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बड़े आंदोलन की तैयारी में मज़दूर संगठन, श्रमिक अधिकारों की मांग

लखनऊ में मजदूरों के प्रतिनिधियों का एक दिवसीय राज्य सम्मेलन संपन्न हुआ है, जिसमें भाग लेने के लिए लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, जौनपुर, कानपुर, बाराबंकी, देवरिया, फैजाबाद, बाँदा, बस्ती आदि 15 जिलों से आए करीब डेढ़ सौ संगठनकर्ताओं और श्रमिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
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22 अगस्त की महारैली के लिए संकल्पबद्ध श्रमिक

ट्रेड यूनियन एक्टू के तहत कार्यरत ऑल इंडिया कंस्ट्रक्शंस वर्कर्स यूनियन के बैनर तले लखनऊ स्थित दारूलसफ़ा के कॉमन हॉल में असंगठित क्षेत्र से जुड़े मजदूरों के प्रतिनिधियों का एक दिवसीय राज्य सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें भाग लेने लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, जौनपुर, कानपुर, बाराबंकी, देवरिया, फैजाबाद, बाँदा, बस्ती आदि 15 जिलों से आये करीब डेढ़ सौ संगठनकर्ताओं और श्रमिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

पुराने श्रम कानूनों की जगह लेने वाले नये श्रम कानूनों का हुआ विरोध.....

मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए भाकपा (माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि यह सम्मेलन बहुत कठिन दौर में हो रहा है, सरकारें मजदूरों के अधिकारों को निरंतर सीमित करती जा रही हैं, श्रम कानूनों में संशोधन के नाम पर प्रचलित सारे कानूनों को समाप्त कर चार श्रम संहिताएं निर्मित कर मजदूरों को पूंजीपतियों की गुलामी की ओर ढ़केला जा रहा है, फिक्स टर्म एंप्लायमेंट जैसे कानून बनाकर मजदूरो की समाजिक सुरक्षा के साथ सेवा की समस्त अवधारणाओ को समाप्त कर दिया गया है, उसी कानून का सेना मे 4 वर्ष की भर्ती के लिए अग्निवीर योजना लायी गई है, आने वाले समय में देश का चेहरा क्या होगा सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।

उन्होने आगे कहा कि समाज के सभी कमजोर तबके मजदूर, महिला, दलित, आदिवासी, छात्र,नौजवान, किसान अल्पसंख्यक सत्ता की काली नीतियों के दमन के सर्वाधिक शिकार हैं, मेहनतकश वर्ग की रोटी रोजी के साथ उनके हक अधिकारों पर डाकाजनी हो रही है, यही नहीं विभाजनकारी सत्ता इस देश मे लोकतंत्र के खात्मे की तरफ बढ़ रही है। आज हम सब मेहनतकश ,उत्पीड़ित तबकों को एकजुट होकर अपने हक अधिकारों के लिए फासीवादी   निजाम के विरुद्ध खड़ा होना होगा।

निर्माण मजदूरों के लिए बने कल्याणकारी बोर्ड को खत्म करने की सरकारी कोशिशों पर आक्रोश जताते हुए फैजाबाद निर्माण मजदूर यूनियन के अध्यक्ष राम भरोष  ने कहा कि सरकार की इन कोशिशों के खिलाफ़ मजदूरों को मोर्चा खोलना ही होगा इसके अलावा अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए और कोई विकल्प नहीं बचा। उन्होने कहा कि इस पूंजीपरस्त सरकार से आज़ कुछ भी नया हासिल करने के हालात नही हैं, बल्कि अतीत मे हुए संघर्षो की बदौलत जो कुछ भी मजदूरों ने हासिल किया है वर्तमान में तो उसे ही बचाने की एक बड़ी चुनौती है। वे अफ़सोस जताते हुए कहते हैं आज की यह पूँजीपतियों की सरकार जिस कदर मजदूरों के हक़ में बने कानूनों को खत्म करने पर आमादा है उससे साफ है कि समाजिक सुरक्षा तो बीते युग की कहानी हो जायेगी साथ ही काम के घंटे 8 से 12 कर दिये गये हैं। आज़ संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र दोनों हिस्सों के श्रमिक एक जैसी ही भय़ावह परिस्थितियों का सामना कर रहे हैँ।

सीतापुर से आये निर्माण मजदूर संगठन के सचिव अर्जुन लाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान केन्द्र व राज्य की सरकारें मजदूर वर्ग के असीम बलिदानों से हासिल अधिकारों को छीन लेने पर आमादा हैं। रोजगार के अवसरों में भारी कमी के साथ जहाँ रोटी रोजी के संकट के साथ ज़िन्दा रहने की कठिन स्थितियां सामने हैं वहीं समस्त लोक पक्षधर नियमों, कानूनों को समाप्त करते हुये कल्याण कारी योजनाओं को भी समाप्त करने का काम किया जा रहा है। सुधारों के नाम पर 44 श्रम कानूनों को खत्म कर कुल 4 श्रम संहितायें बनाकर मजदूरों को पूंजीपतियों का गुलाम बनाने का काम किया जा रहा है।

निर्माण मजदूरों के लिए बने कल्याणकारी बोर्ड के लिए धन की आवक की कर प्रणाली को लगभग निर्माण क्षेत्र की कम्पनियों के पक्ष में इतना लचीला कर दिया गया है कि वह दिन दूर नहीं जब यह बोर्ड भी सफेद हाथी बन जायेगा। यही नहीं इसके पैसे के चुनावी और बेजा इस्तेमाल ने इसकी प्राथमिकताओं को भी बदल दिया है और देखते-देखते न ज़ाने कितनी योजनायें समाप्त हो गईं।

बस्ती-गोरखपुर मंडल के निर्माण मजदूर संगठन के संयोजक शंभू तिवारी मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए कहते हैं ठीक इसी समय सरकारें मजदूरों के संगठन और आंदोलन करने के अधिकारों को भी छीनने की कोशिश में लगी हैं ,अपने सब काले कारनामों से ध्यान भटकाने के लिए मेहनतकश वर्ग में धार्मिक उन्माद फैलाकर विभाजन का खेल खेल रही हैं। आज मजदूर वर्ग के सामने अपने हक अधिकार,अपनी आजादी और सम्मान को बचाए रखने के लिए फासीवादी भाजपा सरकार के मजदूर विरोधी चेहरे को समझते हुए एकजुट होकर संघर्ष के मोर्चे खोलने होंगे। यह सम्मेलन निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत यूनियनों, संघर्षरत मजदूर वर्ग को एक नई दिशा देकर वक्त की चुनौती के मुकाबले खड़े होने की शक्ति अर्जित करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। मजदूरों से अपील करते हुए वे कहते हैं कि संगठनों को मजबूत कर संघर्ष के अगले मोर्चे की तैयारी के क्रम में सम्मेलन को सफल करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दें जिससे भविष्य में एक प्रदेश व्यापी आंदोलन के जरिए श्रमिकों के प्रश्नों को हल करने की ओर बढ़ा जा सके तो वहीं ट्रेड यूनियन एक्ट के प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही ने कहा कि मजदूरों ने ही इतिहास में हर  बदलाव की बुनियाद डाली है, और सांप्रदायिक फासीवाद का मुकाबला भी मजदूर ही करेगा।

मजदूर संगठन की मांगें

संगठन ने सम्मेलन के जरिए अपनी 12 सूत्री माँगे रखी जिस पर तमाम प्रतिनिधियों ने सहमति जताते हुए इन मांगों पर चरणबद्ध तरीके से आंदोलन चलाने का संकल्प लिया.....

  1. कल्याण बोर्ड के कोष(फंड) को समृद्ध बनाने के लिए केंद्र सरकार अपने जी.डी.पी(सकल घरेलू उत्पाद) का 1 प्रतिशत प्रदान करे और सेस को बढ़ाकर 3 प्रतिशत किया जाए, यूनियनों के अधिकारों के उल्लंघन पर रोक लगाई जाए तथा कल्याण बोर्ड में श्रमिकों का पंजीकरण सुविधा पूर्ण हो।
  2. सभी पुराने श्रम कानून बहाल किए जाएं और चार श्रम कोड कानूनों को वापस लिया जाए।
  3. कोरोना काल का एक-एक हजार रुपया सभी मजदूरों के खाते में भेजा जाए।
  4. बकाया मजदूरी के भुगतान की समुचित व्यवस्था किया जाए।
  5. दैनिक न्यूनतम मजदूरी 1000/- घोषित किया जाए।
  6. सभी निर्माण मजदूरों को वास जमीन, मुफ्त आवास, मुफ्त शिक्षा व चिकित्सा का प्रावधान किया जाए।
  7. निर्माण मजदूरों के लिए ईएसआई कवरेज लागू किया जाए।
  8. आठ घंटे कार्यदिवस के साथ ही केन्द्र सरकार के नियमित कर्मचारियों की तरह अतिरिक्त काम के लिए दो गुना मजदूरी, बोनस, छुट्टी, ग्रेच्युटी और अन्य सुविधाएं प्रदान की जाएं।
  9. सभी निर्माण मजदूरों को राशन कार्ड प्रदान किया जाए
  10. कार्यस्थल पर महिला श्रमिकों की सुरक्षा की गारंटी की जाए।
  11. प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए सख्त, सुलभ तथा सरल कानूनी प्रावधान किया जाए।
  12. कल्याण बोर्ड के जरिये प्रदत्त आर्थिक अनुदानों( यथा पेंशन, पारिवारिक पेंशन, विकलांगता अनुदान, मृत्यु लाभ, चिकित्सा सहायता, छात्रवृत्ति, गृह मरम्मत अनुदान, साइकिल अनुदान, विवाह सहायता, मातृत्व लाभ आदि को महंगाई मूल्य सूचकांक के साथ जोड़कर प्रति वर्ष उसका पुनरीक्षण करके उसका भुगतान किया जाए.  

सम्मेलन में आये सभी प्रतिनिधियों ने एक आवाज़ में नये चार श्रम संहिताओं का विरोध कर इसे वापस लेने की बात कही।

चार श्रम संहिताएं और विरोध के स्वर

संसद में 23 सितंबर 2020 को श्रम कानून से जुड़े तीन अहम कोड बिल पास हुए।. सरकार ने श्रम सुधार की बात कहते हुए 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को मिलाकर चार कोड बिल तैयार किये थे. इनमें से तीन कोड बिल- औद्योगिक संबंध कोड बिल, सामाजिक सुरक्षा कोड बिल और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा कोड बिल 2020 में पास हुए. चौथे कोड बिल- मजदूरी कोड विधेयक को मोदी सरकार 2019 में ही पारित करा चुकी है। श्रम मंत्री ने राज्यसभा में बिलों को पेश करते हुए इसे ऐतिहासिक करार दिया था और कहा कि ‘श्रमिक कल्याण में यह मील का पत्थर साबित होगा, देश की आजादी के 73 साल बाद जटिल श्रम कानून सरल, ज्यादा प्रभावी और पारदर्शी कानून में बदल जाएंगे.’ उनके मुताबिक लेबर कोड श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा और यह उद्योगों को आसानी से चलाने में मदद करेगा।

हालांकि, सरकार के दावे से अलग श्रमिक संगठन श्रम कानूनों में हुए बदलाव को मजदूरों और कर्मचारियों के हक में नहीं बताते हैं, ये संगठन विशेष रूप से औद्योगिक संबंध कोड बिल से नाराज हैं और पूरे देश में इसका विरोध कर रहे हैं, देश की सबसे बड़ी दस ट्रेड यूनियन मोदी सरकार से श्रम कानूनों में किये गए बदलावों को वापस लेने की मांग कर रही हैं।

इस बात की पूरी संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार नए श्रम कानून 1 जुलाई 2022 से लागू कर सकती है। इन नये श्रम कानूनों का विभिन्न श्रमिक संगठन पुरजोर विरोध कर रहे हैं। संगठन मानते हैं कि अगर ये नये श्रम कानून लागू हो जाते हैं तो इससे सभी उद्योगों और क्षेत्रों में एक नकारात्मक बदलाव हो सकते हैं। कर्मचारियों के काम के घंटे, भविष्य निधि से लेकर वेतन संरचना तक, इन सब में बड़े बदलाव हो सकते हैं। हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई है. नए श्रम कानूनों का मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा (पेंशन, ग्रेच्युटी), श्रम कल्याण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थिति (महिलाओं सहित) पर प्रभाव पड़ेगा। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, मणिपुर, बिहार, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों सहित 23 राज्यों ने नए श्रम कानूनों के तहत नियम बनाए हैं। इन राज्यों ने मजदूरी 2019 पर नए कोड और औद्योगिक संबंध कोड 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति कोड 2020 के आधार पर राज्य श्रम कोड और नियम तैयार किए हैं, जो सभी के द्वारा पारित किए गए है।

असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूर चाहे वो खेतिहर हो या ठेला चलाने वाले। घरों में सफाई या पुताई करने वाले कामगार हो या सिर पर बोझ उठाने वाले। ढाबों में काम करने वाले हो या घरों में काम करने वाले। नए श्रम कानून का अधिकार सब पर लागू होगा। खासकर वेजेस कोड बिल( न्यूनतम मजदूरी कानून) को लेकर मजदूर संगठनों में रोष है। लेकिन सरकार के मुताबिक नये श्रम कानून के तहत आने वाले वेजेस कोड बिल की बदौलत देश में 50 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी का अधिकार मिल सकेगा। इसके अलावा वेतन के भुगतान में देरी की शिकायतें और मजदूरी में लिंग के आधार पर वेतन में भेदभाव की शिकायतें भी यह नया कानून दूर करेगा। सरकार ने श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 178 रुपए प्रति दिन और 4628 रूपए प्रति माह तय किया है। जबकि मजदूर संगठन के मुताबिक सरकार ने जो न्यूनतम मजदूरी तय की है, वह तय मानकों से काफी कम है। इसके अलावा इन कानूनों  में कई और कमियां, जटिलताएं हैं, जो मजदूरों के अधिकार, सुरक्षा और स्थायित्व जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी मुश्किलें पैदा करेंगी। विभिन्न मजदूर संगठनों और ट्रेड यूनियन का कहना है कि सरकार झूठे दावे कर रही हैं। मजदूर संगठनों की मांग है कि न्यूनतम मजदूरी 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी-1984) के तय मानकों के अनुसार निश्चित हो। 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी-1984) में न्यूनतम मजदूरी की एक मानक तय की गई थी। जिसके अनुसार एक मजदूर की मजदूरी उसके परिवार में शामिल तीन इकाइयों के भोजन के बराबर होना चाहिए। 

सम्मेलन ने 3 प्रस्ताव पारित किये जिसमें- अग्निवीर भर्ती योजना को वापस लिए ज़ाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ, दलितो, अल्पसंख्यको और आंदोलनों में भागीदारी करने वाले लोकतंत्र पसंद लोगो के घरों को बुलडोज करने की कार्यवाही की निन्दा का प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से पारित हुआ ,सम्मेलन ने श्रम कानूनो की बहाली करने व चार श्रम संहिताओ को रदद करने का भी प्रस्ताव पारित किया। सम्मेलन के अंत मे 22 अगस्त को निर्माण श्रमिको के सवालो को लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे एक बड़ी रैली करने का निर्णय लिया गया।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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