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बिहार: कबीर की निडरता और गांधी के सत्याग्रह का संदेश देती है 'ढाई आखर प्रेम' पदयात्रा

ढाई आखर प्रेम का प्रतीक चिह्न, महात्मा गांधी की मुस्कुराती तस्वीर और बापू के पदचिह्न से मधुबनी पेंटिंग से सजा बैनर लिए पदयात्रियों का जत्‍था उस राह पर चल रहा है जो नफ़रत और हिंसा को मिटाने के आह्वान के साथ प्रेम, सत्य और अहिंसा का मार्ग प्रशस्‍त कर रहा है।
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ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था के बिहार पड़ाव 'बापू के पदचिह्न' का समापन 14 अक्टूबर को हो गया। प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के राष्ट्रीय अभियान के अंतर्गत बिहार की पदयात्रा 7 अक्टूबर से शुरू हुई और लगातार आठ दिनों तक गली, मुहल्ले, गांव, शहर में पदयात्रा चलती रही। हाथों में लाठी, गले में खादी का सफ़ेद गमछा और कंधे से कमर तक लटका हुआ झोला पदयात्रियों की पहचान बना। अनवरत चलता हुआ जत्था 'ढाई आखर प्रेम', 'तू खुद को बदल तो ये सारा ज़माना बदलेगा', हम भारत से नफ़रत का हर दाग मिटाने आए हैं' गीत गा रहा था।

पदयात्रा में सबसे आगे युवा लड़कियां खादी का बना बैनर हाथ में लिए हैं। ढाई आखर प्रेम का प्रतीक चिह्न, महात्मा गांधी की मुस्कुराती तस्वीर और बापू के पदचिह्न से मधुबनी पेंटिंग से सजा बैनर बरबस ही आकर्षित करता है। लगभग 45 - 50 पदयात्री समूह चल रहे हैं। इस समूह में युवा, युवती और प्रौढ़ सभी शामिल थे जैसे कि एक पूरा परिवार चल रहा हो। उस राह पर जो देश दुनिया और समाज के दुःख से दुःखी हैं। अपनी नहीं, अपने देश की चिंता है। नफ़रत, घृणा और हिंसा के सामने प्रेम, सत्य और अहिंसा खड़ी है। ये युवा, प्रौढ़ कलाकार - अभिनेता - गायक - संगीतकार हैं, लेखक - कवि - नाटककार हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्होंने असंख्य राष्ट्रीय मंचों पर देश और राज्य का गौरव बढ़ाया है। वे सभी सड़को-गलियों पर पैदल चलते हुए प्रेम, मोहब्बत के संदेश दे रहे हैं।

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा की चर्चा करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख़्तर बताते हैं कि यह साथ-साथ रहने, खेलने, पढ़ने और अपने जीवन को सबसे अच्छे ढंग से जीने के लिए सामाजिक महत्व का राष्ट्रीय अभियान है। देश के 22 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में यह अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान से राष्ट्रीय स्तर पर इप्टा, प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ जैसे संगठन जुड़े हैं और राज्य स्तर पर कई और संगठन जुड़े हुए हैं। यह संख्या 200 से अधिक हो जाती है और लगातार बढ़ती ही जा रही है।

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की शुरुआत भगत सिंह के जन्मदिवस 28 सितम्बर से शुरू हुई और जत्था महात्मा गांधी के शहादत दिवस के अवसर पर अगले साल 30 जनवरी को समाप्त होगा। भगत सिंह और महात्मा गांधी के इस अभियान से जुड़ाव के महत्व को रेखांकित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कहते हैं कि यह अभियान सत्य, अहिंसा से अपने देश और देशवासियों से प्रेम का संदेश है। भगत सिंह ने बहरी ब्रितानी सरकार को सुनाने के लिए और गांधी ने कभी भी न झुकने वाली सरकार को नतमस्तक करने के लिए सत्याग्रह और जन भागीदारी का रास्ता चुना। आज जब देश में एक अजीब तरह की नफ़रत को बढ़ाया जा रहा है। युवाओं के अंदर घृणा भड़कानेवाला और हिंसक होने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। महिलाओं के साथ अमानवीय हिंसा हो रही है। दलितों, मुसलमानों को जाति-धर्म के नाम पर सताया जा रहा है, हिंसा की जा रही है। ऐसे में महात्मा गांधी और भगत सिंह एक बार फिर प्रसांगिक हो जाते हैं। युवाओं में भगत सिंह की रवानी और महात्मा गांधी की समग्रता इस देश की ज़रूरत है।

बापू के पदचिह्न: बिहार पड़ाव

राष्ट्रीय स्तर पर ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की शुरुआत 28 सितम्बर को अलवर, राजस्थान से हुई। बिहार में इस यात्रा का उप नामकरण 'बापू के पदचिह्न' रखा गया। इस संबंध में बिहार इप्टा के महासचिव फीरोज अशरफ खां जानकारी देते हैं कि बिहार ने महसूस किया कि झूठ और प्रोपेगेंडा के इस समय में पूरी दुनिया को एक चंपारण और गांधी की तलाश है। नील के रूप में की जा रही झूठ, प्रोपेगेंडा की खेती के खिलाफ ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा एक सत्याग्रह के रूप में चलाई जाए। ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा को बिहार में इस सोच के साथ कनेक्ट किया गया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार चंपारण सत्याग्रह ने तीन कठिया नील खेती के खिलाफ़ अंग्रेजी हुकूमत की नाफरमानी की उसी प्रकार ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा झूठ, नफ़रत और घृणा के खिलाफ़ नाफरमानी को सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। हम नाटक, गीत, नृत्य और सांस्कृतिक संवाद से सच बोलने, प्रेम करने और साथ मिलकर रहने का आह्वान करते हैं।

बिहार पड़ाव की शुरुआत

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा का बिहार पड़ाव बांकीपुर जंक्शन (वर्तमान में पटना जंक्शन) पर 7 अक्टूबर को प्रारंभ हुआ। प्लेटफॉर्म नंबर एक पर बापू के बिहार आगमन की याद में लगाए गए शिलापट्ट पर इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, बिहार प्रगतिशील लेखक संघ महासचिव रविन्द्र नाथ राय और बिहार इप्टा के अध्यक्ष मंडल सदस्य समी अहमद के नेतृत्व में माल्यार्पण किया गया। जंक्शन परिसर में पदयात्रियों ने गीत गाए और ढाई आखर प्रेम का संदेश दिया। कलाकारों ने रहीम, कबीर के पदों से प्रेम का ताना बाना बुना।

पटना यूथ हॉस्टल से पदयात्रा प्रारंभ हुई और महात्मा गांधी और भगत सिंह को प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर भिखारी ठाकुर रंगभूमि, दक्षिणी गांधी मैदान पहुंची।

अस्थाई रूप से तैयार इस रंगभूमि पर पदयात्री कलाकारों ने जनगीत गाए। कबीर की पदावली पर आधारित भाव नृत्य प्रस्तुत किया और नाटक का मंचन किया।

उपस्थित दर्शक समूह को संबोधित करते हुए इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा ने कहा कि ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा एक ओर कबीर, रैदास, रहीम, मीरा, रसखान के पद्यों के बहाने इस राह को पहचानने की कोशिश है जो प्रेम करना सिखाता है। आदमी से आदमी को जोड़ता है। वहीं दूसरी ओर गांधी के सत्याग्रह को झूठ बोलने, नफ़रत करने की राजनीति के खिलाफ़ निडरता के खड़े होने का आग्रह है। प्रख्यात चिकित्सक डॉ सत्यजीत ने कहा कि पदयात्रा शहर से गांव को कनेक्ट करने और साझे सांस्कृतिक विरासत को मज़बूत बनाने के लिए है। सामाजिक कार्यकर्ता रूपेश ने कहा कि कलाकारों, साहित्यकारों ने हर दौर में अपनी भूमिका सुनिश्चित की है। चाहे बंगाल का अकाल हो या आज़ादी की लड़ाई, आपातकाल के खिलाफ़ जन संघर्ष हो या नफ़रत के खिलाफ़ मोहब्बत का कारवां कलम और संगीत ने जनता के पक्ष को चुना है।

मुजफ्फरपुर पहुंची यात्रा, बापू कूप पर हुआ साहित्य संस्कृति का संगम

ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा 8 अक्टूबर की सुबह-सुबह मुज़फ्फरपुर पहुंची और छाता चौक पर जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पदयात्रा लंगट सिंह कॉलेज परिसर में स्थित बापू कूप पहुंची। अप्रैल 1917 में बापू ने यहां स्नान किया था और मोतिहारी के लिए रवाना हुए। बापू कूप के समीप पदयात्रियों ने 'प्रेम का बंधन' और 'गंगा की कसम जमुना की कसम' वाले गीत गाएं। कविताओं का पाठ हुआ और यात्रा के उद्देश्यों पर नागरिक चर्चा हुई।

पदयात्रियों का जत्था जमालाबाद आश्रम (मूसहरी प्रखण्ड) पहुंचा, जहां जय प्रकाश-प्रभावती मुसहरी प्रवास स्वर्ण जयंती संवाद पदयात्रा का समापन हो रहा था। वहां जत्थे के साथियों ने उनसे मिलकर आपसी बातचीत के माध्यम से अपने-अपने उद्देश्यों का आदान-प्रदान किया और फिर पूर्वी चंपारण के लिए रवाना हो गए।

जसौली पट्टी और तीन कठिया के खिलाफ संघर्ष

पदयात्रा अपने सात दिनों के प्रवास के लिए सूरज ढलते ही पूर्वी चंपारण में प्रवेश कर तुरकौलिया प्रखण्ड के जसौली पट्टी गांव में प्रवेश कर गया। जसौली पट्टी ही चंपारण सत्याग्रह की पौधशाला है। गांधी जी के आदेश पर अंग्रेज नीलहों के खिलाफ जसौली पट्टी में ही आंदोलनकारी किसानों के बयान लिखे गये थे। चंपारण सत्याग्रह के एक नायक लोमराज सिंह की कर्मभूमि में पदयात्रियों ने संध्या फेरी लगाई और देश से नफ़रत के हर दाग को मिटाने के गीत गए। शाम को आयोजित सांस्कृतिक संध्या में बड़ी संख्या महिलाओं, युवती और ग्रामीणों ने शिरकत की। रात्रि विश्राम के बाद पदयात्रियों का जत्था प्रभात फेरी करते हुए बनवीरवा, कोइरगावां, कंझिया, कोटवा बाज़ार, नागर चौक, हेमन्त छपरा, चिहुटाउन, गैर, अमवा, माधोपुर कमिटी चौक, सेवरिया, तुरकौलिया चौक, तुरकौलिया नीम पेड़, कोरईया, मटवा, बिशुनपुरवा, सपही जटवा, सपही आदर्श चौक, हादमरव, वृतिया, सपही बाज़ार, कोडरवां, चौलान्हा चौक, चौलान्हा बाज़ार चौक, अजगरी, पकड़िया, बत्तख मियां का मजार, इमदाद सिसवा पूर्वी की पदयात्रा 12 अक्‍टूबर तक पूरी की गई।

मोतिहारी शहर पहुंची यात्रा

13 अक्‍टूबर के दोपहर बाद ढाई आखर प्रेम पदयात्रा ने मोतिहारी शहर में प्रवेश किया। शहर के बलुआ बाजार, और एनसीसी कैंप के समीप के गली मुहल्लो में अभियान चलाया गया। रात्रि विश्राम के बाद बिहार पड़ाव के अंतिम दिन सुबह प्रभात फेरी निकाली गई। टाउन थाना चौक, अस्पताल रोड, महात्मा गांधी रोड, बंजारिया की पैदल यात्रा को गई और ढाई आखर प्रेम के संदेश साझा किया गए। इस दौरान बिहार इप्टा के महासचिव फीरोज अशरफ खां भी आज की पदयात्रा में शामिल हुए और उन्होंने कहा कि "ढाई आखर प्रेम का राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था बापू के पदचिह्न पर पदयात्रा करते हुए आज मोतिहारी शहर पहुंच गया। प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के गीत गाते कलाकारों ने आमजन को जीवन से प्रेम करने और सबके लिए सुन्दर दुनिया बनाने का संदेश दिया। बापू के पदचिह्नों पर प्रेम के ढाई आखर की बात करने हम कलाकार, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता जनता के बीच हैं। हम समाज के तौर पर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, वैसे- वैसे हममें दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं। दूरियां बढ़ाई भी जा रही हैं। हम जो एक ताना-बाना में बुने हुए थे, उसे ख़त्म करने की कोशिश हो रही है। नफ़रत बढ़ाने वाले लोग बढ़ रहे हैं। हमारे टेलीविज़न चैनलों और मोबाइल पर दूरी पैदा करने वाले झूठ, नफ़रती कार्यक्रम, वीडियो और संदेश दिन-रात आ रहे हैं। वे हमें साथ रहना नहीं सिखाते. वे लड़ाना सिखाते हैं. हम यहां लड़ने या लड़ाने की बात करने नहीं आए हैं।

लखनऊ (उत्तर प्रदेश) से शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार और जेंडर कार्यकर्ता नसीरुद्दीन ने कहा कि हम बापू के पदचिह्नों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। बापू के पदचिह्न यानी बापू के बताए रास्तों को खोजने और उन पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। बापू के पदचिह्न पर चलने का मतलब, सत्य, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव की राह पर चलना।

महात्मा गांधी को याद करते हुए झारखंड से पदयात्रा में शामिल हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र ने कहा कि बापू अपने को हिन्दू मानते और खुलकर कहते थे। वे बार-बार कहते थे, ‘मैं अपने आपको केवल हिन्दू ही नहीं, बल्कि ईसाई, मुसलमान, यहूदी, सिख, पारसी, जैन या किसी भी अन्य संप्रदाय का अनुयायी बताता हूं। इसका मतलब यह है कि मैंने अन्य सभी धर्मों और संप्रदायों की अच्छाइयों को ग्रहण कर लिया है। इस प्रकार मैं हर प्रकार के झगड़े से बचता हूं और धर्म की कल्पना का विस्तार करता हूं।’ यह बात उन्होंने 10 जनवरी 1947 को कही थी। यानी एक धर्म मानने का मतलब यह नहीं होता कि हम दूसरे धर्मों के ख़िलाफ़ हो जाएं। हमें साथ-साथ रहना है तो साथ-साथ प्रेम से जीना ही होगा।

कार्यक्रम संयोजक अमर ने कहा कि हम बापू के ऐसे ही संदेश लेकर आए हैं। बापू ने इसी कोशिश में अपनी जान दे दी। उन लोगों ने उनकी जान ले ली जो हमें एकसाथ मिलकर रहते हुए देखना नहीं चाहते थे। बापू के पदचिह्न पर चलने का मतलब है, दूसरों के लिए जान देना. किसी की जान लेना नहीं। आइए हम सब अपनी ज़िंदगी में प्रेम के ढाई आखर को याद रखें। अहिंसा, नम्रता और सत्य को याद रखें। क्योंकि बापू का मानना था, ‘सत्य ही परमेश्वर है…’।

समापन समारोह का गवाह बना गांधी संग्रहालय

14 अक्टूबर को दोपहर बाद गांधी स्मृति संग्रहालय परिसर में ढाई आखर प्रेम बिहार पड़ाव का समापन समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आगाज 'हम है इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा' के गायन से किया गया।

समापन समारोह को संबोधित करते हुए लखनऊ से आए वरिष्ठ पत्रकार नसीरुद्दीन ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आज हर देश को गांधी की ज़रूरत है। चाहे वो हमारा देश हो या फिलीस्तीन, इस्राइल, कनाडा। सबको गांधी के सत्याग्रह की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि आज देश दुनिया को एक बार फिर से एक चंपारण और गांधी की ज़रूरत है। वो गांधी जो निडर होकर सच बोलने और प्रेम करना सिखाए। हिंसा, नफ़रत और युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। बच्चे पढ़ना चाहते हैं। युवा को रोजगार की गारंटी चाहिए और सबको सत्ता, समाज और विकास में समानुपातिक हिस्सेदारी चाहिए। इसलिए आदमी से आदमी का प्रेम करना और सच को निर्भीकता से कहना ही सत्याग्रह है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र ने कहा कि प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के संदेश लेकर पूरे देश में कलाकार, साहित्यकार, कवि, लेखक, नाटक करने वाले, गीत गाने वाले, हंसने और हंसाने वाले, सबकी भागीदारी में विश्वास रखने वाले इसी प्रकार से पदयात्रा कर रहे हैं। ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था 28 सितम्बर से अलवर, राजस्थान से शुरू हुआ और 30 जनवरी 2024को दिल्ली में समाप्त होगा। 22 राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों में सांस्कृतिक सामाजिक महत्व के इलाके में पदयात्रा की जा रही है। इस यात्रा का बिहार पड़ाव 7 अक्टूबर से प्रारंभ होकर आज यहां समाप्त हो रहा है तो कल से पदयात्रा पंजाब में शुरू होगी। महात्मा गांधी के शहादत दिवस 30 जनवरी तक निरंतर यह यात्रा चलती रहेगी। प्रेम का संदेश पूरे देश में फैलता रहेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता शरद कुमारी ने कहा कि प्रेम और बंधुता ही मानवता की सबसे बढ़ी वाहक हैं। हम प्रेम करते हैं तो प्रेम बढ़ता है। लेकिन जो कुछ मणिपुर में हो रहा है और हुआ उससे विचलित हैं। आईए अपने घर, परिवार और समाज की महिलाओं से प्रेम करें।

बिहार इप्टा के कार्यवाहक महासचिव फिरोज अशरफ खां ने कहा कि ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था का बिहार पड़ाव महात्मा गांधी के पदचिह्न पर चलकर प्रेम का संदेश देने का प्रयास है। चंपारण सत्याग्रह ने देश को अंग्रेजी गुलामी से मुक्ति की राह खोली थी और हम इस ढाई आखर प्रेम पदयात्रा से नफ़रत, हिंसा और घृणा से मुक्ति का आह्वान करते हैं। इस पदयात्रा में हम बांकीपुर जंक्शन (पटना जंक्शन) से मुजफ्फरपुर में बापू कूप (लंगट सिंह कॉलेज) पहुंचे और उसके बाद सात दिनों तक पूर्वी चम्पारण के गांव गांव में पदयात्रा घूमी। प्रेम के संदेश को जनगीत, नाटक और नृत्य में प्रस्तुत किया।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा के स्थानीय संयोजक अमर भाई ने स्वागत करते हुए कहा कि यह पदयात्रा आदमी से आदमी को जोड़ने की यात्रा है। हर पड़ाव, हर चौराहे पर समुदाय के पदयात्रियों ने खाना खाया, पानी पिया और आराम किया। गांव की महिलाओं, युवाओं और बच्चों ने पदयात्रियों के साथ मिलकर इसको सफल बनाया। यही इस पदयात्रा की सफलता का सूत्र है कि सारे रास्तों में हम बापू के जन बनाते गए और लोगों को जोड़ते गए हैं।

इस मौके पर बृजकिशोर सिंह (सचिव, गांधी संग्रहालय), डा० परवेज (अध्यक्ष, जिला शांति समिति), श्रीमती शशिकला (पूर्व प्राचार्य, जिला स्कूल), ई० गप्पू राय, बरकत खां, मुमताज़ आलम, गुलरेज शहजाद (पूर्व पार्षद), पारसनाथ (अवकाश प्राप्त शिक्षक), विनय कुमार सिंह (सह संयोजक, आयोजन समिति, ढाई आखर प्रेम), कपिलेश्वर राम, विनोद कुमार, इंद्रभूषण रमन बमबम, चांदना झा आदि ने भी भागीदारी की।

धन्यवाद ज्ञापन आयोजन समिति के सह संयोजक मंकेश्वर पाण्डेय के किया और गांधी स्मृति संग्रहालय और मोतिहारी के आवाम को आभार व्यक्त किया।

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था ने पीयूष सिंह के नेतृत्व में 'रघुपति राघव राजा राम' की प्रस्तुति हुई। एस एस हिमांशु ने 'तू खुद को बदल', राजेंद्र प्रसाद राय ने 'खदिया पहेन के ना' और लक्ष्मी यादव ने 'बढ़े चलो नौजवान' एवं 'कैसे जइबे है सजानिया' का गायन किया। मधुबनी, सिवान और भागलपुर इप्टा के कलाकारों ने नृत्य की प्रस्तुति की।

रायपुर (छत्तीसगढ़) से आए निसार और देवराज की जोड़ी ने गम्मत शैली में नाटक की प्रस्तुति की। राजन ने भगत सिंह के अंतिम पत्र का नाटकीय पाठ किया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन शंकर शैलेंद्र के कालजयी गीत 'तू ज़िंदा है तू ज़िन्दगी के जीत में यकीन कर' के गायन से हुई।

स्थानीय आयोजन समिति की अथक प्रयास ने ग्रामीणों को जोड़ा। 
चंपारण के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को जोड़कर एक आयोजन समिति का गठन किया। इस समिति संयोजक अमर भाई और सह संयोजक विनय कुमार सिंह एवं मंकेश्वर पाण्डेय बनाए गए। समिति के अन्य सदस्य हमीद रजा, अजहर हुसैन अंसारी, दिग्विजय कुमार और उमा शंकर प्रसाद बनाए गए। इस समिति पूरी पदयात्रा को नागरिक कार्यक्रम रूप में बनाने की कोशिश की। 

पदयात्रियों के साथ स्थानीय ग्रामीणों, युवाओं, महिलाओं ने भी कदम से कदम मिला कर पदयात्रा की। घर घर से खाना बटोरकर पदयात्रियों के भोजन और जलपान की व्यवस्था की। अपने घर से पुआल, चादर लाकर रात्रि विश्राम का प्रबंध किया। जिससे जो बन पड़ा, जो बना सके वह सब खिलाया और ढाई आखर प्रेम से जुड़े।

सांस्कृतिक कार्यक्रम ने जोड़े दिल

रितेश रंजन, एस एस हिमांशु और पीयूष सिंह के संयोजकत्व पदयात्रियों का जत्था लगातार आठ दिनों तक चलता रहा। 35 स्थायी पदयात्री और रोजाना 15-20 की संख्या में जुड़ने वाले सह सहयात्रियों को इंद्र भूषण रमण बमबम ने संयोजित किया। जनगीत, नृत्य और नाटक आकर्षण के केन्द्र रहें। रायपुर छत्तीसगढ़ से आए निसार और देवराज की जोड़ी ने गम्मत शैली में नाटक प्रस्तुत कर हर जगह अपनी अलग पहचान बनाई। मधुबनी, सिवान और भागलपुर के दल ने नृत्य की प्रस्तुति कर ग्रामीणों को मुग्ध कर दिया तो वहीं राजन द्वारा भगत सिंह के अंतिम पत्र के पाठ ने दर्शकों को रोमांचित किया।

बिहार पड़ाव के खत्म होते पदयात्रा पंजाब, उत्तराखंड, उड़ीसा, जम्मू, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में एक एक करके शुरू होने को तैयार है।

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