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EXCLUSIVE: ज्ञानवापी मामले में बाबरी की आहट, लोकसभा चुनाव के पहले अयोध्या से ‘तगड़ा मुद्दा’ बनाने को छटपटा रही बीजेपी !

"बड़ा सवाल यह है कि जब मस्जिद में खुदाई पर पाबंदी थी तो ASI के लोग सावनी सोमवार के दिन लाखों लोगों की भीड़ के बीच भारी-भरकम औजार- गैता, हथौड़ा, कुदाल, फावड़ा लेकर ज्ञानवापी मस्जिद में क्यों घुसे?  हमें ऐसा लग रहा है कि यह मामला भी उसी दिशा में बढ़ रहा है, जिस तरह बाबरी मामला बढ़ा था।"
gyanvapi

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI)  से सर्वे कराने का मुद्दा गरम है। इस मामले में हाईकोर्ट तीन अगस्त को फैसला सुनाने वाला है और तब तक के लिए सर्वे रोक दिया गया है। ताजा मामला ASI  की जांच रिपोर्ट की वैधानिकता पर खड़ा हुआ है। कोर्ट ने ASI से पूछा है कि इस संस्था की कोई कानूनी पहचान है अथवा नहीं?  ASI सर्वे के साथ ही पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र पर भी नई बहस छिड़ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले इसे अयोध्या से ‘तगड़ा मुद्दा’ बनाने के फेर में है।

देश की शीर्ष अदालत ने अयोध्या मामले में नवंबर 2019 के अपने फैसले में पूजा स्थलों का उल्लेख करते हुए कहा था, "प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 हमारे इतिहास और राष्ट्र के भविष्य के लिए आईना है। पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए वर्तमान और भविष्य की सरकारों का कानूनी व संवैधानिक कर्तव्य है कि वो अयोध्या जैसे विवाद खड़ा नहीं होने दें। पूजा कानून की धारा 4(1) में घोषणा की गई है कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त 1947 को जैसा अस्तित्व में था वैसा ही रहेगा। इसी के साथ अदालत में लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही स्वतः खत्म हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। इस बाबत शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिये कानून को निर्विवाद बनाने की कोशिश की थी, ताकि पुराने घावों को दोबारा कुरेदने की स्थिति पैदा न की जा सके। इसके बावजूद बनारस में ज्ञानवापी का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)  के सर्वे की वैधानिकता पर ‘न्यूजक्लिक’ ने बनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास (संस्कृति एवं पुरातत्व) के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार से बात की। वह कहते हैं, "पुरातत्व विभाग का असल काम पुरा अवशेषों का संरक्षण और उसकी सुरक्षा करना है। ASI की सर्वे रिपोर्ट को कानूनी मान्यता तब मिलेगी जब उसे कोर्ट स्वीकार करेगा। ग्राउंड सर्वे करने वाली मशीनों की अपनी एक सीमा होती है। वो मशीनें यह नहीं बता सकेंगी कि स्ट्रक्चर मंदिर का है अथवा मस्जिद का? दूसरी बात, पुरातत्व विभाग का दायरा बहुत बड़ा होता है। इसकी अलग-अलग विधाएं हैं। ASI  के अपर महानिदेशक आलोक त्रिपाठी खुद मंदिर के ज्ञाता नहीं, बल्कि समुद्री पुरातत्वों के विशेषज्ञ हैं। समुद्री पुरातत्वों की जांच करने वाले आखिर पूजा स्थलों की जांच कैसे कर सकते हैं?  इतिहास के विशेषज्ञ मूर्तियों की जांच नहीं कर सकते। ASI के मुखिया को चाहिए कि वह पहले कोर्ट को यह बताएं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सर्वे टीम में किस तरह के और कितने विशेषज्ञ थे?  सर्वे में कला और स्थापत्य विधा के विद्वान थे अथवा नहीं?  जिस काल खंड की मस्जिद है उस काल खंड के इतिहासविद थे अथवा नहीं?"

"ऐसा नहीं है कि ASI की जो टीम सर्वे करने आ गई तो वह सब कुछ जानती है। फोटोग्राफर, ड्राइंग वाले, सेंपल कलेक्शन करने वाले और प्राचीन भारतीय कलाओं के ज्ञाता विशेषज्ञ अलग-अलग होते हैं। सर्वे में कोई अभिलेख मिलता है तो लिपि विशेषज्ञ की जरूरत पड़ेगी। आकृति और मुद्रा शास्त्र का ज्ञानी दूसरे लोग होते हैं। मस्जिद में अगर सर्वे होता है तो सभी विधाओं की टीम होनी चाहिए। हड़बड़ाहट में सर्वे करने के बजाय कोर्ट में सब कुछ स्पष्ट करने के बाद ASI सर्वे शुरू करना चाहिए था।"

प्रो.अहिरवार यह भी कहते हैं, "रेडियोकार्बन डेटिंग 55,000 साल से अधिक पुराने नमूनों के साथ काम नहीं करता है। यह प्रणाली सिर्फ कार्बनिक पदार्थों से बनी वस्तुओं पर भी काम करता है, जैसे कि कागज, चमड़ा या लकड़ी, ईंट, टेराकोटा, सिरेमिक, प्लास्टर और पेंट। ऑप्टिकल स्टीमुलेटिंग ल्यूमिनेसेंस (ओएसएल) तकनीक से सिर्फ यह जरूर पता लगाया जा सकता है कि पत्थर की उम्र क्या है? यह तकनीक उन मामलों में अपनाई जाती है जो वस्तुएं खुदाई के दौरान मिलती हैं। अगर कोई पत्थर एक्सपोज हुआ है तो उसमें प्रकाश की किरणें पेनिट्रेट कराई जाती हैं। इसके लिए पत्थर के अंदर ड्रिल किया जाता है। ऐसे में विवादित आकृति को नुकसान पहुंचने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।"

"ऑप्टिकल डेटिंग सिर्फ समय की एक माप तय करती है क्योंकि किसी भी निर्जीव वस्तु के अंदर का कुछ भाग रोशनी या गर्मी से सुरक्षित रह जाता है। वही ल्यूमिनेसेंस सिग्नल को प्रभावी ढंग से रीसेट करता है और वस्तु की अनुमानित उम्र ज्ञात हो सकती है। थर्मोल्यूमिनेसेंस डेटिंग से अनाज, पत्थर, बालू, मिट्टी के बर्तन इत्यादि की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस पद्धति से सिर्फ खुदाई में मिलने वाले पुरातात्विक अवशेषों की उम्र का पता लगाया जाता है। सटीक विश्लेषण के लिए यह जरूरी होता है कि खुदाई के तत्काल बाद थर्मोल्यूमिनेसेंस डेटिंग शुरू कर दी जाए। सालों से उपयोग हो रहे निर्जीव वस्तुओं की कार्बन डेटिंग कतई संभव नहीं है। पत्थर की कार्बन डेटिंग की बात करना तो पूरी तरह हास्यास्पद और अवैज्ञानिक है।"

मस्जिद का एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

बनारस के ज्ञानवपी मस्जिद का एक समृद्ध इतिहास है जो अक्सर विवादों से घिरा रहा है। मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान 17 वीं शताब्दी में यह मस्जिद बनाई गई। इसका निर्माण काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप किया गया। ज्ञानवापी मस्जिद मुगल और हिंदू स्थापत्य परंपराओं का एक संयोजन है। मस्जिद में अलंकृत नक्काशी, मीनारें और एक बड़ा आंगन है। इसके अंदर अति सुंदर मेहराब और गुंबद हैं। इसे लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर के मिश्रण से बनाया गया है, जो शानदार शिल्प और सौंदर्य कौशल को प्रदर्शित करता है।

"ज्ञानवपी" नाम का अर्थ "ज्ञान की भलाई" है, जो इस मस्जिद की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति पर गर्व करता है। अपने लंबे इतिहास के बावजूद अब इसकी धार्मिक वैधता को चुनौती दी जा रही है। इस मस्जिद को लेकर इतिहासकारों के अपने-अपने तर्क हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, भगवान शिव को समर्पित एक विश्वेश्वर मंदिर था जिसे ध्वस्त कर दिया गया था। साल 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई। कुछ मौखिक स्रोतों का कहना है कि ब्राह्मण पुजारियों को मस्जिद संरचना के भीतर रहने की अनुमति दी गई थी, जो हिंदू तीर्थयात्रा अधिकारों को बनाए रखते थे। कुछ लोगों का कहना है कि 13 वीं शताब्दी में कुतुब अल-दीन ऐबक ने इसे ध्वस्त किया था। बाद में रज़िया बेगम ने इस मस्जिद को बनवाया। जिनके नाम पर आज भी मस्जिद को जाना जाता है। ऐसी तमाम कहानियां हैं जो तत्कालीन राजाओं के माथे पर ज्ञानवापी मस्जिद के विध्वंस का आरोप चस्पा करती हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के आसपास के तमाम ऐतिहासिक तथ्य विवादास्पद हैं, जिनके जरिये सदियों से तर्क और कुतर्क गढ़ा जा रहा है। ज्ञानवापी मुद्दे पर तमाम कानूनी लड़ाइयां जारी हैं। बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मध्ययुगीन इतिहास के प्रोफेसर अली नदीम रिज़वी कहते हैं, "ज्ञानवापी मस्जिद को पूजा स्थल के बजाय "ऐतिहासिक महत्व के स्मारक" के चश्मे से देखा जाना चाहिए। विभिन्न कालखंडों के ऐसे प्रतीक अतीत से लेकर वर्तमान तक देश के स्थापत्य विकास को दर्शाते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर दोनों धार्मिक स्थलों के सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रदर्शित करते हैं, जिन्हें संरक्षित रखने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हिंदुओं की तरह, बौद्ध भी दावा कर सकते हैं कि उनके धार्मिक स्थलों और विरासतों को मंदिर बनाने के लिए गिरा दिया गया था। देश के व्यापक हित में यह प्रथा बंद होनी चाहिए।"

मुस्लिम समुदाय भयभीत क्यों? 

बनारस के जिला जज डॉ. अजय कृष्णा विश्वेश ने 21 जुलाई 2023 को ज्ञानवापी मस्जिद का ASI सर्वे करने और उसकी रिपोर्ट 04 अगस्त को कोर्ट में पेश करने का फैसला सुनाया था, जिसे मुस्लिम पक्ष ने पहले सुप्रीम कोर्ट चुनौती दी और बाद में यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंचा। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती देते हुए कहा है कि यह मुकदमा चलने योग्य नहीं है। इस मामले पर अभी निर्णय आना बाकी है। हालांकि बनारस में यह सवाल जोर-शोर से उठाया जा रहा है कि ज्ञानवापी के ASI सर्वे को मंजूरी देने में हड़बड़ाहट क्यों दिखाई गई?  अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैय्यद मोहम्मद यासीन ने ASI सर्वे पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। वह कहते हैं, "बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट ने 21 जुलाई 2023 की शाम साढ़े चार बजे ASI सर्वे का फैसला सुनाया और उस दिन फैसले की वैध व विधिवत नकल किसी भी पक्ष को नहीं दी गई। अगले दो दिन शनिवार और रविवार को अवकाश रहा तो सोमवार यानी 24 जुलाई की सुबह करीब सात बजे ASI का भारी भरकम अमला कैसे ज्ञानवापी मस्जिद में पहुंचा और नाप-जोख शुरू कर दिया? डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले की प्रतिलिपि 24 जुलाई को पूर्वाह्न दस बजे के बाद जारी की गई तो बनारस के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने एक दिन पहले हमें अपने दफ्तर में बुलाकर सर्वे में सहयोग करने के लिए हमारे ऊपर जबरिया दबाव क्यों डाला? "

मो.यासीन कहते हैं, "ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मुस्लिम पक्ष को कुछ ले जाने की अनुमित नहीं है। हमारी चटाई भी जाती है तो बम निरोधक दस्ता कर्ई-कई मर्तबा औजार लगाकर जांच-पड़ताल करता है। ऐसे में बड़ी संख्या में एएसआई के अफसर ज्ञानवापी मस्जिद में कुदाल-फावड़ा, गैता और हथौड़ा लेकर क्यों पहुंच गए? बम निरोधक दस्ते ने उन्हें कुदाल-फावड़ा और हथौड़ा ले जाने की अनुमति क्यों और किसके निर्देश पर दी? सावनी सोमवार को बनारस में लाखों लोग जुटते हैं। ASI  के अपर महानिदेशक आलोक त्रिपाठी कोर्ट को यह बता चुके हैं कि ज्ञानवापी का साइंटिफिक सर्वे कराया जाना था, जिससे भवनों को कोई नुकसान नहीं होगा। तो फिर सावनी सोमवार को मस्जिद में गैता, कुदाल और हथौड़ा ले जाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? ऐसे संवेदनशील मौके पर प्रशासन ने एएसआई के अफसरों को सर्वे की अनुमति क्यों दी? आखिर ASI के अफसरों की मंशा क्या थी? उन्हें कौन निर्देशित कर रहा था और वो किसके इशारे पर काम कर रहे थे?  हिंदू पक्ष ने तो जिला जज की अदालत में यह साफ-साफ कहा था कि मस्जिद में किसी तरह की कोई खुदाई नहीं की जाएगी। फिर बड़ी तादाद में औजार ले जाने की जरूरत क्यों पड़ी? हमें डर है कि कारसेवा के नाम पर जो कुछ अयोध्या में हुआ था, वही कहानी बनारस में दोहराई जा सकती थी? खुदा का शुक्र है कि शीर्ष अदालत ने तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप किया और ASI सर्वे को रोका।"

"अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने जब इस सर्वे का बायकाट कर दिया था तो एकतरफा सर्वे का औचित्य क्या था?  जिला जज की अदालत से जब कोई ऑर्डर बाहर नहीं निकला था तो बाजार में रेवड़ी की तरह वो कौन सा आर्डर बांटा जा रहा था? वो नकली ऑर्डर नकली भी हो सकता था। जिला जज को इस मामले की जांच करानी चाहिए कि बाजार में जो ऑर्डर घूम रहा था उसे कैसे वायरल किया गया?  एएसआई की नीयत साफ थी तो उसने हड़बड़ी में छुट्टी के दिनों में बनारस के कलेक्टर को चिट्ठी क्यों भेजी?  सर्वे के एक दिन पहले शाम को हमें कोतवाली पुलिस ने फोन पर बताया कि कल सुबह सर्वे होगा। फिर हमें रविवार की रात में पुलिस आयुक्त के दफ्तर में बुलाया गया। वहां डीएम राजलिंगम और डीआईजी संतोष कुमार सिंह भी मौजूद थे। उन्होंने खुद हमें बताया था कि उनके पास एएसआई का पत्र आया है। हमने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और हमें एक दिन की मोहलत चाहिए। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने हमें कोई भी मोहलत देने से इनकार कर दिया। आखिर इन अफसरों पर किसका दबाव था?  सुबह हमें पता चला कि सर्वे टीम रातो-रात आ चुकी है। दो समूह में कुल 54 लोग बनारस पहुंचे और न्यायिक प्रक्रिया को ताक पर रखकर सर्वे शुरू कर दिया, जबकि हमने कानून का साथ दिया। डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले की प्रति हासिल किए बगैर हम मस्जिद में किसी भी सर्वे के पक्ष में नहीं थे, जिसके चलते हमने इस प्रक्रिया का बायकाट किया।"

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव मो. यासीन खबरिया चैनलों की नीयत पर भी सवाल उठाते हैं और वह कहते हैं, "दिल्ली के पत्रकारों को न्योता देकर किसने बनारस बुलाया? ASI टीम के पहुंचने से पहले वो विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-चार पर कैसे पहुंच गए? इसका पता हमें तब चला जब दिल्ली की रुबिका लियाकत समेत कई पत्रकारों ने हमें ताबड़तोड़ फोन करना शुरू किया। हमें यह नहीं समझ में आया कि आखिर वो लोग एएसआई टीम के पहुंचने से पहले ही बनारस कैसे आ गए? इससे भी गंभीर मामलों में खबरिया चैनलों के लोग नहीं पहुंचते, लेकिन सर्वे की बात आई तो सब के सब आ धमके। कायदे-कानून को ताक पर रखकर अब तमाम खबरिया चैनल यह बताते फिर रहे हैं कि ASI को सर्वे में क्या-क्या मिला? यदि खबरिया चैनलों की रिपोर्ट सच है तो कोर्ट में पहुंचने से पहले उसकी रिपोर्ट उनके पास कैसे पहुंच गई? कोर्ट को ऐसे संवेदनशील मामलों में स्वतः ही संज्ञान लेना चाहिए। आखिर मनमाने तरीके से ज्ञानवापी मामले की व्याख्या करने वाले खबरिया चैनलों पर कोर्ट एक्शन क्यों नहीं ले रहा है? सिर्फ कोर्ट ही नहीं, बनारस जिला प्रशासन को भी चाहिए कि वो इस तरह का खिलवाड़ बंद कराए और शहर की गंगा जमुनी तहजीब के खिलाफ काम करने वालों पर एक्शन ले।"

"हिंदू पक्ष की राखी सिंह समेत पांच महिलाओं ने सिर्फ श्रृंगार गौरी में नियमित पूजा की अनुमति मांगी थी। इस पूजा पर मुस्लिम पक्ष को कोई एतराज नहीं था। लेकिन पूजा के बहाने वो मस्जिद के अंदर घुसकर वकील कमिश्नर से सर्वे करवाने में जुट गए। आखिर हमें यह अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है कि हम यह साबित करें कि विवादित आकृति शिवलिंग नहीं, फव्वारा है। झूठ खुला मैदान की तरह है, जिसकी कोई सीमा नहीं होती। जब झूठ ही बोलना है तो भला किसे कौन रोक पाएगा? सच यह है कि कुछ अदालती आदेशों ने ऐसी दरारें खोल दी हैं जिससे ऐसे विवादों को उभारने की उम्मीद पाले लोगों को कानूनी दलील पेश करने का मौका मिलता रहे।"

दो मस्जिदों का भविष्य अनिश्चित

अयोध्या कांड के बाद बीजेपी के अनुषांगिक संगठन आरएसएस और विहिप के लोग यह नारा लगाने लगे थे कि ‘अभी तो यह झांकी है, मथुरा-काशी’ बाकी है। वही लोग अब ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के ईदगाह पर मंदिर के निर्माण के लिए मुहिम चला रहे हैं। फिलहाल दोनों मस्जिदों का भविष्य अनिश्चित है क्योंकि साल 1991 का कानून अभी अधर में लटका है। पूजा कानून की संवैधानिकता पर तमाम याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। सियासी फायदे के लिए बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठन मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं, जिसे कानून इजाजत नहीं देता है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को सियासी फायदा पहुंचाने के लिए विहिप और आरएसएस ने मिलकर एक ऐसे मॉडल को तैयार कराया है जिसे आदि विश्वेश्वर मंदिर का बताया जा रहा है। अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यूपी समेत सभी बीजेपी शासित राज्यों में आदि विश्वेश्वर महादेव का मॉडल घुमाया जाएगा। आदि विश्वेश्वर मॉडल यात्रा का प्रपोजल संबंधित राज्यों को भेज दिया गया है। हिंदू पक्ष के सोहन लाल के हवाले से कहा गया है कि आदि विश्वेश्वर मंदिर के प्रतिरूप को हर रोज दिखाया जाएगा। हिंदुओं को बताया जाएगा कि उनके लिए ज्ञानवापी का मोल क्या है? मंदिर के इस मॉडल को कुंभ मेले में भी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए रखा जाएगा। सौ करोड़ जनता के हिंदू संस्कृति के प्रति जनजागृति चलाने का प्रयास किया जाएगा।

एक हिंदूवादी संगठन से जुड़े सोहनलाल कहते हैं, "मुस्लिम पक्ष के लोग सुप्रीम कोर्ट में जाकर बेवजह अड़ंगा डाल रहे हैं। वो झूठ बोल रहे हैं, इस वजह से ज्ञानवापी को हिंदुओं को सौंपने में देर हो रही है। 30 जुलाई 2023 को बनारस के सांस्कृतिक संकुल में आदि विश्वेश्वर मंदिर के इस मॉडल के लोकार्पण के दौरान सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरि शंकर जैन और विष्णु जैन, विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार सहित हिंदू संगठनों के कई पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। पिछले दो सालों से यहां इस मॉडल को बनाया जा रहा था। रामजन्म भूमि की तर्ज पर आदि विश्वेश्वर महादेव का प्रचार-प्रसार किया जाएगा।"

बीजेपी के अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद से जुड़े प्रो.नागेंद्र पांडेय की अगुवाई में ज्ञानवापी के मुद्दे पर एक नई मुहिम चलाई जा रही है। प्रो.नागेंद्र श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष भी हैं। 'ज्ञानवापी मुद्दाः प्रमुख पहलू संवाद श्रृंखला' के तहत वह बीएचयू और महात्मा गांधी विद्यापीठ समेत कई शिक्षण संस्थाओं में स्टूडेंट्स और शिक्षकों को बता रहे हैं कि ज्ञानवापी शब्द का वर्णन स्कंद पुराण में आता है। ज्ञानवापी के साथ मस्जिद शब्द का प्रयोग बंद किया जाए। करीब एक पखवाड़े पहले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कामधेनु सभागार में आयोजित संवाद कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "काशी में बाबा विश्वनाथ द्रव्य रूप में विराजमान हैं और ज्ञानवापी कूप साक्षात ज्ञान का कुआं है। हिंदू समाज को जीत के लिए त्याग और तपबल जागृत करना होगा।"

संवाद कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय धर्म जागरण प्रमुख अभय कुमार ने दावा किया कि ज्ञानवापी को आक्रांताओं ने ध्वस्त किया। इन स्थानों के गौरव को पुनः लौटाने के लिए हमें पुरजोर कोशिशें करनी होगी। इस कार्यक्रम में ज्ञानवापी मुक्ति महापरिषद के संस्थापक अध्यक्ष शिव कुमार शुक्ल, डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, बाला लखेंद्र, जय प्रकाश, अश्विनी कुमार, सत्यम मिश्र, डॉ. उपेंद्र विनायक सहस्रबुद्धे, अधिवक्ता मान बहादुर सिंह व अनुपम द्विवेदी, राजा आनंद ज्योति सिंह, पतंजलि पांडेय मौजूद थे। इन सभी ने मुस्लिम समुदाय को नसीहत दे डाली, "वो हठ छोड़कर हिंदू समाज के सभी ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को लौटा दें। हिंदू समुदाय के लोग ज्ञानवापी के मुद्दे को सांस्कृतिक हमले के रूप में देख रहे हैं।"

काशी विश्वनाथ के नियमित दर्शनार्थी वैभव त्रिपाठी कहते हैं, "मौजूदा दौर में जनता को गुमराह करने का एक नया ट्रेंड चल रहा है। इसी ट्रेंड के मुताबिक, एक मंदिर का मनगढ़ंत मॉडल बनाया गया है, जिसके जरिये देश की धर्मभीरू जनता को यह घुट्टी पिलाने की कोशिश की जाएगी कि औरंगजेब ने जिस आदि विश्वेश्वर को तोड़वाया था वह मंदिर पहले कैसा और कितना भव्य दिखता था?  दरअसल बीजेपी को लगता है कि यह मामला जनभावनाओं से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे सियासी तौर पर फायदा जरूर होगा। इसी रणनीति के तहत सितंबर 2022 में बीएचयू के इतिहास विभाग के एमए सेकंड सेमेस्टर की परीक्षा में एक विवादित सवाल पूछकर ज्ञानवापी के मुद्दे को गरमाने की कोशिश की गई थी। एमए के मध्ययुगीन भारत के राजनीतिक इतिहास के प्रश्न पत्र में यह सवाल पूछा गया कि काशी के आदि विश्वेश्वर मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़े जाने का जिक्र किस पुस्तक में किया गया है? परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स का कहना था कि यह सवाल उनके सिलेबस से बाहर का है। तब बीएचयू प्रशासन ने यह कहकर मामले को ठंडा कर दिया था कि प्रश्न-पत्र बनाने वाले प्रॉफेसरों से जवाब-तलब किया जा रहा है। बाद में इस मामले पर पर्दा डाल दिया गया।"

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर सवालिया निशान खड़ा करते हुए वैभव कहते हैं, "ASI  सर्वे पूरी तरह से सियासी चाशनी में लिपटा हुआ है। मणिपुर का ध्यान भटकाने और आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या की तरह ‘तगड़ा मुद्दा’ बनाने के लिए बीजेपी छटपटा रही है। बड़ा सवाल यह है कि जब मस्जिद में खुदाई पर पाबंदी थी तो ASI के लोग सावनी सोमवार के दिन लाखों लोगों की भीड़ के बीच भारी-भरकम औजार-गैता, हथौड़ा, कुदाल, फावड़ा लेकर ज्ञानवापी मस्जिद में क्यों घुसे?  हमें ऐसा लग रहा है कि यह मामला भी उसी दिशा में बढ़ रहा है, जिस तरह बाबरी मामला बढ़ा था।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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