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बिधूड़ी अकेले भाजपा नेता नहीं..., क्या ऐसे क़ायम होगा ‘सबका विश्वास’ ?

रमेश बिधूड़ी पहले बीजेपी नेता नहीं हैं जिन्होंने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया हो। इससे पहले भी संसद के बाहर, चुनावी सभाओं में, रैलियों में, बैठकों में या टीवी चैनल्स पर बीजेपी के बड़े नेता विवादित बयान दे चुके हैं।
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संसद के विशेष सत्र के दौरान देश की संसद के निचले सदन लोकसभा में बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने बीएसपी सांसद दानिश अली के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए कई अभद्र टिप्पणी की और कई अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।

यह पहली बार नहीं है जब रमेश बिधूड़ी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया हो। वह पहले भी अपने ऐसे व्यवहार के लिए सुर्खियों में रह चुके हैं।

मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में पांच महिला सांसदों ने लोकसभा में रमेश बिधूड़ी के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 28 सितंबर को भाजपा सदस्य रमेश बिधूड़ी द्वारा बसपा के दानिश अली के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल से जुड़े मुद्दे पर सांसदों की शिकायतों को विशेषाधिकार समिति को भेज दिया।

पार्टी ने बिधूड़ी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के बजाय उन्हें राजस्थान में होने वाले चुनाव में टोंक जिले का प्रभारी बना दिया। कयास लगाए जा रहे हैं कि गुर्जर वोट हासिल करने के लिए ऐसा किया गया है। रमेश बिधूड़ी खुद गुर्जर समुदाय से आते हैं, इस फ़ैसले के बाद से विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है और तीखी आलोचना कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दानिश अली ने इस फ़ैसले पर अपनी प्रक्रिया भी बताई है, दानिश अली ने कहा, "यह नफरत फैलाने को 'पुरस्कृत' करने जैसा है और इस कदम से सत्तारूढ़ पार्टी का असली चरित्र 'उजागर'' हो गया है।"

दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस तरह की भाषा, कभी सड़कों, रैलियों और चुनावी सभाओं में इस्तेमाल की जाती थी, वह अब देश की संसद तक पहुंच गई है। लेकिन रमेश बिधूड़ी पहले बीजेपी नेता नहीं हैं जिन्होंने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया हो। विवादित बयान से बीजेपी के कई बड़े नेताओं का नाता रहा है। 

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक सार्वजनिक बैठक में प्रधानमंत्री के कब्रिस्तान और श्मशान वाले बयान को लेकर विपक्ष ने भाजपा की खूब आलोचना की थी। इसके अलावा
15 दिसंबर 2019 को झारखंड की एक सभा में प्रधानमंत्री मोदी के, कपड़ों से पहचान, वाले बयान पर भी खूब हंगामा हुआ था।

जुलाई 2022 में पूर्व बीजेपी नेता नुपुर शर्मा द्वारा एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए बयान के कारण बीजेपी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त टिप्पणी की थी.

अप्रैल 2019 में एक चुनावी रैली में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधते हुए कहा था, "मैं कहना चाहूंगा, गिरिराज सिंह के पूर्वजों की मृत्यु हो गई और उनका अंतिम संस्कार किया गया। मरने के बाद भी आपको दफनाने के लिए एक गज़ ज़मीन चाहिए। यदि आप कहते हैं कि आप वंदे मातरम नहीं बोल सकते, तो यह देश आपको कभी माफ़ नहीं करेगा।"

इसके अलावा बीजेपी के राज्यसभा सांसद साक्षी महाराज ने हिंदुओं से हथियारबंद रहने को कहा और बढ़ती आबादी के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया

25 दिसंबर, 2022 को भोपाल से लोकसभा सांसद प्रज्ञा ठाकुर एक अपील करती हैं जिसमें उन्होंने कहा, "चाकू की धार तेज़ रखें।"

अलजज़ीरा में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "वाशिंगटन स्थित हिंदुत्व वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 की पहली छमाही में भारत में मुस्लिम विरोधी हेट स्पीच की घटनाएं औसतन प्रतिदिन एक से अधिक हुईं और आगामी चुनावों वाले राज्यों में इन्हें सबसे अधिक देखा गया। सोमवार को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 की पहली छमाही में मुसलमानों को निशाना बना कर हेट स्पीच देने वाली सभाओं की 255 घटनाएं हुईं। पिछले वर्षों का कोई तुलनात्मक डेटा नहीं था।

जब इतने ऊंचे स्तर के नेता ऐसे बयान देते हैं तो पार्टी के बाक़ी नेता इसे एक अलग ही स्तर पर ले जाते हैं। ऐसे बयान उन्हें आश्वस्त करते हैं कि चाहे वे कुछ भी करें, उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होगी और प्रधानमंत्री की चुप्पी इन सभी बातों को और भी पुख्ता कर देती है। प्रधानमंत्री मोदी को समझना चाहिए कि वह सिर्फ एक पार्टी के नेता नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के प्रधानमंत्री हैं और देशवासी उनसे पद की गरिमा और समझदार राजनीति की उम्मीद करते हैं।

“सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” इस नारे पर विश्वास कायम करना बहुत ज़रूरी है। इसे सिर्फ नारों में ही नहीं बल्कि ज़मीन पर उतारने की भी ज़रूरत है। लेकिन सवाल यही है, क्या ऐसे बयानों से देश के अल्पसंख्यक समुदाय में भरोसा कायम किया जा सकता है?

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