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स्वास्थ्य
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भाजपा के कार्यकाल में स्वास्थ्य कर्मियों की अनदेखी का नतीजा है यूपी की ख़राब स्वास्थ्य व्यवस्था
एक कमज़ोर और अपर्याप्त स्वास्थ्य कार्यबल का ही नतीजा होता है कि लोगों की स्वास्थ्य सेवा की स्थिति ख़राब हो जाती है। यूपी की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, जहां स्वास्थ्य कर्मी, ख़ास तौर पर ग्रामीण यूपी में प्राथमिक स्तर के सेवा स्वास्थ्यकर्मी कम पारिश्रमिक, काम के ज़बरदस्त बोझ और कई ख़ाली पदों के साथ जूझ रहे हैं।
ऋचा चिंतन
14 Dec 2021
health sector
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार चुनावी वादों की बरसात किये जा रही है। हाल ही में ऐसे कई दावे किये गये हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश को बतौर एक ऐसा मॉडल राज्य दिखाया गया है, जिसने कोविड-19 से असरदार तरीक़े से निपटा है।

हालांकि, अगर हम ज़मीनी हालात पर नज़र डालें, तो हम देखते हैं कि उत्तरप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी है। पहले की एक रिपोर्ट में हमने देखा है कि यूपी में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा किस क़दर चरमरा रहा है। इस रिपोर्ट में हम यूपी में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर स्वास्थ्य कर्मचारियों की स्थिति पर नज़र डाल रहे हैं।

स्वास्थ्य सेवा के जीर्ण-शीर्ण बुनियादी ढांचे और एक नाकाफ़ी और कमज़ोर स्वास्थ्य कार्यबल का नतीजा ही है कि यहां लोगों को मुहैया करायी जा रही स्वास्थ्य सेवा की स्थिति बेहद ख़राब है। यह बदहाली कोविड-19 महामारी और ख़ास तौर पर 2021 में दूसरी लहर के दौरान साफ़ तौर पर नज़र आयी थी। इस सिलसिले में कई समाचार रिपोर्टें सामने आयी थीं, जिनमें दिखाया गया था कि यूपी की स्वास्थ्य प्रणाली किस क़दर चरमरा गयी है। सरकार ने मौतों की वास्तविक संख्या को भी छुपाने की कोशिश की थी, लेकिन तैरती हुई लाश, नदी के किनारे लावारिस पड़ी क़ब्र, और लाशों से अटे-पटे श्मशान और क़ब्रिस्तान ने उस संकट को सरेआम कर दिया था।

जैसा कि हम नीचे देख सकते हैं कि यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं के विभिन्न पदों पर ज़रूरी कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी है। इनमें से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और उप-केंद्रों और प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य कार्यकर्ता जैसे कुछ पद तो माओं और शिशुओं की टाला जा सकने वाले मौतों की संख्या को कम करने के लिहाज़ से बेहद अहम हैं। इसमें कोई शक नहीं कि देश के बाक़ी राज्यों के मुक़ाबले उत्तरप्रदेश कुछ स्वास्थ्य मानकों के लिहाज़ से सबसे ख़राब स्थिति में हैं और दूसरा कि यहां सबसे ज्यादा शिशु और मातृ मृत्यु दर है।

उत्तरप्रदेश सरकार का झूठा दावा: आंगनबाडी कार्यकर्ता

हाल की रैलियों और सार्वजनिक संबोधनों में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कोविड-19 महामारी के दौरान आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की कोशिशों की सराहना की थी और उन्हें स्मार्टफ़ोन दिये जाने का ऐलान किया था।

हालांकि, सरकार ने उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया है। आंगनबाडी सेवा के पदाधिकारियों की सभी श्रेणियों के लिए स्वीकृत पद अच्छी ख़ासी संख्या में ख़ाली पड़े हैं। ज़्यादा चिंता की बात यह है कि मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद से 2018 के बाद ख़ाली हुए पदों में इज़ाफ़ा ही हुआ है।

जैसा कि चित्र 1 से पता चलता है कि बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) पद के लिए, 2018 में 42% स्वीकृत पद ख़ाली पड़े थे, जो 2021 में बढ़कर 57% हो गये। सीडीपीओ के ख़ाली पदों की संख्या 378 से बढ़कर 514 हो गयी,जबकि 897 अधिकारी की ज़रूरत है। सीडीपीओ एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) विभाग में ज़िला स्तर के प्रमुख पदाधिकारी होता है। आईसीडीएस 0-6 साल के बच्चों, और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण और बच्चों की देखभाल और विकास को सुनिश्चित करने वाली एक अहम योजना है।

साल 2018 में पर्यवेक्षकों (Supervisors) के लिए स्वीकृत पदों में से 43% ख़ाली पड़े थे, जो 2021 में बढ़कर 57% हो गये। यहां 6,718 पर्यवेक्षकों की ज़रूरत है,जबकि ख़ाली पदों की संख्या 2,890 से बढ़कर 3,815 हो गयी है। इसी तरह आंगनबाडी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं के ख़ाली पड़े स्वीकृत पदों का अनुपात पिछले चार सालों में बढ़ा है। 2018 में आंगनबाडी कार्यकर्ताओं के 16,762 पद ख़ाली थे, जो 2021 में बढ़कर 19,252 हो गये हैं। इस समय आंगनबाडी सहायिकाओं के ख़ाली पड़े पदों की संख्या 27,089 है।

आंगनवाड़ी सेवाओं के पदाधिकारियों के ख़ाली पद-2018 से 2021 (% में)

स्रोत: राज्यसभा में पूछे गये अतारांकित प्रश्न संख्या 1272

इन कमियों ने ख़ास तौर पर महामारी के दौरान बढ़े हुए काम के बोझ के साथ मौजूदा पदाधिकारियों पर अतिरिक्त दबाव डाला है। काम के बोझ में बढ़ोत्तरी तो हो गयी,लेकिन उसके हिसाब से उनके पारिश्रमिक में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी है। मासिक मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर सैकड़ों आंगनबाडी कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन किया है। सितंबर 2021 में यूपी सरकार ने आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का मासिक मानदेय बढ़ाने का दावा किया था। हालांकि, कार्यकर्ताओं ने सरकार के दावे का पर्दाफ़ाश कर दिया है, क्योंकि यह घोषित मामूली वृद्धि वास्तव में उनके कार्य प्रदर्शन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत दी जाने वाली राशि है और उनके मासिक मानदेय में नहीं जोड़ी गयी है।

2017 में भाजपा के घोषणापत्र में एक नयी गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर मानदेय में मुनासिब वृद्धि किये जाने का वादा किया गया था। हालांकि, ऐसी कोई वृद्धि नहीं हुई है; एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का मासिक मानदेय बड़े आंगनबाड़ियों में 5,500 रुपये, छोटे आंगनबाड़ियों में 4,500 रुपये और सहायिका को 2,750 रुपये प्रति माह मिलता है।

पीएचसी और सीएचसी में स्वास्थ्य कर्मियों की लगातार कमी

आंगनवाड़ी सेवाओं के पदाधिकारी की श्रेणी प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की एकमात्र श्रेणी नहीं हैं, जो पीड़ित हों। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी सभी स्तरों की सेवाओं में बनी हुई है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) को प्राथमिक स्तर से रेफ़रल मामलों और विशेषज्ञ देखभाल की ज़रूरत वाले मामलों के लिहाज़ से माध्यमिक स्तर की स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के सिलसिले में तैयार किया गया था। सीएचसी में कुछ ज़रूरी पदों पर आवश्यक कर्मचारियों की कमी तो 70% से भी ज़्यादा है।

चित्र 2 उत्तरप्रदेश के ग्रामीण सीएचसी में ज़रूरी संख्या से प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों की लगभग 77% की कमी को दर्शाता है, क्योंकि 711 की ज़रूरत है, जबकि इन पदों पर सिर्फ़ 161 ही कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके अलावा, सर्जनों की संख्या भी ज़रूरत से 77% कम हैं,यानी कि 711 सर्जनों की ज़रूरत है,जबकि महज़ 166 ही अपने पद पर कार्यरत हैं। बाल रोग विशेषज्ञ के लिए आवश्यक पद 711 है,जबकि महज़ 180 ही पदस्थापित हैं, जो कि ज़रूरी संख्या से 75% कम है। इसी तरह, सीएचसी में रेडियोग्राफ़र और चिकित्सक क्रमशः 73% और 57% कम हैं। सीएचसी में तक़रीबन 2844 विशेषज्ञों (प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, चिकित्सक और सर्जन सहित) की ज़रूरत है,जबकि पदस्थापित विशेषज्ञों की संख्या महज़ 816 ही है,यानी कि 71% की कमी।

सीएचसी में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी (31 मार्च, 2020 तक) (% में)

ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019-20

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) की परिकल्पना ग्रामीण क्षेत्रों में बीमार लोगों के लिए योग्य डॉक्टर की सेवा पाने के पहले पड़ाव के तौर पर की गयी थी और उप-केंद्रों की ओर से इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को उपचारात्मक, निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल को लेकर सीधे रिपोर्ट या रेफ़र किया जाता है।" ये उप-केंद्र (SC) प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और समुदाय के बीच सबसे नज़दीकी और संपर्क का पहले पड़ाव हैं। यूपी में पीएचसी और एससी के नवीनतम आंकड़े इस स्तर पर स्वास्थ्यकर्मियों की कुछ अहम श्रेणियों की भारी कमी को दर्शाते हैं।

उत्तरप्रदेश के पीएचसी में नर्सिंग स्टाफ़ की जितनी ज़रूरत है, उससे लगभग 44% कम है। इनकी मौजूदा संख्या 1613 है, जबकि ज़रूरत 2880 की है।लैब तकनीशियनों के लिहाज़ से यह प्रतिशत 65% तक है। पीएचसी में स्वास्थ्य सहायक (पुरुष और महिला दोनों) का एक और अहम पद होता है, जिसकी संख्या में 92% की कमी है! इन पदों के लिए ज़रूरी संख्या 5760 की है, जबकि महज़ 475 स्वास्थ्य सहायक ही इस पद पर पदास्थापित हैं।

उपे-केंदों के स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों (पुरुष) की कमी 91 प्रतिशत तक है।इन पदों पर 20,778 कर्मचारियों की ज़रूरत है,जबकि 18,877 पद ख़ाली है।

पीएचसी में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी (31 मार्च, 2020 तक) (% में)

स्रोत: ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी,2019-20

प्राथमिक स्तर पर ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मियों के प्रमुख पदों के लिए इतनी ज़्यादा कमी का ही नतीजा है कि स्वास्थ्य सेवा की स्थिति ख़राब है। इनमें से आईसीडीएस के तहत आने वाली ज़्यादतर सेवायें गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बहुत छोटे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अहम हैं। इन स्वास्थ्य कर्मियों की कमी से राज्य में कुपोषण के पैमाने पर असर पड़ेगा।

लोगों को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के सिलसिले में हुए अहम प्रगति के दावों को लेकर उत्तरप्रदश सरकार चाहे जितना भी विज्ञापन कर ले, ज़मीनी हक़ीक़त जो सामने है, वह इसके ठीक उलट है। सच्चाई तो यही है कि स्वास्थ्य सेवाओं का निष्पादन संतोषजनक नहीं है। इसके साथ ही यूपी सरकार ने अपने स्वास्थ्य कर्मियों को भी नाकाम कर दिया है। जहां स्वास्थ्यकर्मी, ख़ास तौर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जैसे अगली पांत के कार्यकर्ता महामारी जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सेवायें मुहैया कराते रहे हैं, वहीं सरकार बड़ी संख्या में ख़ाली पदों को भरकर उन्हें न तो अच्छा पारिश्रमिक दे पा रही है या फिर न बेहतर रोज़गार मुहैया करा पा रही है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Ailing Health System in UP Results From Neglect of Health Workers During BJP’s Tenure

Health Sector
Uttar pradesh
yogi government
health infrastructure
Vacant Posts
Anganwadi Workers
primary health care
Caregivers
Rural Health Statistics 2019-20
Nursing Staff

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