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वायु प्रदूषण : दिल्ली-एनसीआर की हवा है 'बेहद ख़राब', जानलेवा बन सकते हैं हालात!

सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद भी देश की राजधानी और आस-पास के शहर वायु गुणवत्ता की स्थिति को नियंत्रित करने में विफल नज़र आ रहे हैं। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 357 दर्ज की गई है, जो बेहद चिंताजनक है।
delhi pollution
फ़ोटो साभार: पीटीआई

राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से लगातार वायु प्रदूषण की चपेट में है। बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले लोग लगभग पूरे साल प्रदूषण की मार झेलते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 177 शहरों में से दिल्ली-फरीदाबाद सहित 20 शहरों में जानलेवा वायु गुणवत्ता बनी हुई है।

बता दें कि दिल्ली-एनसीआर को वायु गुणवत्ता की 'बेहद खराब' श्रेणी में रखा गया है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 357 दर्ज किया गया है। जबकि फरीदाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स 346, गाजियाबाद में 384, गुरुग्राम में 333, नोएडा में 371 पर पहुंच गया है। जाहिर है देश की राजधानी और आस-पास के शहर सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद भी स्थिति को नियंत्रित करने में विफल नज़र आ रहे हैं।

क्या कहती है रिपोर्ट?

देश में वायु प्रदूषण के स्तर और वायु गुणवत्ता की स्थिति को समझने के लिए इस सूचकांक का प्रयोग किया जाता है। इसके अनुसार यदि हवा साफ है तो उसे इंडेक्स में 0 से 50 के बीच दर्शाया जाता है। इसके बाद वायु गुणवत्ता के संतोषजनक होने की स्थिति तब होती है जब सूचकांक 51 से 100 के बीच होती है। इसी तरह 101-200 का मतलब है कि वायु प्रदूषण का स्तर मध्यम श्रेणी का है, जबकि 201 से 300 की बीच की स्थिति वायु गुणवत्ता खराब स्थिति को दर्शाती है।

वहीं यदि सूचकांक 301 से 400 के बीच दर्ज किया जाता है जैसा की दिल्ली में अक्सर होता है तो वायु गुणवत्ता को बेहद खराब की श्रेणी में रखा जाता है। यह वो स्थिति है जब वायु प्रदूषण का यह स्तर स्वास्थ्य को गंभीर और लम्बे समय के लिए नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बाद 401 से 500 की कैटेगरी आती है जिसमें वायु गुणवत्ता की स्थिति गंभीर बन जाती है। ऐसी स्थिति होने पर वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वो स्वस्थ इंसान को भी नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह जानलेवा हो सकती है।

प्रमुख शहरों का क्या है हाल?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के 177 शहरों में से देश के जिन 11शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 या उससे नीचे यानी 'बेहतर' रहा, उनमें आइजोल (28), चामराजनगर (48), एर्नाकुलम (46), गंगटोक (40), मैहर (40), नाहरलगुन (19), पुदुचेरी (47), सतना (45), शिलांग (35), शिवसागर (22) और विजयपुरा (46) शामिल रहे।

रिपोर्ट में जिन 43 शहरों की श्रेणी 'संतोषजनक' रही, वहां सूचकांक 51 से 100 के बीच दर्ज किया गया। इसमें अलवर, बागलकोट, बेंगलुरु, बीदर, बिलासपुर, चेन्नई, चिकबलपुर, कोयंबटूर, दमोह, दावनगेरे, डिंडीगुल, एलूर, गडग, गांधीनगर, गुवाहाटी, हसन, हावेरी, होसुर, हुबली, हैदराबाद, कलबुर्गिक, कांचीपुरम, कन्नूर, कोलार, कोल्लम, कोटा, कोझिकोड, मदिकेरी, मैंगलोर, मंगुराहा, मैसूर, ऊटी, पाली, पंचकुला, राजमहेंद्रवरम, रामनगर, रामनाथपुरम, सागर, शिवमोगा, सोलापुर, तिरुवनंतपुरम, थूथुकुडी और तिरुपति आदि शामिल हैं।

इसके अलावा इस सूची में 74 शहरों में 'मध्यम' वायु गुणवत्ता रही। इसमें अगरतला, आगरा, अहमदाबाद, अजमेर, अंबाला, अमृतसर, भागलपुर, भोपाल, चंडीगढ़, फिरोजाबाद, गोरखपुर, ग्वालियर, हावड़ा, इंफाल, इंदौर, जबलपुर, उदयपुर, विशाखापत्तनम, उज्जैन, वाराणसी जैसे शहर शामिल हैं।

देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 151 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के 'मध्यम' स्तर को दर्शाता है। जबकि कोलकाता में यह इंडेक्स 167, चेन्नई में 59, बैंगलोर में 95, हैदराबाद में 83, जयपुर में 178 और पटना में 269 दर्ज किया गया।

वायु प्रदूषण है हानिकारक और जानलेवा

गौरतलब है कि वायु प्रदूषण हानिकारक और जानलेवा है। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के चालीस फीसदी मामलों के लिए ज़िम्मेदार है। वहीं, इस्केमिक हार्ट डिज़ीज, स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है। साल 2019 में पहली बार सरकार ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और आर्थिक नुकसान के सटीक आँकड़े जनता के सामने रखे थे। आईसीएमआर ने भी दावा किया था कि प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का साल 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना टूट सकता है।

साल 20191की आईसीएमआर रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में हुई 18 फ़ीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत में वायु प्रदूषण का ख़तरा कितना संगीन है, इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2019 में जितनी मौतें प्रदूषण की वजह से हुईं, उतनी मौतें सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्या और आतंकवाद जैसे कारणों को मिलाकर भी नहीं हुईं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इस स्तर पर आकर भी सरकार और समाज की ओर से सही कदम नहीं उठाए गए तो क्या होगा? जाहिर है इसका खामियाज़ा सभी को भुगतना पड़ेगा, लेकिन इससे भी सबसे ज्यादा कमज़ोर तबके के लोग ही प्रभावित होंगे, क्योंकि न तो वो एयर प्यूरीफ़ायर जैसे महंगे उपाय कर सकते हैं और नाही बीमारियों के इलाज़ के लिए भारी-भरकम खर्च उठा सकते हैं। इसलिए सरकारों को चाहिए कि वो सख्त कदम उठाने के साथ ही लोगों को भी इस ख़तरे के प्रति जागरूक करे। साथ ही इसके समाधान के बारे में भी जानकारी साझा करें, जिससे लोग इस समस्या की गंभीरता को समझ सकें।

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