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ग्राउंड रिपोर्ट : बनारस में किसानों के साथ आधी रात के बाद पुलिस की बर्बरता का पूरा सच

"मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले दर्जनों पुलिसकर्मी घर में घुस गए। उनमें से एक ने मुझे गालियां देते हुए लोहे की रॉड से मेरे हाथ पर वार कर दिया। पुलिसकर्मियों ने घर में तोड़फोड़ शुरू कर दी। ऐसा लगा जैसे मेरा दिल रुक जाएगा और मैं मर जाऊंगी।"
banaras protest

उत्तर प्रदेश के बनारस के बैरवन गांव में मरघटी सन्नाटा और रोती-बिलखती महिलाओं का करुण क्रंदन है। पिछले दो दिनों से चीत्कार मारकर विलाप कर रही महिलाओं ने पुलिसिया बर्बरता की जो कहानी सुनाई है वह दिल दहला देने वाली है। 16 मई 2023 की सुबह पुलिस और किसानों के बीच हुई तीखी झड़प के बाद सैकड़ों पुलिसकर्मी ने कई मर्तबा बैरवन पहुंचे और किसानों पर कहर बरपाया। खाकी वर्दीधारी जवानों ने तांडव मचाते हुए लोगों के घरों में न सिर्फ तोड़फोड़ की, बल्कि जमकर लूटपाट भी की। औरतों की इज्जत पर हाथ डाला गया। उनके आभूषण नोंच लिए गए। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की शिकार औरतें सदमे और ख़ौफ में हैं। बैरवन गांव की हवा में कड़वाहट घुली है और उस रात की बात करते हुए लोगों के चेहरे पर ख़ौफ़ साफ़ नज़र आता है।

आतंक के साये में जी रही बैरवन गांव महिलाओं में से एक सरिता देवी ने न्यूजक्लिक से कहा, "16 मई की रात करीब एक बजे पुलिस अफसरों के साथ सैकड़ों पुलिस वाले हमारी बस्ती में पहुंचे। वो अपने साथ हथौड़े के अलावा तमाम घातक औजर लेकर आए थे। उन्होंने समूचे बैरवन गांव को घेर लिया। अफसरों ने लूटमार की छूट दी तो पुलिस वालों ने नंगा नाच शुरू कर दिया। महिलाओं और बच्चों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। किसानों के घरों के दरवाजे तोड़े गए, औरतों के लाखों के आभूषण और कीमती सामन लूट लिए। जो महिलाएं अपने शरीर पर गहने पहनी हुई थीं, उसे भी बर्बरतापूर्वक लूट लिया गया। औरतों के कपड़े फाड़े गए और गुप्तांगों पर हमले किए। कुछ महिलाओं और बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ किया गया। अफसर भद्दी-भद्दी गालियां सुनाते रहे और पुलिसकर्मी महिलाओं व लड़कियों पर जुल्म ढाते रहे।"

पुलिस की लाठियों के हमले से अपने सूजे हुए हाथ को दिखाते हुए बैरवन की राधा देवी कहती हैं, " इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, दर्जनों पुलिसकर्मी घर में घुस गए। उनमें से एक ने मुझे गालियां देते हुए लोहे की रॉड से मेरे हाथ पर वार कर दिया। पुलिसकर्मियों ने घर में तोड़फोड़ शुरू कर दी। ऐसा लगा जैसे मेरा दिल रुक जाएगा और मैं मर जाऊंगी। मुझे अभी भी आतंक महसूस होता है। उस रात, ऐसा लगा कि हम पर अपराधियों के झुंड ने हमला किया है, पुलिस वालों ने नहीं। हमें मुआवजा नहीं चाहिए। हमने पुलिस से लड़ाई नहीं की। हम तो सिर्फ अपनी उस जमीन को बचाना चाहते हैं जो हमारी जिंदगी है। पुलिस के हमले से हमारा हाथ सूज गया है। जख्म भरने के लिए हल्दी लगा रखा है।"

imageपुलिस ने औरतों को घेर कर पीटा

पुलिसिया तांडव का इजहार करते हुए राधा की आंखों से आंसू छलक आए। उन्होंने कहा, "पुलिस ने हमें दौड़ा-दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। वह लगातार धमकी दे रही थी। हम तो सिर्फ खड़े थे। रात के समय जिस वक्त पुलिस ने हमारे गांव में धावा बोला था उस समय बैरवन के पुरुष पुलिस के खौफ के चलते गांव छोड़कर चले गए थे। अत्याचार करने पहुंचे खाकी वर्दीधारी जवानों के साथ कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थीं। मौके पर मौजूद अफसर खाकी वर्दी वालों को लूट-मार और दिन में हुई घटना का बदला लेने से लिए उकसा रहे थे। औरतों को घरों से खींच-खींचकर मारा-पीटा गया। नाजुक अंगों पर पर भी न जाने कितनी लाठियां बरसाई गईं। हम तो अब मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे। हम लोगों की इज्जत उतर चुकी है। हमारे अंदरूनी घावों को देखना चाहें तो हम दिखा सकते हैं। योगी सरकार की पुलिस ने हमारे साथ जो घिनौना कृत्य किया है उसका कलंक बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा और पुलिस कमिश्नर अशोक मुथा जैन के माथे पर चस्पा है जो अब मिटने वाला नहीं है। इन दोनों अफसरों के हमारे ऊपर जोर-जुल्म बरपवाया है।"

"योगी खुद को महंत होने का दावा करते हैं और उनकी पुलिस ने घर में रखे भगवान के मंदिर को तहस-नहस कर डाला। हम सबकी इज्जत उतार दी। हम तो बीजेपी के वोट थे। अगर योगी-मोदी सचमुच बेटियों की सुरक्षा करना चाहते हैं तो वो यहां आएं और हमारे शहर के जख्मों को देखें। योगी के राज में अब कानून से भरोसा उठ गया है। किसान तो बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं। सरकार हमारी जमीन छीन लेगी तो हमारे जीने के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे।"

"पुलिस और डकैतों में फर्क नहीं"

पुलिस की लाठियों से गंभीर रूप से जख्मी सुनीता देवी ने दर्द से कराहते हुए अपना दुखड़ा सुनाया। रूधे गले से सुनीता कहती हैं, "हम तो अपनी उस दस बिस्वा जमीन को बचाने के लिए अपने खेत पर पहुंचे थे, जिसका हमें अभी तक मुआवजा तक नहीं मिला है। उसी खेत से हमारा परिवार पल रहा है। वो खेत ही हमारी जिंदगी है। 16 मई की सुबह पुलिस ने हमारे खेतों में गड्ढा खोदना शुरू किया तो हमने विरोध किया। इस बीच पुलिस के एक जवान ने हमारे ऊपर ताबड़तोड़ लाठियों से हमला शुरू कर दिया। हम बेहोश हो गए। जब हमें होश आया तो देखा कि पुलिस ने दोबारा बस्ती में कहर बरपाना शुरू कर दिया है। जो जहां मिला, पुलिस ने सभी को बुरी तरह पीटा। चाहे बच्चे हों, बूढ़े हों या फिर महिलाएं। जिन लोगों का विवाद से कोई मतलब भी नहीं था, उन्हें भी दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। बस्ती के पुरुष पहले दिन ही गांव छोड़कर भाग गए थे। जिन घरों को पुलिस ने ढहाया है, वहां खाने-पीने का सामान तक सही-सलामत नहीं बचा है।"

imageपुलिस और किसानों के बीच विवाद

दूसरी ओहर, रोहनिया थाना पुलिस का आतंक अभी थमा नहीं है। किसानों की गिरफ्तारी के लिए आसपास के गांवों में दबिश दी जा रही है। ग्रामीणों को धमकाया जा रहा है। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती के शिकार 75 वर्षीय छेदीलाल पटेल को पुलिसिया तांडव की कहानी सुनाते हुए रो पड़ते हैं। पुलिस की टूटी हुई लाठियों को दिखाते हुए वह कहते हैं,  "ये वह लाठी है जिससे पुलिस वालों ने हमें अकारण पीटा। पुलिस की पिटाई से हम बेहोश हो गए तो लोग हमारा इलाज कराने के लिए कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में ले गए और वहां हमें भर्ती कराया। पुलिस ने सौ से अधिक अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है ताकि भविष्य में गांव वालों का उत्पीड़न कर सके। पुलिस ने नौ ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया है जिनके पास कोई न जमीन है, न खेत है, जिनका आंदोलन से कोई सरोकार भी नहीं है। लाठीचार्ज तो छोटी बात है। हमारे घरों में घुसकर पुलिस ने जिस तरह से महिलाओं की इज्जत के हाथ पर डाला है वह शर्मनाक है। सबके सामने पुलिस औरतों का चीरहरण करती रही और कोई कुछ नहीं कर पाया। किसानों के घरों के दरवाजे तोड़े गए और अपमानित किया गया।"

छेदीलाल यह भी कहते हैं, "हमारी जमीनों पर अवैध तरीके से किए जा रह कब्जे में पुलिस नाकाम हो गई तो उन्होंने हमारे घरों को घेर लिया और महिलाओं व लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार व मारपीट करने लगे। मौके पर कोई महिला पुलिस नहीं थी। 16 मई की रात में एक बजे तीसरी बार बैरवन गांव धमकी पुलिस घरों में घुसकर धमकी दे रही थी कि गवाही दोगे तो जान से मार दिया जाएगा। लगभग सभी घरों की तलाशी ली गई और मर्द लोगों को ढूंढा गया। पुलिस से आमना-सामने होने के बाद गांव के ज्यादातर लोग अपने बच्चों को लेकर घरों से भाग गए थे।"

दरअसल, तांडव पर उतारू पुलिस इस कदर हिंसक बन गई कि उन्होंने घरों के खिड़की-दरवाजे उखाड़ने और लूट-पाट करने शुरू कर दिए। हिंसा पर उतारू पुलिस ने सबसे पहले विरजू पटेल का दरवाजा तोड़ा और उनकी औरत व जवान बेटी पर लाठियां तोड़नी शुरू कर दी। दोनों को बुरी तरह पीटा गया। जीऊत पटेल के घर का दरवाजा तोड़ा गया और खाकी वर्दी वाले उन्हें घर से घसीटकर बाहर ले गए। बाद में चार पुलिसकर्मियों ने मिलकर उन्हें लात-घूसों और लाठियों से पीटा। पुलिस वाले उन्हें तब तक पीटते रहे, जब तक वो बेहोश नहीं हो गए। इनकी मां को भी बुरी तरह पीटा गया। जीऊत पर फर्जी केस लाद दिया गया। इनके पास सिर्फ दो बिस्वा जमीन है।

प्रत्यक्षदर्क्षियों के मुताबिक, 16 मई 2023 की आधीर रात के बाद पुलिस वाले बैरवन के किसान गौरी पटेल और उनकी पत्नी उठा ले गए। दोनों पर जमकर लाठियां तोड़ी गईं। वो बेहोश हो गए तो पुलिस गौरी को पुलिस वाले अपने कंधे लाद कर ले गए। पुलिसिया तांडव का वीडियो बना रहे संदीप पटेल को खाकी वर्दी वालों ने पकड़ लिया। करीब एक दर्जन जवानों ने मिलकर काफी देर तक उनकी लाठियों से पिटाई करते रहे। बाद में उनका मोबाइल फोन भी कूंच डाला। बैरवन की सीता देवी कहती हैं, "पुलिस पालों ने हर घर में घुसकर महिलाओं के साथ बदसलूकी की, उनके कपड़े फाड़े और दुर्व्यवहार किया। औरतों के गहने भी लूट लिए। हमारी बेटी के कपड़े फाड़ दिए। हम दोनों  को लाठियों से पीटा और दुर्व्यवहार किया। सुनीता देवी की इतनी बुरी तरह पिटाई की गई कि वो बेहोश हो गईं। रात में राम दुलारी को पीटा गया। इनके पति को पुलिस वाले पीटते हुए उठाकर ले गए। इस समय वह जिला जेल में बंद हैं। जयशंकर पटेल और अजय शंकर पटेल के घरों का दरवाजा तोड़ दिया गया और महिलाओं को न सिर्फ भद्दी-भद्दी गालियां दी गई, बल्कि उनके साथ बदसलूकी भी की गई। पिता और बेटे को लाठियों से इतना पीटा गया कि वे बेदम होकर बेहोश हो गए।"

बैरवन गांव में पुलिस ने कुल चार मर्तबा धावा बोला। 16 मई को पुलिस ने किसानों से सीधा मुकाबला किया। फिर दोपहर में पांच सौ पुलिस के जवानों ने घेरकर हर किसी की लाठी-डंडों से पिटाई की और लोगों के घरों के दरवाजे तक तोड़ डाले। लूट-पाट की। पुलिस वालों ने लोगों के घरों के दरवाजे तक उखाड़ दिए व चूल्हे तोड़ डाले। तीसरी मर्तबा रात में पुलिस ने डकैतों की तरह धावा बोला और घर में सोई औरतों के साथ जोर-जबर्दस्ती करनी शुरू कर दी। कई औरतों और लड़कियों को गांव के सिवान में ले जाया गया और उनके साथ अत्याचार किया गया। आरोप है कि 16 मई की रात में एक बजे घर में घुसकर पुलिस वाले लोगों को धमकी भी दे रहे थे कि गवाही दोगे तो जान से मार दिया जाएगा। पुरुषों की तलाशी ली। गांव के लोग घर से भाग गए थे। चौथी मर्तबा 17 मई की सुबह आठ बजे पुलिस ने फिर धावा बोला और महिलाओं व बच्चों पर लाठीचार्ज किया। बैरवन की महिलाओं का कहना है कि रात में उनके साथ जो कुछ घटा है, वह बता पाने की स्थिति में हैं और न ही कुछ कह पाने की स्थिति है। बैरवन की पटेल बस्ती की सभी औरतों का बस एक ही दर्द है कि पुलिस ने उनके साथ जिस तरह का बुरा बर्ताब किया है उस हालत में अपने मां-बाप, सास-ससुर, पति और परिवार वालों को हम क्या मुंह दिखाएंगे?

इस ज़ुल्म की वजह?

यूपी सरकार ने करीब दो दशक पहले वीडीए ने ट्रांसपोर्ट नगर बसाने की योजना बनाई थी। इस योजना के लिए बैरवन, मिल्कीचक, करनाडाड़ी और सरायमोहना में 1194 किसानों की कुल 82.159 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना था। बरस पहले 771 किसानों को 34.41 करोड़ का मुआवजा बांटा जा चुका है। फिलहाल 413 किसानों ने अभी तक जमीन का मुआवजा नहीं लिया है। ट्रांसपोर्ट नगर का विरोध कर रहे किसानों को नई भूमि अर्जन नीति के तहत चार गुना रेट से धनराशि चाहिए, जबकि वीडीए की उलझन यह है कि पुराने दर से 45 हेक्टेयर भूमि अर्जित की जा चुकी है। ऐसे में एक ही योजना में दोहरा मापदंड अव्यावहारिक है।

योजना से प्रभावित किसानों का यह भी कहना है कि नए दर से मुआवजा मिलने के बाद ही 44 हेक्टेयर जमीन खाली की जाएगी। अपनी जमीनें बचाने के लिए आंदोलित किसानों का कहना है कि जिस तरह रिंग रोड के लिए पुरानी दर को दरकिनार कर नई दर से भूमि अर्जित की गई, उसी तरह इस योजना के लिए भी जमीनों का अधिग्रहण किया जाए, ताकि वो कहीं और अपने लिए छत का इंतजाम कर सकें। किसानों की डिमांड इसलिए भी जायज है, क्योंकि रिंग रोड और ट्रांसपोर्ट नगर योजना का प्रस्ताव एक ही समय बना था। अपनी जमीनों को बचाने के लिए बैरवन, कन्नाडाडी, मोहनसराय और मिल्कीचक के किसान लगातार आंदोलन, प्रदर्शन और धरना देते आ रहे हैं।

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वाराणसी विकास प्राधिकरण, पुलिस और प्रशासनिक अफसर ट्रांसपोर्ट नगर योजना के लिए जमीन का सीमांकन कराने पहुंचे थे। मंगलवार को विवाद तब बढ़ा जब लाठी-डंडा के साथ आए तमाम महिला व पुरुषों ने वीडीए द्वारा कराए जा रहे सीमांकन को रोक दिया और टीम को लौटने की हिदायत दी। विरोध तब शुरू हुआ जब पुलिस ने उन लोगों की जमीनों पर भी कब्जा लेना शुरू कर दिया, जिन्होंने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है। वीडीए की टीम बुलडोजर लेकर पहुंची और खोदाई कर पिलर गाड़ने का काम शुरू कर दिया। इसी बीच किसान आए और उन्होंने टीम को खोदाई करने से रोका और आरोप लगाया कि मुआवजा दिए बगैर ही जमीन कब्जाई जा रही है।

पुलिस से झड़प के बाद दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर हमला और पथराव शुरू कर दिया। इसी बीच बड़ी संख्या में किसान आए और विरोध-प्रदर्शन करने लगे। इस घटना में एक दरोगा समेत कुछ अफसरों को चोटें आईं तो खाकी वर्दी वाले आग बबूला हो गए और उन्होंने लाठीचार्ज कर किसानों को खदेड़ दिया। पथराव और लाठीचार्ज में करीब 40 से 50 महिलाओं को भी चोटें आई हैं। एक महिला खून से लथपथ दिखी। एक महिला काफी देर तक अचेत पड़ी रही। उसके नाक पर गंभीर चोट लगी थी। आसपास के लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया। उसके चेहरे पर चोट गंभीर चोट के निशान थे। प्राथमिक उपचार के बाद उसे जाने दिया गया। पथराव का सिलसिला करीब दो घंटे तक चला और हालात बेकाबू ही रहे। पुलिस ने जब बल प्रयोग किया तो गांवों में सन्नाटा हो गए। पुलिस गांव छोड़कर चले गए। सिर्फ महिलाएं ही दिखीं। घटना में दो महिला समेत 11 किसान गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जबकि एक दरोगा कुलदीप कुमार को भी चोटें आई हैं।

मंगलवार की सुबह पुलिस और किसानों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद पुलिस और प्रशासनिक अफसर भी बैकफुट पर आ गए और बुलडोजर की कार्रवाई रोक दी गई। दोबारा सीमांकन का काम तब शुरू हुआ जब वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल भी मौके पर पहुंचे। वाराणसी विकास प्राधिकरण के जूनियर इंजीनियर जय प्रकाश गुप्ता की तहरीर पर 16 नामजद और 120 अज्ञात के खिलाफ रोहनिया थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। इनमें बैरवन के रतन पटेल, जिऊत पटेल, गौरी शंकर, जय प्रकाश, अजय कुमार, दिलीप कुमार पटेल, संदीप कुमार पटेल, बबलू, रामदुलारी, बिहारी लाल, अमलेश पटेल, राजेश मिश्रा, अमलेश कुमार, मुन्ना लाल, संजय कुमार पटेल को नामजद किया गया है। पुलिस के मुताबिक, कुल 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है और छह अन्य को हिरासत में रखा गया है। 17 मई को पुलिस की मौजूदगी में वीडीए के अफसर जमीनों का सीमांकन कराते रहे। तनाव के मद्देनजर बैरवन समेत आसपास के सभी गांवों में कई थानों की पुलिस तैनात की गई है। ट्रांसपोर्ट नगर की प्रस्तावित जमीन के लिए किसानों और पुलिस के बीच हुए बवाल के बाद मोहनसराय, बैरवन, करनाडाडी, मिल्कीचक और मोहनसराय में सन्नाटा पसरा रहा। ट्रांसपोर्ट नगर की प्रस्तावित जमीन पर पथराव और लाठीचार्ज के बाद पुलिस ने पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया था। दूसरी ओर, घटना से नाराज किसान, किसान संगठनों के पदाधिकारी तहसील परिसर में धरना-प्रदर्शन करते रहे।

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हाईकोर्ट ने लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मई 2023 को ट्रांसपोर्ट नगर योजना पर रोक लगा दी है। 16 मई 2023 को पुलिसिया तांडव की सीसीटीवी फुटेज और फोटोग्राफ देखने के बाद हाईकोर्ट ने वीडीए पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है, "आप जमीन पर कब्जा लेने जाओगे और किसान अपनी बात कहना चाहेगा तो उसकी नहीं सुनेंगे, उन्हें मारोगे।" सुनवाई के दौरान वीडीए  के अधिवक्ता ने कहा कि प्रशासन जिन किसानों को मुआवजा दे चुका है। उन्हीं जमीनों पर कब्जा लिया जा रहा था। तब किसानों की ओर से कहा गया कि 337 किसानों का 2012 में अवार्ड किया गया, जबकि 857 किसानों ने कोई मुआवजा ही नहीं लिया है। इससे पहले साल 2003 में ही वीडीए  ने बगैर मुआवजा दिए ही किसानों का नाम खतौनी से काटकर अपना नाम चढ़वा लिया। कोर्ट में बहस के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि धारा-पांच के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति नहीं ली गई।

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वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिवक्ता ने जब आगे और अपनी बात कहने की अनुमति मांगी तो हाईकोर्ट मामले पर स्टे लगा दिया और अगली तारीख पर बात रखने की बात कही। किसानों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने वीडीए के अधिवक्ता को कड़े लहजे में समझाया। किसानों की ओर से हाईकोर्ट में उनके वकील अश्विनी कुमार सचान, किसान संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी और याचिकाकर्ता वीरेंद्र उपाध्याय, बैरवन के पूर्व प्रधान कृष्णा प्रसाद उर्फ छेदी लाल उपस्थित हुए। इसके बाद हाईकोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया। इसके बाद ट्रांसपोर्ट नगर परियोजना में लगे सभी बुलडोजर लौट गए हैं। पुलिस फोर्स और वीडीए  की टीम भी वापस हो गई है।

ट्रांसपोर्टनगर योजना के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण ज्यादातर बैरवन गांव के किसानों की जमीनों का अधिग्रहण कर रहा है। यह गांव बनारस शहर से 12 किमी दूर है। इस गांव के करीब छह हजार लोग दहशत में हैं और इन्हें डर है अपने घर से बेघर किए जाने का, जहां वो कई पुश्तों से रह रहे हैं। जीटी रोड के किनारे बसे बैरवन गांव का दर्द भी अजीब है। बीचो-बीच से गुजरने वाली रेलवे लाइन इस गांव का सीना चीरती रहती है। सबसे पहले रेलवे लाइन बिछाने के लिए यहां किसानों की जमीन छीनी गई और अंग्रेजी हुकूमत के डंडे के खौफ से लोग खामोश रहे। बाद में जब एनएच-2 हाईवे बनना शुरू हुआ तो किसानों की 14 एकड़ जमीन फिर जबरिया हथिया ली गई। यह वाकया साल 1994 का है। फिर जीटी रोड का विस्तार हुआ तब भी बैरवन पर ही अधिग्रहण की गाज गिरी। इस गांव से जब नहर गुजरी तब उसके लिए भी बैरवन के लोगों को अपनी जमीन की कुर्बानी देनी पड़ी। बाद में कुछ जमीन चकबंदी में निकल गईं।

किसानों के पास जो जमीनें बचीं हैं उसे ट्रांसपोर्ट नगर योजना के नाम पर अब वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) कब्जाने की कोशिश में है। ट्रांसपोर्ट नगर योजना के लिए जितनी जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है उसमें 80 फीसदी हिस्सा बैरवन के किसानों का है। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिग्रहण के दायरे में सर्वाधिक सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो-चार बिस्वा से ज्यादा जमीन है ही नहीं। बड़ा सवाल यह है कि अगर एक बार फिर बैरवन के किसानों की जमीनें छीन ली गईँ तो वो कहां तलाशेंगे नया ठौर?

बैरवन कोई मामूली गांव नहीं है। कुछ दशक पहले तक यहां बेर के बगीचे हुआ करते थे और उसके बीचो-बीच मुट्ठी भर आबादी। किसानों ने अपनी मेहनत के बूते इस गांव को नई पहचान दी। समूचा गांव देश-विदेश में गेंदे के पौधों की सप्लाई करता है। यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, नई दिल्ली, उत्तराखंड ही नहीं, हिंदुस्तान की सभी नर्सरियों में बैरवन का गेंदा ही लहलहता है। गेंदे के पौधे यहीं से नेपाल की राजधानी काठमांडू और बांग्लादेश के ढाका तक जाते हैं। देश-विदेश के पुष्प उत्पादकों की पहली पसंद है बैरवन ब्रांड गेंदा। बैरवन की समूची आर्थिकी गेंदे पर टिकी है। इस गांव के हुनरमंद किसान सिर्फ गेंदे की नर्सरी लगाते हैं और फूलों की खेती करते हैं। गेंदा से लकदक और गमकते बैरवन पर एक बार फिर विपदा टूट पड़ी है। लैंड पुलिंग स्कीम के तहत वाराणसी विकास प्राधिकरण समूचे बैरवन गांव पर कब्जा कर लेना चाहता है।

दर्दनाक हैं किसानों के हालात

खेती-किसानी में दक्ष पटेल समुदाय के बहुलता वाले इस गांव के ज्यादातर लोगों के पास जमीनों के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, जिनमें गेंदे की नर्सरी लगाकर वो अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। बैरवन के पूर्व प्रधान कृष्ण प्रसाद उर्फ छेदी लाल के पास चार बीघा जमीन है, जिसकी बदौलत अपने परिवार के दस लोगों का भरण-पोषण करते हैं। वह कहते हैं, "हमारे गांव में 90 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनके पास सिर्फ दो-तीन बिस्वा जमीन है। उसी जमीन में उनका मकान भी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण 17 अप्रैल 2003 से बैरवन की जमीनों पर अपना भौतिक कब्जा दिखा रहा है, जबकि मौके पर स्थिति कुछ और है। बैरवन के हर खेत में गेंदे की नर्सरी आज भी लहलहा रही है। हालांकि भूमि अधिग्रहण की तलवार लटके होने की वजह से लड़कों के शादी-विवाह में दिक्कत पैदा हो रही है। किसी को न तो कृषि लोन मिल रहा है और न ही कोई सरकारी अनुदान। तमाम बच्चों की पढ़ाई भी बाधित है।"

बैरवन के डॉ.विजय नारायण वर्मा देश के जाने-माने एथलीट हैं और वह कई नेशनल व इंटरनेशलन प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। ट्रांसपोर्ट नगर योजना का मुखर विरोध करने पर तत्कालीन कलेक्टर रविंद्र कुमार के निर्देश पर साल 2011 में पुलिस इनके खिलाफ देशद्रोह और सरकारी कार्य में बाधा डालने की रिपोर्ट दर्ज कर चुकी है। वह कहते हैं, "आए दिन वीडीए के अफसर बैरवन आते हैं और जमीनें खाली करने के लिए धमकाते हैं। कमिश्नर कौशलराज शर्मा और डीएम एम.राजलिंगम ने हाल में किसानों को जमीनें खाली करने का फरमान सुनाया था। रोहनिया के विधायक डॉ.सुनील पटेल भी हमारी नहीं सुन रहे हैं और विपक्ष के वो नेता भी जो पहले घड़ियालवी आंसू बहाने आ जाया करते थे।"

जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर गेंदे की नर्सरी से जीवन यापन करने वाले प्रेम कुमार कहते हैं, " हमारे दादा-परदादा भी यहीं रहते थे, लेकिन अब वीडीए हमें उजाड़ने पर उतारू है। हमें मारा-पीटा और धमकाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने मुआवजा ले लिया है उनसे बीस सालों का किराया वसूला जाएगा।" कुछ इसी तरह का दर्द शोभनाथ पटेल को भी है। इनके पास सिर्फ एक बीघा जमीन है और उसी जमीन के दम पर वह अपने परिवार के 17 लोगों का पेट भरते हैं। इनका भी मुख्य व्यवसाय गेंदे की नर्सरी है। रमाशंकर पटेल की स्थिति भी इनके जैसी ही है। बैरवन के किसानों के पास सिर्फ मुट्ठी भर जमीन है, जिसके छिन जाने की आशंका से किसानों की हंसी गायब है।

40 वर्षीया माधुरी देवी कहती हैं, "हमारा खेत छिन जाएगा तो हम कहां जाएंगे? बच्चों की पढ़ाई और उसके बाद उनकी शादी कैसे होगी?" माधुरी के तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च फूलों की नर्सरी से निकलता है। इनके पास सिर्फ चार बिस्वा जमीन है, जो भूमि अधिग्रहण की जद में है। कुल 12 लोगों का परिवार इसी जमीन की बदौलत पल रहा है। पूजा देवी के परिवार के पास कुल डेढ़ बीघा जमीन है, जिसकी बदौलत परिवार के 30 लोगों की आजीविका चल रही है। 72 वर्षीय बदल पटेल का 22 लोगों का परिवार सिर्फ गेंदे की नर्सरी के भरोसे जिंदा है। वह कहते हैं, "पौने चार बीघे जमीन में परिवार का गुजारा मुश्किल से होता है। वीडीए ने हमें खदेड़ दिया तो आखिर कहां जाएंगे? अपनी जमीन बचाने के लिए हम लड़ते रहेंगे।"

किसानों के पक्ष में विपक्ष

किसानों पर हुए लाठीचार्ज पर अब पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा को आड़ेहाथ लिया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा है, "वाराणसी के मोहन सराय की कृषि योग्य भूमि को गैर कानूनी तरीके से ट्रांसपोर्ट नगर और आवासीय योजना के नाम पर किसानों से हड़पकर भू-माफियाओं को देने का भाजपाई नाटक शुरू हो गया है। अब गरीबों के ऊपर बुलडोजर भी चलेगा। और घर-खेत से भाजपा सरकार बेदखल करेगी।'' अखिलेश यादव ने मोहनसराय लाठीचार्ज कांड का एक मिनट 14 सेकेंड का एक वीडियो भी शेयर किया है।

पुलिसिया उत्पीड़न के खिलाफ विपक्षी दलों के नेताओं की मोहनसराय में पंचायत बैठी। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय, सपा नेत्री रिबू श्रीवास्तव समेत कई नेताओं ने किसानों फरियाद सुनी। पुलिस लाठीचार्ज में घायल किसानों, औरतों और बच्चों से मुलाकात कर उन्हें ढाढ़स बंधाया। विपक्ष के नेताओं का आरोप है कि बैरवन गांव की कई महिलाओं को पुलिस ने लाठी से मारकर उनका सिर फोड़ दिया गया है। बेहद खतरनाक तरीके से औरतों व बच्चों को पिटा गया और और बुलडोजर से दौड़ाया गया। विपक्षी दलों का आरोप है कि पुलिस आयुक्त मुथा अशोक जैन के निर्देश पर पुलिस ने चार मर्तबा बैरवन गांव में जाकर किसानों को सबक सिखाने के लिए जुल्म-ज्यादती की पटकथा लिखी। फिलहाल इस मुद्दे पर पुलिस और प्रशासनिक अफसर बयान देने से बच रहे हैं। हर अफसर बोलने से बच रहा है।

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मुहिम चला रहे किसान संघर्ष समिति के संरक्षक विनय शंकर राय "मुन्ना" कहते हैं, "बनारस की सरकार जान-बूझकर किसानों को उजाड़ने पर तुल गई है। भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास कानून 2013 की धारा 91(1) के तहत ट्रांसपोर्ट नगर योजना निरस्त करने के लिए शासन स्तर पर डिनोटिफाई की प्रक्रिया चल रही थी। इसी बीच प्रशासन ने दोबारा ट्रांसपोर्टनगर बसाने के लिए तुगलकी फरमान जारी कर दिया। बैरवन, सरायमोहन, कन्नाडाडी और मिल्कीचक के किसान किसी भी सूरत में जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि बेघर होने पर उनके सामने आजीविका का जबर्दस्त संकट पैदा हो जाएगा। ट्रांसपोर्ट नगर योजना रद कराने के लिए किसान हर कदम उठाने के लिए तैयार हैं।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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