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हरियाणा चुनाव : प्रवासी श्रमिक आर्थिक रूप से टूटा और राजनीतिक रूप से शक्तिहीन है

विजय हरियाणा विधानसभा चुनावों में वोट देने के लिए तैयार हैं, इसके बावजूद वह वोट नहीं डाल सकते। क्योंकि उनके पास गुरुग्राम का मतदाता पहचान पत्र नहीं है। विजय कहते हैं, '' बिना किसी पहचान के, मैं यहां एक बाहरी व्यक्ति हूं और मैं सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों में से हूं।''
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यह दिहाड़ी मजदूर विजय हैं। वह अपनी सारी कमाई छोड़ और रोजगार छीने जाने के बाद अपने गृह नगर उत्तर प्रदेश वापस जाने के लिए अपना बैग लेकर बस के इंतजार में स्टेशन पर बैठे हैं। वह ग्यारह महीने पहले गुरुग्राम आए और एक ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में ट्रक अनलोडर के रूप में काम करने लगे। तीन महीने का उन्हें भुगतान नहीं मिला और न ही लगभग 20 दिनों से कोई रोज़गार मिला है। उन्होंने अपनी नौकरी खो दी और तब से वह दूसरी नौकरी की तलाश में थे, लेकिन भारत की आर्थिक बर्बादी की बदौलत उनके सभी प्रयास असफल रहे।

विजय गुरुग्राम यानी गुड़गांव शहर और उसके मुद्दों को जानते हैं, जिसका सामना आज गुरुग्राम कर रहा है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनकी बिल्डिंग जहाँ वह किराये के माकन में रहते हैं, वहां जाने का रास्ता जर्जर हालत में है। उनका मकान मालिक उन्हें बिजली के लिए ओवरचार्ज करता था और इसके साथ ही जैसा कि वह दूसरी नौकरी नहीं पा रहे थे, उन्हें पता है कि किस तरह से बेरोजगारी ने शहर को जकड़ रखा है।

हालांकि, विजय केवल शिकायत कर सकते हैं और वह यह जानते भी हैं, कि वह आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों में वोट देने के लिए तैयार हैं इसके बावजूद वह वोट नहीं डाल सकते। क्योंकि उनके पास गुरुग्राम का मतदाता पहचान पत्र नहीं है।

विजय कहते हैं, '' बिना किसी पहचान के, मैं यहां एक बाहरी व्यक्ति हूं और मैं सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों में से हूं। ''

विजय, एक प्रवासी श्रमिक होने के नाते, अकेले नहीं है और प्रवासी श्रमिकों को मतदान का अधिकार देने के बारे में बहस कोई नयी भी नहीं है। हालांकि, इस विषय पर गुरुग्राम के रूप में ध्यान दिया जाना चाहिए है, देश का सबसे बड़ा मोटर वाहन हब, जहाँ इस महीने चुनाव की तैयारी है। वर्तमान में शहर की अर्थव्यवस्था सबसे बुरी आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है, जिसका पहला शिकार विजय जैसे व्यक्ति हैं, जिन्हें अक्सर औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए सस्ते मजदूर के रूप में लाया जाता है । जो किसी भी तरह राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित है।

प्रवासी श्रमिक काम की तलाश में अपने मूल स्थान से बाहर चले जाते हैं। अक्सर शहर में इनका अनुभव बहुत ही बुरा रहता है। श्रमिकों को मूल भोजन के अधिकार से भी वंचित किया जाता है,जैसे सब्सिडी वाले भोजन, उचित पेयजल, स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच, राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली कल्याण सेवाओं को सीमित कर दी जाती या ये उनके पहुंच से बाहर होती है। जो इन श्रमिकों को अमानवीय स्थितियों जीवन जीने को मज़बूर करती है। उनके लिए स्थति और खराब है, उनके विरोध और उनकी शिकायतों अक्सर नजरंदाज कर दिए जाते हैं। राजनीतिक मोर्चों भी इस पर ध्यान नहीं देते है क्योंकि उनके पास कोई वोट नहीं होता है। न वो पार्टियों के वोट बैंक भी नहीं है।


हालांकि, कानून, श्रमिकों को अधिकार देता है। जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत किया जा सकता है, जहाँ वह "मूल रूप से निवासी" है। दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में प्रवास के मामले में, उस निर्वाचन क्षेत्र का, नए निवास के प्रमाण के लिए मतदाता सूची में नामांकित होना आवश्यक है।

जब विजय से उनके निवास का सबूत मांगा गया, तो उन्होंने इसे हंसी में उड़ा दिया। गुरुग्राम में रहने के दौरान, वह किसी को नहीं जानता था, जिसे निवास प्रमाण दिया गया था।

विजय ने समझाया,"कमरा हमें दिखाया गया है और यदि किराया सस्ता है, तो हम उसी दिन वहां जा सकते है। "हालांकि, ज़मींदार हमारे पहचान पत्र की एक प्रति लेता हैं, लेकिन इसके बदले हमें कोई प्रमाण नहीं दिया जाता है।"

2015 में, वाम राजनीतिक दलों की मांग की मतदान प्रणाली घरेलू प्रवासियों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसका जवाब देते हुए भारत के चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से देश में आंतरिक प्रवास का चरित्र और संरचना को लेकर एक अध्ययन करने के लिए कहा था।

रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और उसमे कहा कि "अल्पकालिक" प्रवासी की राजनीतिक भागीदारी का सबसे ज्याद नुकसान होता है,विशेष रूप से मौसमी या शॉर्ट टर्म प्रवासी श्रमिक जो अक्सर अपने प्रवास स्थान में मतदान के अधिकार से वंचित हैं और कमजोर आर्थिक हालत के कारण वे अपने मूल स्थान पर भी वोट डालने नहीं जाते हैं।


रिपोर्ट में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि किसी राज्य में प्रवास की उच्च दर कम मतदान से जुड़ी है। भारतीय चुनावों में सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूह की इस सेना के पास राजनीतिक प्रतिनिधित्व की भारी कमी है।

जहां तक हरियाणा का संबंध है, जनगणना 2011 के अनुसार, यह शीर्ष पांच राज्यों में से एक है, जिसने उच्च-प्रवासन दर्ज किया है। हाल के महीनों में, हरियाणा राज्य को भी संकट का सबसे बुरा सामना करना पड़ा, राज्य के मुख्य उद्योगों - जैसे ऑटो और कपड़ा - उनके उत्पादन में मंदी का सामना करना पड़ रहा है और परिणामस्वरूप श्रमिकों को अपनी नौकरी खोनी पड़ रही है।
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुमान के अनुसार , हरियाणा राज्य ने इस साल सितंबर के महीने में बेरोजगारी की दर 20.3 प्रतिशत दर्ज की है। राज्य में प्रवासी मजदूरों , जो ज्यादातर ऐसे कारखानों में अनुबंध के आधार पर काम में लाई जाती है, को अब खदेड़ा जा रहा है। संकट ने उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ दिया है और विधानसभा चुनाव से उन्हें कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे शक्तिहीन हैं।


ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से असंख्य लोग ऐसे प्रवासियों से मिल सकते हैं, जो अब ऑटो चला रहे हैं या सड़क पर रहने वाले हैं। वे गुरुग्राम जैसी मेगालोपोलिस की अर्थव्यवस्था से जुड़ते हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से अनुपस्थित रहते हैं।


विजय ने कहा, "मैं इसे कभी भी अपना शहर नहीं कह सकता।" अब वह अपने गृह नगर वापस जाने की तैयरी में है ,जहाँ तीन बच्चे और उसकी बुजुर्ग माता-पिता उनका इंतजार कर रहे हैं। जबकि उनकी पत्नी की मौत दो साल पहले बीमारी के कारण हो चुकी है,उन्हें  याद करते हुए भावुक हो जाते हैं, क्योंकि खराब आर्थिक हालत के कारण न तो अंतिम समय में वो जा सके न ही अच्छा इलाज करा सके थे।

इस तरह की कई कहनियाँ है प्रवासी श्रमिकों की अंतहीन शोषण और व्यथा बताते है,लेकिन ये हरबार की तरह इस चुनाव के केंद्र बिंदु से गायब है। 

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