Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

सहसा के बाद अब बगहा में पंचायत का तुगलकी फरमान सामने आया है, जिसमें एक 14 वर्षीय नाबालिग से 3 बार दुष्कर्म करने वाले उसके बुजुर्ग पड़ोसी पर पंचायत ने  ₹ 2 लाख जुर्माना लगाकर मामला निपटाने का आदेश दिया है।
Bagaha
Image courtesy : TOI

ज़रा सोचिए, जो देश संविधान से चलता हो, जहां कानून का राज हो और तो और दिन-रात विकास और सुशासन का ढोल पीटा जाता हो, वहीं एक नाबालिग लड़की की आबरू महज़ चंद पैसों में लपेट दी जाए तो, क्या आप इसे एक आज़ाद देश और प्रदेश शान से कह पाएंगे? ये किसी फिल्म का डायलॉग नहीं है, बल्कि हमारे देश भारत और उसके राज्य बिहार की कड़वी सच्चाई है। पितृसत्तात्मक समाज और तुगलकी पंचायती फरमान आज भी यहां महिलाओं को न न्याय दे रहा है और न ही आज़ादी से जीने दे रहा है। और इसका एक बड़ा कारण सरकारों की नाकामी और रूढ़िवादी ताकतों को मिली शह है।

महज़ महीनेभर पहले ही बिहार के सहसा में रेप की घटना को पंचायत ने रफा-दफा करने के लिए अजीबोगरीब फैसला सुनाते हुए आरोपी युवक से 70 हजार रुपए में समझौते के जरिए मामले को दबाने का आदेश दिया था। अब एक बार फिर बिहार के ही बगहा जिले में एक 14 वर्षीय नाबालिग से 3 बार दुष्कर्म करने वाले उसके बुजुर्ग पड़ोसी को पंचायत ने 2 लाख में मामला निपटाने का फरमान सुनाया। हैरानी की बात ये है कि पीड़िता की मां ने जब थाने में आवेदन दिया तो शुरुआत में पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।

बता दें कि महिला थानाध्यक्ष ने पंचायत के सुलहनामे पर पीड़िता का आवेदन वापस कर दिया। जब सोशल मीडिया पर मामले से जुड़ा वीडियो वायरल हुआ तब पुलिस प्रशासन जागा। फिलहाल बगहा के एसपी किरण कुमार जाधव ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए तत्काल प्रभाव से थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया है, वहीं आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला बगहा के भैरोगंज थाना क्षेत्र के एक गांव से जुड़ा हुआ है और लगभग छह महीने पुराना है। यहां एक 14 वर्षीय नाबालिग से उसके 60 वर्षीय पड़ोसी ने पहले दुष्कर्म किया, फिर पीड़िता के गर्भवती होने पर गर्भपात कराया और उसके बाद भी डरा-धमका कर बलात्कार करता रहा। मामला पंचायत में पहुंचा तो रातों-रात पंचायती बैठाकर नाबालिग की आबरू का सौदा दो लाख रुपये में तय कर दिया गया। बकायदा इसके लिए पंचों के सामने एक पंचनामा भी तैयार किया गया, जिसमें आरोपी ने स्वीकार किया कि उसने लड़की के साथ दुष्कर्म किया है और इसके एवज में वो 31 मार्च तक पीड़िता को शादी के लिए ₹ 2 लाख जुर्माना के रूप में पीड़िता के परिवार को देगा।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक तय तिथि पर राशि नहीं दिए जाने पर परिवार वाले मामले में एफआईआर दर्ज कराने थाने पहुंचे, पर वहां भी केस दर्ज नहीं किया गया। उसके बाद फिर पंचातय बैठी अब पंचायत की ओर से आरोपित को जुर्माना की राशि का भुगतान करने के लिए 7 अप्रैल तक का समय दिया गया। इसके बाद आरोपी के पंचनामे का वीडियो वायरल होने लगा।

पुलिस की किरकिरी और मामले के तूल पकड़ने के बाद एसपी किरण कुमार जाधव ने खुद मामले का संज्ञान लिया और दुष्कर्म के आरोपित को गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया।

पुलिस का क्या कहना है?

इस घटना जानकारी देते हुए एसपी जाधव ने मीडिया से कहा कि नाबालिग के साथ रेप की घटना सामने आई थी। बगहा पंचायत द्वारा मामले को सुलझाने की कोशिश की गई। इस संबंध में महिला थाने में एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इस आरोप की जांच की गई। जांच में आरोप सही पाए गए। इसके बाद महिला थानाध्यक्ष के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

एसपी जाधव के अनुसार दुष्कर्म के आरोप में आरोपित पर एफआईआर दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया है। आरक्षी अधीक्षक ने महिला थाने प्रभारी को भी मामले में उनकी ओर से बरती गयी लापरवाही के कारण उन्हें निलंबित भी कर दिया गया है। मामले में पुलिस जांच जारी है अभी और भी अगर किसी के लिप्त होने की बात सामने आती है तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

पंचायतों को सिर्फ मध्यस्थता का अधिकार है, दंड देने का नहीं

मालूम हो कि पंचायतों के इस तरह के विवादित फैसले अक्सर सामने आते हैं और ज्यादातर ये हरियाणा और बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में देखे जाते हैं। प्रेमी जोड़ों की हत्या कर देना या फिर उन्हें समाज से बहिष्कृत कर देना, अजीबोगरीब सजाएं सुनाना और ऐसे फैसलों को मानने के लिए बाध्य कर देना बहुत आम है। बावजूद इसके कि पंचायतों के इस तरह के फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ रोक लगा चुका है बल्कि एक गाइडलाइन भी बनाकर दे रखी है। लेकिन पंचायतों पर इसका असर कम ही दिखाई पड़ता है।

ध्यान रहे कि सजा सुनाने वाली ये पंचायतें उस पंचायती राज व्यवस्था का अंग नहीं हैं जिसका प्रावधान संविधान में है और जो निर्वाचित संस्था होती हैं। हालांकि इन पंचायतों को भी सिर्फ मध्यस्थता का अधिकार है, दंड देने या फिर किसी को दोषी ठहराने का नहीं। हालांकि खाप पंचायत का ज़िक्र अक्सर गाँव, जाति, गोत्र, परिवार की 'इज़्ज़त' के नाम पर होने वाली हत्याओं के संदर्भ में बार-बार होता है। शादी के मामले में यदि खाप पंचायत को कोई आपत्ति हो तो वे युवक और युवती को अलग करने, शादी को रद्द करने, किसी परिवार का सामाजिक बहिष्कार करने या गाँव से निकाल देने और कुछ मामलों में तो युवक या युवती की हत्या तक का फ़ैसला करती है।

पंचायतों के ख़ौफ़नाक ग़ैरक़ानूनी फ़ैसला

वैसे तो खाप पंचायत एक ग़ैर क़ानूनी पंचायती व्यवस्था है, जिसे सुप्रीम कोर्ट अवैध ठहरा चुकी है। यह प्राचीन समाज का वो रूढ़िवादी हिस्सा है, जो आधुनिक समाज से सामंजस्य नहीं बैठा पाता है। यह पंचायत व्यवस्था हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी सक्रिय है और समय-समय पर तुग़लकी फ़रमान जारी करती रहती है। चप्पलों से पीटने, थूक चटवाने, सिर मुंड़ाकर घुमाने, कोड़े लगवाने जैसे पंचायतों के फरमान न सिर्फ समाज के सामने एक बड़ी चुनौती हैं बल्कि विकास और सभ्य होने के तमाम दावों पर सवालिया निशान भी लगाते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर इन पंचायतों के खौफनाक गैरकानूनी फैसले लोग क्यों मानते ही क्यों हैं?

ट्रायल और सज़ा सुनाने का पंचायतों को कोई हक़ नहीं

कानूनी जानकारों के मुताबिक गैरकानूनी पंचायतों को कोई हक ही नहीं है कि वे आपराधिक घटनाओं का ट्रायल करें और अभियुक्तों को तालिबानी तर्ज पर सजा सुनाए। लेकिन इन पंचायतों को निश्चित तौर पर समाज के रूढ़िवादी ताकतों की शह प्राप्त है। दकियानूसी और पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले समाज और राजनीति के तमाम लोग इन पंचायतों के समर्थन में रहते हैं।

हरियाणा के भिवानी में रहने वाले एक खाप पंचायत के पूर्व प्रमुख चौधरी शमशेर सिंह खाप पंचायतों के विस्तार को समझाते हुए न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया था कि ये पंचायतें गाँवों में बहुत पुरानी हैं। जैसे-जैसे गांव बसते गए वैसे-वैसे ऐसी रिवायतें भी बढ़ती गईं। वैसे पारंपरिक तौर पर तो एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। ये फिर पाँच गाँवों की हो सकती है या 20-25 गाँवों की भी हो सकती है। जो गोत्र जिस इलाक़े में ज़्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज़्यादा दबदबा होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है।

चौधरी शमशेर के मुताबिक जब भी खाप की बैठकें होती हैं, सभी गाँव निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएँ या न आएँ और जो भी फ़ैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फ़ैसला बताया जाता है। पंचायतें कई ऐसे सामाजिक कार्य करती हैं जो आमतौर पर सरकारें नहीं करती हैं और चूंकि पंचायतों में शामिल लोग और उनके काम स्थानीय स्तर पर और उन्हीं के हित में होते हैं इसीलिए लोग उन्हें मानते भी हैं और ये सभी पर बाध्य होता है। बाध्य से ज्यादा लोग इसे खुद ही पत्थर की लकीर मान लेते हैं।

गौरतलब है कि शासन और सरकार भी अप्रत्यक्ष रूप कहीं न कहीं खाप को समर्थन देते ही नज़र आती हैं। इसकी एक प्रमुख वजह वोट की राजनीति भी है। सत्ता में ज्यादातर वही लोग बैठे हैं जो इसी समाज में पैदा और पले-बढ़े हैं और इसी को आगे बढ़ाने में अपना फायदा समझते हैं। औरतों, वंचितों के अधिकारों से ज्यादा उन्हें अपने सामाजिक और तथाकथित सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाकर सत्ता हासिल करना है।

इसे भी पढ़े: बिहार: सहरसा में पंचायत का फरमान बेतुका, पैसे देकर रेप मामले को रफा-दफा करने की कोशिश!

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest