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सरकार जी का लोकतंत्र और घोड़ों की खरीद फरोख्त!

गोवा में कांग्रेस के विधायकों को जिस तरह से भाजपा ने तोड़ा है, उससे ये बात तो साफ है कि मतलब सिर्फ सरकार बनाने से नहीं है बल्कि, विधानसभा में विपक्षी विधायकों को भी साफ कर देना है।
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लो जी, सरकार जी ने एक बार फिर से घोड़े खरीद लिए। इस बार मध्यप्रदेश या महाराष्ट्र में नहीं, गोवा में खरीदे। ऐसा नहीं है कि सरकार जी के अस्तबल में घोड़े कम थे पर सरकार जी ने अपनी रईसी दिखाने के लिए ही घोड़े खरीद लिए। अपने अस्तबल में घोड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए ही घोड़े खरीद लिए।

अधिकतर घोड़े इसीलिए खरीदे जाते हैं कि आपके अस्तबल में घोड़े थोड़े कम हैं और दूसरे के अस्तबल में ज्यादा। पर इस बार तो आधे से ज्यादा घोड़े अपने अस्तबल में थे फिर भी दूसरे के अस्तबल से घोड़े खरीद लिए। चलो, थोड़ी तो ईमानदारी दिखाई। नहीं तो कई बार दूसरे का अस्तबल खाली पड़ा रह जाता है और सारे के सारे घोड़े खरीद लिए जाते हैं। और कभी कभी तो घोड़े अस्तबल समेत भी खरीद लिए जाते हैं।

यूं तो घोड़े अधिकतर दाम दे कर ही खरीदे जाते हैं। और इन घोड़ों का दाम कोई कम नहीं होता है। यही बस कई करोड़ रुपये। यह हर किसी की बिसात में नहीं है कि वह घोड़े खरीद सके। पहले घोड़े खरीदने की औकात सिर्फ बड़े बड़े राजाओं, महाराजाओं की ही होती थी। परन्तु आज कल यह औकात सिर्फ सरकार जी की है। वे ही घोड़ों को उनकी वाजिब कीमत दे सकते हैं, उन्हें खरीद सकते हैं। इसीलिए आम तौर पर घोड़े वे ही खरीदते हैं।

ये घोड़े कितने पैसे में खरीदे जाते हैं, इनकी कीमत क्या है, यह किसी को भी नहीं पता है, सिवाय सरकार जी और घोड़ों के। वैसे भी सरकार जी किसी भी चीज की कीमत जनता से छिपाते ही हैं। वे उस चीज की कीमत भी जनता को नहीं बताते हैं जो जनता के पैसे से खरीदी जाती है। ऐसी किसी चीज की कीमत यदि कोर्ट तक को भी बतानी पड़े तो बंद लिफाफे में ही बताते हैं कि कहीं जनता को यह पता न चल जाए कि चीज कितने में खरीदी है। और ये घोड़े तो सरकार जी ने अपने पैसे से खरीदे हैं, काले धन से खरीदे हैं, तो क्यूं बताएं जनता को कि कितने में खरीदे हैं।

वैसे घोड़े सिर्फ पैसे से ही नहीं खरीदे जाते हैं। कई बार तो घोड़े तोता और मैना का डर दिखाकर भी खरीद लिए जाते हैं। अरे, तोता वही, सीबीआई और मैना, इनकम टैक्स। इन तोता और मैना का डर भी बहुत ख़तरनाक होता है। सरकार जी तो बस तोता मैना का डर दिखाते हैं और जो इनसे डर गया, वो सरकार जी के अस्तबल में गया।

आजकल एक बुलबुल की भी बहुत चर्चा है। यह बुलबुल अंग्रेजों के जमाने में भी पाई जाती थी और आजकल भी पाई जाती है। अंग्रेजों के जमाने में यह समंदर पार कर ऐसी काल कोठरी तक में पहुंच जाती थी जहां कोई छेद तक न हो और उसमें रह रहे कैदी से अंग्रेज सरकार की वफादारी की कसमें खिलवाती थी, उस से माफीनामा लिखवाती थी। आजकल यह बुलबुल हवाई जहाज में सवार होकर राज्यों की राजधानियों में पहुंच जाती है और घोड़ों से आज के सरकार जी की वफादारी की कसमें खिलवाती है, अस्तबल बदलवाती है। अंग्रेजों के जमाने में इस बुलबुल को पता नहीं क्या कहते थे, पर आजकल तो इस बुलबुल को ईडी कहते हैं। तो इसी बुलबुल के कारण भी घोड़े अस्तबल बदल लेते हैं।

खैर सारे घोड़े पैसे के लिए या फिर तोता, मैना या बुलबुल से डर कर ही सरकार जी के अस्तबल में नहीं आ जाते हैं बल्कि कुछ घोड़े तो अच्छे दाना पानी के लालच में भी अपना अस्तबल बदल लेते हैं। अच्छा खाने और अच्छा पहनने का लालच आखिर किसे नहीं होता है। घोड़ों को भी पता है कि जिस अस्तबल का मालिक खुद आयातित मशरूम खाता हो और दिन में चार चार बार कपड़े बदलता हो, वह उनके खाने का भी अच्छा ध्यान रखेगा। तो कुछ घोड़े इसीलिए सरकार जी के अस्तबल में चले जाते हैं।

कुछ घोड़े को नए अस्तबल में अच्छे बिस्तर और खाने का लालच दिया जाता है तो दूसरों को नए अस्तबल में घोड़ों के सरदार बनाने का। कुछ घोड़े लम्बी रेस का घोड़ा बने रहने के लिए भी अपना अस्तबल बदलते रहते हैं और बार बार बदलते हैं। पर पैसे, डर या लालच के बिना कोई घोड़ा अपना अस्तबल ऐसे ही नहीं बदलता है। आखिर घोड़ों में भी आत्म सम्मान होता है।

सरकार जी एक देश, एक धर्म, एक भाषा, एक कानून, एक चुनाव, एक उद्योगपति, यानी सभी कुछ एक ही चाहते हैं। इसीलिए वे एक ही अस्तबल के भी हिमायती हैं। सरकार जी चाहते हैं कि देश में एक ही अस्तबल हो। उसके लिए जरूरी है कि जो इतने सारे छोटे बड़े अस्तबल हैं उन सभी के घोड़े खरीद लिए जाएं और उनके ही अस्तबल में बांध दिए जाएं और सरकार जी ऐसा करेंगे भी। इसके लिए सरकार जी को चाहे जो भी कीमत अदा करनी पड़े। चाहे कितनी भी खरीद फरोख्त करनी पड़े। चाहे कितने भी धन और बल का इस्तेमाल करना पड़े।

सरकार जी अपने सपनों का 'न्यू इंडिया' बना रहे हैं। उन का स्वप्न है कि उनके सपनों के 'न्यू इंडिया' में उनके सपनों का लोकतंत्र ही हो। और सरकार जी के सपनों का लोकतंत्र तो तभी बन सकता है जब देश में एक ही अस्तबल हो और उसमें एक ही रूप के, एक ही रंग के, एक ही नस्ल के घोड़े हों जो एक ही जैसा खाना खाएं और एक ही स्वर में हिनहिनाएं। तो सरकार जी देश में अपने सपनों का लोकतंत्र बना कर ही मानेंगे भले ही उसके लिए उन्हें कितने भी घोड़े खरीदने पड़ें और कैसे भी खरीदने पड़ें।

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