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ग्रेनो: ‘‘लड़ाई आरपार की है’... इस बार बहकावे में नहीं आएंगे किसान

हाई पावर कमेटी बनाए जाने से इनकार करना ग्रेटर नोएडा और प्रदेश सरकार को भारी पड़ गया। पिछली बार 61 दिनों का धरना प्रदर्शन करने वाले किसान अब आंदोलन के मोड में उतर आए हैं, और मांगे पूरी नहीं होने तक डटे रहने की बात कर रहे हैं।
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वादाख़िलाफी से नाराज़ ग्रेटर नोएडा के किसानों ने जब फिर से आंदोलन को धार देने का फैसला किया, तब प्रशासन की ओर से उनके घरों में पुलिस भेजकर धमकाया गया, और आंदोलन में शामिल नहीं होने की चेतावनी दी गई। ये आरोप किसानों ने लगाए हैं। डराने वाले इन पैंतरों ने किसानों के घावों को और ज़्यादा उभार दिया, जिसका ख़ामियाज़ा उल्टा प्रशासन को ही भुगतना पड़ गया और आज यानी 18 जुलाई को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और योगी सरकार के खिलाफ तीन हज़ार से ज़्यादा किसान बेहद उग्र रवैये के साथ इकट्ठा हो गए।

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वे सिर्फ इकट्ठा ही नहीं हुए बल्कि सरकार और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को ये चेतावनी भी दे डाली कि अब हम यहां से डिगने वाले नहीं हैं क्योंकि हमें आपकी ज़ुबान पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं रह गया है।

इस आंदोलन के लिए आए किसानों के जत्थों की खास बात ये रही, कि इसमें पुरुषों से ज़्यादा महिलाएं शामिल हैं, और उनका कहना है कि हम यहां दिन रात का धऱना देने के लिए आए हैं, मांगे पूरी नहीं होने तक यहां से हिलेंगे नहीं। वहीं आंदोलन वाली जगह पर पहुंचने से पहले भारी पुलिस बल ने किसानों को रोकने की तैयारी कर ली थी, लेकिन किसानों ने अथॉरिटी के अंदर घुसने के लिए पुलिस वालों से हाथापाई करने के बजाय अथॉरिटी के गेट पर ही डेरा डाल दिया और अथॉरिटी के साथ-साथ योगी सरकार के खिलाफ भी जमकर नारेबाज़ी की।

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इस आंदोलन का संचालन कर रहे भारतीय किसान सभा के प्रवक्ता डॉ रूपेश वर्मा ने बताया कि 24 जून को राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर ने मध्यस्थता कर सरकार की ओर से किसानों के मसले पर हाई पावर कमेटी बनाए जाने पर लिखित में समझौता करवाया था, और 30 जून तक नोटिफिकेशन कराकर 15 जुलाई तक फैसला कराने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब अथॉरिटी और सरकार ने सांसद की प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना लिखित वादे के पालन से इनकार कर दिया। इसी के खिलाफ हमने ये आंदोलन शुरु किया है। पहले हुए आंदोलन के 61 दिनों के हिसाब से आज 62वें दिन फिर शुरु हो रही है। इस बार हम दिन-रात यहीं रहेंगे और मुद्दों को हल किए बग़ैर नहीं हटेंगे।

किसानों के इस आंदोलन में किसान सभा के साथ देने के लिए किसानों के अन्य संगठन तो पहुंचे ही, साथ में सपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इसके अलावा एसकेएम के नेता और पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला भी मौजूद रहे और उन्होंने संबोधित भी किया। हन्नान मोल्ला ने नोएडा अथॉरिटी के साथ-साथ मोदी सरकार को भी घेरा, और दिल्ली में हुए महाआंदोलन की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि हमें हमारे संविधान में ये अधिकार है कि अपने हक के लिए खड़े हो सकें और संविधान के मुताबिक ही आज भारत में जुल्म और अत्याचार के खिलाफ लोग गोलबंद हो रहे हैं। सत्ताधीशों को ये याद रखना चाहिए कि जनता जब एकजुट होती है, तब इन्हें पीछे हटना पड़ता है। हन्नान ने सरकार को ललकारते हुए कहा कि देश में 80 करोड़ किसान हैं, और तुम्हारी जेलें बहुत छोटी हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने वादा किया था, फसल का दाम देंगे। लेकिन सरकार ने गद्दारी की, इसलिए किसानों ने 384 दिनों तक दिल्ली को घेरे रखा। ये पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुआ होगा।

इसके अलावा किसानों के समर्थन में पहुंची एडवा दिल्ली-एनसीआर की अध्यक्ष मेमुना मोल्ला ने भी किसानों को संबोधित किया। उन्होंने खासकर महिलाओं में जोश भरने का काम किया और कहा कि महिलाएं घर पर भी काम कर सकती हैं, और सड़क पर भी। इसके बाद उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए किसानों से कहा कि आपकी ज़मीन हड़प ली गई है, सबका विकास, सबका साथ देश से गायब है, यानी सारे वादे जुमले जैसे है। ऐसे वक्त में अगर हम घर पर बैठकर सिर्फ रोटियां तोड़ते रहें तो कुछ दिनों में रोटी पकाने के लिए आटा भी नहीं बचेगा,  इसलिए घर से बाहर निकलना होगा और मोदी सरकार, आदित्यनाथ सरकार, और अथॉरिटी से लड़कर अपना हक लेना पड़ेगा।

इसके अलावा जनवादी महिला समिति की सदस्य आशा शर्मा ने भी अपनी बात रखी, उन्होंने कहा कि अथॉरिटी ने और योगी की सरकार ने वादाखिलाफी की है। हमें इस सरकार पर विश्वास नहीं रह गया है।

यहां किसानों के समर्थन में आए लोगों ने सरकार को चेतावनी दी कि आपकी वादाख़िलाफी का नतीजा आने वाले चुनावों में भुगतना पड़ेगा। एक महिला किसान आशा यादव का कहना था कि जब चुनाव आएंगे, तब इसकी सज़ा आपको मिलेगी। उन्होंने कहा कि जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक कोई नेता नहीं, कोई सांसद नहीं, कोई विधायक नहीं, कोई राजनीति नहीं। हमारे साथ मौजूद हर शख्स नेता है।

किसानों के समर्थन के लिए ही पूर्व ज़िला पंचायत सदस्य डॉ बबली गुर्जर भी पहुंचे थे, उन्होंने बताया कि आज से लगभग 60 दिन पहले वाले आंदोलन में हमारे साथी जेल गए थे, उसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों और राजनीतिक जनप्रतिनिधियों ने आपसे समझौता किया था, लेकिन अब मुकर गए। पहले वाले सीओ साहब भी चले गए। लेकिन अब हम नहीं जाने वाले हैं, और आपके पास जितनी जेले हैं सभी को भरने के लिए भी तैयार हैं।

किसान नेताओं और कुछ संगठनों के अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल भी किसानों के समर्थन में पहुंचे थे। सपा की ओर से पहुंचे सरधना से विधायक अतुल प्रधान ने बताया कि मैं संघर्ष के कारण विधायक बना हूं, आपके आंदोलन के पहले चरण में आपके साथ था आगे भी आपके साथ रहूंगा, जब तक आपके मुद्दे हल नहीं होते तब तक साथ रहूंगा आपकी इच्छा के अनुसार जब आप कहोगे अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को धरना स्थल पर लेकर के आऊंगा। मैं आपके साथ हूं।

आपको बता दें कि 28 जनवरी 1991 को ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की स्थापना के वक्त भूमि अधिग्रहण करने के लिए क्षेत्र के किसानों से ढेर सारे वादे किए गए थे। जिसमें सबसे बड़ा वादा ये था कि ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में जितने भी उद्योग स्थापित होंगे उनमें किसानों के युवा लड़के-लड़कियों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार दिया जाएगा। इसके अलावा वादा ये भी किया था कि किसानों को उनकी जमीन का वाजिब मुआवजा मिलेगा और यहां बनने वाले बड़े-बड़े सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में किसानों के बच्चों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। इसी तरह ढेरों वादे करके ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के सभी गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित की जा चुकी हैं। लेकिन दावा है कि अथॉरिटी की ओर से किए गए किसानों से वादे पूरे नहीं किए गए, उद्योग के लिए ली गई ज़मीनों पर फ्लैट्स बना दिए गए, और उन्हें वाज़िब मुआवज़ा भी नहीं मिल सका। जिसकी वजह से न उनके बच्चों को रोज़गार मिला और न सही शिक्षा।

फिलहाल किसानों की ओर से ये एलान कर दिया गया है कि मांगें नहीं माने जाने तक वो यहीं डटे रहेंगे, और इस बार उन्हें पुख्ता समाधान चाहिए। वहीं ये कहना ग़लत नहीं होगा कि महिलाओं की भारी संख्या इस आंदोलन को बहुत बड़ा और प्रभावी बना चुकी है।

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