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'किसान-मज़दूर संघर्ष रैली' से पहले राजधानी में सेब किसानों का विरोध प्रदर्शन!

"आख़िर किस वजह से देश का सेब किसान परेशान है! जब हमारे देश का सेब उत्पादक इतना सेब उगा रहा है जिसकी खपत करना मुश्किल है तो सरकार बाहर से सेब आयात क्यों कर रही है?”
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5 अप्रैल को होने वाली किसान-मज़दूर संघर्ष रैली से एक दिन पहले, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के सेब किसानों ने मंगलवार को देश की संसद से कुछ सौ मीटर दूर जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। इन किसानों का कहना है कि वे देश की राजधानी में सरकार को ये बताने आए हैं कि सेब की बाग़बानी और सेब उद्योग गंभीर संकट से गुज़र रहा है। गौरतलब है कि इन पहाड़ी राज्यों के सेब किसान बेहद परेशान हैं। इस संकट से उबरने के लिए और अपने हक़ के लिए उचित नीति बनाने की मांग के साथ ये किसान बीते कई सालों से संघर्ष कर रहे हैं। देश में यह अपने आप में ऐसा पहला प्रदर्शन हैं जिसमें भारत के तीन प्रमुख सेब उत्पादक राज्यों - जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के सैकड़ों सेब उत्पादकों ने केंद्र सरकार पर बाग़बानी विरोधी नीतियों का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया।

यहां मौजूद इन सेब किसानों का आरोप है कि केंद्र की नीतियों ने बड़े कृषि व्यवसायी कॉरपोरेट घरानों को भारी मुनाफ़ा कमाने में सक्षम बनाया है जबकि उत्पादकों की आय में गिरावट आई है।


इन सेब उत्पादकों ने अपने संघर्ष को मजबूत करने के लिए एक संयुक्त मंच बनाया है जिसका नाम है : एप्पल फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFFI), इसके आह्वान पर ये किसान राज्य-सीमाओं की बंदिशों को तोड़कर अपना संघर्ष कर रहे हैं। ये अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) की उस पहल का हिस्सा है जिसमें वो फसल या उत्पाद आधार पर किसानों को एकजुट कर रहे हैं।

इसके साथ ही ये सेब किसान 5 अप्रैल को होने वाली 'किसान-मज़दूर संघर्ष रैली' में भी शामिल होंगे और अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे। इन किसानों का कहना है कि अपने राज्यों में संघर्ष के बाद ये अब सेब की बाग़बानी पर आए संकट के मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने आए हैं।

प्रदर्शन में शामिल किसानों का कहना है कि बीते 3 सालों में सेब पर लागत दो गुनी हुई है। आरोप है कि ऐसे में सरकार इनकी मदद करने के बजाए कृषि इनपुट पर सब्सिडी ख़त्म कर रही है जिस वजह से खाद, बीज और दवाइयां किसानों और बाग़बानों की पहुंच से लगातार दूर हो रही हैं।

हिमाचल सेब उत्पादक संघ के सह संयोजक संजय चौहान ने 'न्यूज़क्लिक' से बात करते हुए कहा कि, "सेब बाग़बान सालों से सेब पर इंपोर्ट-ड्यूटी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने देश के बाग़बानों से सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन आज तक इसे पूरा नहीं किया गया।”

आगे वो कहते हैं, "आख़िर किस वजह से देश का सेब किसान परेशान है! जब हमारे देश का सेब उत्पादक इतना सेब उगा रहा है जिसकी खपत करना मुश्किल है तो सरकार बाहर से सेब आयात क्यों कर रही है? बाहर से आयात करने के कारण हमारे किसानों को उचित भाव नहीं मिल रहा है। दुनिया के क़रीब 44 मुल्कों से थोक में सेब आयात करने की वजह से हिमाचल और जम्मू कश्मीर के सेब बाग़बानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। इससे सेब की खेती अब घाटे का सौदा साबित होने लगी है।"

आपकों बता दें कि इन सभी मुद्दों के साथ ही पहाड़ी राज्यों में किसानों के लिए वन ज़मीन बेदख़ली एक बड़ा सवाल बना हुआ है। कश्मीर से लेकर हिमाचल तक के किसानों ने बताया कि वो सालों से वन भूमि पर बाग़बानी करते रहे हैं लेकिन अब सरकार उन्हें जबरन बेदख़ली का आदेश दे रही है जो कि पूरी तरह से ग़लत है।

इसे भी पढ़ें: जंगल और ज़मीन पर हक़ के लिए आदिवासी किसानों का संघर्ष आख़िर कब तक?

कश्मीर से आए 60 वर्षीय शेर जहां खान जो गंधरबाल में किसानी करते हैं, वो कहते हैं, "हम लोगों के पास कोई ज़मीन नहीं है और हम पुश्तैनी तरीके से वन भूमि पर खेती करते आए हैं लेकिन अब सरकार हमें बेदख़ल कर रही है।"

गौरतलब है कि बीते दिनों कश्मीर में बुलडोज़र कार्रवाई की ख़बरें आईं थीं जिसके तहत वन भूमि पर रहने वाले और खेती करने वाले किसानों को बेदख़ल करने का आरोप लगाया गया था।

किसान और मज़दूरों की बुलंद आवाज़ माने जाने वाले, हिमाचल में माकपा के पूर्व विधायक राकेश सिंघा ने कहा, "कश्मीर में भी भाजपा बुलडोज़र-राज कायम करना चाहती है। वो किसानों के वन अधिकारों को समाप्त कर रही है लेकिन हम पहाड़ी किसान एक हैं। अगर कश्मीर में किसानों पर बुलडोज़र चलेगा तो हम हिमाचल के किसान उनके साथ खड़े रहेंगे और सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे। भाजपा वाले, जहां मुसलमान हैं, उन्हे अलग नज़र से देखते हैं इसलिए वो लगातार कश्मीर के किसानों पर हमला कर रहे हैं।”

सिंघा ने आगे कहा, "हम दिल्ली इसलिए आए हैं क्योंकि दिल्ली में बैठी सरकार पहाड़ की पीड़ा नहीं समझती है। हम 'दिल्ली' को ये बताने आए हैं कि पहाड़ी सेब किसान किस पीड़ा में हैं।”

कश्मीर से आईं महिला किसान लतीफ़ा गनई ने कहा, "कश्मीर के किसानों को पिछले दो सालों से बहुत नुक़सान हुआ है। आप सबने देखा कि कैसे जब हमारे सेब की फसल की उतराई हो गई और उसे मंडी में ले जाना था, तब सरकार ने कई दिनों तक रास्ता बंद कर दिया जिस वजह से किसानों का सेब मंडियों तक समय से नहीं पहुंच पाया और जिस सेब की कीमत किसानों को 1200 से 1500 रूपये तक मिलती, वो सिर्फ़ 200 से 500 रूपये तक मिली।"

लतीफ़ा आगे कहती हैं, "ये सब जानबूझकर अपने बड़े पूंजीपति दोस्तों की मदद करने के लिए किया गया और बाद में हुआ भी वही जैसा सरकार चाहती थी। हमारे सेब कौड़ियों के भाव बिके और बड़े पूंजीपतियों ने बाद में 2000 से 2500 की दर से सेब की पेटी बेची।”


सेब उत्पादक भले ही राज्य की सीमाओं से बंटे हो लेकिन सेब उद्योग को बचाने के अपने प्रयास में एकजुट थे। प्रदर्शन के दौरान मांगों का 9-सूत्री चार्टर प्रस्तुत किया गया। इनकी प्रमुख मांगों में से एक, बेदख़ली के उन आदेशों को वापस लेना है जो उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन द्वारा जम्मू-कश्मीर में किसानों को दिए गए थे। किसानों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में भी वन विभाग हाल के वर्षों में इस तरह के बेदख़ली के नोटिस भेजता रहा है। इसके अलावा इन किसानों ने, 'ए’, 'बी' और 'सी' श्रेणी के सेबों के लाभकारी मूल्य के साथ-साथ बाज़ार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) को फिर से चालू करने की मांग रखी।

आपको बता दें, एमआईएस वो योजना है जिसके माध्यम से सरकार, न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाहर की फसलों जैसे फल, सब्जी और दूध के किसानों को मुश्किल समय में मदद दे सकती है। यहां मौजूद प्रदर्शनकारी किसानों ने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार ने इसका बजट काटकर बेहद कम कर दिया और अब ये योजना केवल कागज़ों में ही है, ज़मीन पर नहीं।

इसके साथ ही सेब किसानों की सबसे बड़ी मांग है - यूनिवर्सल कार्टन को अनिवार्य करना।

हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा, "सेब वज़न के हिसाब से नहीं  बल्कि कार्टन के हिसाब से ख़रीदा जाता है। ये कार्टन पहले 20 किलो तक के होते थे लेकिन व्यापारी कार्टन का साइज़ बढ़ा रहे हैं और जिससे ये 40 किलो तक पहुंच जाता है इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार कार्टन का एक साइज़ तय कर दे और मंडी में वही कार्टन इस्तेमाल किए जाएं।

एप्पल फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFFI) की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं :

1) जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बेदख़ली के आदेश वापस लिए जाएं।
2) जम्मू-कश्मीर में वास्तविक भाड़ा शुल्क निर्धारित किया जाए।
3) सेब के लाभकारी मूल्य की घोषणा की जाए।
4) सेब पर 100% आयात शुल्क लगाया जाए।
5) यूनिवर्सल कार्टन को अनिवार्य किया जाए।
6) किसानों को सस्ती दर पर खाद, कार्टन उपलब्ध कराए जाएं।
7) एप्पल से जुड़े सभी उत्पादों से जीएसटी हटाई जाए।
8) निजी सीए स्टोर को विनियमित किया जाए।

गौरतलब है कि AFFIके एक प्रतिनिधिमंडल ने 28 जुलाई 2022 को केंद्रीय कृषि मंत्री, श्री नरेंद्र सिंह तोमर को उपरोक्त मांगों को रेखांकित करते हुए एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा था। हालांकि आरोप है कि ज्ञापन देने के बावजूद, मंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की और परिणामस्वरूप, 2022 के विपणन सीज़न के दौरान बाज़ार की स्थितियों और जलवायु परिवर्तन के कारण सेब की अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा और वो बुरी तरह प्रभावित हुई।

AFFI ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उनके हक़ में नीति नहीं बनाई गई तो वे  'किसान विरोधी' और 'बाग़बानी विरोधी' नीतियों के ख़िलाफ़ "सेब की अर्थव्यवस्था बचाओ, सेब किसान बचाओ" के नारे के साथ एक बड़ा और संगठित आंदोलन करेंगे।

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