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बिहारः जूनियर डॉक्टर्स की हड़ताल शुरू, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने इनकी मांगों पर तवज्जो नहीं दिया

राज्य भर में जूनियर डॉक्टर्स ने स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि 15 हज़ार रूपये प्रति माह तो मकान बनाने वाले राजमिस्त्री को भी नहीं मिलता है।
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फ़ोटो साभार: ईटीवी भारत

बिहार के जूनियर डॉक्टर्स सोमवार यानी आज से एक बार फिर स्टाइपेंड बढ़ाने की अपनी पुरानी मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए हैं। इससे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। हालांकि इमरजेंसी सेवा को इससे दूर रखा गया है ताकि इमर्जेंसी में आए मरीज़ों का इलाज कर उनकी जान बचाई जा सके। जूनियर डॉक्टर्स का कहना है कि साल 2013 से स्टाइपेंड के तौर पर इंटर्न को महज 15 हज़ार मिलता आ रहा है जबकि कई बार मांग पत्र देने और आंदोलन के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्टाइपेंड बढ़ोतरी को लेकर केवल आश्वासन ही दिया गया। 8 साल बाद भी स्टाइपेंड में बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे में अब काम कर पाना मुश्किल है।

बिहार की राजधानी पटना स्थित पीएमसीएच समेत राज्य के तमाम अस्पतालों में मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टर्स की हड़ताल के चलते अस्पतालों में ओपीडी सेवा पूरी तरह प्रभावित है। इसको लेकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की नई सरकार के सामने चुनौती बढ़ गई है। इस हड़ताल से पहले भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ बनी नीतीश सरकार के कार्यकाल में इन डॉक्टर्स की मांग पूरी नहीं की गई थी जिसके चलते एक बार फिर इन्हें हड़ताल का सहारा लेना पड़ रहा है। फिलहाल नई सरकार में राजद कोटे से डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के अधीन स्वास्थ्य विभाग काम कर रहा है। ऐसे में उनके सामने यह पहली और बड़ी चुनौती है। बता दें कि तेजस्वी यादव से पहले बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बीजेपी कोटे से मंगल पांडे थे जिन्होंने इन डॉक्टर्स की मांग पर कोई ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया था।

स्टाइपेंड बढ़ाए जाने को लेकर हड़ताल कर रहे जूनियर डॉक्टर्स का कहना है कि जब तक उनकी पढाई पूरी नहीं हो जाती है तब तक वापस काम पर नहीं लौटेंगे। बता दें कि बिहार में 9 मेडिकल कॉलेज हैं, जहां स्वास्थ्य व्यवस्था प्रभावित है। ज्ञात हो कि पिछले साल भी जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ने पांच सूत्री मांगों को लेकर हड़ताल किया था। उस समय जूनियर डॉक्‍टर्स ने ओपीडी के साथ-साथ इमरजेंसी और सर्जरी में भी काम न करने का निर्णय लिया था। हालांकि उस समय कोरोना के साथ अन्य चीजों का हवाला देते हुए सरकार ने जूनियर डॉक्टर्स को आश्वासन देकर मना लिया था और डॉक्टर्स काम पर लौट आए थें। बताया जा रहा है कि इस बार जूनियर डॉक्टर अपने साथ मारपीट की घटना को लेकर भी नाराज़़ हैं। उनका आरोप है कि पीएमसीएच में एक जूनियर डॉक्टर को मरीज़ के परिजनों द्वारा पीटा गया है।

बता दें कि सूबे के बड़े अस्‍पतालों में बड़ी तादाद में मरीज़ रोज़ाना इलाज कराने के लिए आते हैं। जूनियर डॉक्‍टर्स का इसमें बड़ा योगदान रहता है। ऐसे में राज्‍य भर के जूनियर डॉक्‍टर्स के हड़ताल पर जाने से स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं ठप हो गई हैं।

राज्य के बड़े अस्पतालों में से एक दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के जूनियर डॉक्टर्स ने इस मांग को लेकर ओपीडी में ताला लगाकर काम रोक दिया। इससे ओपीडी में आने वाले मरीज़ों को दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। आंदोलन कर रहे जूनियर डॉक्टर्स का कहना है कि हम लोगों को करीब 15 हज़ार के प्रति माह के हिसाब से दिया जा रहा है, जो प्रतिदिन 500 रुपये बैठता है। यह मकान बनाने वाले एक राजमिस्त्री की मज़दूरी से भी कम है। जूनियर डॉक्टर्स की मांग है कि उनका स्‍टाइपेंड बढ़ा कर 35 हजार रुपया किया जाए।

इन डॉक्टर्स का कहना है कि सरकार ने पिछले चार सालों से स्टाइपेंड को रिवाइज नहीं किया है। साल 2017 में सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि हर तीन साल में इसको रिवाइज किया जाएगा लेकिन सरकार अपने वादों से पीछे हट रही है। डॉक्टर्स का कहना है कि अपनी मांगों को लेकर हमलोग कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं लेकिन सरकार केवल आश्वासन ही देती रही है। हमलोगों की मांग है कि पंद्रह हज़ार के वेतन को बढ़ा कर 35 हजार रुपया प्रतिमाह किया जाए। जब तक हम लोगों की मांगों को नहीं मान लिया जाता है आंदोलन जारी रहेगा।

हड़ताल कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि आईजीआईएमएस और देश के कई अन्य मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस इंटर्न को 30 से 35 हज़ार रुपये से ज़्यादा प्रतिमाह मानदेय मिलता है लेकिन हमलोगों के स्टाइपेंड में पिछले आठ वर्षों से कोई वृद्धि नहीं हुई है।

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