यूपी: बारिश-ओलावृष्टि से खड़ी फ़सलें चौपट, किसान परेशान
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाक़े में पिछले चार दिनों से रुक-रुककर हो रही बारिश और ओलावृष्टि से खेतों में धान की फसलें बिछ गईं। खरीफ सीजन में पहले सूखा और फिर बेमौसम की बारिश ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। सबसे अधिक नुकसान धान की फसलों को हुआ है। साथ ही आलू, मटर, गेहूं और रबी की दूसरी फसलों की बुआई पर भी खासा असर पड़ा है। पूर्वांचल में खेती पर कोहरे का भी ज़बरदस्त असर देखने को मिल रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के चलते मोटे तौर पर अबकी 10 से 15 फीसदी धान का उत्पादन कम होने की उम्मीद की जा रही है।
यूपी में 29 नवंबर 2023 से मौसम मौसम बदरंग हुआ, तभी से खेती-किसानी करने वालों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। पिछले चार दिनों में बादलों की गरज-चमक के साथ बारिश और ओलावृष्टि के बीच तेज हवाओं ने राज्य के कई इलाकों में जमकर कहर बरपाया। पूर्वांचल के सोनभद्र जिले के दुद्धी और म्योरपुर इलाक़े में बारिश के साथ ओले भी गिरे, जिससे धान की फसलों के अलावा गुलाब और गेंदे की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। किसान तीन-चार दिन में धान की फसल काटने ही वाले थे, तभी खेतों में पकी खड़ी फसल गिर गई। कई स्थानों पर खेतों में पानी भर गया, जिससे रबी फसलों की बुआई पिछड़ने लगी है। बारिश के साथ कोहरे का भी भारी असर देखने को मिल रहा है।
यूं तो पूर्वांचल किसानों की तकदीर में बेरहम मौसम सालों से तबाही की पटकथा लिखता रहा हैं। कभी सूखा पड़ रहा है तो कभी ओलावृष्टि और बारिश फसलों को चौपट कर रही है। यह एक बार की कहानी नहीं है, पिछले एक दशक से लगातार ऐसा होता चला आ रहा है। यूपी में धान की सर्वाधिक फसल पूर्वांचल के चंदौली, गाजीपुर और जौनपुर जिले में होती है। मिर्जापुर और सोनभद्र के मैदानी इलाक़े भी उम्दा किस्म की धान की खेती के लिए मशहूर हैं। यूपी के पूर्वी इलाक़े में ज़्यादातर लोग खेती-किसानी पर आश्रित हैं। ख़राब मौसम और ओलावृष्टि ने यूपी के किसानों को परेशान कर दिया है। इस साल की शुरुआत से ही रबी की फसलों को मौसम की मार का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। बनारस मंडल में साल 2023 में खरीफ सीजन में 04 लाख 60 हज़ार 754 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य था, जिसके सापेक्ष 04 लाख 55 हज़ार 525 हेक्टेयर में खेती कराई गई। बनारस में 47,293 हेक्टेयर, चंदौली में 1,15,462, गाजीपुर में 1,44,612 और जौनपुर में 1,48,158 हेक्टेयर में धान की खेती की गई थी। पूर्वांचल इलाक़े में खेती-किसानी 'भगवान भरोसे' यानी प्रकृति पर ही निर्भर है। सबसे ज़्यादा प्रभावित छोटे और मझोले किसान ही हैं। किसानों को पहले सूखे की मार झेलनी पड़ी और अब बेमौसम की बारिश के चलते नुकसान हुआ है।
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसानों और फूल की खेती करने वाले बागबानों पर दोहरी मार पड़ी है। ग्रामीण अंचलों में धान की कटाई और मड़ाई का काम तेजी से चल रहा था। पहले से काटकर खेतों में पड़ी धान की फसलें बारिश के चलते पानी से भीग गईं। बूंदाबांदी के बीच किसान फसलों को सहेजने में जुटे रहे। जिन किसानों ने हार्वेस्टर से धान की फसल कटवाई है उनकी स्थिति चिंताजनक है। बारिश से खलिहानों में भी पानी भर गया। आसमान में बादल छाए होने के कारण खेतों में पड़ी धान की फसल नहीं सूख पा रही है।
बारिश से सिर्फ धान ही नहीं, बाजरा और उड़द की फसलों को भी नुकसान हो रहा है। जिन किसानों ने अगैती आलू और सरसों की बुआई की थी उन्हें भी नुकसान हो सकता है। बीज खेत में ही सड़ सकते हैं। किसानों को उम्मीद है कि आलू और सरसों की बुआई भी पिछड़ जाएगी। यूपी में आमतौर पर हर साल करीब 343.23 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है। बारिश से गेहूं के अलावा चना और सरसों की फसलों की बुआई पिछड़ने लगी है।
चंदौली के बजहां गांव के युवा किसान सुधीर कुमार सिंह ने करीब 50 एकड़ में धान की खेती कर रखी है। बारिश के साथ तेज हवाओं के चलते जमीदोज हुई धान की फसलों को दिखाते हुए सुधीर का रंग फीका पड़ जाता है। नम आंखों के साथ सुधीर कहते हैं, "उम्मीद थी कि धान की ये फसल हमें सूखे के घाटे से उबार देगी, लेकिन खेती पर जो हमारी हज़ारों रुपये की लागत आई है वो भी नहीं निकलेगी। न जाने अब आगे क्या होगा? धान की खड़ी फसलें लेट गई हैं। आपको कैसे बताएं कि कितना नुकसान हुआ है। कितना अनाज खलिहान में पहुंच पाएगा, कुछ भी कह पाना मुश्किल है।"
"दो-चार दिनों में धान की कटाई शुरू होने वाली थी। बारिश से खेत गीले हो गए हैं जिससे फसलों की हार्वेस्टिंग नहीं हो पा रही है। कुछ खेतों में हमने मजदूरों से धान की कटाई की थी, वह भीग गई। धान की खेती पर बीज, खाद, दवा, जोताई, रोपाई, निराई और सिंचाई के पानी पर होने वाले निवेश को देखें तो खर्च 1500 से 1600 रुपये आता है। अपनी मजूरी जोड़ दें तो धन की खेती का खर्च ढाई हज़ार रुपये प्रति कुंतल पहुंच जाएगा। सरकार ने धान का जो समर्थन मूल्य घोषित किया है उस दाम पर धान बेचना घाटे का सौदा है। ग्रामीण नौजवानों के पलायन की सबसे बड़ी वजह भी यही है। हमारी मुश्किलें किसी को नहीं दिख रही हैं। चाहे वो नेता हों, अफसर हों या सरकार।"
बनारस के भंदहांकला गांव के प्रगतिशील किसान बल्लभ पांडेय असमय बारिश से परेशान नज़र आए। वह कहते हैं, "धान की ज़्यादातर फसलें लेट गई हैं। सिर्फ़ धान ही नहीं, रबी फसलों की बुआई भी पिछड़ने लगी है। अगले 15 दिन किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। बारिश के साथ कुछ इलाकों में हुई ओलावृष्टि से धान और बाजरे की खेती को नुकसान हुआ है। बनारस में बागबान बड़े पैमाने पर फूलों की खेती करते हैं। गुलाब की फसल चौपट हो गई है और गेंदे की भी। योगी सरकार को चाहिए कि वो किसानों और बागवानों को राहत पैकेज दे।"
बनारस के जाल्हूपुर में धान की खेती करने वाले कृषक लालू यादव और मुरारी कहते हैं कि बेमौसम बारिश से उबरने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। इसी गांव के किसान बुल्लू यादव कहते हैं, "मेरे मन में क्या है, ये सिर्फ़ मैं ही जानता हूं। धान की फसलें खेतों में ही लेट गई हैं। बादल अठखेलियां कर रहे हैं। आसमान कब साफ होगा और धान की फसल कब सूखेगी, सब कुछ भविष्य के गर्त में है। पूर्वांचल के किसानों की हालत ये है कि चाहें कुछ भी हो, हमें साहूकारों से कर्ज लेना ही पड़ता है। किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाएं किसानों को एक बार कर्ज दे देती हैं, जिसे साल भर में वापस करना पड़ता है। लेकिन प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो हमें नई शुरुआत करने के लिए साहूकारों से कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"
"खेतों में लेट गईं फसलें"
धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली के सिकठा गांव के प्रगतिशील किसान रतन सिंह बड़े पैमाने पर सुगंधित धान की खेती करते हैं। इन्होंने अपने खेतों में अबकी आदमचीन धान की खेती कर रखी थी। वह कहते हैं, "मौसम यूं ही बदरंग रहा तो इस बार खेती की लागत निकाल पाना मुश्किल हो जाएगा। इस बार बड़ा नुकसान होने वाला है। बेमौसम की बारिश से सिर्फ धान ही नहीं, उड़द, आलू और सरसों की फसल को भी भारी नुकसान की संभावना है। सब्जियों की खेती करने वाले किसान भी खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं। धान समेत खरीफ की दूसरी फसलों की कटाई कर रहे किसानों के लिए मौसम का बदला रुख आफत बन गया है। धान की फसल भीगने और जमीन पर बिछ जाने की वजह से काफी उपज प्रभावित होगी।"
बनारस से सटे मिर्जापुर जिले में धान की खेती के लिए मशहूर चौकिया मनऊर गांव के किसान गोपाल सिंह और संतोष सिंह की करीब 40-50 बीघा धान की फसल खलिहान में पहुंचने से पहले ही पानी में भीग गई।
सिकंदरपुर गांव के प्रगतिशील किसान अमुल्य सिंह पटेल ने करीब 20 बीघे में पैदा हुई धान की फसल खलिहान में रख छोड़ी थी। समूची फसल पानी से भीग गई। न्यूज़क्लिक से बातचीत में अमुल्य कहते हैं, "अबकी धान की फसल अच्छी थी। फसल को देख कर मन में एक आस थी। कई दिनों से लगातार पानी गिरने की वजह से धान की फसल खेत में ही तहस-नहस हो गई है। अगर ऐसे ही पानी गिरता रहा तो शायद कटाई करके खेतों से कुछ भी घर को नहीं जा पाएगा। बारिश से खेत में पानी भर गया है और धान के सड़ने की नौबत है। सब्जियों को भी बहुत भारी नुकसान हुआ है। ज़्यादा बारिश हुई तो टमाटर और मिर्च के अलावा सब्जियों की फसलें गल जाएंगीं। तब हम कहीं के नहीं रहेंगे।"
सोनभद्र के हिंदुआरी, महोखर, बभनौली कलां, तेंदू क्षेत्र में तेज बारिश से धान की फसलें चौपट हुई हैं। चंदौली के प्रयोगवादी किसान अनिल मौर्य को लगता है कि बेमौसम बारिश का असर स्वाभाविक रूप से आने वाले दिनों में नज़र आएगा। वह कहते हैं, "टमाटर, गोभी, मिर्च, लहसुन, भिंडी, लौकी, तरोई, खरबूजा और तरबूज जैसी फसलों को नुकसान पहुंचा है। इससे आने वाले दिनों में इन सब्जियों के दाम ऊपर जाते हुए नज़र आएंगे। बारिश के चलते धान की फसल अब बर्बादी की कगार पर पहुंचने से नुकसान के साथ चारे का संकट भी गहराने की आशंका है। मौजूदा समय में भूसे का दाम 1100 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल है। बारिश से धान की फसल सड़ गई तो भूसे के दाम और बढ़ेंगे।"
फूलों पर भी मौसम की मार
फूलों की खेती पर भी मौसम की ज़बरदस्त मार पड़ी है। बनारस के चिरईगांव, धन्नीपुर, गोपालपुर और दीनापुर की आबो-हवा में बिखरती फूलों की खुशबू किसी का भी मन मोह लेती है। कहीं गुड़हल, कुंद, बेला के फूल तो कहीं गुलाब और हजारा गेंदा की क्यारियां, फूलों की घाटी सरीखी नज़र आती हैं। चिरईगांव, दीनापुर, कोची, रमना, गुलरीतर, पचरांव और धन्नीपुर बनारस से ऐसे गांव हैं जिसे लोग ‘रोज़ विलेज’ के नाम से भी जानते हैं। बेमौसम की बारिश से इन गांवों के बागबान निराश हैं। यही हाल हजारा गेंदे की खेती करने वाले लखीमपुर, सरहरी, मिल्कीपुर, काशीपुर, भद्रकला, कैथी, इंद्रपुर, लोहता, भट्ठी गांव के किसानों की है।
बनारस के बराई गांव के सीवान में बारिश के बीच गेंदा-खेत में फूलों को तोड़ रहीं मीना काफ़ी चिंतित नज़र आईं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "तेज आंधी के साथ बारिश ने फूलों की खेती को भी बर्बाद कर दिया है। बारिश के चलते गेंदा, गुलाब और श्रीकांती के फूलों पर दाग पड़ने की आशंका बढ़ती जा रही है। सर्वाधिक नुकसान धान की फसल को हुआ है। हमारी चिंता यह है कि हम अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए फ़ीस कैसे भरेंगे?"
चिरईगांव में गुलाब के फूलों की खेती करने वाले बागबान विनय रत्न मौर्य कहते हैं, "हाड़तोड़ मेहनत का दूसरा नाम है फूलों की खेती। पौधे लगाना, पानी देना और ताजीवन उसकी देख-रेख करना आसान काम नहीं है। फूल आने पर उन्हें तोड़ना, उनकी माला बनाना और फिर उसे मंडियों में ले जाकर बेचना हर किसी के बस में नहीं है। उम्मीद थी कि अबकी शादी के सीजन में अच्छा मुनाफ होगा, लेकिन बेमौसम की बारिश ने बागबानों के हौसले को तोड़ दिया है। बदरंग मौसम और बारिश का सिलसिला जारी रहा तो मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। गुलाब की खेती पर कोहरा भी असर डाल रहा है। तुलसी की पत्तियां काली पड़ने लगी हैं।"
निर्यातक खेतीबाड़ी के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं, "जब किसानों को हुए नुकसान की बात आती है तो अक्सर किसान बीमा योजना का ज़िक्र किया जाता है। किसानों पर आज मौसम की मार पड़ी है और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दस महीने बाद भी उन्हें बीमे की रक़म मिल पाएगी। ज़मीनी हकीक़त की बात की जाए तो भूमिहीन किसानों पर ऐसी मौसमी घटनाओं की मार सबसे ज़्यादा पड़ती है। भारत जैसे देश में जहां 40 फ़ीसदी किसान भूमिहीन हैं, ऐसे में तमाम किसानों को बीमे की रक़म मिलने की जगह खेत का किराया जुटाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। कृषि को लेकर चलाई जा रही दूसरी तमाम योजनाओं का लाभ भूमिहीन किसानों को नहीं मिलता है। इनमें सब्सिडी देने की योजनाएं शामिल हैं। ये एक बड़ी समस्या है। सरकार की ज़्यादातर नीतियां डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की ओर बढ़ रही हैं। ऐसे में ये बात समझ से बाहर है कि ये नीतियां किसके लिए बनाई जा रही हैं, जबकि किसानों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस सुरक्षा कवच से बाहर है।"
"पिछड़ जाएगी रबी की खेती"
हमने कृषि क्षेत्र के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से बात करके इस बारिश से खेती पर पड़ने वाले व्यापक और दूरगामी असर को समझने की कोशिश की। उप कृषि निदेशक (शोध) अशोक उपाध्याय बताते हैं, "बेमौसम बारिश से धान की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। बारिश के साथ-साथ तेज हवा चलने से धान की फसल को नुकसान हुआ है, क्योंकि कई इलाकों में फसलें जमीन में बिछ गई हैं। यूपी में इस समय आलू की बुआई का सीज़न है, जो अब पिछड़ सकती है। फूलों की खेती पर असर तो पड़ेगा ही, आम और लीची के पेड़ों में बौर भी देर से आएगा, जिससे उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।"
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ग्रामीण कृषि मौसम सेवा भू-भौतिकी विभाग के नोडल अधिकारी प्रो. रविशंकर सिंह कहते हैं, "पश्चिम विक्षोभ के चलते मौसम का मिजाज बदला है। इस समय दक्षिण-पूर्व हवाएं चल रही हैं। आने वाले दिनों में अभी ऐसा ही मौसम रहने की संभावना है। बारिश का दौर 05 दिसंबर 2023 तक जारी रहने का अंदेशा है। बारिश के कारण वातावरण 92 फीसदी आद्रता हो गई है। पूर्वांचल के ज़्यादातर इलाकों में सुबह और शाम कोहरे की चादर देखने को मिल रही है। शीतलहर चलने से ठिठुरन बढ़ रही है। आजमगढ़, चंदौली, फतेहपुर, गाजीपुर, कानपुर, जौनपुर, लखनऊ, मऊ, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, रायबरेली, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, वाराणसी, आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, हमीरपुर, आगरा, जालौन, झांसी, ललितपुर और महोबा में बारिश रिकॉर्ड की गई है।"
लखनऊ के मौसम विभाग के मुताबिक, राज्य के 25 शहरों में 24 घंटे में 1.1 मिली. बारिश रिकॉर्ड की गई। शनिवार के लिए भी मौसम विभाग ने 12 शहरों में हल्की बारिश की संभावना जताई है। बारिश का दौर 5 दिसंबर तक जारी रहेगा। इस दौरान पश्चिमी यूपी के 15 जिलों में घना कोहरा छाया रहेगा। 24 घंटे में सबसे ठंडा शहर अयोध्या रहा। वहां रात का न्यूनतम तापमान 11.5°C दर्ज किया गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, मुरादाबाद, बदायूं, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, सीतापुर और बाराबंकी में घना कोहरा छाने का येलो अलर्ट जारी किया गया है। कानपुर नगर, कानपुर देहात, लखनऊ, चित्रकूट, मिर्जापुर, प्रयागराज, औरैया, सोनभद्र, वाराणसी, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा में बारिश की संभावना है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के मौसम वैज्ञानिक प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, "यह साल अलनीनो का है। इसके चलते समुद्र का तापमान बढ़ जाता है। इसका असर पूरे विश्व में पड़ सकता है। इस बार पूरी पृथ्वी के लिए दिसंबर गर्म साबित हो सकता है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में आए दिन नए-नए विक्षोभ बन रहे हैं। दिसंबर में ये जो बारिश और ओलावृष्टि हो रही है, ये पश्चिमी विक्षोभ की वजह से हो रही है। एक तरह से तो ये एक सामान्य घटना है। लेकिन इसका संबंध कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन से भी है, क्योंकि बीती सर्दियों में 15 से 20 दिनों तक भीषण ठंड का समय आया, वो भी बहुत सालों के बाद आया था। आमतौर पर जब कई बार पश्चिमी विक्षोभ आता है तो मानसून में देरी की आशंका पैदा होती है।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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