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यूपी: “जान दे देंगे, ज़मीन नहीं”, आज़मगढ़ के अंडिया बाग़ में भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ डटे किसान!

“हमारी ज़मीन की क़ीमत चाहे जितनी भी लगाई जाए, हम कतई नहीं बेचेंगे। अपनी ज़मीन को बचाने के लिए हम जीवन भर लड़ाई लड़ सकते हैं।”
Azamgarh Farmers' Protest

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में सरकार के भूमि अधिग्रहण के फरमान से किसानों और मज़दूरों की रातों की नींद और दिन का सुकून छिन सा गया है। खिरिया बाग के बाद अंडिया बाग में महिलाएं और बच्चे एक महीने से अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं। अंडिया बाग आंदोलन में भी महिलाएं बढ़-चढ़कर शामिल हैं। योगी सरकार ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे बसी, किसानों की भूमि को भारी उद्योग, टाउनशिप, सड़क आदि के लिए अधिग्रहण करने की योजना बनाई है। भूमि अधिग्रहण के लिए हुए सर्वे के विरोध में अंडिया इलाके के किसान गुस्से में हैं। इनके आंदोलन के चलते फिलहाल सर्वे का काम रुक गया है। भीषण गर्मी और हरहराती लू के बावजूद 29 अप्रैल 2023 को अंडिया बाग में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे, किसान मज़दूर पंचायत में पहुंचे दर्जनों गांव के किसानों और किसान नेताओं ने हुंकार भरी। किसान नेताओं की ओर से पंचायत में ऐलान किया गया, "जान दे देंगे, लेकिन ज़मीन नहीं देंगे।"

आज़मगढ़ ज़िले के सुमाडीह, खुरचंदा, बखरिया, सुलेमापुर, अंडीका, छजोपट्टी व सुल्तानपुर के कलवारीबाग, भेलारा, बरामदपुर, सजमापुर के किसान अंडिया बाग में आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना चुके हैं। सुबह का काम निपटाकर औरतें हर रोज़ धरना स्थल पर पहुंच जाती हैं और नारेबाज़ी करती हैं। आंदोलनरत औरतें बताती हैं कि "मुआवज़े के पैसे से ज़िंदगी नहीं कट सकती। सरकार हमारे हाथ में कटोरा थमा देगी।" धरना स्थल पर मौजूद 60 वर्षीया खरपत्ती देवी आरोप लगाती हैं कि उनकी ज़मीनों को लूटने की गहरी साज़िश चल रही हैं। वह कहती हैं, "हमारी धरती, गांव की अमानत है। हम योगी सरकार के झांसे में आने वाले नहीं हैं। हम धरती को नहीं बेचेंगे। बच्चों की ज़िम्मेदारी, घर-बार और खेतों का काम अकेले ही संभव है। ज़मीनें छिन जाएंगी तो किसके भरोसे ज़िंदा रहेंगे? सरकार रुपये देगी और वो खर्च हो जाएंगे। फिर हम न घर की रहेंगी, न घाट की। हम अपनी ज़मीन नहीं देंगे। यदि ज़मीन दे देंगे तो खेती कहां करेंगे?"


खौफजदां हैं किसान!

आज़मगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे अंडिया बाग में कई परिवारों की कहानी यही है। दरअसल आंदोलनरत किसानों में खौफ यूं ही नहीं है। करीब दो महीने पहले राजस्व विभाग के नुमाइंदे भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की ज़मीनों के अधिग्रहण के लिए आए और कोई जानकारी दिए बगैर ही सर्वेक्षण शुरू कर दिया। आरोप है कि भयभीत किसान फूलपुर के एसडीएम के पास पहुंचे तो उन्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। उत्तर प्रदेश किसानों की जिस ज़मीन को सरकार अधिग्रहीत करना चाहती है उसमें मुख्य रूप से आज़मगढ़ के सुमाडीह, खुरचंदा, बखरिया, सुलेमापुर, अंडिया और छजोपट्टी गांव शामिल हैं। आंदोलित महिला किसान कौशल्या और विद्या कहती हैं, "पहले पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के नाम पर हमारी उपजाऊ ज़मीनें ले ली गईं और सदियों से एक-दूसरे गांवों के बीच रह रहे लोगों को बांटते हुए दीवार खड़ी कर दी गई। अंडिया इलाके के खेतों में सिर्फ धान-गेहूं ही नहीं, हर तरह की फसलें उगाई जाती हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे फैक्टरियां लगाई गईं तो हमारी ज़मीनें बंजर हो जाएंगी।"

अंडियाबाग में रोज़ाना तख्ती लेकर धरने पर बैठने वाली महिला किसान मेवाती कहती हैं, "हम अपनी पीढ़ियों को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। हमारी धरती हमारे गांव की अमानत है। हमारी ज़मीन की कीमत चाहे जितनी भी लगाई जाए, हम कतई नहीं बेचेंगे। अपनी ज़मीनों को बचाने के लिए हम जीवन भर लड़ाई लड़ सकते हैं। सरकार हमारी ज़मीन ले लेगी तो हमारे बच्चे कहां जाएंगे और क्या खाएंगे? अंडिया इलाके के किसान अब अपने साथ हो रहे फरेब को समझ रहे हैं। हम सरकार और पूंजीपतियों की झूठी-सच्ची बातों में आ गए तो तबाह हो जाएंगे। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे में ज़मीनें खोने के बाद हमें साफ़-साफ़ दिख रहा है कि हमला सीधे किसानों पर हो रहा है।"

वादा करने के बाद भी नहीं दी नौकरी?

आज़मगढ़ के खिरिया बाग में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर 670 एकड़ ज़मीन के अधिग्रहण के विरोध में इलाके के किसान अक्टूबर 2022 से आंदोलनरत हैं। आज़मगढ़ के किसानों को लगता है कि विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण और विस्थापन की प्रक्रिया के तार यूपी के ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट से जुड़े हैं, जिसमें करीब 33.50 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव मिला है। कथित औद्योगिक क्रांति के निशाने पर गांवों की वे ज़मीनें हैं जो पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे हैं। अंडिया बाग में आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान नेता वीरेंद्र सिंह कहते है, "पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के लिए ज़मीनों के अधिग्रहण के समय किसानों को भरोसा दिलाया गया था कि उनके बच्चों को नौकरी दी जाएगी। जिन बकरियों को पाल-पोस कर वे चार पैसा कमा लेते थे, आज वे एक्सप्रेस-वे के कटीले तारों को पार कर जाती हैं तो एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी वाले उन्हें उठा ले जाते हैं। किसानों से अवैध उगाही भी की जाती है। यूपीसीडा (उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने ग्राम सभाओं की ज़मीनों पर औद्योगिक क्षेत्र बनाने के लिए पहले चरण में करीब 30 हज़ार एकड़ ज़मीन लेने की बात कही है। सरकार हमारी ज़मीनें छीन लेगी तो किसान अपने मवेशी कहां चराएंगे? घूर-गड्ढा नहीं रहेगा तो कूड़ा-कचरा कहां फेका जाएगा? खेल के मैदान नहीं रहेंगे तो बच्चे कहां खेलेंगे?"

पूर्वांचल किसान यूनियन के महासचिव वीरेंद्र यह भी कहते हैं, "भूमि अधिग्रहण का सबसे अधिक दुष्प्रभाव दलितों और अति पिछड़ी जातियों पर पड़ेगा। खासतौर पर उन पर जो भूमिहीन हैं अथवा जिनके पास थोड़ी सी ज़मीनें बची हैं। देश में करोड़ों लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं जिन्होंने अपनी ज़मीन विकास परियोजनाओं को दे दी और खुद सड़कों पर बंजारे की ज़िंदगी जी रहे हैं। योगी सरकार अगर सचमुच दलितों और आदिवासियों की हितैषी है तो भूमि के अधिकार से वंचित लोगों को आबादी के आधार पर ज़मीन का अधिकार दे।"

आपको बता दें कि अंडिया गांव आज़मगढ़ ज़िले के फूलपुर इलाके का एक छोटा सा गांव है, जो पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे बसा है। यहां एक महीने से अधिक समय से भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया जा रहा है। 29 अप्रैल 2023 को पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे अंडिया बाग में हुई किसान-मज़दूर पंचायत में दर्जनों गांवों के लोग पहुंचे। जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय, पूर्वांचल किसान यूनियन, जनवादी किसान सभा, सावित्रीबाई फुले बाल पंचायत, और सोशलिस्ट किसान सभा ने संयुक्त रूप से पंचायत बुलाई थी।

"ज़मीन का सवाल, जीवन का सवाल"

आंदोलित किसानों को संबोधित करते हुए जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय की अरुंधती धुरू ने कहा, "ज़मीन का सवाल जीवन का सवाल है। आज़मगढ़ में चल रहे अंडिया बाग और खिरिया बाग आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी ज़मीन की लड़ाई जीतने का ऐलान है। इन आंदोलनों का असर पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा। इलाके के किसान कई बार से भाजपा को खुलकर वोट देते आ रहे हैं। अबकी बार वह सरकार के ख़िलाफ़ भी वोट दे सकते हैं। यह आंदोलन गांव-गांव में मजबूत हो गया है। लोग अब खेती-किसानों के मुद्दे पर बात कर रहे हैं। किसानों को लग रहा है कि उनकी धरती मां पर हमला हो रहा है। किसानों को जो समझना था, अब समझ में आ गया है। किसान अब अपनी ज़मीनों को बचाने के लिए हर तरह की लड़ाई लड़ेगा। यह आंदोलन धर्म और जाति से बहुत ऊपर हो गया है। यहां न कोई हिंदू है, न ही मुसलमान। सब किसान हैं। किसान अब अपनी आवाज़ उठाना सीख गया है। अब जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी, यह आंदोलन चलता रहेगा।"

किसान मज़दूर पंचायत में संदीप पांडेय 

किसान-मज़दूर पंचायत में पहुंचे मैग्सेसे अवार्डी डा. संदीप पांडेय ने कहा, "विकास वह नहीं होता जो विनाश करे। औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर जिन ज़मीनों को सरकार छीन रही है, उससे देश और समाज का भला होने वाला नहीं है। ये ज़मीनें जितनी रोज़गार दे रही हैं, उतना कोई कारखाना नहीं देगा। ये फैक्ट्रियां सिर्फ गावों को उजाड़ेंगी ही नहीं, खेती-किसानी करने वालों के सामने दिक्कतें खड़ी करेंगी। भूगर्भ से जब जल दोहन होगा तो जल स्तर नीचे जाएगा। किसानों ने कोल्ड ड्रिंक्स की कई कंपनियों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी तो वह बंद हो गईं। हमारे पास पेट्रोल-डीजल का भंडार सीमित है। जब पेट्रोलियम पदार्थ खत्म हो जाएंगे तो पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे समेत देश के तमाम एक्सप्रेस-वे बिना काम के हो जाएंगे। ज़मीन नहीं रहेगी तो अनाज क्या फैक्ट्रियों में बनेगा।"

अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा के अध्यक्ष राम कैलाश कुशवाहा ने हुंकार भरते हुए कहा, "किसानों और मज़दूरों की ज़मीनें छीनकर उन्हें बर्बाद करने की नीति को उत्तर प्रदेश सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है। ज़मीनों को लूटकर कारपोरेट को मालामाल किया जा रहा है। आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है। शिक्षा और चिकित्सा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को सरकार पूरा नहीं कर पा रही है और विकास के नाम पर जो बची खुची ज़मीनें हैं उनको छीनने की कोशिश की जा रही है।"

महिला अधिकार कार्यकर्ता ऋतु ने कहा, "सरकार की जन-विरोधी नीतियों के चलते लहकती लू और तल्ख धूप में बूढ़ी दादी-नानी को अंडिया बाग में बैठना पड़ रहा है। आपके संघर्ष के आगे सरकार को झुकना होगा और आपकी ज़मीन आपकी ही रहेगी।"

"किसानी-जवानी बचाने की लड़ाई"

आज़मगढ़ के खिरिया बाग में किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान नेता राजीव यादव ने सरकार को आर-पार की लड़ाई का अल्टीमेटम देते हुए कहा, "किसानों की लड़ाई खेती-किसानी और जवानी बचाने की लड़ाई है। पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे तक के गांव खतरे में हैं। ज़मीन लूटने की यह साज़िश कोरोना महामारी से कम नहीं, इसने किसानों और मज़दूरों की रातों की नींद, दिन का सुकून छीन लिया है। सरकार यह मुगालता छोड़ दे कि जिस तरीके से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के लिए ज़मीनें ले ली उसी तरह से औद्योगिक पार्क और क्षेत्र के नाम पर ज़मीन ले लेगी। सरकार को याद रखना चाहिए कि देश के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद पूरे देश के किसान संगठन एकजुट हैं। उद्योग के नाम पर रोज़गार का छलावा देना छोड़ दे। एक भी आदमी को, एक्सप्रेस-वे, रोज़गार नहीं दे सका। ऊपर से जिन खेतों खलिहानों में उनके बाप-दादा ने ज़िंदगी गुज़ारी उस एक्सप्रेस-वे से आने-जाने पर उन्हें रुपये देने पड़ते हैं। आखिर यह कौन सा विकास है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे रहने वाले किसान-मज़दूर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर सरकार किसानों को कितनी मर्तबा ठगेगी?"

किसानों की मांग उठाते किसान नेता राजीव यादव

किसान मज़दूर पंचायत में खिरिया बाग से आईं किस्मती, नीलम, मीना, सामाजिक न्याय मंच के राजेंद्र यादव, सुंदर मौर्या, पूर्वांचल किसान यूनियन के ज़िला अध्यक्ष प्रेम चंद्र, रविंद्र यादव, निशांत राज, जयप्रकाश, सुनील पंडित, रामाश्रय पाल, नंदलाल यादव, विजय यादव, रामचंद्र यादव, सीताराम यादव, अहद, जगतगुरु ने भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई पर कड़ा एतराज़ जताते हुए सवाल उठाया, "जब फूलपुर एसडीएम को मालूम नहीं कि कोई सर्वे हुआ तो ऐसे में गैरकानूनी सर्वे करने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर किसानों की ज़मीन छीनने वाली परियोजना को रद्द करने का लिखित शासनादेश दिया जाए। किसी भी परियोजना के लिए सर्वे करने से पहले प्रशासन गांव वालों से वार्ता कर सहमति ले, क्योंकि इस तरह से औचक सर्वे या अखबारों में ज़मीन लेने की खबरों से ग्रामीण सदमे में चले जा रहे हैं। पूर्वांचल एक्स्प्रेस वे में बहुत से किसानों की गईं ज़मीनों का अब तक मुआवज़ा नहीं मिला है, उन्हें तत्काल मुआवज़ा दिया जाए। ग्राम सभा की जिन ज़मीनों का अधिग्रहण किया गया, उनका मुआवज़ा दिया जाए, ताकि उक्त धन का इस्ताल ग्राम सभाएं अपने विकास में कर सकें।"

किसान-मज़दूर पंचायत में मांग उठाई गई कि पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे औद्योगिक क्षेत्र अथवा पार्क के नाम पर किए गए सर्वे को रद्द किया जाए, क्योंकि अन्नदाता अपनी ज़मीन और मकान नहीं देंगे। इसके अलावा पंचायत में कहा गया कि "पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे बसे आज़मगढ़ और सुल्तानपुर के हर गांव में किसान, संवाद यात्रा करेंगे और डबल इंजन की सरकार की दोषपूर्ण नीतियों का प्रतिरोध करते हुए किसानों पर हो रहे ज़ुल्म और ज़्यादती के ख़िलाफ़ कड़ा प्रतिरोध किया जाएगा। साथ ही भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ पूर्वांचल के पीड़ित किसानों को लामबंद किया जाएगा।"

बनारस के किसान नेता राजेंद्र चौधरी न्यूज़क्लिक के लिए कहते हैं, "आज़मगढ़ के एक छोटे से अंडिया गांव से उठा महिलाओं का प्रतिरोध मामूली नहीं है। यह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। संभव है कि विरोध की चिंगारी आसपास के इलाकों में फैले और सरकार को उसका खामियाज़ा भुगतना पड़े। सरकार और पूंजीपतियों के दमन के ख़िलाफ़ जन-आंदोलनों की शुरुआत ऐसे ही छोटे प्रतिरोध के स्वरों से होती है। मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि वो किसानों की सुध ले और इस मसले को जल्द से जल्द सुलझाएं।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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