी।'' चंदौली में ही रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का भभौरा गांव भी है। इस गांव के 56 वर्षीय किसान अर्जुन यादव ने पांच बीघे में धान की खेती की है, जो अब सूखने लगी है।

न्यूजक्लिक से बातचीत में अर्जुन ने कहा''चंदौली में बड़े-बड़े चार बांध और 73 बंधियां हैं। नहरों का जाल भी बिछा है, फिर भी फसलें सूख रही हैं। मछली के ठेकेदार मुनाफा कूटने के लिए गर्मी के दिनों में बांध-बंधियों का पानी अकारण बहा चुके हैं। किसी बांध और बंधी में पानी नहीं है। ऐसे में खेती कैसे करें? हम छोटी पूंजी के आदमी हैं। हमारे इलाके में इतना भयंकर सूखा पड़ा है कि धमइया बंधी में एक बूंद पानी तक नहीं बचा है। बोरिंग फेल हो गई है और हैंडपंप सूख गए हैं। न सिंचाई का साधन है, न मवेशियों को पानी पिलाने का कोई स्थायी ठौर।'' भभौरा गांव के 80 वर्षीय रामवृक्ष सिंह यादव के पास 30 बीघा जमीन है। मशीन लगाकर उन्होंने धान की रोपाई तो कर ली है, लेकिन सिंचाई के पानी के लाले पड़े हैं। खेत में खड़ी धान की फसलें सूख रही हैं। रामवृक्ष ने वर्तमान सूखे का विश्वेषण अपने शब्दों में करते हुए न्यूजक्लिक से कहा''ई बार इंद्र देवता अइसन रूठे कि साहेब, पहिले कभी नहीं। कउनो पूजा-पाठ, धरम-करम काम नाही आ रहल बा। ई इंद्र देवता न जाने कउने लोक में चल गयल हउवन। साहेब, यही सब त कलजुग हउवै।''

पीली पड़ती धान की फसल।

चंदौली में जब मानसून धोखा देता है तो तथाकथित इंद्र को मनाने के लिए अनुष्ठान शुरू हो जाता है और रामवृक्ष सरीखे तमाम किसान वहां पहुंच जाते हैं। इनके जैसे न जाने कितने किसानों की आस इंद्र से जुड़ी हुई है। इन्हें लगता है कि शायद धरम-विधान से देवता मान जाएं और बादल हरहरा उठें। आडंबर और अंधविश्वास में फंसे तमाम किसान अपने देवी-देवताओं को मनाने लगे हैं। यह पूरी स्थिति तो इसके विपरीत जान पड़ती है। बादल यहां घिरते जरूर हैं, लेकिन थोड़ी देर में न जाने कहां विलीन हो जाते हैं। अबकी मानसून कुछ ज्यादा ही नाराज है, जो किसी तथाकथित देवता के मनाने से भी नहीं मान रहा है। धान के कटोरे में जुलाई महीने में ही हाहाकार होने लगा था और मौजूदा समय में स्थित ज्यादा विकट हो गई है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गांव भभौरा के विकास सिंह, मोनू यादव और सुरेंद्र यादव की फसलें सूख रही हैं। मोनू बताते हैं''हमारे गांव के पास से चंद्रप्रभा नदी गुजरती है, जो इन दिनों सूखी पड़ी है। बांध में तो इतना भी पानी नहीं कि वह गर्मोयों में वन्य जीवों की प्यास बुझ सके। जुलाई में चार-पांच दिनों के लिए इस बांध का पानी नहरों में छोड़ा गया था। इस बांध से जुड़े मुजफ्फरपुर बियर सूख गया है और इससे निकलने वाली नहरों में धूल उड़ रही है। हर तरफ त्राहि-त्राहि मची है।''

प्रगतिशील किसान सतीश यादव कहते हैं''सूखे के चलते हमारा अर्थतंत्र टूट गया है। एक तरफ फसल सूख रही हैं तो दूसरी ओर, हैंडपंपों ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया है। समझ में नहीं आ रहा है कि मवेशियों को अपने पास रखें या फिर औने-पौने दाम पर बेच दें? दिक्कत यह है कि गेहूं का भूसा 1800 रुपये कुंतल के भाव बिक रहा है। गेहूं की कीमत भी इतनी ही है। घर का अनाज धान की रोपाई और सोहाई में खत्म हो गया। जमा पूंजी खाद खरीदने में खर्च हो गई। जिंदगी कैसे कटेगी, यह सोचकर परेशान हैं।''

चकिया इलाके के बरौझी के प्रभात सिंह पटेल सूखे का विश्लेषण करते हुए कहते हैं''अब बारिश नहीं हुई तो हरियाली का नमोनिशान तक नहीं बचेगा। लगता है कि अबकी एक दाना अनाज पैदा नहीं होगा। सारी मेहनत और पूंजी सूखे की भेंट चढ़ जाएगी। धान की रोपाई तो किसी तरह कर दी है, लेकिन अब फसल को बचाने के लिए पानी नहीं मिल रहा है।'' प्रभात सिंह पटेल का संकेत अपने उस खेत की ओर था, जिसमें धान की लहलहा रही फसल में मोटे-मेटे दर्रे दिख रहे थे। इन्हें कोई आशा नहीं है कि वह अपने खेत के धान का एक दान भी ठीक से पा सकेंगे। प्रभात जैसे चंदौली के न जाने कितने किसान पूरी तरह निराश हो चुके हैं।''

नहरों में उड़ रही धूल 

चंदौली जिले के उतरौत गांव के किसान अशोक सिंह कहते हैं''इस साल अन्नदाता दाने-दाने के लिए तरसेंगे। सूरज की तल्खी किसानों के लिए जहर सरीखी है। अब तो भूखों मरने की नौबत आ गई है।'' जिले के सूखा पीड़ित किसानों की आम अभिव्यक्ति इसी तरह के भय और शंकाओं से भरी हुई है।

दरअसल, चंदौली जिले में मानसून की बेरुखी का सबसे ज्यादा असर चंद्रप्रभा के साथ-साथ कर्मनाशा सिस्टम पर पड़ा है। नौगढ़ बांध भी सूखने की स्थिति में है। मूसाखाड़ में भी पानी हीं है। नहरें चलनी बंद हो गई हैं। अकेले चंद्रप्रभा बांध से 42 माइनरों से मुजफ्फरपुर, रघुनाथपुर, प्रेमापुर, पिपरहट, डोड़ापुर, दुबेपुर, दिरेहूं, पुरानी चकिया मोहम्मदाबाद, लालपुर, भीषमपुर, बरौझी, सिकंदरपुर, पर्वतपुर, रामलक्ष्मणपुर, सेमरौर, हाजीपुर, पिपरिया, कुदरा, भटवारा, रामपुर, मैनपुर, गढ़वा उत्तरी, गोगहरा, बीकापुर, साराडीह, हिनौती उत्तरी सहित चकिया के दर्जनों गांव और बबुरी क्षेत्र के गौरी, जलखोर, सिकड़ी, भगतपुर, इंद्रपुरा, नकटी रघुनाथपुर आदि गांवों में करीब 11 हजार हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है। बारिश न होने से चौबिसहा और बबुरी इलाके में किसान त्राहिमाम कर रहे हैं।

चंद्रप्रभा नदी के पानी से नेवाजगंज और बैरा में लिफ्ट कैनाल से सिंचाई होती थी, लेकिन सूखे के चलते इनसे जुड़ी नहरें सूखी पड़ी हैं। यही हाल कर्मनाशा सिस्टम की नहरों का है। लेफ्ट और राइट कर्मनाश सिस्टम की नहरों से भी पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। मूसाखाड़ बांध का पानी मछली के ठेकेदारों ने गर्मी के दिनों में ही बहा दिया था। करीब महीने भर तक नौगढ़ बांध के पानी से नहरें चलाई गईं, लेकिन इस बांध में पानी बचा ही नहीं है। चंद्रप्रभा प्रखंड के अधिशासी अभियंता सर्वेश चंद्र सिन्हा कहते हैं''मानसून की बेरुखी आगे हम भी लाचार हैं। नौगढ़ इलाके के बांधों में इतना पानी ही नहीं कि धान की फसलों की सिंचाई के लिए नहरें चला पाएं। वन्य जीवों के लिए पानी बचा पाएं, यही हमारे लिए काफी होगा।''

कैसे होंगे बेटियों के हाथ पीले?

चंदौली से मिलती-जुलती तस्वीर बनारस की भी है। इस जिले में 90 फीसदी धान की फसलों की सिंचाई बारिश के पानी से ही होती है। सीमांत और मझोले किसानों की स्थित बहुत ज्यादा खराब है। भयंकर सूखे के कारण अनेक किसानों के बेरोजगार होने का भय है। इस परिस्थिति से जूझने के लिए आम किसान और मजदूर क्या करने जा रहा हैइसका जवाब अराजीलाइन प्रखंड के कचनार गांव के किसान बलिराम ने दिया, ''सूखा तो अब करीब हर साल पड़ने लगा है। मानसून की बेरुखी का सिलसिला तो रुकता ही नहीं। हमने अपने घर के बच्चों को कहा दिया ही कि दिल्ली जाकर बस जाएं। किसी भी बड़े शहर में चले जा, रोटी-पानी भर का काम ढूंढ लो, वरना जिंदगी चलने वाली नहीं है। कितना अजीब है कि बादल आते हैं और फिर चले जाते हैं। फसल नहीं होगी तो हम अपनी गुजर-बसर कैसे करेंगे। बेटियों के हाथ कैसे पीले होंगे। सिर्फ मानसून ही नहीं, योगी सरकार भी किसानों से रूठ गई है, जो मदद के लिए आगे नहीं आ रही है।"

पूर्वांचल में बिजली से चलने वाले नलकूप तो हैं, लेकिन धान की खेती के लिए पर्याप्त पानी देने की स्थिति में वो भी नहीं हैं। देखा जाए तो 60 फीसदी नलकूप बेकार पड़े रहते हैं। बिजली की कमी के कारण इन दिनों स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई है। योगी सरकार का दावा है कि वह सीमेंट व उर्वरक जैसी भट्ठियों में बिजली की खपत को काटकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक बिजली भेजने का प्रयास कर रही है। लेकिन पूर्वांचल के किसान सरकार के इस दावे पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं हैं। पूर्वांचल के आगे लखनऊ होते हुए पश्चिम की ओर बढ़ेंगे तो बोली भाषा के खारेपन के साथ ही शिकायतें भी खरी होती मिलेंगी''नलकूप तो है, पर बिजली नहीं तो फायदा क्या है? ''

बनारस के बड़ागांव प्रखंड के रसूलपुर गांव के 36 वर्षीय किसान अभय कुमार की सूनी आंखों में मानसून के रूठ जाने की बेचैनी पढ़ी जा सकत है। अपने इलाके के एक सरकारी नलकूप की ओर संकेत किया। अभय के साथ गांगकला के उनके साथी युवा किसान राकेश नारायण तिवारी सूखा और अकाल के कारणों के लिए सरकार की नीतियों को हो दोष देते हैं। वह कहते हैं''देश में सब कुछ दिखावा रह गया है। पौधरोपण हो रहा है, मगर कागजों पर। जहां पेड़ लगाए जा रहे हैं वो ऐसे हैं कि जो खुद ही जमीन को बंजर बना दें। सरकार की मति मारी गई है जो यूकेलिप्टस का पौधरोपण करा रही है।''

अपने मवेशियों को बेचने की जुगत में लगे बनारस के नई बस्ती गांव के सीखू।

नई बस्ती के पशुपालक सीखू ओसवालपुर गांव में अपनी भैसें चराते हुए मिले। वह कहते हैं''हमने अपने मवेशियों को बेचने की तैयारी कर ली है। चारे का दाम 16 से 18 सौ रुपये कुंतल हो गया है। अपने पशुओं को क्या खिलाया जाएयह संकट तो हर पशुपालक के सामने उभरा है।'' हार में तेजी से बढ़ती हुई महंगाई से बेहाल सीखू यह भी कहते हैं''मोटे अनाज का दाम तेजी से बढ़ रहा है। सरसों के तेल की कीमतें नहीं घट रही हैं। और तो और कपड़े धोने का साबुन तक दूने दाम पर बिक रहा है।'' खाने-पीने की चीजों के साथ सूखे-अकाल के समय ऐसी चीजों के दाम तेजी से क्यों बढ़ने लगते हैंसीखू इसीलिए अधिक हैरान हैं।

बनारस के अजईपुर के किसान हृदय नारायण मौर्य अपना परती खेत दिखाते हुए।

अजईपुर गांव के 63 वर्षीय किसान हृदय नारायण मौर्य के पास 11 बीघा जमीन है। बारिश न होने के कारण उन्होंने जमीन परती छोड़ दी है। हाईवे पर उन्होंने एक भोजनालय खोला है। नाम है सम्राट ढाबा। सिंचाई विभाग में आपरेटर पद से रिटायर हदय नारायण कहते हैं''सूखे का असर समूचे पूर्वांचल में है। मगर इतना भयंकर सूखा हाल-फिलहाल नहीं पड़ा था। हमारे अजईपुर गांव में चले जाइए, जिससे भी मिलेंगे, यही कहता-सुनता मिलेगा। हमारे आसपास के गांवों की उपजाऊ जमीन सूखी और सफेद दिखती है। खेतों में दरारें सी पड़ गई हैं। खरीफ की कुछ फसलें जो इन दिनों आदमी की लंबाई पकड़ लेती थीं, अबकी जमीन की सतह से ही ऊपर नहीं उठ सकीं। खेतों में दूर-दूर तक किसान नहीं दिखते। अलबत्ता कहीं-कहीं छुट्टा और आवारा पशु हरी खास के टुकड़ों की तलाश में भटकते जरूर दिख जाते हैं।'' अजईपुर की कमला देवी, खूब नारायण मौर्य, शशिकांत, रजनीकांत और मोहनलाल मौर्य भी हृदय नारायण मौर्य की तरह ही धान की खेती नहीं कर पाएं हैं। जिन किसानों ने बंटाई पर जमीनें ली हैं उनके सामने चुनौती बड़ी है। इनकी न फसल हुई, न पशुओं के लिए चारा। ऊपर से कर्ज का बोझ भी लद गया है।

पीली पड़ने लगीं फसलें

बनारस से सटे मिर्जापुर जिले में सूखे के चलते स्थिति और भी ज्यादा भयावह है। इस जिले में बारिश नहीं हुई तो सिर्फ 11.5 फीसदी किसान ही धान रोप पाए। मिर्जापुर के पहाड़ी इलाकों में मड़िहान और लालगंज में रोपी गई धान की फसलें सूख रही हैं। एक किसान अंगद सिंह ने न्यूजक्लिक से कहा"समझ लीजिए कि अबकी धान की फसल चौपट हो गई है। पानी नहीं बरसने से खर-पतवार खरीफ की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। यही हाल रहा तो अरहर और ज्वार-बाजरे की खेती भी नहीं हो सकेगी।" मिर्जापुर कृषि उप निदेशक अशोक उपाध्याय कहते हैं"जिले में 65 हजार 514 एकड़ भूमि पर धान की खेती का लक्ष्य था। सिंचाई की समस्या के चलते दस-बारह फीसदी किसान ही धान की खेती कर पाए हैं।''

मिर्जापुर से मिलती-जुलती तस्वीर सोनभद्र की भी है। जिले का म्योरपुरबभनीदुद्धीचोपन और कोन ब्लॉक मोटा अनाज की खेती करने के लिए जाना जाता है। इस इलाके के किसान रबी व खरीफ की फसल के लिए बारिश के सहारे रहते हैं, क्योंकि इन इलाकों में सिंचाई के समुचित साधन नहीं हैं। पांचों ब्लॉक में मक्कासांवा कोदोअरहर व उरद की खेती होती है। किसानों के अनुसारपहले मोटे अनाज की खेती बाप दादा किया करते थे। सरकार के सहयोग से हजारों किसानों ने मोटे अनाज की खेती की, लेकिन बारिश न होने से ये फसलें भी सूख रही हैं। कुछ ही इलाकों में धान की फसलें बची हैं और जो जिंदा हैं वो पीली पड़ती जा रही हैं।

जौनपुर जिले में इस बार बारिश सामान्य से काफी कम बारिश हुई हैजिसके चलते धान और मक्का की खेती करने वाले किसान काफी ज्यादा परेशान हैं। गौराबादशाहपुर के इलाके में बारिश न होने से धान उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ गई है। प्रगतिशील किसान महेंद्र अपने खेतों में पड़ी दरारों को देखकर अपना सिर माथे पर रख लेते हैं। उनके पास खड़े उमाशंकर कहते हैं, ''अबकी अकाल जैसी स्थिति है। बारिश के अभाव में खेतों में दरारें फट रही हैं। जिन इलाकों में नहरें हैं, वहां स्थिति कुछ ठीक है, बाकी में किसान मानसून की राह देख रहे हैं। जौनपुर की तरह भदोही में भी सूखे का जबर्दस्त संकट है।''

धान की खेती के लिए अगर चंदौली प्रसिद्ध है तो लहुरी काशी का रुतबा हासिल करने वाला गाजीपुर भी पीछे नहीं है। बारिश के अभाव में धान की फसलें सूख रही हैं। जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए भाकपा (माले), अखिल भारतीय खेत और ग्रामीण मजदूर सभा के सदस्यों ने पिछले महीने विशाल जुलूस निकाला और सैदपुर तहसील पर धरना भी दिया था। किसानों की आवाज योगी सरकार तक अभी नहीं पहुंच सकी है। आजमगढ़ मंडल औसत से करीब 45 फीसदी कम बारिश हुई है। इस मंडल में आजमगढ़ के अलावा मऊ  बलिया जिले में 20 फीसदी खेत परती रह गए हैं। आजमगढ़ में 46 फीसदी कम बारिश हुई तो मऊ में औसत 511.7 मिलीमीटर के सापेक्ष सिर्फ 174.5 मिलीमीटर वर्षा हुई। इसी तरह बलिया में 466.1 मिलीमीटर के मुकाबले सिर्फ 173.3 मिमी बरसात हुई है जो औसत से 63 फीसदी कम है, जिसका असर धान की फसलों पर सीधा देखा जा सकता है।

अमूमन जून महीने में धान की रोपाई शुरू हो जानी चाहिए थीमगर बारिश न होने की वजह से लेट शुरू हुई। आजमगढ़ मंडल में 06 लाख हेक्टेयर में खरीफ की खेती होती है, जिसमें धान का रकबा 2 लाख 14 हजार 397 हेक्टेयर है। बाकी में मूंगअरहरगन्ना आदि की खेती की जाती है। जिले के प्रगतिशील किसान नायब यादव और सर्वेश जायसवाल कहते हैं''साल 2009 के बाद इस बार सूखे जैसे हालात पैदा हुए हैं।'' कृषि वैज्ञानिक डा.एलसी वर्मा भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि धान का उत्पादन 30 से 40 फीसदी घट जाएगा।

गोरखपुर के किसानों को सूखे की चिंता सता रही है। इनके खेतों में दरारें पड़ चुकी हैं। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक गोरखपुर 75 जिलों में 32वें स्थान पर है जहां सिर्फ 56 फीसदी बारिश हुई है। पिपराइच के किसान रामनारायण विश्वकर्मा कहते हैं''धान की फसलें तभी बचेंगी जब दो-चार दिनों में जमकर बारिश होगी। कृषि अधिकारी देवेंद्र प्रताप कहते हैं, यहां 714.9 मिलीमीटर के सापेक्ष अब तक सिर्फ 401.2 मिली मीटर बारिश हो सकी है। यही स्थिति रही तो सरकार को सूखा घोषित करना ही पड़ेगा।

धान के खेतों में चलवा दिया ट्रैक्टर

 देवरिया जिले में मौसम की बेरुखी के चलते सूखे का संकट गहराता जा रहा है। तरकुलवा प्रखंड के सिवनिया गांव के आधा दर्जन किसानों ने अपने धान के खेतों में ट्रैक्टर चलवा दिया है। अजित सिंह और जंग बहादुर ने न्यूज़क्लिक से कहा''धान के सूखे खेत की जुताई कराने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था।'' किसान सुनील कहते हैं''अबकी बहुत नुकसान हुआ है। समूची पूंजी डूब गई। वह पूंजी जो खेती के सहारे हमें जिंदा किए हुए थी।'' किसान रविशंकर सिंह बताते हैं, "बारिश का इंतजार करते-करते हम धान नहीं रोप पाए।  पूरा खेत खाली छोड़ दिया है। हमारे गांव में केवल 10 से बीस फीसदी लोगों ने धान की फसल लगाई है।"

देवरिया के जिला कृषि अधिकारी मोहम्मद मुज्जमिल कहते हैं'' धान की खेती के लिए 250 मिलीमीटर बारिश की दरकार थी, लेकिन हुई सिर्फ 70 मिलीमीटर। औसत से बहुत ही कम। प्रशासन ने देवरिया को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए शासन को चिट्ठी भेजी है, मगर कोई जवाब नहीं आया है।

महराजगंज जिले में 59 फीसदी से कम बारिश हुई है। आधा दर्जन नदियों से घिरे इस जिले के किसान इस बार बेहाल हैं। सूखे की काली छाया गाढ़ी होती जा रही है।'' धनेवा धनेई के किसान विनय के मुताबिक''हमारी फसलें सूख रही हैं, पर उसे बचाने के लिए हमारे पास बारिश के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कुशीनगर में भी सूखे जैसे हालात हैं। इस जिले में भी 65 फीसदी कम बारिश हुई है, जिसके चलते खेतों में खड़ी फसलें पीली होने लगी हैं।''

सांसद ने भेजी मुख्यमंत्री को चिट्ठी

प्रयागराज के मेंडारा गांव के किसान फूलचंद्र मौर्य कहते हैं''जिनके पास खुद के सिंचाई के साधन हैं, सिर्फ वही धान रोप पाए हैं। मैंने साल 2007 में सूखा देखा था, लेकिन इतना भयंकर नहीं था।'' इसी गांव के रामभरोसे हर साल चार-पांच बीघा धान की खेती करते थे, लेकिन इस बार मानसून की राह देखते-देखते सारा खेत परती छोड़ दिया। वह कहते हैं''कोहड़े की फसल भी सूखने लगी है।''

रायबरेली में सिर्फ 113.5 मिलीमीटर बारिश हो पाई हैजो औसत बारिश से बहुत कम है। अमावा प्रखंड के किसान रामसकल कहते हैं कि मानसून की बेरुखी ने किसानों को रुला दिया है।'' जिला कृषि अधिकारी एचएन सिंह कहते हैं कि सितंबर के बाद सूखे की सही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। कौशांबी जिले में सोभना गांव के 58 वर्षीय महेंद्र सिंह बताते हैं''हमने साल 1980 में ऐसा सूखा अनुभव किया था। बेहन तो तैयार कर लिया था, लेकिन रोपाई नहीं कर सका। लिहाजा चार बीघा जमीन परती रह गई।''

अंबेडकरनगर में इस बार 33 फीसदी कम बारिश हुई है। अकबरपुर प्रखंड में स्थिति विकराल होती जा रही है। उधर, गोंडा जिले में भी सूखे की आहट सुनाई देने लगी है। जिला कृषि अधिकारी जगदीश प्रसाद यादव की मानें तो 17 अगस्त तक जिले में 205.10 मिलीमीटर हुई हैजो 652.7 मिलीमीटर के मानक से काफी कम है। गोंडा में 1.29 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। इस जिले में छह लाख से ज्यादा किसान खेती से ही आजीविका चलाते हैं।

बस्ती जिले की सदरहर्रैया,भानपुर व रूधौली तहसीलों में 40 फीसदी बारिश हुई है। तमाम खेत परती पड़े हुए हैं। एडीएम अभय कुमार मिश्र कहते हैं कि आसन्न सूखे की रिपोर्ट तैयार की जा रही है। डीएम प्रियंका निरंजन ने संभावित सूखे की सूचना एकत्र करने का निर्देश दिया है। बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी भेजकर बस्ती समेत समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है। साथ ही सूखे का आंकलन कराने का भी अनुरोध किया है। सांसद ने चिट्ठी में लिखा है''पूर्वांचल में औसत से आधी भी बारिश नहीं हुई है, जिसके चलते सूखे की आशंका बढ़ गई है।''

सुल्तानपुर सिर्फ तीस फीसदी क्षेत्रफल में धान की फसलें रोपी जा सकी हैं। किसानों का कहना है कि बारिश नहीं होने से धान की फसल सूखने लगी है। डीजल महंगा है। ऐसे में किसान कितनी बार सिंचाई करेगा? बहराइच जिले में पुलिस धान की फसलों को बचाने के लिए ट्यूबवेल चलाने नहीं दे रही है। खाकी वर्दी के खौफ से बहुत से किसानों ने धान की रोपाई नहीं की है। प्रतापगढ़ जिले में संतराम सिंह भी मानसून की बेरुखी से चिंतित नजर आते हैं। वह कहते हैं कि अबकी धान का रकबा बहुत ज्यादा सिकुड़ गया है।

 बिजनौर में टूटा सूखे का रिकार्ड

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो सबसे दयनीय स्थिति बिजनौर जिले की है। यहां नहीं के बराबर बारिश हुई है। यहां कई सालों सबसे कम बारिश का रिकार्ड टूट गया है। इस जिले के किसान लगातार नलकूप चला रहे हैं, फिर भी फसलें सूखती जा रही हैं। नगीना कृषि अनुसंधान केंद्र प्रेक्षक सतीश कुमार कहते हैं''पिछले कई सालों से 15 अगस्त तक 100 से 120 मिलीमीटर बारिश हो जाया करती थी। अबकी 60 मिलीमीटर बारिश नहीं हो पाई है। जिला कृषि अधिकारी अवधेश मिश्र बताते हैं''जिले में सूखे की स्थिति की पड़ताल कराई जा रही है। सितंबर महीने में वास्तविक तस्वीर उभरकर सामने आएगी। किसानों को सलाह दी जा रही है कि जिन्होंने धान की रोपाई नहीं की है वे राई और सरसों की बुआई के लिए तैयारी शुरू कर दें।''

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं''भयंकर सूखे के बावजूद योगी सरकार यूपी को इसलिए आपदाग्रस्त घोषित नहीं कर रही है, क्योंकि उसकी माली हालत खराब है। गलत आर्थिक नीतियों और बजट में गलत प्रावधानों के चलते किसानों को राहत नहीं दे पा रही है। कहने को डबल इंजन की सरकार है, लेकिन किसानों को संकट से उबराने के लिए उसके पास न तो नीति है, न नीयत है। वैसे भी इस सरकार के एजेंडे में अन्नदाता नहीं, सिर्फ कारपोरेट घराने ही रहे हैं। जनता से टैक्स वसूल कर भाजपा सरकार अपने मित्र पूंजीपतियों को उपकृत करने में ही जुटी हुई है। मौजूदा समय में किसानों को समझने और संभलने की जरूरत है। ऐसे में पूर्वांचल के किसान मोदी-योगी सरकार से कोई उम्मीद न पालें। अपने दुख-तकलीफ के निवारण के लिए अन्नदाता को भाजपा सरकार के खिलाफ फिर से मोर्चा खोलना होगा।''

सभी तस्वीरें- विजय विनीत

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

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