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“फसल की क़ीमत मिलना तो दूर, पूंजी भी डूब गई”, ओलावृष्टि के दो दौर और बेबस किसान!

"मैं एक भूमिहीन किसान हूं, मेरे ऊपर पहले से हज़ारों रुपये का कर्ज़ा लदा है जो कि साहूकार से 3% पर लिया था। काफ़ी पैसा खर्च कर हमने गेहूं का बीज लिया, फिर कीटनाशक और खाद ख़रीदी। सब बर्बाद हो गया।"
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पूर्वांचल समेत उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले एक पखवाड़े में तेज़ आंधी के साथ रिकॉर्ड तोड़ बारिश और ओलावृष्टि हुई है। कई लोगों को ये अच्छी लग सकती हैं, कई लोग महसूस करते हैं कि इससे उन्हें उमस और गर्मी से राहत मिली है, लेकिन हज़ारों किसानों के लिए यह स्थिति मुसीबत का सबब बन गई है। बेमौसम बारिश से गेहूं, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों की फसल सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई है। आम के पेड़ों में लगे टिकोरों के झड़ने से बागबानों को भारी नुक़सान पहुंचा है। पूर्वांचल के ज़्यादातर किसान मिर्च, टमाटर, लहसुन, प्याज, गोभी, बंद गोभी, तरबूज, खरबूज, हरी मिर्च, करेला, तोरई, बैगन, भिंडी आदि सब्जियों की खेती करते हैं। बेमौसम बारिश ने इन सब्जियों की खेती करने वालों को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। नुक़सान इस कदर हुआ है कि किसानों के माथे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंच गई हैं।  

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र के मुताबिक़, "उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बुंदेलखंड में पिछले 15 दिनों के अंदर हुई भीषण ओलावृष्टि एक असामान्य घटना थी। यह पश्चिमी विक्षोभ का एक खतरनाक रूप था।"

इस बीच मौसम विभाग ने एक बार फिर आंधी, बारिश और ओलावृष्टि की चेतावनी जारी की है। किसान अपने खेतों में हार्वेस्टर लगाकर गेहूं की कटाई कर रहे हैं। तेज़ आंधी के साथ बारिश और ओलावृष्टि किसानों के लिए कितना भयावह साबित हुआ है, यह जानने के लिए हमने कई किसानों से बात की।

किसानों पर क्या बीती?

वाराणसी के बड़ागांव और पिंडरा इलाके में बारिश के साथ इस कदर ओलावृष्टि हुई कि सैकड़ों किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं और उनके ग्रीन हाउस व पालीहाउस तहस-नहस हो गए। कई गांवों में मकान ढह गए और ग़रीबों की मड़इयां भी। बड़ागांव प्रखंड के कोइरीपुर गांव की मुसहर बस्ती में इस कदर ओलावृष्टि हुई कि बर्फ के गोले उनके छप्परों को फाड़ते हुए अंदर तक पहुंच गए। मड़ई में सो रहे, मुसहर समुदाय की चंद्रावती देवी के 15 वर्षीय पुत्र करीमन का सिर फट गया। दशहरथी, कलावती, हीरावती, चंपा, नीतू, बिंदू, बुधना, सुरजा, परमीला, सुमित्रा और पूजा बारिश और ओलावृष्टि से हुई तबाही का ज़िक्र करते हुए रो पड़ीं।

चंद्रावती ने कहा, "हुज़ूर, मैंने अपने जीवन में इतनी बारिश और ओले कभी नहीं देखे थे। हमारी बस्ती के आसपास गेहूं, चना और मटर की फसलें बर्बाद हो गईं। किसानों की शिमला मिर्च, टमाटर और तमाम दूसरी फसलें पूरी तरह तबाह हो गई हैं।"

कोइरीपुर मुसहर बस्ती के सोभ्भर कहते हैं, "हमने कर्ज़ लेकर अपनी मड़ई खड़ी की थी। बेटी की शादी करनी थी। ओलावृष्टि और बारिश ने हमारी कमर तोड़कर रख दी। हमारी बस्ती में दो-दो सौ ग्राम तक के ओले गिरे जो तिरपाल और पॉलिथिन को फाड़ते हुए अंदर तक घुस गए। ऐसे ही चलता रहा तो पता नहीं कि हम ज़िंदा रह पाएंगे या नहीं। हमें तो दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है।"

अपने दर्द का इज़हार करते हुए पिंडरा (बनारस) के किसान त्रिभुवन नारायण सिंह भावुक हो उठते हैं। वह कहते हैं, "गेहूं की खेती करने लिए हमने बैंक से 50 हज़ार रुपये लोन ले रखा था और उम्मीद थी कि फसल पकते ही कर्ज़ चुका देंगे। ओले गिरने के बाद जब खेत देखा तो लगा कुछ बचा ही नहीं। आपको कैसे बताएं कि कितना नुक़सान हुआ है। गेहूं की फसल थी, वो भी बर्बाद हो गई। जो कुछ था, सब ख़त्म हो गया। रबी की फसल से कुछ निकला नहीं। न जाने अब आगे क्या होगा। सरकार की तरफ़ से कोई राहत भरा कदम नहीं उठाया जा रहा है। हमारे पास एक दर्जन से अधिक मवेशी हैं। अब उन्हें बेचना पड़ेगा, तभी बैंकों का कर्ज़ अदा कर पाएंगे। अख़बारों में तो सिर्फ़ हवा-हवाई दावे पढ़ने को मिल रहे हैं। राजस्व और कृषि महकमे के सर्वे भी हवा-हवाई हैं।"

बड़ागांव इलाके के एक अन्य भूमिहीन किसान संजय मौर्य की फसल को भी ऐसा नुक़सान हुआ है कि उन्हें इससे उबरने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। उनके साथ काम करने वाले कुछ किसान अपनी बर्बाद फसल को देखने के बाद सीधे गुजरात चले चले गए, ताकि कुछ मज़दूरी करके घरवालों को दो जून की रोटी खिला सकें। संजय बताते हैं, "मेरे मन में क्या है, ये सिर्फ़ मैं ही जानता हूं। जब ओले गिर रहे थे तो मेरे दस साल के बच्चे ने कहा कि पापा आप चिंता मत करो, मैं बड़ा होकर खूब पढ़ाई करूंगा। अब मैं अपनी व्यथा न बच्चे को बता सकता हूं और न ही अपनी पत्नी को। जो है सब कुछ मेरे दिल में है।"

"मैं एक भूमिहीन किसान हूं, मेरे ऊपर पहले से हज़ारों रुपये का कर्ज़ा लदा है जो कि साहूकार से तीन परसेंट पर लिया था। जिस खेत पर मैं किसानी कर रहा था, उसके ज़मीन मालिक को 40 हज़ार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किराया देना है, चाहें कुछ पैदा हो या न हो। काफ़ी पैसा खर्च कर हमने गेहूं का बीज लिया और फिर कीटनाशक और खाद ख़रीदी। सब बर्बाद हो गया। अब सब कुछ एक बार फिर से शुरू करना पड़ेगा।"

बनारस से सटे मिर्ज़ापुर के मेड़िया गांव के किसान पप्पू सिंह कहते हैं, "बारिश और ओलावृष्टि के कारण हमारी सब्जियों की फसलें बर्बाद हो गईं। मिर्च और टमाटर की फसलें खेतों में सड़ रही हैं। उनकी पत्तियां पीली पड़ गई हैं। हम अपना दुखड़ा किसे सुनाएं? उम्मीद थी कि प्रशासन मुआवज़े के लिए सर्वे कराएगा, लेकिन हमारे खेतों तक कोई अफसर या कर्मचारी पहुंचा ही नहीं। अब हमारे सब्र बांध टूटता जा रहा है।"

आराजीलाइन इलाके के प्रगतिशील किसान सोनू दुबे भी बुझे-बुझे नज़र आए। उन्होंने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "हमारी गेहूं की फसलें खेतों में पककर तैयार हो गई थीं। उनकी कटाई की सिलसिला शुरू होने वाला ही था कि ओलावृष्टि और बारिश के चलते सारी फसल चौपट हो गई। गेहूं की ज़्यादातर फसलें ज़मीन पर लोट गई हैं, जिससे एक दाना मिलने की उम्मीद नहीं है। अब तो जुताई-बुवाई की लागत भी नहीं निकल पाएगी। सरकार से काफ़ी उम्मीदें थी कि वह कोई राहत भरा कदम उठाएगी, लेकिन नुक़सान का सर्वे करने वालों का कहीं अता-पता नहीं है।"

किसान हृदय नारायण सिंह कहते हैं, "हमारी चना और अरहर की फसलों को भारी क्षति पहुंची है। गर्मी के सीज़न वाली प्याज की खेती की थी, लेकिन वो भी बर्बाद हो गई। मुआवज़ा बांटने के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं, लेकिन वह तभी मिलेगा, जब कोई हमसे मिलकर हमारे बर्बाद हो चुके खेतों को देखेगा।"

अरबों का नुक़सान

तेज़ आंधी के साथ बारिश और ओले गिरने की वजह से खेतों को जो नुक़सान पहुंचा है, इसके बाद किसान एक नई शुरुआत करने की कोशिश कर रहे हैं। चंदौली ज़िले के बरौझी गांव के प्रगतिशील किसान प्रभात सिंह, दिनेश सिंह, देवी सिंह, कृपाशंकर सिंह, कृष्ण देव सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह बताते हैं, "हमारी हालत ये है कि चाहें कुछ भी हो, हमें साहूकारों से कर्ज़ लेना ही पड़ता है। किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाएं किसानों को एक बार कर्ज़ दे देती हैं जिसे साल भर में वापस करना पड़ता है। लेकिन अब जब ऐसी घटनाएं हो जाती हैं तो हमें नई शुरुआत करने के लिए साहूकारों के पास जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"

चंदौली ज़िले के हिनौती के किसान बनारसी सिंह, अनिल सिंह, पर्वतपुर के अरुण सिंह, विजय सिंह, लक्ष्मण सिंह, बीकापुर के नंदू मौर्य, रामवंत सिंह, परसोत्तमपुर के राम सिंह, भटवारा के आनंद सिंह कहते हैं, "खेतों में गेहूं की फसलें ज़रूर खड़ी हैं, लेकिन उनके दानें काले पड़ गए हैं। ज़मीन में पानी लगा हुआ है। हम चाहकर भी हार्वेस्टर से उनकी कटाई नहीं कर पा रहे हैं।" कुछ ऐसी ही व्यथा चंदौली के रामलक्ष्मणपुर, रामपुर, पिपरिया, भीषमपुर, सेमरौर, हाजीपुर, गढ़वा आदि गांवों के किसानों की है। चंदौली में धान के अलावा गेहूं की बंपर पैदावार होती है।

चंदौली में किसानों ने पर बारिश और ओलावृष्टि ने कहर बरपाया

बारिश की वजह से एक तरफ़ जहां खलिहान में रखी हुई सरसों की फसल भीग गई है, तो दूसरी तरफ़ गेहूं, चना और मटर की फसलों के नुक़सान होने का अंदेशा बना हुआ है। चंदौली के नियमताबाद के किसान एसके सिंह कहते हैं, "गेहूं की कटाई शुरू होने वाली थी, लेकिन बारिश होने की वजह से काफ़ी नुक़सान हो गया।"

पूर्वांचल के अन्नदाता परेशान हैं और सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं। चकिया के विधायक कैलाश खरवार ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "चंदौली ज़िले में बारिश और ओलावृष्टि से क़रीब 52 फ़ीसदी से ज़्यादा फसलों को नुक़सान हुआ है। चंदौली ज़िले में सर्वे शुरू हो गया है। खासतौर पर वो किसान ज़्यादा मुश्किल में हैं जिनकी फसलों ने ज़मीन पकड़ ली है। गेहूं की इन फसलों को किसान हार्वेस्टर से भी काट नहीं सकते। अच्छी बात यह है कि सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि उनकी ख़राब फसलें भी समर्थन मूल्य पर ख़रीदी जाएंगी।"

चंदौली ज़िले के शहाबगंज और चकिया इलाके में बारिश और ओलावृष्टि से भारी तबाही हुई है। गेहूं, चना और सरसो की फसलें गिर गई हैं। इस इलाके के करनौल, मुरकौल, तियरा, बड़गांवा, ठेकहा, अमरसीपुर, शहाबगंज, मसोई आदि गांवों में बारिश से फसलों को नुक़सान पहुंचा है।

पश्चिमी विक्षोभ के चलते वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, सोनभद्र, मऊ, भदोही, बलिया, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर समेत पूर्वांचल और समूचे उत्तर प्रदेश में हुई बारिश, ओलावृष्टि, और तूफानी हवाओं के चलते रबी की फसलों को भारी नुक़सान पहुंचा है।

देवरिया ज़िले में पिछले साल धान की फसल सूखे की भेंट चढ़ गई थी। किसानों का कहना है कि गेहूं की फसल की क़ीमत तो मिलना दूर, अब पूंजी भी डूब गई। प्रगतिशील किसान भगवान सिंह, कृष्ण कुमार संत, हृदय नारायण सिंह, राम स्वरूप यादव ने प्रशासन से क्षतिपूर्ति की मांग की है।

समूचे पूर्वांचल में बारिश का कहर

बारिश और ओलावृष्टि ने उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ बनारस, चंदौली और जौनपुर ही नहीं, दर्जनों ज़िलों में भारी तबाही मचाई है। गाजीपुर, सोनभद्र, भदोही, मिर्ज़ापुर, बस्ती, फिरोजाबाद, मऊ, देवरिया, और हाथरस में किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा है।

मिर्ज़ापुर के किसान संजय ने बताया कि, "बारिश के चलते उम्मीद ख़त्म हो गई है। खेतों में पूरी फसल को गंवाना पड़ा है। सिर्फ़ गेहूं ही नहीं, चना और मटर की फसलों पर भी खासा विपरीत असर पड़ा है।"

भदोही ज़िले में तेज़ आंधी के साथ हुई बारिश के कारण गेहूं की फसल खेतों में गिर गई है और पानी भर गया है। गेहूं की फसलें दो-चार दिन के अंदर ही कटने वाली थीं, लेकिन बेमौसम बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। भदोही के चकटोडर के किसान हौसला प्रसाद तिवारी कहते हैं, "हमारी पंद्रह बिस्वा गेहूं की खेती चौपट हुई है। खेतों में पानी भर गया है और गेहूं की बालियां गिर गई हैं, जिससे फसल के सड़ने का ख़तरा पैदा हो गया है।"

जौनपुर ज़िले केराकत में भारी बारिश और आंधी ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। प्रगतिशील किसान रतनलाल कहते हैं कि उन्होंने कर्ज़ लेकर फसल लगाई थी, लेकिन बेमौसम की बारिश ने उन्हें बर्बाद कर दिया।

हाथरस ज़िले के भोजपुर गांव के किसान गिरिराज और सासनी गांव के आनंद के मुताबिक़ गेहूं और सरसों की फसल में कम से कम 25 से 50 फ़ीसदी का नुक़सान है, जबकि आलू पर दाग लगने से उसके दाम कम मिलने की संभावना है। वहीं फिरोजाबाद के किसान पीके शर्मा कहते हैं, "कुछ दिनों के अंतराल पर हो रही बारिश के चलते आलू की खुदाई रुक गई है। बारिश से सबसे ज़्यादा नुक़सान तो सरसों, गेहूं और जौ को हुआ है।"

मुजफ्फरनगर के मौसम अधिकारी पान सिंह के मुताबिक़, "मार्च में हुई बारिश से तक़रीबन सभी फसलों को क्षति पहुंची है।"

इसके अलावा पीलीभीत के कृषि वैज्ञानिक एसएस ढाका के मुताबिक़, बारिश से 40 फ़ीसदी तक कम पैदावार होगी। बुंदेलखंड के औरैया, हमीरपुर में गेहूं की फसलें प्रभावित हुई हैं। हमीरपुर के उप-निदेशक कृषि हरिशंकर भार्गव के मुताबिक़, क्षति का आकलन किया जा रहा है।

यूपी के पीलीभीत, बरेली, सीतापुर, अलीगढ़, मुरादाबाद, सोनभद्र, हमीरपुर, सम्भल, उन्नाव,बड़ौत, शिकारपुर, खुर्जा, किठौर, गढ़मुक्तेश्वर, पिलखुआ, हापुड़, बुलंदशहर, नरोरा, अलीगढ़, कासगंज, हाथरस, और मथुरा में बारिश होने की उम्मीद है। बारिश और ओलावृष्टि से बचाव के लिए लोगों को ट्रैफिक एडवाइज़री का पालन करने को कहा गया है। ओले गिरने से खुली जगहों पर लोग और मवेशी घायल हो सकते हैं। मौसम विभाग के मुताबिक़ तेज़ आंधी से कई चीजें उड़ सकती हैं। लोगों को घरो के अंदर रहने, खिड़कियां और दरवाज़े बंद करने और अगर संभव हो तो यात्रा से बचने की सलाह दी गई है।

खेती को कितना नुक़सान हुआ?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट के ज़रिए, बेमौसम की बारिश, तेज़ आंधी और ओलावृष्टि से हुई तबाही का जो ब्यौरा पेश किया है उसके मुताबिक़, पूर्वांचल के क़रीब 84 हज़ार 453 किसान तबाही की कगार पर पहुंच गए हैं। बनारस में 58 हज़ार 393 किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं। सर्वाधिक नुक़सान पिंडरा इलाके में हुआ है। इस तहसील क्षेत्र में 12 हज़ार 705, सदर में 6 हज़ार 126 और राजातालाब के 5 हज़ार 051 किसान शामिल हैं। ये आंकड़े उन किसानों के हैं जिनकी अब तक 33 फ़ीसदी से ज़्यादा फसलें बर्बाद हुई हैं।

कृषि और राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़ ख़राब हुई गेहूं, सरसों, सब्जी और दलहनी फसलों का सर्वे चल रहा है। संभव है कि आपदा पीड़ित किसानों की तादाद बढ़ सकती है। पूर्वांचल के जिन ज़िलों में फसलों को सर्वाधिक नुक़सान हुआ है उसमें चंदौली दूसरे और जौनपुर तीसरे स्थान पर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ वाराणसी में 58 हज़ार 393, चंदौली में 11 हज़ार 265, जौनपुर में 10 हज़ार, मिर्ज़ापुर में 2 हज़ार, भदोही में 1500, मऊ व बलिया में 1000-1000, सोनभद्र में 280 और गाजीपुर में 15 किसानों ने नुक़सान की भरपाई के लिए अर्ज़ी दी है।

आजमगढ़ में प्राकृतिक आपदा से सबसे कम नुक़सान हुआ है। यूपी सरकार के नियमों के मुताबिक़ फसलों के 33 फ़ीसदी या उससे अधिक के नुक़सान पर ही मुआवज़ा दिया जाता है। बनारस ज़िले में 10 हज़ार 445 किसानों ने रबी फसलों का बीमा कराया है। इनमें से 715 से ज़्यादा किसानों ने बीमा राशि पाने के लिए अर्ज़ी दी है। बीमा कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि नुक़सान का आंकड़ा फीड होने के बाद राहत राशि बांट दी जाएगी।

यूपी सरकार के कृषि विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले एक पखवाड़े में दो दौर में हुई ओलावृष्टि, आंधी और बारिश से यूपी के 1.07 लाख से अधिक किसानों की 35 हज़ार हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन पर लगी फसलों को नुक़सान हुआ है। मौसम की मार से जूझ रहे किसानों को राहत देने के लिए सरकार ने क्षति का सर्वे कराया है। यूपी के राहत आयुक्त प्रभु एन. सिंह ने 15 मार्च से 2 अप्रैल के बीच हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुक़सान का सर्वे कर अपनी अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक 11 जनपदों के कुल 1 लाख 07 हज़ार 523 किसानों का कुल 35,480.52 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र प्रभावित हुआ है। सरकार इस नुक़सान की भरपाई के रूप में किसानों को कुल 5859.29 लाख रुपये मुआवज़ा देगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नुक़सान के सर्वे के आधार पर प्रभावित किसानों को कृषि निवेश अनुदान और राहत मुहैया कराने के लिए ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिया है।

राहत आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 31 मार्च से 2 अप्रैल 2023 के बीच हुई बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को हुए नुक़सान का 10 ज़िलों में अभी सर्वे चल रहा है। सीएम योगी ने इन ज़िलों में भी ज़िलाधिकारियों को सर्वे का काम यथाशीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया है। जिससे किसानों को समय से मुआवज़ा दिया जा सके।

राहत आयुक्त कार्यालय के मुताबिक़, 31 मार्च से 2 अप्रैल 2023 के बीच फतेहपुर, पीलीभीत, बरेली, सीतापुर, अलीगढ़, मुरादाबाद, सोनभद्र, हमीरपुर, सम्भल और उन्नाव ज़िले ओलावृष्टि व वर्षा से प्रभावित हुए हैं।

जहां तक फसलों की बर्बादी का मामला है: फतेहपुर ज़िले में 5026 किसानों की 1343 हेक्टेयर, आगरा में 4738 किसानों की 2804.15 हेक्टेयर, बरेली में 3090 किसानों की 559 हेक्टेयर, चंदौली में 11,265 किसानों की 2,986.81 हेक्टेयर, हमीरपुर में 396 किसानों की 271.83 हेक्टेयर, झांसी में 205 किसानों की 145 हेक्टेयर, ललितपुर में 7,380 किसानों की 6,216.23 हेक्टेयर, प्रयागराज में 9,252 किसानों की 4448.20 हेक्टेयर, उन्नाव में 5,505 किसानों की 2801 हेक्टेयर, वाराणसी में 58,393 किसानों की 13,112 हेक्टेयर तथा लखीमपुर खीरी में 2,273 किसानों की 792.52 हेक्टेयर फसलें ख़राब हुई हैं। कुल 11 जनपदों में 1 लाख 07 हज़ार 523 किसानों का क़रीब 35,480.52 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में फसलों को नुक़सान हुआ है। इसके एवज में प्रभावित किसानों को 5,859.29 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाएगा।

बढ़ेंगे सब्जियों के दाम?

बनारस के ज़िला कृषि अधिकारी संगम मौर्य कहते हैं, "अबकी बार गेहूं की पैदावार 50 से 55 फ़ीसदी कम होगी। इस मौसम में सामान्यत: एक-दो बार बारिश होती है। लेकिन इस दफ़े दो मर्तबा बारिश होने से उन फसलों को नुक़सान हो रहा है जो खेतों में पकी हुई खड़ी हैं। इस बारिश से सीधे-सीधे सरसों, गेहूं, सब्जियों के अलावा आम जैसे फल उत्पादकों को भी भारी नुक़सान हुआ है। पूर्वांचल में इस समय आलू और प्याज की खुदाई का सीज़न है। इस समय ज़्यादा बारिश की वजह से खेत में आलू की खुदाई नहीं हो पाती है। बार-बार पानी गिरने की वजह से आलू सड़ने लगता है। बारिश का सर्वाधिक असर फूलों की खेती पर पड़ा है। खासतौर पर गेंदा और गुलाब की खेती चौपट हो गई है। अब फूलों की फसलों पर कीड़ों ने हमला बोल दिया है।"

बारिश में बर्बाद हो गई फूलों की खेती

ज़िला कृषि अधिकारी संगम मौर्य यह भी कहते हैं, "बारिश के साथ-साथ तेज़ हवा चलने से गेहूं के तने टूट जाते हैं जिससे अनाज का ठीक से विकास नहीं हो पाता है। इस वजह से किसान की पैदावार घट जाती है।"

वहीं आगे वह कहते हैं, "इस मौसमी घटना का दूरगामी परिणाम सब्जियां उगाने वाले किसानों और आम के बागानों पर पड़ेगा, क्योंकि ओले गिरने से खेतों में बोई हुई सब्जियों की पौध ख़राब हो गई है। वहीं, आम के बगीचों में ओले गिरने से उन्हें भी नुक़सान पहुंचा है। आने वाले दिनों में सब्जियों के दामों पर इसका असर दिखाई देगा। टमाटर, गोभी, मिर्च, लहसुन, भिंडी, लौकी, तरोई, खरबूजा और तरबूज जैसी फसलों को भारी नुक़सान हुआ है। इससे आने वाले दिनों में इन सब्जियों के दाम ऊपर जाते हुए नज़र आएंगे। वहीं, आम की फसल की बात करें तो तेज़ हवाओं की वजह से कई जगहों पर पेड़ तक उखड़ गए हैं। ओलावृष्टि का असर तो पड़ा ही है।"

बदहाली की दास्ता सुनाते किसान सभा के कार्यकर्ता

किसान बीमा योजना

जब किसानों को हुए नुक़सान की बात आती है तो अक्सर किसान बीमा योजना का ज़िक्र किया जाता है। निर्यातक खेती-बाड़ी के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं कि इस तरह की मौसमी घटनाओं को लेकर किसानों को हर हाल में बीमा मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आता है। वह कहते हैं, "जब-जब हम किसान बीमा की बात करते हैं तो उन रिपोर्ट्स पर भी ध्यान देना चाहिए जो बताती हिं कि पिछले साल किसानों के करोड़ों रुपये के क्लेम अभी उन तक नहीं पहुंचे हैं। बीमा कंपनियों को ये बोला गया है कि अगर क्लेम दो महीने लेट होता है तो 12 फ़ीसदी ब्याज दर के साथ बीमा राशि किसान को दी जाएगी, लेकिन ऐसा कभी हुआ ही नहीं है। ज़मीनी हक़ीक़त की बात की जाए तो भूमिहीन किसानों पर ऐसी मौसमी घटनाओं की मार सबसे ज़्यादा पड़ती है। पूर्वांचल में 40 फ़ीसदी खेतिहर किसान भूमिहीन हैं। ऐसे में उन्हें बीमे की रकम मिलने की जगह खेत का किराया जुगाड़ने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है।"

इसे भी पढ़ें: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ केवल बीमा कंपनियों को कर रही मालामाल?

जगन्नाथ कुशवाहा बताते हैं, "मौसमी घटनाओं से राहत नहीं मिलने के साथ-साथ कृषि को लेकर चलाई जा रही दूसरी तमाम योजनाओं का लाभ भूमिहीन किसानों को नहीं मिलता है। इनमें सब्सिडी देने की योजनाएं शामिल हैं। ये एक बड़ी समस्या है। और मैं देख रहा हूं कि सरकार की नीतियां डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की ओर बढ़ रही हैं। ऐसे में ये बात समझ से बाहर है कि ये नीतियां किसके लिए बनाई जा रही हैं, जब आपकी कृषक आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस सुरक्षा कवच से बाहर है। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि वाराणसी में सबसे अधिक 773 किसानों ने बीमा क्लेम किया है। वहीं, बलिया में सबसे कम महज़ दो किसानों ने बीमा क्लेम दाख़िल किया है। इनमें से सैकड़ों किसानों को अब तक फसल बीमा की राशि नहीं मिली है। पूर्वांचल में 1,25,000 किसानों ने फसल बीमा कराया है। इसमें से सिर्फ़ 1500 किसानों ने ही फसल बीमा का दावा पेश किया है।"

अभी टला नहीं है ख़तरा

बीएचयू के मौसम वैज्ञानिक प्रो. एनएस श्रीवास्तव बताते हैं, "मार्च और अप्रैल के महीने में जो बारिश और ओलावृष्टि हुई है उसकी वजह पश्चिमी विक्षोभ है। यह एक तरह से सामान्य घटना है। इसका संबंध कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन से भी है। अगर पिछले सालों की तुलना की जाए तो सामान्यत: बारिश पांच या छह मिलीमीटर तक ही होती है, लेकिन इस बार कई स्थानों पर 20 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई है। बारिश की संभावना अभी बनी हुई हैं। किसानों को चाहिए कि वे दलहन, तिलहन और रबी की पकी फसलों को खेत से निकालने का प्रयास करें।"

बनारस में खेत मजदूर सभा की बैठक

इस बीच बनारस के हरहरपुर गांव में आयोजित किसान सभा की प्रदेश उपाध्यक्ष डा. हीरालाल और माकपा-बनारस के ज़िला मंत्री नंदलाल पटेल की अगुवाई में आयोजित बैठक में किसानों ने बताया कि बारिश, आंधी और ओलावृष्टि से गेहूं, सरसों और चना के अलावा सब्जियों को भी भारी नुक़सान हुआ है। फसलों की क्षति का सर्वे करने के लिए किसान सभा ने 13 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। बैठक में फसलों के मुआवज़े के अलावा सड़कों की मरम्मत और आवास की मांग को लेकर एसडीएम सदर को मांग-पत्र देने का निर्णय लिया है। कमेटी के अध्यक्ष जय प्रकाश, मंत्री-मुरलीधर पटेल, उपाध्यक्ष-होरीलाल और उप मंत्री अमरनाथ ने कहा कि बारिश से हुए नुक़सान का अविलंब मुआवज़ा दिया जाए ताकि किसान अगली फसल के लिए तैयारी कर सकें। साथ ही खेती के लिए, लिए गए कर्ज़ की अदायगी कर सकें।

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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