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बसों में जानवरों की तरह ठुस कर जोखिम भरा लंबा सफ़र करने को मजबूर बिहार के मज़दूर?

बाराबंकी की घटना हमें बताती है कि मेहनत मज़दूरी करने वाले बिहार के मज़दूरों की जान कितनी सस्ती है। 12 से 15 सौ किमी लंबी यात्रा बस से करने के लिए मजबूर इन मज़दूरों को सीट से तीन गुना से भी अधिक क्षमता में बस में भर लिया जाता है।
बसों में जानवरों की तरह ठुस कर जोखिम भरा लंबा सफ़र करने को मजबूर बिहार के मज़दूर?

इस मंगलवार, 27 जुलाई 2021 की आधी रात को यूपी के बाराबंकी में एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ। बिहार के मजदूरों को पंजाब के लुधियाना से लेकर वापस लौट रही बस, जो रास्ते में खड़ी थी, को पीछे से एक ट्रक ने टक्कर मार दी। इस टक्कर में 18 मजदूरों की मौत हो गयी। इस हादसे में 25 अन्य मजदूर घायल हो गये, जिनमें से कई की हालत अभी भी ठीक नहीं है। दुखद तथ्य यह है कि 42 सीट वाली इस बस में 130 मजदूरों को बिठा लिया गया था।

बस में बुरी तरह ठुसे मजदूर पंजाब और हरियाणा से धान की रोपणी करके अपने घर वापस लौट रहे थे। ओवरलोड होने की वजह से बस खराब होकर खड़ी थी, इसलिए नीचे उतर कर ठहल रहे कई यात्रियों की जान बच गयी, वरना मरने वालों की संख्या और अधिक हो सकती थी।

यह घटना हमें बताती है कि मेहनत मजदूरी करने वाले बिहार के मजदूरों की जान कितनी सस्ती है। 12 से 15 सौ किमी लंबी यात्रा बस से करने के लिए मजबूर इन मजदूरों को सीट से तीन गुना से भी अधिक क्षमता में बस में भर लिया जाता है और इनकी जान की कोई कीमत नहीं होती है।

मंगलवार को हुए हादसे में मरने वाले मजदूरों की संख्या अधिक थी, इसलिए यह खबर चर्चा में आयी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मृत मजदूरों के परिजनों के लिए दो-दो लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की। हालांकि ऐसे हादसे अमूमन होते रहते हैं और कोरोना काल में ट्रेनों के परिचालन अनियमित होने की वजह से मजदूरों को हमेशा इन खतरों को उठाकर चलना पड़ता है। जानकारों का मानना है कि ऐसी बसें लगातार नियमों की अवहेलना करके चलती हैं।

इसी साल जून महीने की नौ तारीख को हरियाणा के जींद में बिहार के सुपौल से पंजाब के बरनाला जा रही एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी, जिसमें दो मजदूरों की मौत हो गयी और 14 घायल हो गये। इस बस में भी 76 मजदूर सवार थे। 26 मई, 2021 को बिहार के गोपालगंज में पंजाब से मजदूरों को लेकर लौट रही एक मिनी बस का हादसा हो गया, इसमें भी दो मजदूरों की मौत हो गयी और 13 घायल हो गये। 18 नवंबर, 2020 को पंजाब से बिहार लौट रही एक बस यूपी के मुरादाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हो गयी, जिसमें दो मजदूरों की मौत और 30 से अधिक घायल हो गये। इस बस में भी 80 मजदूर सवार थे। अगस्त, 2020 यूपी के सीतापुर में एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जो पंजाब से बिहार लौट रही थी। इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गयी। ऐसे हादसे अक्सर होते रहते हैं।

इन सभी हादसों में एक बात कॉमन है कि ये सभी बसें एक हजार किमी से अधिक दूरी तय करती हैं, ओवरलोडेड होती हैं और अमूमन इन बसों को एक ही ड्राइवर लेकर चलते हैं। ये सभी बस अमूमन बिनी खिड़कियों वाली होती हैं, क्योंकि ये एयरकंडीशंड होती हैं। इसलिए अक्सर इनमें आग लग जाया करती हैं और इन हादसों में लोगों की जान का जोखिम बना रहता है। मगर बिहार के मजदूरों को राज्य से बाहर ले जाने के लिए ये बसें सुविधाजनक होती हैं, इसलिए रेलगाड़ियों के साथ-साथ लंबी दूरी की बसों का परिचालन भी लंबे समय से हो रहा है।

बिहार के मजदूरों को ढोने वाली इन लंबी दूरी की बसों के परिचालन पर नजर रखने वाले मुजफ्फरपुर के सामाजिक कार्यकर्ता ब्रजेश कहते हैं कि रेल के मुकाबले भले ही ये बसें उतनी सुविधाजनक नहीं होती हैं, मगर मजदूरों और उनके सप्लायरों दोनों के लिए ये बसें मुफीद साबित होती हैं। ट्रेन में इन अनपढ़ मजदूरों को रेलवे टीटीई परेशान करते हैं। अक्सर सीट नहीं मिलती। बसों में एक साथ बैठने और अपने काम की जगह उतर जाने की सुविधा रहती है।

ब्रजेश कहते हैं, इसी वजह से कोरोना से पहले जब बिहार के मजदूरों को अलग-अलग जगह ले जाने वाली रेलगाड़ियां बड़ी संख्या में चलती थीं, तब भी ऐसी 200-250 बसें चलने लगी थीं, जो मजदूरों को पंजाब और दिल्ली ले जाया करती थीं। कोरोना और लॉकडाउन के बाद जब रेलगाड़ियां अनियमित हो गयीं तो अब ऐसी बसों की बाढ़ आ गयी। आज की तारीख में न सिर्फ दिल्ली और पंजाब बल्कि गुजरात, राजस्थान से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक से बसें बिहार आती और जाती हैं। बिहार के हर कस्बे से ऐसी बसें मजदूरों को लेकर चलती हैं। पूरे बिहार में जगह-जगह देश के अलग-अलग कोने की बसें बड़ी संख्या में देखी जा सकती हैं।

वे कहते हैं, मगर ये बसें रेगुलर परमिट पर नहीं चलतीं। इन्हें टूरिस्ट परमिट मिला होता है। अमूमन ये बसें एक ही ड्राइवर लेकर चलती हैं औऱ लंबी यात्रा में वह अक्सर थक जाता है। टूरिस्ट परमिट की वजह से इन्हें दूसरे राज्यों में ठहरने की इजाजत नहीं होती। अक्सर इन बसों में नियत 42 सीटों से काफी अधिक मजदूरों को बिठा लिया जाता है। ये एसी बसें होती हैं इसलिए इनकी खिड़कियां भी पूरी तरह पैक होती हैं। मैं इन बसों के परिचालन का विरोधी नहीं, मगर मैं यही कहता हूं कि ये बसें कायदे से चलें और मजदूरों को लंबी दूरी के हिसाब से आराम मिले।

ब्रजेश इन बातों को लेकर लगातार अभियान चलाते रहते हैं, इस वजह से दो साल पहले इन पर जानलेवा हमला भी हो चुका है। दुखद है कि अपने मजदूरों के हित में इन बसों के लिए नियम कायदों का पालन करने के लिए मजबूर करने में बिहार सरकार की कोई रुचि नहीं है। इसके बदले बिहार राज्य पथ परिवहन नियम ने भी बिहार के अलग-अलग शहरों से दिल्ली तक के लिए बसों का परिचालन शुरू कर दिया है। इन बसों का किराया एक हजार से 15 सौ रुपये तक है।

ऐसे में थोड़ी अधिक आमदनी के लालच में बिहार के मजदूर इन बसों पर जान जोखिम में डालकर सवार होते हैं। बस वाले इन्हें जानवरों की तरह ठूस कर ले जाते हैं और अक्सर ये बसें हादसे का शिकार होती हैं।

(पटना स्थित लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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