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कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले और डॉक्टर-नर्सों का विरोध, क्या दिल्ली एम्स में सब ठीक है?

एक ओर देश के बड़े चिकित्सीय संस्थानों में शामिल दिल्ली एम्स में लगातार कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर प्रशासन की कथित ख़ामियों को उजागर करने वाले डॉ श्रीनिवास को रजिस्ट्रार द्वारा कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया है। इसके अलावा अस्पताल में कोविड-19 को लेकर बने हालात के चलते एम्स नर्सेस यूनियन भी अपनी मांगों को लेकर लगातार मुखर है।
Image Courtesy: social media
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“हेल्थ मिनिस्ट्री और ICMR ने N-95 को लेकर जो जानकारी दी है वो झूठ है। यहां भारत में बनने वाले N-95 मास्क के साथ गुणवत्ता और मानकीकरण को लेकर काफी ज़्यादा दिक्कतें हैं।”

ये ट्वीट अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सीनियर रेसिडेंट डॉक्टर राजकुमार श्रीनिवास का है। डॉ. श्रीनिवास ने अपने इस ट्वीट में आगे ये भी लिखा कि अगर आप जर्नलिस्ट हैं और इस बारे में जानकारी पाना चाहते हैं तो मुझे डायरेक्ट मैसेज करें या फिर इस ट्वीट को रिट्वीट करें। अब इस ट्वीट को लेकर एम्स प्रशासन की ओर से डॉक्टर श्रीनिवास को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

क्या है पूरा मामला?

एम्स में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों के बीच 25 मई को डॉक्टर राजकुमार श्रीनिवास ने अस्पताल में वायरस संक्रमण से बचाव के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को मिलने वाले N-95 मास्क की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए एक ट्वीट किया। इस  ट्वीट में उन्होंने ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय को टैग करते हुए लिखा कि N95 मास्क को लेकर सरकार झूठ बोल रही है।

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इस ट्वीट के बाद 1 जून को उन्हें एम्स रजिस्ट्रार द्वारा कारण बताओ नोटिस भेजा गया है। इस नोटिस में लिखा है कि श्रीनिवास को 3 जून तक इसका जवाब देना होगा और अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

नोटिस के अनुसार “डॉक्टर राजकुमार ने ट्वीट कर कहा है कि हेल्थ मिनिस्ट्री और ICMR ने N-95 मास्क से जुड़े जो आंकड़े दिए हैं, वो झूठ हैं। इसी ट्वीट में उन्होंने अधिक जानकारी के लिए पत्रकारों को भी इनवाइट किया है। उन्होंने अपने दावे के सपोर्ट में कोई सबूत भी नहीं दिए। वो एम्स  के सीनियर रेसिडेंट और रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव हैं। इस पद पर होने के नाते उनके शब्द लोगों को और हेल्थ केयर वर्कर्स को काफी प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे वक्त में जहां देश इस महामारी से लड़ रहा है, इस तरह के बिना सबूत वाली बातें फ्रंटलाइन में कोरोना से लड़ रहे हेल्थ केयर स्टाफ की हिम्मत को कम कर सकती हैं। उनमें अपनी सुरक्षा को लेकर संदेह पैदा हो सकता है।”

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क्या कहना है प्रशासन का?

एम्स रजिस्ट्रार संजीव लालवानी ने मीडिया से कहा, “हमने इस मुद्दे पर उनसे जवाब मांगा है। यह उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं है, लेकिन हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या उन्होंने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर जाने से पहले प्रशासन में किसी के साथ उठाया था। अगर कोई समस्या है तो हमारे पास एक प्रणाली है जो हमारे सभी प्रमुख स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उपलब्ध है।”

RDA ने डॉक्टर श्रीनिवास को महासचिव पद से हटाया

डॉक्टर श्रीनिवास को इस ट्वीट के बाद दिल्ली एम्स के रेजिडेंट्स डॉक्टर एसोसिएशन यानी RDA के महासचिव पद से भी हटा दिया गया है। इसके साथ ही उन्हें एसोसिएशन से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

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RDA ने 29 मई को नोटिस जारी कर डॉ. श्रीनिवास पर मीडिया में गलत बयानबाजी का आरोप लगाते हुए उनके कृत्यों की निंदा की है। एसोसिएशन का कहना है कि वो RDA की कार्यकारिणी को दरकिनार कर कई बार बयान जारी कर चुके हैं। इसलिए दो तिहाई एग्जीक्यूटिव्स की सहमति से अब उन्हें तत्काल प्रभाव से पद से हटाया जा रहा है।

मालूम हो कि डॉ श्रीनिवास ने हाल ही में एम्स RDA के उस लेटर को भी ट्वीट किया है जो एसोशिएसन की ओर से अप्रैल में पीएम मोदी को लिखा गया था। इस लेटर में एसोशिएसन ने हेल्थकेयर वर्कर, नर्स, डॉक्टरों द्वारा पीपीई, क्वारंटीन फैसिलिटी का मुद्दा उठाने पर प्रशासन की तरफ से आलोचना और सजा के बारे में सूचित किया था और उसे रद्द करने की अपील की थी।

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एम्स प्रशासन पर धमकी देने का आरोप

एम्स के दो स्वास्थ्यकर्मियों की कोविड-19 से मौत के बाद बीते 28 मई को श्रीनिवास ने एक बयान जारी कर एम्स प्रशासन पर आवाज उठाने वाले डॉक्टरों पर एफआईआर दर्ज कराने की धमकी देने का आरोप लगाया था।

उन्होंने सरकार और प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह जारी रहा तो मरीजों का इलाज करने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की कमी पड़ जाएगी।

एम्स नर्सों के संगठन का विरोध प्रदर्शन

डॉ. श्रीनिवास के अलावा एम्स नर्सेस यूनियन ने भी अस्पताल में कोविड-19 को लेकर बने हालात पर चिंता व्यक्त की है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार, 1 जून को नर्सेस यूनियन ने एम्स निदेशक के दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। इससे पहले यूनियन ने 29 मई को एम्स निदेशक को अपनी मांगों के संबंध में पत्र लिखा था और मांगें पूरी न होने पर 1 जून से विरोध की चेतावनी दी थी।

यूनियन का कहना है कि बार-बार अस्पताल में कोविड-19 की चुनौतीपूर्ण स्थिति संज्ञान में लाने के बावजूद प्रशासन उनकी मांगों पर निष्क्रिय बना हुआ है। उनकी प्रमुख मांगों में कोविड क्षेत्रों में पीपीई के साथ चार घंटे तक समान रूप से ड्यूटी, कोविड और नॉन-कोविड इलाकों में यूनिफॉर्म बदलना, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उचित प्रतिक्रिया प्रणाली की स्थापना, रात की शिफ्ट के दौरान आने-जाने के लिए वाहन की व्यवस्था आदि शामिल हैं।

एम्स नर्सेस यूनियन की महासचिव फमीर सीके ने कहा, “हमारे प्रशासन ने फैसला किया है कि नर्सों को पीपीई में 22 दिनों तक छह घंटे की ड्यूटी करनी होगी जिसमें सिर्फ आठ छुट्टियां होंगी। यह असंभव है, खासकर पीरियड वाली महिला सहयोगियों के लिए। हम संकट के इस समय में देश की सेवा करना चाहते हैं इसलिए केवल कार्यकारी समिति के सदस्य विरोध कर रहे हैं जिसमें लगभग 20 लोग शामिल हैं।”

कोविड-19 आईसीयू में लगातार शिफ्ट करने वाली नर्स श्री विजया ने कहा, ‘पीरियड के दौरान मेरी कुछ सहयोगी तो बेहोश हो चुकी हैं। हम ब्रेक भी नहीं ले पाते हैं। एक सामान्य दिन में हम हर चार घंटे में सैनिटरी पैड बदलते हैं जो कि अब संभव नहीं है। हम वयस्क डायपर पहनते हैं लेकिन वह बहुत ही असुविधाजनक होता है। थकान और कमजोरी तो होती ही है।’

गौरतलब है कि एम्स में कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है। काफी संख्या में संस्थान के स्वास्थ्य कर्मी और उनके परिवार के लोग कोरोना से पीडि़त हो रहे हैं। ख़बर लिखे जाने तक मिली जानकारी के मुताबिक एम्स से जुड़े कुल 479 संक्रमित केस मिले हैं जिनमें दो फैकल्टी, 17 रेजीडेंट, 38 नर्स, 74 सुरक्षा गार्ड, 74 हॉस्पिटल अटेंडेंट और 54 सफाई कर्मचारी शामिल हैं। 

इनके अलावा छह एमएलटी, एक आरटी, छह ओटी और एक एक्सरे तकनीशियन भी कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। 12 डीईओ और एक पीसीसी के अलावा 193 लोग एम्स कर्मचारियों के परिजन भी हैं जो कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। 

बढ़ते संक्रमण पर प्रशासन का स्पष्टीकरण

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि एम्स में जिन स्वास्थ्य कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने की जानकारी मिली है, उसमें कुछ ही कर्मचारी हैं जो कोविड वार्ड में ड्यूटी दे रहे थे और वायरस की चपेट में आए हैं। जबकि बाकी सभी कर्मचारी बाहर से संक्रमित होकर अस्पताल आए हैं।

उन्होंने बताया कि यह कर्मचारी भी दिल्ली के कई इलाकों में रहते हैं। वायरस का आउटब्रेक होने से कर्मचारी भी उसकी चपेट में आ रहे हैं। साथ ही इनके परिजन भी कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं।

एम्स के कर्मचारियों का क्या कहना है?

एम्स के एक रेजिडेंट डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “AIIMS प्रशासन घूमा-फिराकर बातें कर है। वो कह रहे हैं कि ज्यादातर संक्रमण बाहर से हो रहा है लेकिन सच्चाई ये है कि पीपीई किट, N-95 मास्क सिर्फ कोविड वार्ड वालों को दिए जा रहे हैं। बाकि सब भगवान भरोसे हैं। इसके अलावा क्वारंटीन प्रोटोकॉल, हॉस्टल, मेस, सैनिटेशन आदि के नियमों का ठीक से पालन नहीं हो रहा। ये सब हेल्थकेयर वर्कर के संक्रमित होने की बड़ी वजहें हो सकती हैं।”

एक अन्य स्वास्थ्यकर्मी हॉस्पिटल अटेंडेंट ने बताया कि 15 से 20 दिनों में एक मास्क मिलता है। एक ही मास्क को कई दिनों तक पहने रहना भी ख़तरे से भरा हुआ है। हाथों के ग्ल्वस के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसके अलावा अस्पताल में सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना प्रोटोकॉल का भी पूरा पालन नहीं हो पाता। हॉस्पिटल और हॉस्टल में रहने वाले रेजिडेंट डॉक्टर्स पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। ऐसे में बाक़ी स्वास्थ्यकर्मियों की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

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