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13वां एडवा राष्ट्रीय सम्मेलन : निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज बनाने के संघर्ष को आगे बढ़ाने का लिया गया संकल्प

"प्रतिरोध की आवाज़ के प्रतीक के रुप में पहचान की गई एडवा की छः कार्यकर्ताओं को उद्घाटन सत्र में सम्मानित किया गया।" मल्लिका साराभाई ने कहा, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए संघर्ष आगे बढ़ाने को हम लोग यहां इकट्ठा हुए हैं।
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बृंदा करात उद्घाटन सत्र को संबोधित करती हुईं। फोटो साभार : Deshabhimani

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) के 13वें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन 6 जनवरी को भारी संख्या में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में त्रिवेंद्रम में किया गया।

एडवा की अध्यक्ष मालिनी भट्टाचार्य ने 'नारी मुक्ति' के नारों के बीच सुबह सफेद झंडा फहराया। इस झंडे पर बुलंद मुट्ठी के साथ एक महिला की तस्वीर उकेरी हुई थी, साथ ही उस पर एक लाल सितारा और मोटो(Motto) "लोकतंत्र, समानता, महिलाओं की मुक्ति" था।

भट्टाचार्य एडवा झंडा फहराते हुए। फोटो साभार : Deshabhimani

ध्वजारोहण के बाद, डेलिगेट्स ने फूल चढ़ाकर आंदोलन के संस्थापकों और शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

इसके बाद, 12 राज्यों से लाई गई मशालें - जिनमें बड़े स्तर पर पूर्व-सम्मेलन कार्यक्रम होते थे - आयोजन स्थल पर स्थापित की गईं।

एडवा महासचिव मरियम धवले ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। फोटो साभार : Deshabhimani

13वें एडवा सम्मेलन के लिए विशेष रूप से लिखा और रचा गया स्वागत गीत 'स्वागतम' तीन भाषाओं - मलयालम, हिंदी और तमिल में प्रस्तुत किया गया।

उद्घाटन सत्र

स्वागत समिति की अध्यक्ष पीके श्रीमती टीचर ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने केरल में नारी मुक्ति में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) की भूमिका पर ज़ोर दिया।

इसके बाद, एडवा अध्यक्ष भट्टाचार्य ने उन महिला आंदोलनों और अन्य लोकतांत्रिक संघर्षों के कार्यकर्ताओं के लिए शोक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिनका पिछले सम्मेलन (2019) के बाद निधन हो गया था।

शहीदों के लिए एक मिनट का मौन रखा गया। फोटो साभार : Theekkathir

तेलंगाना किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष की नेता मल्लू स्वराज्यम और एडवा की संस्थापक नेता मैथिली शिवरामन को श्रद्धांजलि दी गई। इसके अलावा इसमें एमसी जोसफीन, केआर गौरी अम्मा, भीबा घोष गोस्वामी, प्रमिला पंधे, रंजना निरूला, माधुरी बर्मन और वीवी सरोजिनी सहित अन्य शामिल थे।

राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई ने उद्घाटन भाषण दिया। उन्होंने मस्जिद या मंदिर के बजाय एक लोकतांत्रिक स्थान पर इतनी सारी महिलाओं को इकट्ठा देख अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की। उन्होंने कहा, "हमने ग़रीबी और असमानता से मुक्त एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण दुनिया का सपना देखा है और हम इसकी लड़ाई के लिए यहां इकट्ठे हुए हैं।"

उद्घाटन भाषण देते हुए मल्लिका साराभाई। फोटो साभार : AIDWA

एडवा की पूर्व महासचिव बृंदा करात ने अपने मुख्य भाषण में महिला आंदोलन के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर रौशनी डाली। उन्होंने कहा कि इस देश में महिलाओं ने कई बैरियर को तोड़ा है और अपने सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ी हैं, लेकिन इनमें से कई उपलब्धियां आज ख़तरे में हैं।

फेडरेशन ऑफ क्यूबा वीमेन (एफ़एमसी) की ओर से एलिडा ग्वेरा ने सम्मेलन को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने क्यूबा की महिलाओं द्वारा निभाई गई क्रांतिकारी भूमिका का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि क्यूबा सरकार की सामाजिक नीतियां - जैसे शिशु गृह, दिन के स्कूल का प्रावधान, पोषण पर ध्यान देना और बुज़ुर्गों की देखभाल जैसी चीज़ें एफएमसी (एफ़एमसी) के कामों का परिणाम थीं।

मंच पर मौजूद ग्वेरा, करात, सेतलवाड़ व अन्य नेता। फोटो साभार : AIDWA

"प्रतिरोध की आवाज़ के प्रतीक के रुप में पहचान की गई एडवा की छः कार्यकर्ताओं को उद्घाटन सत्र में सम्मानित किया गया।"

ओडिशा की संजुक्ता सेठी को बंधुआ मज़दूरी और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई के लिए सम्मानित किया गया। पुलिस हिरासत में अपने पति की हत्या के बाद न्याय के लिए लड़ने वाली तमिलनाडु की रेवती को सम्मानित किया गया। लालगढ़ की लोकप्रिय नेता फुलारा मोंडल को भी सम्मानित किया गया जिन्होंने माओवादी-तृणमूल कांग्रेस के आतंक का विरोध किया और इन्हें झूठे मुक़दमों में भी फंसाया गया था।

आंगनबाड़ी कर्मचारियों और सहायिकाओं के संघर्ष में अहम भूमिका निभाने वाली हरियाणा की कमलेश को उनके संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया। सिंघु बॉर्डर पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन में महिला किसानों को संगठित करने वाली हरियाणा की शीला को उनके योगदान का श्रेय दिया गया। मलप्पुरम की एक नृत्यांगना वीपी मंज़िया को भी सम्मानित किया गया, इन्होंने सांप्रदायिक और रूढ़िवादी ताक़तों का सामना किया और इन्हें कला से दिलचस्पी के लिए समुदाय से बाहर कर दिया गया था।

2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में ज़मानत पर बाहर तीस्ता सेतलवाड़ ने एडवा के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। दंगा पीड़ितों का समर्थन करने के लिए उन्हें बार-बार कई तरह से निशाना बनाया गया है।

उन्होंने कहा, "महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के दो पहलू हैं। एक यह है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की बर्बरता और घूरने की घटना बढ़ गई है। दूसरा उन घटनाओं का चयनात्मक प्रदर्शन जो सत्ता की मानसिकता और शासन के अनुकूल है।

उद्घाटन सत्र भट्टाचार्य के अध्यक्षीय भाषण के साथ समाप्त हुआ जिन्होंने इस दमनकारी समय में एडवा के सामने मौजूद चुनौतियों को रेखांकित किया।

उद्घाटन सत्र में 23 राज्यों के 850 से अधिक प्रतिनिधियों, पर्यवेक्षकों और विशेष आमंत्रित लोगों ने भाग लिया।

राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले, एडवा सदस्यों द्वारा 5 जनवरी की शाम को त्रिवेंद्रम से तीन रैलियां निकाली गईं। वे ध्वजारोहण के लिए सेंट्रल स्टेडियम में इकट्ठा हुए।

एडवा सम्मेलन से पहले रैली। फोटो साभार : Theekkathir

सम्मेलन की रिपोर्ट आगे रखी जाएगी और प्रतिभागी अगले तीन दिनों में एमसी जोसेफिन नगर, टैगोर थियेटर में इस पर विचार-विमर्श करेंगे।

यह स्थान वर्ष 1970 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफ़आई) के पहले सम्मेलन की मेज़बानी के कारण भी ऐतिहासिक है।

त्रिवेंद्रम दूसरी बार एडवा सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है, पहली बार 36 साल पहले 1986 में किया था। एडवा का गठन 1981 में हुआ था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

13th AIDWA National Conference: Gathered Here to Fight for Dream of Fair and Just World, Says Mallika Sarabhai

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