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कैसे भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में अब तक हुई प्रगति को मटियामेट कर दिया

हिमाचल प्रदेश का कोविड-19 प्रबंधन कहीं से भी प्रभावशाली नहीं था। कई मामलों में तो इसका प्रदर्शन पड़ोसी राज्यों से काफी बदतर रहा है। भाजपा के शासनकाल में राज्य में अर्थव्यवस्था और रोजगार के आंकड़ों के साथ-साथ मानव विकास सूचकांकों में भी गिरावट का रुख देखने को मिला है।
कैसे भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में अब तक हुई प्रगति को मटियामेट कर दिया
चित्र साभार: पीटीआआई 

मार्च में आयोजित नगर निगम चुनावों से पूर्व जारी किये गए एक प्रचार अभियान वीडियो में, हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने दावा किया था कि जयराम ठाकुर के नेतृत्ववाली सरकार कोविड-19 महामारी के दौरान एक “मसीहा” के तौर पर सामने आई थी। अपने सार्वजनिक संबोधन में, मुख्यमंत्री ठाकुर को अक्सर उनकी सरकार द्वारा चलाए गए “विकास” कार्यों के बारे में शेखी बघारते देखा जा सकता है, जिसमें वे शायद ही कभी अपने द्वारा शुरू की गई विभिन्न “कल्याणकारी” योजनाओं का जिक्र करने से चूकते हों। मीडिया से बात करने के दौरान, ठाकुर ने अक्सर जिक्र किया है कि हिमाचल प्रदेश ने कोरोनावायरस महामारी के प्रबंधन के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के दावे सच के आगे नहीं टिकते हैं। कोविड-19 प्रबंधन के मामले में हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन कहीं से भी शानदार नहीं रहा; कई मामलों में इसका प्रदर्शन पड़ोसी राज्यों से काफी खराब रहा है। भाजपा के शासनकाल के तहत राज्य में मानव विकास सूचकांकों में भी गिरावट दर्ज की गई है। सीएम हमें जिस बात पर विश्वास दिलाना चाहते हैं उसके विपरीत, उनकी पार्टी ने कई जन-विरोधी कदम उठाये हैं और राज्य की आर्थिक विकास की गति काफी समय से डांवाडोल चल रही है। 

कोविड कुप्रबंधन 

राज्य के पास कोविड-19 के नमूनों की जांच के लिए सिर्फ छह प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं, और निजी प्रयोगशालाओं को परीक्षण शुरू करने की अनुमति सिर्फ मई 2021 के अंत में जाकर ही दी गई, जब दूसरी लहर अपने चरम पर पहुँच गई थी। आधिकारिक राज्य के स्रोतों से प्राप्त संकलित आंकड़ों के मुताबिक, सभी छह पड़ोसी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुकाबले हिमाचल ने सिर्फ 35,497.9 (13 जुलाई, 2021 तक), प्रति लाख लोगों पर सबसे कम संख्या में परीक्षण किये हैं।

अन्य पहाड़ी क्षेत्रों ने भी हिमाचल को काफी पीछे छोड़ दिया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर ने प्रति लाख लोगों पर 80,842 परीक्षण किये हैं और उत्तराखंड ने प्रति लाख आबादी पर 52,378 परीक्षण संचालित किये हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि क्षेत्र में राज्य में टेस्ट पोजिटिविटी अनुपात (टीपीआर) एक प्रतिशत के साथ सबसे उच्चतम स्तर पर बना हुआ था; इसकी तुलना में जम्मू-कश्मीर का टीपीआर 0.4% था, जबकि उत्तराखंड का टीपीआर 0.2% था। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान भी राज्य बुरी तरह से प्रभावित रहा है। मई में 30 दिनों से भी कम समय में, राज्य ने समूचे 2020 की तुलना में कहीं अधिक संख्या में कोरोनावायरस से होने वाली मौतें दर्ज कीं। इसलिए, मुख्यमंत्री का यह दावा कि राज्य ने महामारी के चक्र के प्रबंधन में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, खोखला महसूस होता है।

भविष्य में कोविड-19 उभार के प्रति तैयारियों के मामले में भी राज्य ढिलाई बरत रहा है। हिल स्टेशनों में अक्सर कोविड-19 नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए पर्यटकों के वीडियो ने डाक्टरों और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को चिंता में डाल दिया है। इन चिंताओं से संकेत लेते हुए, उत्तराखंड सरकार ने पर्यटकों के राज्य में प्रवेश के लिए नेगेटिव आरटी-पीसीआर परीक्षण रिपोर्ट और होटल बुकिंग के सुबूत को अनिवार्य कर दिया है। जम्मू कश्मीर की सीमा में प्रवेश करने वाले जिलों ने अप्रैल से ही नेगेटिव कोविड-19 रिपोर्ट को राज्य में प्रवेश के लिए एक आवश्यक शर्त बना दिया था। हालाँकि, हिमाचल सरकार ने राज्य के लोगों को कोविड-19 की बढती संख्या से बचाने के लिए अभी भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि किन्नौर जिले में, जो कि कई पर्यटन स्थलों का आवास है, में जुलाई की शुरुआत में ही 30.03% पोजिटिविटी रेट दर्ज की गई थी, यहाँ तक कि केंद्र सरकार तक ने राज्य को इस संबंध में चेतावनी जारी की। सरल शब्दों में कहें तो हिमाचल में पर्यटकों की आवाजाही और टूरिस्ट स्पॉट्स पर बड़ी संख्या में लोगों की भीड़भाड़ पर कोई रुकावट नहीं है- ऐसे में वर्तमान हालात किसी आपदा की प्रतीक्षा का संकेत देते हैं। 

उल्लेखनीय तौर पर मई 2020 में, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल को एक कोविड-19 घूसखोरी मामले में एक आरोपी के साथ कथित संलिप्तता के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा था। इसलिए भाजपा के पास यह दावा करने का कोई नैतिक आधार नहीं है कि उसने हिमाचल में कोई अच्छा काम किया है। यहाँ तक कि भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार तक को कहना पड़ा कि कथित घोटाले ने “हर किसी का माथा शर्म से झुका दिया है”। 

जीवन-यापन की लागत में वृद्धि 

जबकि इस पहाड़ी राज्य के लोग कोविड-19 संकट और बढ़ती महंगाई की मार से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, वहीँ राज्य सरकार बिजली शुल्क और बस किराये में वृद्धि करके उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। जून 2020 में, भाजपा सरकार ने 125 यूनिट से अधिक की खपत पर बिजली पर सब्सिडी में कटौती कर दी गई है। कम से कम चार लाख उपभोक्ताओं के मासिक बिलों में 40-113 रूपये से अधिक की वृद्धि का अनुमान है। ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों के बीच में राज्य सरकार ने तीन वर्षों से भी कम समय के भीतर दो मौकों पर बस किराए में 25% की चौंकाने वाली बढ़ोत्तरी कर दी है।

सामाजिक संकेतकों में गिरावट का रुख़

सिर्फ साढ़े तीन वर्षों में ही, जयराम ठाकुर सरकार ने पिछली राज्य सरकारों द्वारा जनता के कल्याण की दिशा में की गई प्रगति को उलट कर रख देने में कामयाबी हासिल की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हालिया निष्कर्षों के मुताबिक, कुल जनसंख्या का लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाएं) 2015-16 के 1078 से घटकर 2019-20 में 1040 हो गया था, जबकि पिछले पांच वर्षों में इसी अवधि के दौरान जन्म के समय बच्चों का लिंगानुपात 973 से घटकर 875 रह गया था।

इसी प्रकार, बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और भाजपा शासन के तहत राज्य में अवरुद्धता एवं बर्बादी का प्रचलन बढ़ा है।

घटता विकास, बढ़ती बेरोज़गारी 

भाजपा के शासनकाल में, राज्य की अर्थव्यवस्था एक दशक से अधिक समय में पहली बार ऋणात्मक विकास दर दर्ज करने के लिए तैयार है। हिमाचल प्रदेश के ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 6.2% की ऋणात्मक विकास दर दर्ज किये जाने की उम्मीद है। इस मंदी के लिए कुछ हद तक महामारी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन घटती वृद्धि दर भाजपा शासन की एक स्थायी विशेषता रही है। अपने पहले वर्ष में, जयराम ठाकुर सरकार ने विकास दर को 0.8 प्रतिशत अंक नीचे लाने का काम किया था (2016-17 के सात प्रतिशत के विकास दर से 2017-18 में यह 6.2% तक) कम कर दिया था; वहीँ 2019-20 में विकास दर फिर 4.9% तक पहुँच गई थी।

नवीनतम दौर के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के मुताबिक, राज्य में अप्रैल-जून 2020 के दौरान 15-29 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के बीच में बेरोजगारी की दर जबर्दस्त उछाल के साथ 33.9% थी। प्रभावी रूप से इसका अर्थ हुआ कि राज्य का हर तीसरा युवा बेरोजगार था। अप्रैल-जून 2020 की अवधि के दौरान राज्य की कुल बेरोजगारी दर 14.9% के स्तर पर थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2020 में राज्य में बेरोजगारी की दर देश में सबसे अधिक के साथ 24.3% के स्तर पर थी। जबकि इसके विपरीत, 2017-18 में भाजपा के शासन के पहले वर्ष के दौरान बेरोजगारी की दर 5.5% थी। इसलिए बढ़ती बेरोजगारी के आंकड़ों के लिए महामारी को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा क्योंकि कोविड-19 के परिदृश्य में आने से पहले से ही बेरोजगारी लगातार बढ़ रही थी। अक्टूबर-दिसंबर 2019 में 7.5% बेरोजगारी दर से 5.3 प्रतिशत अंक की बढ़त के साथ समग्र बेरोजगारी की दर जनवरी-मार्च 2020 में 12.8% के स्तर पर पहुँच चुकी थी। 

कोविड-19 के कुप्रबंधन के अलावा, भाजपा नेता एक आम हिमाचली की आकांक्षाओं को पूरा कर पाने में विफल रहे हैं क्योंकि आवश्यक वस्तुओं के दाम काफी महंगे होते जाने के बावजूद नौकरी के अवसर लगातार कम होते गए हैं। हिमाचल प्रदेश को मानव विकास के मामले में इसकी उपलब्धियों के लिए पहचान हासिल है, लेकिन सत्ताधारी पार्टी ने उस विरासत को भी दागदार बना डाला है। अगर भाजपा हिमाचली लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं कर सकती है, तो कम से कम वह इतना तो कर ले कि अपने पूर्ववर्तियों द्वारा की गई प्रगति को तो न उलट कर रख दे।

लेखक दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र शोधार्थी हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

How the BJP has Undone Progress Made in Himachal Pradesh

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