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बिहार: किसान महापंचायत में ‘खेत-खेती-किसान बचाओ, कॉरपोरेट लूट का राज मिटाओ’ का आह्वान

रोहतास जिला स्थित बिक्रमगंज में हुई ‘राष्ट्रीय किसान महापंचायत’ में देश के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के कई चर्चित नेताओं के साथ साथ 24 राज्यों से पहुंचे किसान महासभा के साढ़े पांच सौ से भी अधिक किसान प्रतिनिधि शामिल हुए।
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कभी ‘धान का कटोरा’ कहा जानेवाले बिहार के पुराना शाहबाद का इलाका (वर्तमान रोहतास-कैमूर-भोजपुर) आज अपनी पहचान खोता जा रहा है। क्षेत्र के खेत-फसलों के साथ साथ गाँव समाज के लोगों की जीवनदायिनी सोन नदी से मिलनेवाला पानी भी सरकारों की ध्वस्त हो चुकी सिंचाई-पटवन व्यवस्था के कारण अब मिलना बेहद मुश्किल हो गया है। फलतः अनेक किसानों के लिए यह घाटे का सौदा बनता जा रहा है।

ऐसे में 23 सितम्बर को इस इलाके के रोहतास जिला स्थित बिक्रमगंज में आयोजित हुई ‘राष्ट्रीय किसान महापंचायत’ कार्यक्रम पूरे क्षेत्र के व्यापक किसानों व आम लोगों में भी काफी चर्चा का विषय रहा। जिसका आयोजन देश के संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा के प्रमुख घटक अखिल भारतीय किसान महासभा ने अपने चौथे राष्ट्रीय सम्मलेन (23-24 सितम्बर) के अवसर पर किया था।

पंचायत में देश के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के कई चर्चित नेताओं के साथ साथ 24 राज्यों से पहुंचे महासभा के साढ़े पांच सौ से भी अधिक किसान प्रतिनिधि शामिल हुए। इसके अलावे महासभा के घटक संगठन पंजाब किसान यूनियन, सत्य शोधक शेतकारी सभा व श्रमिक शेतकारी संगठना (महाराष्ट्र) व जल्ला किसान संघर्ष समिति, पटना के प्रतिनिधियों तथा आस पास के क्षेत्र के हजारों किसान शामिल हुए।

‘खेत-खेती किसान बचाओ, कॉरपोरेट लूट का राज मिटाओ’ के आह्वान के साथ आयोजित इस किसान महापंचायत ने सर्वसम्मति से 6 सूत्री प्रस्तव पारित कर मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा खेती-किसानी पर किये जा रहे हमलों के खिलाफ फिर से किसानों का जुझारू आंदोलन खड़ा करने की घोषणा की।

मुख्या वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने किसान महापंचायत को किसान आंदोलन के महासम्मेलन का आयोजन नाम देते हुए कहा कि किसानों का आंदोलन अब देश का राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है। जैसे आज़ादी के आंदोलनों के दौर हुआ करता था। यह किसान आंदोलन आज देश में फिर से फासीवाद और हिटलरशाही से मुक्ति दिलाने में एक महत्वपूर्ण ताक़त बनकर उभरा है। इसीलिए कॉरपोरेट घरानों और मोदी सरकार को किसानों से डर है।

मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज़ाद भारत में यह पहली सरकार है जो गरीबों और परेशान हाल आम लोगों से आटा-चावल तक पर जबरन टैक्स वसूल रही है और उसी टैक्स के पैसों से अडानी-अम्बानी को विश्व का सबसे अमीर बनाने में लगी हुई है। इस सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं है लेकिन नीयत सही नहीं होने के कारण ही देश के अन्नदाता किसानों को देने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं है और मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं है। जबकि पूंजीपतियों-कॉरपोरेट कंपनियों के करोड़ों की कर्ज माफी से लेकर उन्हें अपने उत्पादन का अधिकतम मूल्य तय करने का अधिकार मिला हुआ है। जिससे ध्यान हटाने के लिए किसानों और गरीबों के बीच नकली लड़ाई खड़ा करने की साजिश कर रही है। अडानी-अम्बानी जैसों को अकूत जमाखोरी का अधिकार देकर देश की जनता पर कमरतोड़ महंगाई और खाद्य संकट थोप रही है। जिसके खिलाफ जनवितरण प्रणाली को मजबूत कर भोजन के सम्पूर्ण अधिकार की गारंटी की लड़ाई लड़ने में भी इस किसान आंदोलन को खड़ा होने के साथ साथ देश के लोकतंत्र और संविधान बचाने की मुहिम का नेतृत्व करना होगा।

देश में चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बेहद चर्चित नाम पंजाब किसान यूनियन व किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रुलदू सिंह मानसा ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि देश के बहादुर किसानों और जनता की एकता ने ही मोदी सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। पंजाब से शुरू हुए इस आंदोलन को मोदी सरकार ने बदनाम करने और छल-बल से तोड़ने में पूरी ताक़त लगा दी थी। तो किसानों ने भी ऐलान कर दिया था कि तीनों कानूनों की वापसी कराये बिना हम घर वापस नहीं जायेंगे। उस समय हमने बार बार यही कहा था कि हमें पुलिस और सेना के हमलों का कोई डर नहीं था क्योंकि उसमें किसान के ही बेटे जाते हैं।

उन्होंने कहा कि आंदोलन पर अनेक हमले मोदी सरकार द्वारा भेजे गए आरएसएस के लोगों ने किया। इसी तरह गोदी मीडिया के समानांतर किसानों ने अपनी मीडिया को खड़ा करके पूरी दुनिया को असली सच बताते रहे। आज देश में दो ही जमातें हैं, एक हैं मेहनत करनेवाली और दूसरी है हमें लूटनेवाली। जिसके खिलाफ हम जंग के लिए तैयार हैं और इंक़लाब लाकर रहेंगे।

महापंचायत का माहौल उस समय गर्मजोशी भरे नारों से भर उठा जब चर्चित लखीमपुर खीरी काण्ड में मोदी सरकार के निशाने पर रहे लोकप्रिय युवा किसान नेता तराई किसान संगठन के तेजेन्दर सिंह विर्क बोलने उठे। जिनके ऊपर लखीमपुर खीरी में जानलेवा हमला किया गया था। तेजेन्दर सिंह विर्क ने अपने जोशपूर्ण संबोधन में कहा कि उस समय हुए हादसे का वो छोटा सा वीडियो पूरी दुनिया में वायरल नहीं हुआ होता तो वे “देशद्रोह” के आरोप में जेल में होते। उस काण्ड में बेहद गंभीर रूप घायल होकर इलाजरत होने के दौरान लोगों की दुआओं के लिए सबका हार्दिक आभार जताते हुए किसान आंदोलन के सन्दर्भ में कहा कि अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। बिहार में हुए बदलाव के लिए जनता को धन्यवाद करते हुए कहा कि एमएसपी से वंचित यहाँ के किसानों की सुध लेनी होगी।

प्रख्यात जन आंदोलनकारी और नर्मदा बचाओ अभियान की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि ये देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ के अन्नदाता किसानों को भूमि और फसलों को बचाने लिए लड़ना पड़ रहा है। क्योंकि ऐसी ताक़त सत्ता में काबिज़ है जिसने पहले कभी भी हाथ से तिरंगा नहीं छुवा। लेकिन देश की आजादी के 75 साल पुरे होने के नाम पर ‘अमृत महोत्सव’ मनाने का नाटक करते हुए घर घर तिरंगा बाँट रही है। आज़ाद हिन्दोस्तान में खाने-पीने की सभी चीजों पर टैक्स लगाकर हमसे पैसे वसूल रही और अडानी अम्बानियों की जेबें भर रही है। महापंचायत के लिए अयोजकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि सही समय पर सही काम हुआ है। हमें पूरी ताक़त से खेती-हरियाली और इंसान-इंसानियत बचाने की लड़ाई लड़नी है।

महाराष्ट्र से आये देश के चर्चित किसान नेता व अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि किसान आंदोलन ने दिखला दिया है कि आज देश का बहुसंख्य किसान जाग चुका है। वह मोदी राज द्वारा फैलाये जा रहे छद्म हिन्दू राष्ट्रवाद की आड़ में किसानों की ज़मीन और फसलें छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को दिए जाने का खेल समझ गया है। सब खुली आँखों से देख रहें हैं कि कैसे भाजपा और आरएसएस पुरे देश के संसाधनों को बेचने के और निजीकरण करने के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहें हैं। स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट लागू करने की मांग करते हुए कहा कि किसान सिर्फ अपने लिए नहीं लड़ रहें हैं। बिहार के सन्दर्भ में बोलते हुए कहा कि 75 साल की आजादी के बाद भी यहाँ से सामंतवाद नहीं गया है। यहाँ के किसानों की बदहाली दूर करने को लेकर नयी सरकार को गंभीर होना चाहिए।

किसानों के राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि जैसे बिहार की जनता ने यहाँ के शासन में नया बदलाव लाकर एक उदहारण प्रस्तुत किया है, यह संकेत है कि आनेवाले समय में नए बदलाव के लिए यहाँ के किसानों का आंदोलन अहम् भूमिका निभाएगा। जिसके लिए किसानों के साथ साथ लोगों ने भी उम्मीद लगा रखी है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि देश में चले किसान आंदोलन को मजबूत बनाने में बिहार के किसानों का भी सक्रिय योगदान रहा है। आज की यह पंचायत सिर्फ एमएसपी और खाद्य सुरक्षा के मुद्दे के लिए ही नहीं बल्कि देश की रीढ़ यहाँ की पूरी कृषि व्यवस्था को बचाने के लिए है। जिसे मोदी शासन कॉरपोरेट कम्पनियों के हवाले करने पर आमादा है। जिसके लिए होनेवाले किसान आंदोलन की एक मजबूत शुरुआत बिहार से की जायेगी। इस कार्यक्रम के माध्यम से बिहार की नयी सरकार से भी मांग की जायेगी कि वो ज़ल्द से ज़ल्द ‘कृषि विकास मैप’ को ज़मीन पर उतारे। साथ ही ‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले क्षेत्र में सोन नदी क्षेत्र से जुड़ी सभी सिंचाई परियोजनाओं को लागू कर किसानों को घाटे की खेती से उबारे।

किसान महासभा के वरिष्ठ नेता व भाकपा माले विधायक सुदामा प्रसाद ने महापंचायत की ओर से किसानों की 6 सूत्री मांग पात्र को प्रस्तुत किया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया।

कार्यक्रम को पंजाब से आयीं पूरे किसान आंदोलन के दौरान लगातार मोर्चा पर डटी रहनेवाली चर्चित नेता जसबीर नट ने भी ‘मोर्चा’ के अनुभव साझा किये।

ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी व किसान महासभा की नेता पूर्व विधायक मंजू प्रकाश ने किसान आंदोलन में महिलाओं की जुझारू भागीदारी को रेखांकित किया। साथ कहा कि जैसे खेती-किसानी का कोई भी काम महिलाओं की सक्रिय भूमिका के बिना संभव नहीं होता है, आज इसे बचाने की लड़ाई में भी इनकी भूमिका का महत्व है। उत्तर प्रदेश से आये किसान नेता जयप्रकाश सिंह द्वारा किसान आंदोलन पर लिखित पुस्तक ‘किसानों ने जब दिल्ली घेरी’ का लोकार्पण किया गया।

महापंचायत की ओर से मंचासीन किसान आंदोलन के आगंतुक नेताओं के साथ साथ किसान आंदोलन को हर क़दम पर सक्रिय समर्थन देनेवाले ट्रेड यूनियनों की ओर से आंदोलनकारी रेलवे ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों व अन्य प्रमुख हस्तियों को सम्मानित किया गया।

महापंचायत का एक आकर्षण रही जन संस्कृति मंच के कलाकारों द्वारा किसान आंदोलन के जन गीतों की आकर्षक प्रस्तुतियां।

महापंचायत उपरांत बिक्रमगंज इंटर महाविद्यालय परिसर स्थित किसान नेता कृपाल सिंह वीर सभागार के शहीद भईया राम यादव मंच पर किसान महासभा का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन संपन्न हुआ। जिसमें बिहार के अलावा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दक्षिण के आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, ओड़िसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल समेत असम व त्रिपुरा के किसान प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मलेन में किसान महापंचायत से पारित प्रस्तावों के साथ साथ विभिन्न राज्यों के किसानों के सभी ज्वलंत सवालों तथा कृषि संकट के इस दौर में गरीब किसानों, बंटाईदार व माध्यम किसानों की बड़ी गोलबंदी पर जोर देते हुए उक्त मुद्दों पर स्वतंत्र व संयुक्त राष्ट्रीय किसान आंदोलन खड़ा करने के कार्यभार तय किये गए। सम्मलेन ने सर्वसम्मति से नया राष्ट्रीय परिषद् व कार्यकारिणी का चुनाव किया। किसान नेता रुलदू सिंह एवं राजाराम सिंह को पुनः किसान महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष व महासचिव बनाया गया। ‘हम होंगे कामयाब’ के समूहगान व जोशपूर्ण नारों के साथ सम्मलेन संपन्न किया गया।

किसान महापंचायत व सम्मलेन से पारित प्रस्ताव :

1. एमएसपी की कानूनी गारंटी करना, 2. खेती को लाभप्रद बनाने के लिए किसानों को फसल का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य निर्धारण, 3. सभी बंटाईदार किसानों को चिह्नित कर उनका पंजीकरण कर खेती सब्सिडी की गारंटी व उनके कृषि कर्जों की वापसी, 4. सभी ज़रूरतमंद ग्रामीण गरीबों तक पीडीएस के माध्यम से राशन की गारंटी, 5. बंद मंडियों को अविलम्ब चालू करना, 6. कदवन (बिहार) जलाशय ज़ल्द निर्माण व सोन नदी से जुड़ी सभी नहरों का आधुनिकीकरण के साथ साथ खेती व रोज़गार को बर्बाद करनेवाली तमाम नीतियों की वापासी व ‘लम्पी’ को राष्ट्रीय पशु महामारी घोषित कर त्वरित कार्ययोजना लागू करना।

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