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EXCLUSIVE: पूर्वांचल में भीषण गर्मी और लू में सेब की खेती ने खोला तरक़्क़ी का नया गलियारा, कई प्रगतिशील बागवान बने आईकन !

"जब हमने सेब के बगान लगाए तो लोगों ने हमारा ख़ूब उपहास उड़ाया था। हमने कोशिश जारी रखी और लहकती गर्मी में हमें सफलता मिली। जो लोग हमारा माखौल उड़ाया करते थे, वो अब हमारी सफलता की कहानियां सुनाते हैं।"
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47 वर्षीय राधेश्याम सिंह पटेल ने अपने खेतों में हमेशा धान-गेहूं की खेती की थी। कोविड के दौर में उन्हें सफलता का मंत्र मिला। कुछ बरस पहले उन्होंने चावल का रकबा घटाकर सेब की बागवानी की ओर रुख किया। सरकार का मुंह नहीं देखा। पक्के इरादे के साथ कड़ी मेहनत की। भीषण गर्मी के बावजूद सेब के बागों से खासी कमाई की। राधेश्याम बनारस के सेवापुरी प्रखंड के उस भटपुरवां गांव (करधना) के किसान हैं, जिस इलाके में चावल प्रायः सभी घरों की रसोई का एक प्रमुख हिस्सा होता है।

किसान राधेश्याम कहते हैं, "अब हम ज्यादा खुश हैं। हमने धान-गेहूं की पारंपरिक खेती से ध्यान हटाकर सेब की खेती की ओर रुख किया है। अपनी 15 बिस्वा जमीन में सघन बागवानी पद्धति से सेब के पांच सौ पौधों को रोपा और दो साल में ही पेड़ों पर फल आने लगे। गर्मियों में जब बनारस में लू के थपेड़े चलते हैं तब भी हमारे खेतों में सेब के फल लहलहाते हैं। अभी हमारे बगान में सेब के पेड़ छोटे हैं। उम्मीद है कि अगले साल उनमें ज्यादा फल लगेंगे, जिससे अधिक मुनाफा होगा। सेब के बगान लगाने पर हमने जितना धन खर्च किया है अब उसकी भरपाई हो जाएगी। हम खेतों में पहले सिर्फ धान-गेहूं लगाया करते थे। कोरोना काल के बाद धान के बजाय हमने बागवानी की ओर रुख किया। सेब के साथ हमें गेंदे के फूल से मुनाफे की उम्मीद ज्यादा है।"

राधेश्याम सिंह पटेल

राधेश्याम सिंह पटेल ने अपने खेत में सेब की हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति लगाई है, जिसकी कल्पना सबसे पहले हिमाचल के किसान हरिमन शर्मा ने की थी। सेब की यह प्रजाति उस समय फल देती है जब भीषण गर्मी में लू के थपेड़े चलते हैं। पूर्वांचल में मई और जून महीने में तापमान आमतौर पर 43 से 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और सर्दियों में 27 डिग्री के निशान को पार नहीं करता है। इस इलाके में बारिश भी बहुत कम होती है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में, राधेश्याम और उनके भाई संजय सिंह पटेल सेब उगाने में सक्षम हो गए हैं। उनके खेत में आने वाले लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते हैं।

राधेश्याम कहते हैं, "जब से लोगों को पता चला है कि मेरे खेत में सेब उग रहे हैं तो मेरे यहां आने वालों का तांता लग रहा है। हमने विपरीत सीजन में सेब की खेती का इरादा तब बनाया जब मेरे भाई संजय ने हमें यू-ट्यूब पर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर (पनियाला) के बागवान हरिमन शर्मा की सफलता की फिल्म दिखाई। उसी दिन हमने फैसला किया कि बनारस में हम भी सेब का बगान लगाएंगे। हमने कोशिश की और कामयाबी भी हासिल की। हमारी सफलता को शिखर पर पहुंचाने का श्रेय हरिमन शर्मा को जाता है, जिन्होंने ऑटोमोबाइल मैकेनिक की नौकरी छोड़कर देश में सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए मुहिम शुरू की है। एक नवोन्मेषी किसान होने के नाते मैं समझ सकता था कि यह पूर्वांचल में सेब की खेती एक असाधारण घटना थी।"

"हरिमन शर्मा की तरह हमने भी दृढ़ता से काम किया और उनसे संपर्क कर बिलासपुर से सेब के करीब 50 पौधे मंगाए। पहले हम सेब की खेती की तकनीक से अनजान थे। पौधों में फल नहीं लगे तो हमने उन्हें उखाड़ फेका, लेकिन सेब उगाने के लिए दिल मचलता रहा। साल 2020 में फिर हमने हिम्मत बांधी और हरिमन शर्मा की नर्सरी से हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति के सेब के पांच सौ पौधे मंगाए। सघन बागवानी पद्धति से उन्हें रोपा, पालन-पोषण किया और उसे बढ़ने दिया। दूसरे साल ही सेब के पेड़ों में फल आने लगे। हलांकि फलों का आकार ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन इस साल पेड़ों पर बड़ी तादाद में सेब के रसीले फल लगे। मई महीने में हमने 150 रुपये प्रति किलो की दर से सेब की बिक्री की। हमारे बगान के फलों की गुणवत्ता काफी उम्दा है। तीन साल की रोपाई के बाद सेब के पेड़ों पर फल लगने लगते हैं। यह प्रजाति मई-जून में हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाती है। हमने देखा है कि भीषण गर्मी में भी सेब के सात साल पुराने पौधे से औसत एक क्विंटल तक उपज होती है।"

हरिमन शर्मा

मजाक उड़ाने वाले करते हैं गर्व

कृषि विषय से पढ़ाई कर चुके चार भाइयों में सबसे बड़े राधेश्याम सिंह पटेल ‘न्यूजक्लिक’ से बातचीत में कहते हैं, "बिहार के कृषि विश्वविद्यालय से एमएससी करने वाले हमारे अनुज संजय पटेल ने बताया था कि बनारस में भी सेब की खेती की जा सकती है। पहले, किसी को भी विश्वास नहीं होता था कि शिमला और कश्मीर में पैदा होने वाला सेब पूर्वांचल के मैदानी इलाकों में आसानी से उगने लगेंगे। जब हमने सेब के बगान लगाए तो लोगों ने हमारा खूब उपहास उड़ाया था। किसी की बातों की परवाह किए बिना हमने कोशिश जारी रखी और लहकती गर्मी में हमें सफलता मिल गई। जो लोग पहले हमारा माखौल उड़ाया करते थे, वो अब हमारी सफलता की कहानियां सुनाते हैं। कृषि से बागवानी की ओर रुख करने के पीछे की वजह यह है कि धान की तुलना में सेब से ज्यादा रिटर्न मिल सकता है। धान की अपेक्षा इसकी खेती आसान है। सरकार हमें प्रोत्सान दे तो पूर्वांचल के हर किसान के खेतों में सेब के बगान लहलहाएंगे और आमदनी दोगुनी हो जाएगी।"

सेब उत्पादक किसान राधेश्याम के छोटे भाई संजय सिंह पटेल बिहार के कृषि विश्वविद्यालय से एमएससी करने के बाद एक राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रबंधक हैं। वह कहते हैं, "सेब की हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति से 40 से 46 डिग्री तापमान में भी अच्छा उत्पादन हासिल किया जा सकता है। शुरू में सेब के बाग की हमें रखवाली करनी पड़ी और फलों को पक्षियों से बचाने के लिए नेट से घेरना पड़ा। स्वाद के मामले में हमारे बाग के सेब कश्मीर के सेब से तनिक भी कमतर नहीं हैं। स्वाद हलका खट्टा-मीठा और छिलका बहुत पतला होता है। हर पेड़ से करीब 12 से 20 किलो तक तीस-पैतीस साल तक सेब का उत्पादन किया जा सकता है।"

बनारस के जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार कहते हैं, "बनारस में सेब की खेती असंभव मानी जाती थी, लेकिन सेवापुरी ब्लॉक के किसान भाइयों ने वह कमाल कर दिखाया, जिस पर किसी को भरोसा नहीं था। पीएम नरेंद्र मोदी ने जब जयापुर गांव को गोद लिया था तब उन्होंने सेब की हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति के पौधे उस गांव के किसानों के लिए भेजवाए थे। सेब के पौधे हवाई जहाज से मंगवाए गए थे, लेकिन देख-रेख के अभाव में उनमें फल नहीं निकले। हम चाहते हैं कि बनारस में सेब उगाने का प्रधानमंत्री का सपना साकार हो। सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है। किसानों को अनुदान देने के लिए शासन के पास जल्द ही प्रस्ताव भेजा जाएगा।"

बीटेक के बाद शुरू की सेब की खेती

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में सेब की खेती करने वाले राधेश्याम का कुनबा इकलौता नहीं है। इसकी खेती की ओर कई किसान उन्मुख हुए हैं। बनारस से सटे गाजीपुर के किसान सुनील कुशवाहा ने भी सेब का बगीचा लगाया है, जिसमें उन्होंने करीब 222 पौधे रोपे हैं। सुनील के फार्म हाउस पर लगे सेब के पौधों से फल आने लगे हैं। इनके बगान में भी सेब की हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजातियां लगी हैं। सुनील ‘न्यूजक्लिक’ से कहते हैं, "एन एपल ए डे कीप्स द डॉक्टर अवे, इस अंग्रेजी कहावत का मतलब है कि हर रोज सेब खाकर आप बीमारी और डॉक्टर दोनों को दूर रख सकते हैं। इस सोच के तहत हमने सेब का बगान लगाने की सोची। जिस समय हमने सेब के पौधे मंगवाए उस समय एक पौधे की कीमत 350 रुपये थी, जो अब घटकर अब सिर्फ 80 से 90 रुपये हो गई है। हम चाहते हैं कि पूर्वांचल के किसान गेहूं और धान की खेती छोड़कर सेब की खेती करें और मोटा मुनाफा कमाएं।"

सुनील कुशवाहा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद आर्गेनिक खेती में अपना करियर बनाने का इरादा बनाया था। गाजीपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से उन्होंने ऑर्गेनिक खेती में औपचारिक ट्रेनिंग ली और मध्य प्रदेश के सुभाष पालेकर के सानिध्य में ऑर्गेनिक खेती के गुर सीखे। वह कहते हैं, "सेब की खेती से हम काफी उत्साहित हैं और उम्मीद है कि अगले साल हमें हर पेड़ से 70 और 100 किलो सेब मिलेंगे। गर्मियों में सेब की कीमत 200 रुपये किलो तक पहुंच जाती है। विपरीत सीजन में सेब बेचकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है। पहले हम सेब की खेती प्रयोग के तौर पर कर रहे थे, लेकिन अब हम इसे विस्तार देंगे। पूर्वांचल के किसानों को हमने सेब की खेती के लिए मुफ्त ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। हम बैर पौधों पर सेब की ग्राफिंग करके पौध तैयार करने की तकनीक विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। महाराष्ट्र के कुछ किसानों ने बेर पर सेब की ग्राफ्टिंग कर पौधा तैयार करना शुरू कर दिया है।

डी-फार्मा के बाद मिली मंजिल

बाराबंकी के प्रयोगधर्मी किसान उत्तम वर्मा ने भी सेब की खेती में सफलता का झंडा गाड़ दिया है। रामनगर इलाके के कबीरपुर गांव के प्रगतिशील किसान उत्तम ने साल 2009 में डी-फार्मा की पढ़ाई पूरी की थी। सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने तरबूजा, खरबूजा और स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। इसी बीच सेब का बगान लगाने का विचार आया और तीन बीघा में पौधे रोप दिए। इनके बागों भी हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति के पौधे लगे हैं।

उत्तम वर्मा कहते हैं, "सेब शीतोष्ण जलवायु वाला फल होता है। इसके पौधों की ग्रोथ ठंडे इलाकों में होती है। खासतौर वहां, जहां की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 4800 से 9000 फीट हो। हरिमन-99 (HRMN-99) के पौधों में मार्च और अप्रैल महीने में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। सेब की खेती के लिए 100 से 150 सेंटीमीटर बारिश की जरूरत पड़ती है, लेकिन हरिमन-99 (HRMN-99) वैरायटी 40 से 45 डिग्री तापमान में भी लहलहाती है। हमारे सेब के बगान में दो सालों से फल निकल रहे हैं, जिसे देखने के लिए आसपास के जिलों के किसान आ रहे हैं।"

हरिमन-99 सेब का बगान

कोविड में मिला कामयाबी का मंत्र

कोविड काल में जब लोगों की रोजी-रोटी का जरिया छिनने लगा और रोजगार के लिए लोग दर-दर भटकने लगे तब प्रयागराज के रुद्र प्रताप सिंह ने अपनी सेब उत्पादन में अपने भविष्य की तलाश की। इलाहाबादी अमरूद के लिए मशहूर प्रयागराज में रामपुर के रुद्र प्रताप ने सेब की खेती शुरू करने की ठानी। इनके परिवार में माता-पिता के अलावा पत्नी, दो बेटा और एक बेटी हैं। परिवार बड़ा था और खेती से काम नहीं चल रहा था। साल 2001 में वो ड्राइवरी की नौकरी करने पानीपत चले गए। बाद में उनकी कंपनी मुंबई शिफ्ट हुई तो वह अपने घर लौट आए। इसी बीच प्रयोग के तौर पर उन्होंने अपने खेत में सेब के बीस पौधे रोपे, जिनमें एक साल में ही फूल निकले और फल भी।

रुद्र प्रताप कहते हैं, "सेब के छोटे से पौधे में फूल और फल आए तो हम काफी रोमांचित हुए। फिर जनवरी 2020 में 150 पौधे और मंगवाए और बगान लगा दिया। कुछ दिन देख-रेख करने के बाद नौकरी करने मुंबई चले गए। कोविड का दौर आया तो फिर घर लौट आए। अब हमारे बगान में सेब के पेड़ लहलहा रहे हैं। सेब की खेती ने हमें सफलता का नया मंत्र दिया है और तरक्की का गलियारा भी खोला है। सेब के बगान को देखकर जो लोग हमारा मजाक उड़ाया करते थे, वो हमसे इसकी खेती की तकनीक सीखने आ रहे हैं।"

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी कुछ किसानों ने सेब की बागवानी से मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। इनमें एक हैं तीतरो गांव के बागवान राजकुमार चौधरी और दूसरे नानौता के शहंशाह आलम। दोनों ने सेब का बगान लगाकर एक नए अध्याय की शुरूआत की है। राजकुमार चौधरी ने दो वर्ष पहले सात बीघे में अन्ना और हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति के सेब रोपे। दूसरे साल में ही इन्हें सभी पौधों से 30 से 40 फल मिले। फलों का वजन करीब 150 ग्राम था। सहारनपुर के बागवान शहंशाह आलम ने सेब के 200 पौधे लगाए थे और तीसरे साल उनमें फल आने लगे। राजकुमार कहते हैं, "उम्मीद है कि आठ-दस सालों में सभी पेड़ों से हमें 30 से 40 किलो तक सेब मिलेंगे। हमारा प्रयोग सफल रहा तो सेब की बगवानी आम और लीची की अपेक्षा अच्छा विकल्प साबित होगी।

क्या कहते हैं हरिमन शर्मा

सेब की जिस प्रजाति हरिमन-99 (HRMN-99) ने हरहराती लू और गर्मी में किसानों को आर्थिक संबल दिया है वह सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बिहार, हरियाणा, तेलंगाना, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र के अलावा मणिपुर, नगालैंड आदि राज्यों में सफलतापूर्वक उगाई जा रही है। इसे विकसित करने वाले बागवान हरिमन शर्मा से ‘न्यूजक्लिक’ ने बात की तो उन्होंने कहा, "हिमाचल प्रदेश का बिलासपुर ऐसा इलाका है जहां गर्मी के दिनों में तापमान 46 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। पिछले एक दशक में देश के 29 राज्यों में हरिमन-99 (HRMN-99) वैराइटी के लाखों पौधे लगाए जा चुके हैं। यह प्रजाति हमने साल 1999 में विकसित की थी। साल 2003 में इसके पौधों पर पहली बार जब सेब आए तो वे आकार में छोटे और कम गुणवत्ता वाले थे।"

"हमने थोड़ा प्रयोग किया, जिसका नतीजा यह रहा कि साल 2006 में पौधों पर जो फल लगे उनका आकार, रंग और स्वाद बिल्कुल अलग था। फलों की साइज भी अच्छी थी और उनमें सुगंध भी थी। पहाड़ी इलाकों में सेब के पौधों पर आमतौर पर अप्रैल में फूल आता है और सितंबर में उस पर फल पकने लगते हैं। हरिमन-99 (HRMN-99) के पौधे फरवरी में फूलते हैं और 15 मई से 30 जून के बीच फल पक जाते हैं। जिस समय बाजार में सेब का ताजा फल नहीं होता, तब हरिमन-99 अपना जलवा बिखेरता है।"

हरिमन शर्मा यह भी बताते हैं, "हरिमन-99 (HRMN-99) को रोपने के तीसरे साल पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं और 10 से 12 साल के हर परिपक्व पौधे से एक कुंतल सेब निकलने लगता है। साल 2014 में हमने दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन के उद्यान में सेब का पौधा रोपा था, जिसमें सेब फल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, उत्तराखंड के हल्द्वानी, मध्यप्रदेश के सिहौर, हरियाणा के सिरसा, कर्नाटक के बेलगांव बेंगलुरू, तेलंगाना के हैदराबाद और विशाखापट्टनम में हरिमन-99 (HRMN-99) के पौधों से किसान बंपर कमाई कर रहे हैं। हमारी प्रजाति के पौधों के लिए अब बांग्लादेश, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया और जर्मनी जैसे देशों में खरीदार मिल गए हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि अधिक से अधिक किसान इसे उगाएंगे। यह किस्म तमाम बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है। कुछ दिनों पहले मैं मणिपुर में था, जहां 202 किसानों के एक समूह ने 30,000 से अधिक हरिमन-99 के पौधे लगाए।"

गर्मी वाली सेब की कई प्रजातियां

सेब पर रिसर्च करने वाले आईएचबीटी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, "उत्तर भारत के गर्म मैदानी इलाकों में हरिमन-99 के अलावा अन्ना, फूजी, सन फूजी और डोसर्ट गोल्डन प्रजातियां तेजी से पॉपुलर हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में पैदा होने वाले सेब को करीब एक हजार घंटे की ठंडक की जरूरत होती है, जबकि लो चिलिंग वैराइटी को सिर्फ 500 घंटे की ठंडक चाहिए। मैदानी इलाके में इस तरह की ठंडक सर्दी के मौसम में दिसंबर और जनवरी में मिल जाती है।"

"सेब के पौधे में बीमारियां जल्दी लगती हैं, इसलिए ज्यादा देखभाल की जरूरत पड़ती है। सेब के पौधे रोपने के लिए एक मीटर चौड़ा और एक मीटर गहरा गड्ढ़ा खोदना पड़ता है। आधा मीटर की खुदाई होने पर उस मिट्टी को अलग रखें और सबसे नीचे के आधा मीटर की मिट्टी को अलग। गड्ढ़े को भरने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से धूप दिखा दें। पौधों को उपचारित करने के बाद ही रोपित करें।"

मेरठ के मोदीपुरम स्थित ‘भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान’ के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र ने मैदानी इलाकों के लिए सेब की ‘अन्ना’ प्रजाति विकसित की है। वह कहते हैं, "अन्ना प्रजाति के पौधे से एक साल में ही फूल-फल आने लगता है। इसके पौधों की लंबाई आठ फीट से ज्यादा नहीं होती है। सघन बागवानी पद्धति से इसे लगाने पर मुनाफा ज्यादा होता है। मार्च में इसकी रोपाई करने के बाद गर्मियों के मौसम में हर महीने तीन से चार सिंचाई और सर्दियों में दो सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के दिनों में सेब के पौधों की खास देखभाल की ज़रूरत होती है।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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