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बीएचयू: भारी शुल्क वृद्धि को लेकर जोर पकड़ता आंदोलन

निजीकरण से नए रूप में वर्ण व्यवस्था लागू हो रही है। अब जिसके पास पैसे होगा वही पढ़ेगा। गौर करने की बात यह है कि डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, इटली, स्पेन, चेक रिपब्लिक आदि देशों में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक बिल्कुल मुफ्त है। मानव विकास अथवा खुशहाली सूचकांक देखेंगे तो यही देश आगे हैं। इसका मतलब है कि जिन देशों में शिक्षा मुफ्त है, वे देश बहुत आगे हैं। जहां शिक्षा महंगी है, वहां खुशहाली नहीं है।"
BHU

बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में फीस वृद्धि को लेकर स्टूडेंट्स पिछले 12 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। इस बीच कैंपस में स्टूडेंट्स बीस से अधिक बार सेंट्रल आफिस का घेराव, जुलूस, धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। फीस में भारी-भरकम बढ़ोतरी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान जारी है। भगत सिंह छात्र मोर्चा, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), एनएसयूआई ही नहीं, एवीबीपी से जुड़े स्टूडेंट्स सड़क पर उतर गए हैं। स्टूडेंट्स और सुरक्षाकर्मियों के बीच प्रायः हर रोज नोंकझोक और धक्का-मुक्की हो रही है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन फीस वृद्धि वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। कुलपति प्रो.सुधीर जैन के रवैये को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है। बीएचयू के 20 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स फीस वृद्धि के विरोध में हैं। वहीं सड़कों पर रोजाना पांच हजार स्टूडेंट्स ‘फीस वृद्धि वापस लो’ के नारे लगाते हुए अपने दिन काट रहे हैं।

बीएचयू में बड़े पैमाने पर चल रहा आंदोलन-प्रदर्शन बताता है कि इस विश्वविद्लय की स्थिति बेहद खराब है। अगर शुल्क वृद्धि लागू होती है तो उसका असर आम परिवारों पर पड़ेगा। भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़ी बीएचयू की स्टूडेंट आकांक्षा आजाद कहती हैं, "जहां नौकरियां जा रही हों, सैलरी न बढ़ रही हो, मजदूरी घट रही हो, वहां फीस बढ़े यह अजीब है। अगर सरकारी शिक्षण संस्थान महंगे होंगे तो सबको शिक्षा नहीं मिलेगी। बीएचयू में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, हास्टल और लाइब्रेरी की फीस वृद्धि को लेकर भी आंदोलन हो रहा है। बीएचयू प्रशासन सवाल उठा रहा है कि यहां छात्र आंदोलन क्यों कर रहे हैं?  इसका जवाब यह है कि अगर हम आंदोलन न करें तो इस विश्वविद्यालय में न जाने क्या-क्या खेल हो जाएगा, आपको पता नहीं चलेगा? वैसे ही लोगों की चुप्पी से बीएचयू कबाड़ में बदल रही है जिसका नुकसान आम लोगों को ही हो रहा है। बीएचयू के स्टूडेंट्स को बढ़ी हुई फीस इसलिए चुभ रही है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई है। फीस वृद्धि से गरीबों पर तो असर पड़ेगा ही।"

फीस में भारी बढ़ोतरी को लेकर छात्र संगठन इसलिए सड़क पर उतर आए हैं क्योंकि विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जो नोटिफिकेशन आया है इसके मुताबिक एमए-सी और पीएचडी के लिए फीस में पांच सौ गुना से ज्यादा इजाफा किया गया है। ज्यादातर पाठ्यक्रमों की फीस सौ फीसदी बढ़ाई गई है। इसी को लेकर स्टूडेंट्स आंदोलित हैं। कुछ ही रोज पहले बीएचयू के स्टूडेंट्स ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए विश्वविद्यालय कैंपस के बाहर भैंस बांध दी और उसके आगे कागज की बीन बनाकर बजाने लगे।

बंद हो जाएंगे पढ़ाई के रास्ते

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्टूडेंट  भुवाल यादव "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "छात्र इसलिए आंदोलित हैं क्योंकि फीस बढ़ोतरी पर बात करते हुए बीएचयू प्रशासन इस मुद्दे पर कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है। अगर फीस बढ़ती है तो गरीब घर के छात्रों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। यहां बहुत से ऐसे छात्र पढ़ते हैं जिनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। इन छात्रों के लिए बीएचयू की फीस वृद्धि उनके करियर के सभी रास्ते बंद कर देगी। स्टूडेंट्स ने ऐलान कर रखा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन जब तक फीस वृद्धि के फैसले को वापस नहीं लेगा, आंदोलन जारी रहेगा।" 

स्टूडेंट्स का एक गुट कुलपति आवास के सामने धरने पर बैठा है तो दूसरा गुट विश्वविद्यालय के डीन स्टूडेंट्स ऑफिस के बाहर अनिश्चितकालीन धरना दे रहा है। इन आंदोलन से इतर भी कई छात्र संगठन शुल्क वृद्धि के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। स्टूडेंट्स आंदोलन के बीच बीएचयू प्रशासन ने प्रेस रिलीज जारी कर दावा किया है कि पिछले दो सालों में कोरोनाकाल के दौरान यहां किसी भी तरह की कोई फीस वृद्धि नहीं हुई। विद्वत परिषद और कार्यकारिणी परिषद के फैसले के बाद सिर्फ नए सत्र से दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स की फीस में आंशिक वृद्धि की गई है। यह आरोप निराधार है कि सभी पाठ्यक्रमों में फीस बढ़ाई गई है।  बीएचयू में पढ़ रहे किसी भी स्टूडेंट्स फीस नहीं बढ़ाई गई है।"

बीएचयू प्रशासन का यह भी दावा है कि है कि हास्टल और शिक्षण शुल्क बढ़ोतरी हाल का फैसला नहीं है। आंशिक रूप से फीस बढ़ाने का निर्णय शैक्षणिक साल 2019-20 से पहले लिया गया था। नए सत्र 2022-23 में दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स से ही बढ़ी हुई फीस ली जाएगी। पुराने स्टूडेंट्स पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। महामारी से प्रभावित छात्रों से साल 2020-21 और 2021-22 में ज्यादा फीस नहीं वसूली गई। जिन छात्रों से ज्यादा फीस ली गई, उन्हें वापस किया जा रहा है।

 गुमराह कर रहा विवि प्रशासन

 कुलपति प्रो.सुधीर कुमार जैन स्टूडेंट्स से बात करने के लिए तैयार नहीं है। अलबत्ता कुछ प्रोफेसर अपने कुलपति के बचाव में सफाई पेश कर रहे है कि फीस बढ़ाने का आदेश मौजूदा कुलपति का नहीं, बल्कि पिछले कुलपति के कार्यकाल 2019-20 में दिया गया था। बीएचयू के सहायक जनसंपर्क अधिकारी चंदरशेखर ग्वारी ने कहा कि नई फीस साल 2022-23 में एडमिशन लेने वाले छात्रों के लिए है। साल 2014 में तत्कालीन कुलपति प्रो. लालजी सिंह ने फीस बढ़ाई थी। स्टूडेंट्स के कड़े विरोध के चलते उन्हें फीस वृद्धि वापस लेनी पड़ी थी।

शुल्क वृद्धि के मामले को लेकर आंदोलन कर रहे स्टूडेंट्स का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन झूठ की खेती करने लगा है। बीएचयू की स्टूडेंट्स इप्शिता कहती हैं, "बीएचयू में दाखिले के लिए मेरिट सूची बनाई जा रही है। उम्मीद है कि दिवाली बाद काउंसिलिंग की तिथि घोषित हो जाएगी और कुछ ही दिनों बाद नए शैक्षणिक कोर्स के लिए दाखिला भी शुरू हो जाएगा। नए स्टूडेंट्स को बढ़ी हुई फीस देनी होगी। नए शैक्षणिक सत्र के लिए की गई भारी शुल्क वृद्धि को लेकर छात्र संगठन उबल रहे हैं। सबसे अधिक 500 फीसदी की बढ़ोतरी एमएस-सी कृषि की गई है। इस पाठ्यक्रम के लिए पहले सालाना शुल्क 3500 रुपये था, जिसे बढ़ाकर अब 18,500 रुपये कर दिया गया है।"

भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़े स्टूडेंट्स स्टूडेंट्स उमेश, आलोक, सोनाली, अंकित, गणेश, साहिल, सचिन, ब्रह्म नारायण ने कहते हैं, "बीएचयू में हर पाठ्यक्रम में फीस में भारी इजाफा किया गया है। हॉस्टल और लाइब्रेरी फीस में 100 से 500 गुना तक बढ़ोतरी की गई है। नई फीस की दर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के मुकाबले तीस गुना अधिक है। जेएनयू में यूजी-पीएच-डी कोर्स के लिए पहले सेमेस्टर की फीस 106 रुपये और दूसरे सेमेस्टर में 120 रुपये है और बीएचयू में बढ़ाकर 3200 रुपये कर दिया गया है। यह स्थित तब है जब एनआईआरएफ की रैंकिंग में जेएनयू दूसरे नंबर है और बीएचयू छठे नंबर पर है। बीएचयू से काबिल टीचर्स जेएनयू में हैं।"

"हॉस्टल और लाइब्रेरी भी बीएचयू से अच्छी है। रैंकिंग और सुविधाओं में जेएनयू से पिछड़े होने के बावजूद तीस गुनी अधिक फीस की वसूली आखिर क्यों की जा रही है? खासतौर पर उस शिक्षण संस्था में मनमाना शुल्क बढ़ाया जा रहा है जिसकी स्थापना करते समय महामना मदन मोहन मालवीय ने वंचित तबके के उत्थान को ध्यान में रखते हुए बीएचयू का विशाल कैंपस खड़ा किया था।" बीएचयू में आंदोलनकारी स्टूडेंट्स कहते हैं कि लाइब्रेरी की नई फीस 500 रुपये कर दी गई है। पहले स्टूडेंट्स को सिर्फ सौ रुपये ही देने पड़ते थे, जो दाखिले के समय ही जमा करा ली जाती थी।"

बीएचयू की बहुजन इकाई से जुड़े स्टूडेंट अजय कुमार भारती कहते हैं, "अचानक हॉस्टल फीस के अलावा दूसरे कई पाठ्यक्रमों में बहुद ज्यादा की शुक्ल बढ़ाया गया है। फीस वृद्धि दलितों, गरीबों, पिछड़ों और वंचितों तबके के स्टूडेंट्स पर बड़ा कुठाराघात है। इसका सबसे बुरा असर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट्स पर पड़ने वाला है। सरकार ने शिक्षा को बाजार बना दिया है। बीएचयू में अब माल की तरह स्टूडेंट्स से धन वसूला जाएगा। यह स्थिति शर्मनाक कही जाएगी, क्योंकि बीएचयू प्रशासन का मनमाना फीस वृद्धि का निर्णय महामना मदन मोहन मालवीय के सपनों और उनके मूल्यों पर सीधे तौर पर बड़ा हमला है। बीएचयू प्रशासन एक तरफ फीस में भारी बढ़ोतरी कर रहा है और दूसरी तरफ प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्टेडेंट्स को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है।" कुलपति आवास के सामने धरने पर बैठे छात्र कुलदीप तिवारी ने न्यूजक्लिक से कहा, "विश्वविद्यालय प्रशासन फीस बढ़ाने के लिए गलत तर्क पेश कर रहा है। हमारी मांग है कि विश्वविद्यालय प्रशासन तत्काल बढ़ी हुई फीस को वापस ले। "

जोर पकड़ रहा आंदोलन

बीएचयू में फीस वृद्धि को लेकर छात्र संगठनों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है। भगत सिंह छात्र मोर्चा और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), दिशा,  सीवाईएसएस और एससीए की बीएचयू इकाई से जुड़े सैकड़ों स्टूडेंट ने संयुक्त रूप से भाजपा सरकार की नई शिक्षा नीति का विरोधि किया। साथ ही विश्वविद्यालयों में हो रहे फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन किया और जुलूस भी निकाला। इससे पहले ये स्टूडेंट्स बीएचयू प्रशासन द्वारा जारी किए गए फीस वृद्धि के दस्तावेजों को फूंक चुके हैं। जुलूस और प्रदर्शन में शामिल स्टूडेंट्स ने 'शिक्षा मंत्री मुर्दाबाद, बीएचयू वीसी होश में आओ, सुधीर कुमार जैन मुर्दाबाद, शिक्षा मंत्री होश में आओ, फीस वृद्धि वापस लो, धर्मेंद्र प्रधान चुप्पी तोड़ो इत्यादि नारे लगाए।

इस बीच एनएसयूआई और एवीबीपी से जुड़े स्टूडेंट्स ने भी फीस बढ़ोतरी के मुद्दे पर आंदोलन तेज कर दिया है। दरअसल, बीएचयू कैंपस में संवादहीनता के चलते आंदोलन तूल पकड़ता जा रहा है। 19 अक्टूबर को स्टूडेंट्स के कई गुटों ने फीस बढ़ोतरी के मुद्दे पर प्रदर्शन किए। सभी दलों के छात्र संगठन एक सुर में भाजपा सरकार और कुलपति की दोषपूर्ण नीतियों का विरोध कर रहे हैं। बुधवार की शाम आंदोलनकारी स्टूडेंट्स ने बीएचयू कैंपस में मशाल जुलूस निकाला और लंका स्थित सिंहद्वार पर पहुंचकर मांग पूरी होने तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया। स्टूडेंट्स लीडर अभय प्रताप सिंह और साक्षी सिंह ने कहा, "कड़े विरोध के बावजूद बीएचयू प्रशासन बहरा बना हुआ है और स्टूडेंट्स हितों की अनदेखी कर रहा है। शुल्क बढ़ाने के लिए विवि प्रशासन द्वारा जो तर्क दिए हैं, वे बेबुनियाद हैं।"

"झूठी अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि फीस वृद्धि नहीं की गई है। अगर शुल्क वृद्धि नहीं की गई है तब फीस किसकी लौटाई जा रही है? बीएचयू में फीस बढ़ाने से पहले स्टूडेंट्स से भी बातचीत की जानी चाहिए। खासतौर पर उन स्टूडेंट्स से जो बेहद गरीब और वंचित तबके से आते हैं। इस मौके पर पुनीत मिश्र, सौरभ राय, सम्यक जैन, निशांत, आस्था, अपर्णा, आलोक, शिवेंद्र शाही, आशुतोष शांडिल्य, यामिनी आदि ने कहा कि स्टूडेंट्स कई दिनों से बेमियादी धरना दे रहे हैं। विश्वनाथ मंदिर के सामने भैंस के ऊपर कुलपति का पोस्टल लगाकर उसके आगे बीन बजाकर फीस वृद्धि का विरोध भी कर चुके हैं। फिर भी विवि प्रशासन बहरा बना हुआ है। आंदोलन को दबाने के लिए बीएचयू प्रशासन ने अपने सुरक्षा कर्मियों को मैदान में उतार दिया है, जिनका स्टूडेंट्स के प्रति रवैया गुंडों की तरह है। आंदोनकारी स्टूडेंट्स के साथ उनकी रोजाना नोकझोंक और धक्का-मुक्की हो रही है। कुलपति के संवादहीन रवैये के चलते नए सत्र की शुरुआत में ही बीएचयू का माहौल बिगाड़ सकता है।"

 सरकार की नीयत पर सवाल

एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं, "इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तर्ज पर बीएचयू में बेतहाशा फीस बढ़ाई गई है। सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली मोदी सरकार के नीति-नियंताओं ने जो नई शिक्षा नीति तैयार की है उस पर बड़ा सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं। इसका असर सबसे ज्यादा समाज के गरीब, शोषित, दलित, वंचित और पिछड़े तबके पर पड़ रहा है, क्योंकि इन विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे छात्र इन्हीं तबकों से आते हैं। शुल्क वृद्धि मामले में हम बीएचयू के स्टूडेंट्स के साथ हैं।"

"देश में हर व्यक्ति को शिक्षा पहली और बुनियादी शर्त है। मनमाना फीस बढ़ाए जाने से समाज का मध्यम और गरीब तबका शिक्षा से वंचित होगा। अगर सरकार सस्ती शिक्षा नहीं उपलब्ध करा पा रही हैं, तो उसे जनता से टैक्स वसूलने का कोई हक नहीं है। भाजपा स्कूल-कॉलेजों का फीस बढ़ाकर बीएसएनएल की तरह उसे खोखला कर देना चाहती है ताकि उसे आसानी से पूंजीपतियों के हवाले किया जा सके। बीएचयू सिर्फ विवि ही नहीं, बौद्धिक चेतना का बड़ा केंद्र है। बीएचयू जैसे संस्थानों पर लगातार चोट पहुंचाकर भाजपा सरकार वंचित तबके को शिक्षा से दूर कर देना चाहती है। सरकार की नई शिक्षा नीति का हम विरोध कर रहे हैं और करते रहेंगे।"

कितना उचित है शुल्क वृद्धि

बीएचयू में साल 1981-82 में स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रहे शिव कुमार सिंह शुल्क वृद्धि के फैसले को ग़लत बताते हुए कहते हैं, "हमारे समय जब कभी बीएचयू में शुल्क वृद्धि का मामला उठता था तो स्टूडेंट्स के साथ शिक्षक और कर्मचारी तीनों मिलकर विरोध करते थे। छात्रों के किसी भी मसले को ‘छात्रों का मसला’ कहकर टीचर्स  दरकिनार नहीं करते थे। बीएचयू के प्रोफेसर अब यह सोचते हैं कि फीस वृद्धि का मामला हमारा नहीं है। वे डरे हुए हैं कि कार्रवाई न हो जाए, इसलिए खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं। पूर्वांचल और उसके आसपास के समाज को समझा जाना चाहिए। यहां ज़्यादातर निम्न और निम्न मध्यम वर्ग  समुदाय से बच्चे आते हैं। इनमें अधिकांश दलित व पिछड़ी जातियों के हैं।"

शुल्क भरने के मामले में अपने कुछ निजी अनुभव साझा करते हुए पूर्व छात्र नेता शिवकुमार सिंह कहते हैं, "बीएचयू में पहले अक्सर बहुत से छात्र आते थे जिनके पास  फीस भरने के लिए पैसे नहीं होते थे। दुखी, उदास, हताश हमारे पास आते थे। कई बच्चों की फीस हमने भरी है। यह स्थिति तब थी फीस ज्यादा नहीं था। अब तो 500 गुना फीस बढ़ा दी गई है। अंबेडकर कहा करते थे कि बच्चों को पढ़ने के बारे में सोचने दिया जाय न कि शुल्क के बारे में। शिक्षा और यूनिवर्सिटी को पब्लिक ही रहने दिया जाए,  उसे कार्पोरेटाइज न किया जाए। भाजपा सरकार की नई शिक्षा नीति गुलाम पैदा करने के लिए बनाई गई है, जिसमें सिर्फ स्टूडेंट्स ही नहीं, शिक्षक भी गुलाम होंगे।"

बीएचयू के पूर्व छात्र नेता शिवकुमार यह भी कहते हैं, "स्टूडेंट्स का विकास समग्रता में देखना चाहिए जिसकी हमारे यहां कमी है। स्टूडेंट्स क्यों परेशान है, उसके लिए एक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ बनना चाहिए। एक लड़की की जो समस्या है, जो वो अपने माता पिता से नहीं कह पाती, उसके लिए  काउंसिलिंग की व्यवस्था होनी चाहिये। संपूर्णता में बच्चे का विकास होगा, तभी तो वह अच्छा रिसर्च कर पाएगा। बहुत सी समस्याएं हैं। प्राइमरी स्कूल के बच्चों की तरह बीएचयू स्टूडेंट्स भी को मुफ्त में किताबें मिलनी चाहिए। स्कॉलरशिप ज्यादा होनी चाहिए और हर बच्चे के लिए होनी चाहिए। स्टूडेंट्स को पैसे की समस्या नहीं होनी चाहिए, लेकिन हमारे यहां सबसे बड़ी समस्या इसी की है।"

भाजपा सरकार ने बीएचयू के बाजारीकरण की जो नीति अपनाई गई है, वह भी एक समस्या है। विश्वविद्यालयों को लोन देकर आप उसे बंधक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जब लोन किसी के सिर पर आता है तो आप जानते ही हैं उसे चुकाने में कैसी हालत होती होगी। भाजपा सरकार सार्वजनिक विश्वविद्यालयों का व्यवसायीकरण करना चाहती है। योजनाबद्ध ढंग से सेल्फ फाइनेंस के कोर्स खोले जा रहे हैं। इसी लिए लोनिंग सिस्टम चालू किया गया है। निजी विश्वविद्यालय खोले जा रही है। जिंदल यूनिवर्सिटी में भला गरीब का बच्चा कैसे पढ़ेगा? जाहिर तौर पर धनवान का बेटा वहां जाएगा। पहले भी धनवान लोगों के बच्चे पढ़ते थे। निजीकरण से नए रूप में वर्ण व्यवस्था लागू हो रही है। अब जिसके पास पैसे होगा वही पढ़ेगा। गौर करने की बात यह है कि डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, इटली, स्पेन, चेक रिपब्लिक आदि देशों में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक बिल्कुल मुफ्त है। मानव विकास अथवा खुशहाली सूचकांक देखेंगे तो यही देश आगे हैं। इसका मतलब है कि जिन देशों में शिक्षा मुफ्त है, वे देश बहुत आगे हैं। जहां शिक्षा महंगी है, वहां खुशहाली नहीं है।"

आयुर्वेद छात्र भी धरने पर

बीएचयू कैंपस में आयुर्वेद संकाय के स्टूडेंट्स भी धरने पर हैं। ये स्टूडेंट्स परास्नातक (पीजी)  में सीट वृद्धि को लेकर करीब 11 दिनों से कुलपति प्रो.सुधीर कुमार जैन के आवास के बाहर धरने पर बैठे हैं। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स के सामने से कुलपति रोजाना गुजरते हैं, मगर उनसे बात करने की कोशिश नहीं करते। यही नहीं, कुलपति का कोई जिम्मेदार प्रतिनिधि भी स्टूडेंट्स की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है। बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के अंतर्गत आयुर्वेद से डाक्टरी करने वाले स्टूडेंट्स पीजी में सीट वृद्धि को लेकर 19 अक्टूबर को दोबारा आयुर्वेद की सभी ओपीडी को न सिर्फ बंद कराया, बल्कि बिल्डिंग के बाहर तालाबंदी करके वहां धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के स्टूडेंट्स पीजी कोर्स में सीट बढ़ाने की मांग पर अड़े हैं। इनका धरना-प्रदर्शन जारी है।

तीन दिन पहले भी स्टूडेंट्स ने ओपीडी बंद कराई थी। तालाबंदी करने पर उनकी सुरक्षाकर्मियों की तीखी नोकझोंक हुई थी। 36 घंटों के अल्टीमेटम के बाद छात्र वहां से हट गए थे, लेकिन छात्रों की मांगों पर विचार करने के बजाए बीएचयू प्रशासन ने आंदोलकारी स्टूडेंट्स के घरों पर धमकी भरी चिट्ठी भेज दी थी। तभी से आयुर्वेद के स्टूडेंट्स काफी गुस्से में हैं। नाराज स्टूडेंट्स ने बुधवार को दोबारा ओपीडी पर ताला जड़ा और धरना दिया। छात्रों ने बताया कि इसी अक्टूबर माह में पीजी में एडमिशन के लिए पोर्टल खुल जाता है जिसके पहले उनके पीजी कोर्स की सीट बढ़ जानी चाहिए।

कुलपति आवास पर धरने पर बैठे स्टूडेंट्स का कहना है कि छात्र पीजी की 50 सीट बढ़ाने के लिए वीसी आवास के सामने धरने पर बैठे हैं। उनका कहना है कि सीट बढ़ाने के लिए एनआईसीएसएम पोर्टल पर अप्लाई करना पड़ेगा। इसके लिए आयुर्वेद फैकल्टी को 80 लाख रुपये की जरूरत है। इस पैसे में एनआईसीएसएम की बीएचयू विजिट के साथ कई अन्य खर्चे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन फंड नहीं जारी कर रहा है। अक्टूबर महीना बीतने ही वाला है। ऐसे में पीए में अप्लाई करने के लिए अगले साल चांस मिलने की उम्मीद बचेगी। हम सभी स्टूडेंट्स अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम से हैं। इस साल पासआउट हो जाएंगे तो फिर अगले साल क्या करेंगे?

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