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2022 बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के ‘राजनयिक बहिष्कार’ के पीछे का पाखंड

राजनीति को खेलों से ऊपर रखने के लिए वो कौन सा मानवाधिकार का मुद्दा है जो काफ़ी अहम है? दशकों से अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने अपनी सुविधा के मुताबिक इसका उत्तर तय किया है।
beijing
चित्र साभार: रायटर्स

4 फरवरी से बीजिंग में 2022 शीतकालीन ओलंपिक शुरू हो गए हैं। इसके साथ ही चीन की राजधानी ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन दोनों ही खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन जायेगा। यह पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को वैश्विक दक्षिण में शीतकालीन ओलंपिक की मेजबानी करने वाला पहला देश भी बना देगा, जिस पर ऐतिहासिक रूप से यूरोप और उत्तरी अमेरिका (सर्वकालिक पदक तालिका में शीर्ष के 14 देशों के गृह के तौर पर) का वर्चस्व कायम रहा है। जापान और दक्षिण कोरिया के अलावा चीन इतिहास में एकमात्र एशियाई मेजबान देश के तौर पर बना हुआ है।

पश्चिमी मीडिया की कवरेज में ये मील के पत्थर, खेलों की शुरुआत की ओर अग्रसर होने के बावजूद करीब-करीब पूरी तरह से अचिह्नित रह गए हैं। इसके बजाय चीन को एक विशिष्ट “सत्तावादी” राज्य और इसलिए अयोग्य मेजबान के तौर पर चित्रित किया जा रहा है। 6 दिसंबर, 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से बीजिंग ओलंपिक के “राजनयिक बहिष्कार” की घोषणा का मार्ग प्रशस्त करते हुए “शिनजियांग में मानवता के खिलाफ नरसंहार, अपराधों एवं अन्य मानवाधिकारों के हनन” के आरोपों का हवाला दिया गया था। इसके बाद ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया (यानि इसके सभी किंतु “पांच देशों” वाले सहयोगियों में से एक) के साथ-साथ जापान और छोटे उत्तरी यूरोपीय देशों के एक समूह ने पालन किया।

द फाइव आईज न सिर्फ अंग्रेजी भाषा के माध्यम से एकजुट हैं, बल्कि बसने वाले उपनिवेशवाद, स्थानीय नरसंहार और हिंसक रूप से लागू क्षेत्रीय एवं वैश्विक वर्चस्व के साझे इतिहास में साझीदार रहे हैं। और जापान 20वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में पूर्वी एवं दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश हिस्सों पर अपने बर्बर आक्रमण और औपनिवेशिक शासन के लिए बड़े पैमाने पर कमोबेश आज भी कोई पछतावे की भावना नहीं रखता है, जिसने अकेले चीन में ही करीब 2 करोड़ लोगों को मार डाला था। इसलिए इस बेहद निराशाजनक दृश्य के रचनाकारों के पास चीन के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है – ऐसे आरोप जो खुद-ब-खुद बारंबार और पूरी तरह से घोर अतिशयोक्तिपूर्ण और पूरी तरह से झूठ पर आधारित मिश्रण के रूप में पर्दाफाश किये जा चुके हैं, जिसे कुछ नहीं तो कम से कम शिनजियांग के भीतर से ही सैकड़ों उइगरों के विवरणों से स्पष्ट किया जा चुका है।

यह तो पुरातनपंथी “सिद्धहस्त पीड़ितों” के अलावा चीनी आवाजों के व्यापक प्राच्य उन्मूलन की सिर्फ एक अभिव्यक्ति है, जो कम्युनिस्ट पार्टी के निरंकुशवाद से निजात पाने के लिए पश्चिमी मुक्ति के लिए कोलाहल करते हैं। यह उइघरों के समान संपूर्ण राष्ट्रीयताओं से लेकर टेनिस स्टार पेंग शुआई जैसे इक्का-दुक्का व्यक्तियों तक हर स्टार पर लागू किया जाता है, जिनका वीबो पोस्ट पूर्व उपाध्यक्ष झांग गाओली के साथ उनके विवाहेतर संबंध के बारे में नवंबर 2021 में खूब वायरल हुआ था। पोस्ट के जल्दी डिलीट कर देने और इसके साथ ही पेंग की सोशल मीडिया से अनुपस्थिति के चलते मीडिया ने उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता की एक क्रियात्मक बाढ़ को जन्म दे डाला। पश्चिमी खेल मीडिया सहित महिला टेनिस संघ के श्वेत अमेरिकी अध्यक्ष स्टीव साइमन सहित हर तरफ से इस मुद्दे पर हाय-तौबा मचाई जाने लगी। पेंग के द्वारा व्यक्तिगत तौर पर आश्वासन देने के बावजूद सार्वजनिक एवं स्वतःस्फूर्त साक्षात्कारों में अब उनके “जबरन गायब होने” के बारे में सार्वभौमिक अटकलबाजियों का सिलसिला या उनकी पोस्ट का जबरन गलत अनुवाद कर उसमें से यौन उत्पीड़न का अर्थ निकालने का सिलसिला लगातार चलता रहा। इस पतनशील कहानी की टाइमिंग और विशेष रूप से इससे चीनी खेलों पर पड़ने वाले प्रभावों ने बहिष्कार के प्रचारकों के लिए इसे हाथों-हाथ लेने के लिए बाध्य कर दिया, जो जाहिर तौर पर इसका इस्तेमाल खिलाडियों की सुरक्षा और निगरानी किये जाने का भय दिखाने में कर रहे हैं।

राजनयिक बहिष्कार को लेकर चीनी अधिकारियों की प्रतिक्रिया ने संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा (जिसने गुपचुप तरीके से 46 वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों के लिए वीजा का अनुरोध और हासिल किया) प्रत्यक्ष रूप से अपने मुद्दे से पीछे हटने के साथ-साथ खेलों के राजनीतिकरण से बचने की अपील पर खिल्ली उड़ाई है। उदाहरण के लिए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि यह कदम “ओलंपिक घोषणापत्र के द्वारा स्थापित खेलों की राजनीतिक तटस्थता के सिद्धांत का गंभीर तौर पर उल्लंघन करता है।” वैसे तो आधिकारिक स्तर पर इसकी उम्मीद की जा सकती है, लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय खेलों की स्पष्ट और अपरिहार्य रूप से राजनीतिक प्रकृति और विशेष तौर पर आधुनिक ओलंपिक की राजनीतिक प्रकृति को अदृश्य कर देता है।

ओलंपिक का घिनौना नस्लीय और औपनिवेशिक इतिहास

निम्नलिखित ऐतिहासिक सिंहावलोकन को एक पूर्व पेशेवर फुटबाल खिलाड़ी और वर्तमान में ऑरेगोन में पैसिफिक यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, जूल्स बॉयकाफ के द्वारा लिखित पॉवर गेम: ए पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ़ ओलंपिक (2016) में विस्तार से चित्रित किया गया है। वे संभवतः ओलंपिक और इसके मेजबान शहरों पर इससे पड़ने वाले हानिकारक सामाजिक प्रभावों के सबसे प्रमुख आलोचक हैं।

बॉयकोफ़ बताते हैं कि आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत से ही श्वेत वर्चस्व और यूरोकेंद्रित की एक विशेष कुलीन मनोदशा को अंकित किया गया था। बैरन पिएरे डी कौबेरटिन, जिन्होंने 1894 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (आईओसी) की स्थापना की थी, ने इस बात पर शोक व्यक्त करते हुए इसे “पूर्वी देशों का प्राकृतिक आलस्य” की संज्ञा दी थी।

इसके बावजूद, उन्होंने अफ्रीकी मूल के एथलीटों को इसमें शामिल करने के लिए दबाव डाला, सिर्फ इस वजह से क्योंकि वे संभवतः “श्वेत इंसान की हजारों ईर्ष्या के चलते बर्बाद हो चुके हैं और फिर भी ठीक उसी समय, उनकी नकल करने की इच्छा और इस तरह अपने विशेषाधिकारों को साझा करने की इच्छा से विमुख कर दिए जा सके।” 1904 के सेंट लुइस ओलंपिक में मानव जाति विज्ञान के दिनों का एक विकृत दृश्य दिखाया गया था, एक ऐसा आयोजन जिसका उद्देश्य (और धांधली) खिलाडियों के बीच में आपसी प्रतिस्पर्धा के जरिये यह “साबित” करने का था कि “आधुनिक काकेशियाई इंसान की तुलना में आदिम पुरुष शारीरिक एवं मानसिक विकास दोनों ही में काफी कमतर है।”

ये प्रवृत्तियां 1936 बर्लिन ओलंपिक खेलों के नाज़ी प्रौपगैंडा कूप के साथ अपने भयावह चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई थी। कुछ लोगों ने 1936 के बर्लिन खेलों को खुले दिल से समर्थन करने के बाद 2022 के बीजिंग खेलों के अमेरिकी सरकार के प्रतीकात्मक “बहिष्कार” का नेतृत्व करने के घोर पाखंड की आलोचना की है। विरोध करने वाले टिप्पणीकारों ने बाद वाले को मूल “नरसंहार ओलंपिक” और पूर्व वाले को एक मिसाल के तौर पर बताया है।

इन सभी तुलनाओं में यह बात आसानी से भुला दी जाती है कि 1936 में अमेरिकी बहिष्कार के लिए एक सघन अभियान चलाया गया था। इसे अमेरिकी ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष एवरी ब्रुंडेज के द्वारा निर्ममता से ख़ारिज कर दिया गया था, जिन्होंने कहा था कि “बहिष्कार की शुरुआत यहूदियों के द्वारा की गई है, जिसने जर्मनी के नागरिकों को प्रतिहिंसा के लिए उकसाया है। इसमें साम्यवादी और समाजवादी पृष्ठभूमि वाले यहूदी विशेष तौर पर सक्रिय रहे हैं, और इसी का नतीजा है कि जिस प्रकार की वर्गीय घृणा जर्मनी में मौजूद है वैसी ही प्रवृति संयुक्त राज्य अमेरिका में भी फैलाई जा रही है, जिसका हर समझदार इंसान निंदा करता है।”

1952 में आईओसी के अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने के बाद, ब्रूंडेज ने प्रशंसा करते हुए लिखा था, “1930 के दशक में जर्मनी के पास एक योजना थी जिसने इसे तकरीबन दिवालिये वाली हालत में रहते हुए भी आधा दर्जन वर्षों में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना दिया था। दूसरे देशों के तानाशाहों ने उसी चीज को छोटी मात्रा में हासिल किया था।” अपने अध्यक्षता काल में दक्षिण अफ्रीका और रोडेशिया के रंगभेद के लिए खुले तौर पर श्वेत राष्ट्रवादी शासनों के प्रति स्वीकार्यता को बढ़ावा दिया, जिसे उन्होंने निरर्थक प्रयास साबित हो जाने के बावजूद ओलंपिक के दायरे में बनाये रखने के लिए और अपने गृह देश जिम क्रो साउथ के लिए जमकर संघर्ष किया। खेल की दुनिया में श्वेत वर्चस्व के साथ उनका नाम इतना समानार्थी बन गया कि उन्हें “स्लेवरी एवरी” उपनाम से ख्याति मिल गई। 1967 में अश्वेत अमेरिकी खिलाडियों ने ओलंपिक प्रोजेक्ट फॉर ह्यूमन राइट्स (ओपीएचआर) के गठन के जरिये “यहूदी-विरोधी और अश्वेत-विरोधी व्यक्तित्व एवरी ब्रुंडेज को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष पद से बर्खास्त किये जाने” की स्पष्ट मांग रखी।

ओपीएचआर ने 1968 के मेक्सिको सिटी खेलों का बहिष्कार करने के लिए एक अनोखा नारा जारी किया जो कि मेजबान के चुनाव को लेकर नहीं था, बल्कि इसके उलट समूचे आईओसी ढांचे में व्याप्त अश्वेत-विरोधी नस्लवाद के खिलाफ था। ऐसा कोई बहिष्कार नहीं हुआ, लेकिन ओलंपिक पोडियम पर टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस के प्रतिष्ठित ब्लैक पॉवर सलामी ने कहीं न कहीं इस अभियान को अजर-अमर बना डाला।

जाहिर तौर पर ब्रुंडेज इस भाव-भंगिमा से बुरी तरह से बौखला गए, जिसे उन्होंने “नीग्रोज के द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के झंडे के खिलाफ उलजुलूल हरकत” करार दिया और दोनों खिलाड़ियों को अमेरिकी टीम से निलंबित करने का आदेश दे दिया। हालांकि ओपीएचआर अपने सभी उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सकी, और ब्रुंडेज अध्यक्ष के तौर पर अगले चार वर्षों तक रहे, किंतु यह ओलंपिक अभियान रंगभेदी दक्षिण अफ्रीका और रोडेशिया के निष्कासन को बनाये रखने में सहायक रहा। और जब आईओसी के द्वारा न्यूजीलैंड की रग्बी टीम के दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर उसे प्रतिबंधित किये जाने से इंकार कर दिया तो इसके बहिष्कार के आह्वान ने 1976 के खेलों से 29 अधिकांश अफ्रीकी देशों की सैद्धांतिक बहिष्कार के आह्वान को स्वीकार किया गया था।

आईओसी आज तक यूरो-अमेरिकी रुढ़िवाद और अभिजात वर्ग के विशेषाधिकार का एक स्व-चयनित एवं स्वयं-चिरस्थायी गढ़ बना हुआ है। इसके सक्रिय एवं मानद सदस्यों का दसवां हिस्सा पूरी तरह से वंशानुगत शाही ख़िताब वालों के लिए सुरक्षित है (हालंकि इनमें अब मजबूत खाड़ी के अरब प्रतिनिधियों को भी शामिल कर लिया गया है), और इसका एकमात्र “सम्मानित सदस्य” अब हेनरी किसिंजर हैं। यदि ब्रुंडेज को छोड़ दें तो हर आईओसी अध्यक्ष यूरोपीय रहा है; फ्रेंच और अंग्रेजी ही इसकी कामकाजी भाषा बनी हुई है। इस प्रकार, अपने अस्तित्व के आठ दशकों के दौरान यदि कभी ओलंपिक के बहिष्कार की आवाज आई है, तो यह विशिष्ट रूप से हर बार उत्पीड़ित लोगों की तरफ से आई है, और हर बार संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से क्रूर निंदा की गई है।

आज जब उन्हीं प्रतिक्रिया की ताकतों के द्वारा 2022 बीजिंग खेलों के “बहिष्कार” का आह्वान किया जा रहा है, तो वे इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ रहे हैं कि वास्तव में वे किस बात से डर रहे हैं: एक उदीयमान चीन जो वैश्विक खेल के क्षेत्र में उनके अभी तक के निर्विवाद वर्चस्व को चुनौती दे रहा है। यहां तक कि जूल्स बॉयकोफ़ जो कि अन्यथा बेहद कटु टिप्पणी करते हैं, जिस टिप्पणी को चीन को लेकर पश्चिमी हमलों को स्वीकार किया जाता हैं, उन्हें इस बात को इंगित करने में पीड़ा होती है:

“अमेरिका में, चीन आज के दिन एक द्विदलीय पंचिंग बैग बन गया है, जिसमें गलियारे के दोनों पक्ष के राजनीतिज्ञ तथ्यहीन दावे कर रहे हैं, जो मैककार्थी तक को लज्जित कर दे। इसने अति सरल आख्यानों को परोसने का काम किया है, जो एक द्वेषपूर्ण चीनी राज्य के बर-खिलाफ एक स्वतंत्रता-प्रेमी अमेरिका को खड़ा करता है। बदले में, यह पाखंडी दृष्टिकोण अमेरिकी युद्ध मशीनरी को उत्तेजित करता है... ये कटार-चमकाने वाले इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि अमेरिका के पास दुनियाभर में ऐसे तकरीबन 750 सैन्य ठिकाने हैं जबकि चीन के पास सिर्फ एक है। सबसे महत्वपूर्ण, यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब जलवायु परिवर्तन एवं अन्य सुरक्षा मामलों में अमेरिकी-चीनी सहयोग का प्रश्न बेहद अहम हो गया है।”

चार्ल्स जू, क़ियाओ कलेक्टिव एवं नो कोल्ड वॉर कलेक्टिव के सदस्य हैं।

स्रोत: यह लेख पहली बार क़ियाओ कलेक्टिव पर प्रकाशित हुआ था और इसे ग्लोबट्रोटर के साथ साझेदारी में रूपांतरित किया गया था।

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ा जा सकता है।

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