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बिहार: भारी बारिश से कई ज़िलों में बाढ़ जैसे हालात

ये भारी वर्षा समशीतोष्ण मौसम की घटनाओं का परिणाम है जो राज्य ने पूरी गर्मियों में महसूस किया है।
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पटना: इस सप्ताह की शुरुआत तक बिहार में वर्षा की 29% कमी थी और सूखे जैसी स्थिति का डर किसानों को सता रहा था। पिछले तीन दिनों से राज्य में भारी बारिश के बाद यह स्थिति बदल गई, जिससे कई जिलों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। नदियों का पानी निचले गांवों और घरों में घुसने से बड़ी संख्या में लोगों के सामने संकट पैदा हो गया है।

ये भारी वर्षा समशीतोष्ण मौसम की घटनाओं का परिणाम है जो राज्य ने पूरी गर्मियों में महसूस किया है, जो कि कुछ महीने पहले अत्यधिक गर्मी के साथ शुरू हुई थी।

किसानों ने खुशी जताई है क्योंकि बारिश उनके धान की खेती के लिए महत्वपूर्ण होगी जो जून में खराब मानसून के कारण देर हो गई थी।

साथ ही, भारी बारिश के कारण कई नदियों और उनकी सहायक नदियों में जल स्तर में अचानक वृद्धि हुई है जिससे सीमांचल और कोशी क्षेत्रों के बाढ़ संभावित जिलों में अप्रत्याशित बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है। गंगा, कोशी, बागमती, गंडक, महानंदा, कमला बालन, भूठी बलान, बकरा, परमान, कंकई और लालबेकिया समेत सभी प्रमुख नदियां उफान पर हैं। अधिकारियों ने अलर्ट जारी किया है और नदियों के पास निचले इलाकों में रहने वाले लोगों से ऊंचे स्थानों पर जाने की अपील की है।

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पटना स्थित भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र के अधिकारियों के अनुसार, 72 घंटों की भारी बारिश ने राज्य को 29% की कमी को तो पूरा कर ही लिया साथ ही 6% अधिक वर्षा हो गई।

"आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 1-27 जून के बीच 99.5 मिमी बारिश दर्ज की गई जो कि सामान्य से 29% कम थी। यह एक अच्छा संकेत नहीं था। लेकिन पिछले तीन दिनों के दौरान हुई भारी बारिश के बाद चीजें बदल गईं जो जून के सामान्य कोटा से अधिक है।"

आईएमडी के अधिकारियों ने कहा कि भारी बारिश के कारण बिहार में 30 जून तक 172.3 मिमी बारिश दर्ज की गई जबकि सामान्य बारिश 163.3 मिमी थी। इस तरह 6% अधिक बारिश हुई है।

पिछले 13 वर्षों में जून में मानसूनी बारिश सामान्य से पांच गुना अधिक रही है। 2021 में बिहार में 111% अधिक वर्षा हुई, 2020 में 82%, 2011 में 37%, 2013 में 5% और 2022 में 6% अधिक वर्षा हुई है।

जुलाई और अगस्त के दौरान राज्य में भारी वर्षा सामान्य रही है। लेकिन जून में हुई अधिक बारिश के कारण निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।

लोकल रिपोर्टों के अनुसार, बाढ़ का पानी अररिया, सहरसा, पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, सुपौल, पूर्वी चंपारण, मधुबनी और सीतामढ़ी जिलों के दर्जनों ब्लॉकों में सैकड़ों गांवों में प्रवेश कर गया और अगले 24 घंटों में राज्य के अन्य जिलों में नए क्षेत्रों में फैलने की संभावना है। कई जगहों पर बाढ़ का पानी निचले इलाकों को डूबा दिया है और राष्ट्रीय राजमार्ग समेत अन्य सड़कों पर तीन से चार फुट ऊंचा बह रहा है।

बिहार के लिए बाढ़ कोई नई बात नहीं है। न केवल प्रमुख नदियां बल्कि उनकी सहायक नदियां, जो मुख्य रूप से मानसून की बारिश से भरी रहती हैं, वे भी बड़े क्षेत्रों में बाढ़ लाती हैं और इस तरह हजारों लोगों को विस्थापित करते हुए गांव का गांव डूबा देती हैं।

कोसी, बागमती और गंडक में बढ़ते जल स्तर के कारण विभिन्न स्थानों पर इसके तटबंधों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। जल संसाधन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, 'पिछले दो दिनों में नदियों का जलस्तर बढ़ने के बाद तटबंधों पर दबाव बढ़ गया है।"

डब्ल्यूआरडी की वेबसाइट के अनुसार, बिहार देश में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है जो भारत के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का लगभग 17.2% है। 94.16 लाख हेक्टेयर में से 68.80 लाख हेक्टेयर (76 फीसदी उत्तरी बिहार का और दक्षिण बिहार का 73 फीसदी) बाढ़ की चपेट में हैं। इस समय राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ की चपेट में हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की वार्षिक वर्षा रिपोर्ट (भारत के वर्षा सांख्यिकी) के अनुसार, बिहार में एक सामान्य मानसून वर्ष में 1,027.6 मिमी वर्षा होती है और इसकी औसत वार्षिक वर्षा, जिसमें प्री-मानसून, मानसून, पोस्ट-मानसून और सर्दी शामिल है, उसमें 1,205.6 मिमी होती है।

जून में अधिक बारिश किसानों के लिए अच्छी खबर है। आईएमडी की 3 जुलाई तक और भारी बारिश की भविष्यवाणी खरीफ सीजन के दौरान धान की खेती के लिए एक सकारात्मक संकेत है। बिहार में किसान खरीफ फसलों, मुख्य रूप से धान, जो कि अधिक पानी वाला फसल है, के लिए मानसूनी बारिश पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। इस मानसून में पर्याप्त बारिश से किसान खुश हैं।

राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस वर्ष 35.14 लाख हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य है। कम वर्षा के कारण पानी की कमी के चलते 35,000 हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले अब तक 11,000 हेक्टेयर में धान की बुआई पूरी की जा चुकी है।

वैज्ञानिकों के अनुसार अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए धान की रोपाई 15 जुलाई तक पूरी कर ली जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि और देरी उत्पादकता के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगी।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें 

Bihar: Flood-like Situation in Many Districts due to Heavy Rainfall

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